करिअर फंडानेताजी बोस के जीवन से 5 सबक:विरोधियों का भी सम्मान करें…हमेशा प्रोग्रेसिव सोच रखें

5 महीने पहले
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कदम कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा, ये जिन्दगी है कौम की, तू कौम पे लुटाए जा।
तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से तू कभी ना डर, उड़ा के दुश्मनों का सर, जोश-ए-वतन बढ़ाए जा।
कदम कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा…

- आईएनए का रेजिमेंटल सॉन्ग

संडे मोटिवेशनल करिअर फंडा में स्वागत!

दृढ़ निश्चय का सफर, सिविल सेवा से मिलिट्री हमले तक

आज बात करेंगे एक इंसान के बारे में जो एक संपन्न परिवार में पैदा हुआ, इंटेलिजेंट इतना कि सिविल सर्विसेज एग्जाम्स में चौथा स्थान प्राप्त किया, सरकार में सेवाएं दी लेकिन फिर देशभक्ति के चलते जमी-जमाई नौकरी छोड़ राजनीति में आ गया। ये थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस।

समय के साथ उनका कद बढ़ा, फिर दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, लेकिन पटेल और गांधीजी से मतभिन्नता के चलते कांग्रेस छोड़कर अपना राजनीतिक दल 'फॉरवर्ड ब्लॉक' (समाजवादी-कम्युनिस्ट) बनाया।

सेकेंड वर्ल्ड वॉर की शुरुआत होने पर, अंग्रेज़ों द्वारा नजरबंद होने के बावजूद अफगानिस्तान, रूस होते हुए जर्मनी पंहुच गए, और वहां से जापान पहुंचकर इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए - आजाद हिन्द फौज) की कमान संभाली और अंग्रेजों पर सैन्य आक्रमण कर दिया! अंग्रेज उनसे बेहद भयभीत रहते थे और अंग्रेजों के अनेक समर्थक (1942-44) ब्रिटिश सेना में हिंदुस्तानी लड़कों की भर्ती के लिए कैंप लगाते थे, जो नेताजी बोस की आजाद हिन्द फौज से लड़ते थे।

आज देखते हैं उनके जीवन से हमारे लिए 5 महत्वपूर्ण सबक।

नेताजी बोस से मॉडर्न लाइफ के 5 लेसन

1) बड़े लक्ष्यों के लिए बड़े त्याग (Big sacrifice for big goals)

किशोर सुभाषचंद्र बोस की ये तस्वीर कोलकाता स्थित उनके पैतृक निवास में ली गई थी।
किशोर सुभाषचंद्र बोस की ये तस्वीर कोलकाता स्थित उनके पैतृक निवास में ली गई थी।

बोस का जन्म बंगाल प्रांत के कटक में हुआ था और उनके 14 भाई-बहन थे। वे मेधावी थे, उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया। उच्च शिक्षा के लिए, उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के तहत स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में बीए किया। उन्हें 1919 में प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में चौथा स्थान मिला था। बाद में, उन्होंने इस नौकरी से इस्तीफा दे दिया। वे गांधीजी से मोटीवेट हो गए थे, और अब ब्रिटिश सरकार की सेवा नहीं करना चाहते थे।

लेसन: बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बड़े त्याग करने पड़ते हैं, फिर भले परिवार सहमत हो न हो।

2) समाजसेवा की प्रेरणा से जमींदारी उन्मूलन तक (Social service to zamindari elimination)

1930 की इस तस्वीर में कांग्रेस की एक बैठक में नेताजी और पंडित जवाहर लाल नेहरू साथ दिख रहे हैं।
1930 की इस तस्वीर में कांग्रेस की एक बैठक में नेताजी और पंडित जवाहर लाल नेहरू साथ दिख रहे हैं।

16 वर्ष की उम्र में, स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण की रचनाओं को पढ़कर वे उनकी शिक्षाओं पर मोहित हो गए। सामाजिक सेवाओं और सुधार पर विवेकानंद के जोर ने बोस को प्रेरित किया और उनकी समाजवादी राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित किया। फिर 1930 में उनकी जवाहरलाल नेहरू से कट्टर मित्रता हो गई और दोनों कांग्रेस में ये प्रस्ताव लाए कि भारत से जमींदारी समाप्त की जाएगी। 1950 के दशक में प्रधानमंत्री नेहरू ने ये कर भी दिया।

लेसन: समाज में परिवर्तन कड़े क़दमों से ही आता है।

3) एक-दूसरे का सम्मान आवश्यक है, भले ही मत या मन न मिलें (Respect even opponents)

1938 की इस तस्वीर में कांग्रेस के हरिपुर सेशन के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी बात करते दिख रहे हैं।
1938 की इस तस्वीर में कांग्रेस के हरिपुर सेशन के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी बात करते दिख रहे हैं।

बोस दो बार अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। पहले 1923 में, और फिर 1938 में। 1939 में उनका कांग्रेस से मतभेद हो गया और उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर स्वयं की पार्टी 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की। बोस अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की वकालत करते थे, जबकि गांधी उपनिवेशवादियों से आजादी पाने के लिए केवल अहिंसक तकनीकों का उपयोग करने पर कायम थे। इसके अलावा, सरदार पटेल का नेताजी से 6 साल लम्बा कानूनी मुकदमा 1934 से चला था, जिसमें पटेल अपने बड़े भाई की प्रॉपर्टी (जो नेताजी को दे दी गई थी), वापस ले लेना चाहते थे। केस पटेल 1939 में जीत गए थे।

विचारों का मतभेद होने पर भी गांधी और बोस दोनों एक-दूसरे का सम्मान करते थे। बोस ने ही गांधीजी को सबसे पहले 'राष्ट्रपिता' कहकर पुकारा था, और उन्हें 'देशभक्तों का देशभक्त' कहते थे।

लेसन: सम्मान देने के लिए विचार समान होना जरूरी नहीं।

4) अन्याय के खिलाफ खड़े होना (Stand against injustice)

1943 की इस तस्वीर में सुभाष चंद्र बोस बैठे दिख रहे हैं, जबकि रास बिहारी बोस भाषण दे रहे हैं।
1943 की इस तस्वीर में सुभाष चंद्र बोस बैठे दिख रहे हैं, जबकि रास बिहारी बोस भाषण दे रहे हैं।

सुभाष चंद्र बोस एक जाति के तौर पर अंग्रेजों से घृणा नहीं करते थे, लेकिन वे अन्याय के खिलाफ थे।

सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ अवज्ञा का पहला कार्य प्रेसीडेंसी कॉलेज में किया था, जब उन्होंने प्रोफेसर ओटेन पर हमला किया था, जिन्होंने कथित तौर पर भारत विरोधी टिप्पणियां की थीं। इसके लिए उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। 1921 से 1941 तक, सुभाष को पूर्ण स्वतंत्रता के लिए अपने स्टैंड के कारण 11 बार अलग-अलग जेलों में कैद किया गया था। इस बीच, राष्ट्रवादी नेता रास बिहारी बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन किया। 1943 में रासबिहारी बोस ने इस सेना का प्रभार सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया।

लेसन: अन्याय के खिलाफ खड़े होना सबकी जिम्मेदारी है।

5) प्रगतिशील सोच (Progressive thinking)

तस्वीर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज की रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट के साथ दिख रहे हैं।
तस्वीर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज की रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट के साथ दिख रहे हैं।

नेताजी बोस प्रगतिशील विचारों में कई वर्तमान नेताओं को पीछे छोड़ते हैं। वे जाति-पांति, धर्म, लिंग, रंग किसी भी चीज से ऊपर की सोच रखते थे। आईएनए में उन्होंने एक अलग महिला बल, रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट का गठन किया। वे चाहते थे कि महिलाएं अपने देश के लिए लड़ने के लिए भारतीय राष्ट्रीय सेना में भर्ती हों।

स्वयं उन्होंने एमिली शेंकल नाम की एक ऑस्ट्रियाई मूल की महिला से शादी की थी। उनकी एक बेटी अनीता बोस भी हैं जो एक प्रसिद्ध जर्मन अर्थशास्त्री हैं।

वे पूर्ण रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता को समर्पित रहे। सांप्रदायिक ताकतों से घृणा करते थे।

आज भले ही सुभाष चंद्र बोस शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं है, आजाद हिंद रेडियो स्टेशन से दिए गए उनके नारे 'जय हिंद', 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' आगे आने वाली पीढ़ियों को जोश दिलाते रहेंगे।

तो आज का संडे मोटिवेशनल करिअर फंडा ये है कि नेताजी बोस की प्रोग्रेसिव, मॉडर्न और सेक्युलर थिंकिंग को हर भारतीय को समझना चाहिए, और समाज को बेहतर बनाने में अपना योगदान देना चाहिए।

कर के दिखाएंगे!

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