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झुग्गी में रहने वाले ने रतन टाटा का ऑफर ठुकराया:बोले- मां ने दूसरे घरों में बर्तन मांजे, लेकिन मुझे पैसे नहीं, काम चाहिए

7 महीने पहलेलेखक: नीरज झा
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30 की उम्र। पैदा होने से लेकर अब तक गरीबी का दंश झेल रहा हो। बूढ़ी मां, पत्नी और 3 साल के बच्चे के साथ मुंबई के कोलाबा की झुग्गी में रहता हो। झुग्गी भी ऐसी की सीढ़ी के किनारे लगी रस्सी को पकड़कर ना चढ़ो, तो नीचे गिरने का भी डर।

ऐसे हालात में मुंबई जैसे महानगर में घर खरीदने के लिए उद्योगपति रतन टाटा से बंद लिफाफे में एक चेक मिले, जिसमें करीब 70 लाख से एक करोड़ रुपए की रकम भरी हो, तो क्या कोई लेने से इनकार कर देगा…?

शायद आप कहेंगे- नहीं, लेकिन आर्टिस्ट नीलेश मोहिते ने इस ऑफर को स्वीकार नहीं किया। नीलेश ने रतन टाटा से चेक के बदले काम देने की बात कही।

नीलेश के 8x8 के कमरे में नजरें फेरने पर सिर्फ पेंटिंग ही पेंटिंग नजर आती हैं।

जिस मुंबई के ताज होटल में करोड़पति और अरबपति ही जा पाते हैं, उसकी आर्ट गैलरी में नीलेश ने 24 सितंबर से 2 अक्टूबर तक अपनी पेंटिंग्स की एग्जिबिशन लगाई थी।
जिस मुंबई के ताज होटल में करोड़पति और अरबपति ही जा पाते हैं, उसकी आर्ट गैलरी में नीलेश ने 24 सितंबर से 2 अक्टूबर तक अपनी पेंटिंग्स की एग्जिबिशन लगाई थी।

पत्नी के साथ बैठे नीलेश जब अपनी कहानी सिलसिलेवार तरीके से बयां करना शुरू करते हैं, तो उनकी आंखें डबडबा जाती हैं।

वो कहते हैं, गांव में इतनी गरीबी थी कि हम लोग 2009 के आसपास महाराष्ट्र के रायगढ़ से मुबंई आ गए। पापा को शराब की लत थी। इस वजह से घर में हर रोज कलह होने लगी। फिर वो अलग रहने लगे। हालांकि, वो दिल से अच्छे थे।

मां और बहन के साथ मैं कोलाबा के मच्छीमार कॉलोनी की एक झुग्गी में किराए पर रहता था। पापा के नशा करने की वजह से घर की स्थिति बहुत खराब हो गई। पानी के साथ बिस्किट खाकर रहना पड़ता था।

मां घर चलाने के लिए दूसरों के घरों में खाना बनाना, झाड़ू-पोंछा करना और बर्तन धोने का काम करने लगीं। इस बोझ का मां पर असर पड़ा। उनकी तबीयत खराब रहने लगी। उनका ऑपरेशन करवाना पड़ा। डॉक्टर ने कहा कि अब मां को काम छोड़ना पड़ेगा।

मैं उस वक्त 9th क्लास में था। घर में कोई कमाने वाला नहीं था। मैंने पढ़ाई छोड़ दी। स्कूल के दिनों से ही पेंटिंग का शौक पनपने लगा था। वो दिन भी मुझे याद हैं जब ब्लैकबोर्ड पर चॉक से स्केचिंग करने लगता था। क्लास बंक कर पेंटिंग की एग्जिबिशन देखने चला जाता था।

एक बार मैं मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में मशहूर आर्टिस्ट एम एफ हुसैन के पेंटिंग की एग्जिबिशन देखने गया था, वहां से ही पेंटिंग की लत लग गई।

मां के बीमार पड़ने के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। घर चलाने के लिए ऑफिस बॉय का काम करने लगा। सुबह कुछ घंटे ये काम करने के बाद दूसरे ऑफिस में गार्ड और चपरासी का काम करता था। कुछ सालों तक ये चलता रहा।

जब लोगों ने कहा कि मुझे थोड़ा और पढ़ लेना चाहिए। इसके बाद मैंने काम के साथ-साथ आगे की पढ़ाई के लिए नाइट स्कूल में एडमिशन ले लिया। हालांकि, कई बार ऐसा हुआ कि पैसे कमाने के लिए अपनी क्लासेस मिस कर देता।

नीलेश कहते हैं, मुझे पेंटिंग करना पसंद था, लेकिन मैं ऑफिस बॉय का काम करने की वजह से पेंटिंग के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहा था।
नीलेश कहते हैं, मुझे पेंटिंग करना पसंद था, लेकिन मैं ऑफिस बॉय का काम करने की वजह से पेंटिंग के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहा था।

इसलिए ऑफिस बॉय का काम छोड़कर होटल में वेटर की नौकरी करने लगा। रात में यहां काम करता और दिन में पेंटिंग बनाता। धीरे-धीरे पेंटिंग मेरा पैशन बन गया। मैं इसमें इतना माहिर हो गया कि राजा-महाराजाओ की पेंटिंग तक बनाने लगा।

एक शाम की बात है। होटल में मैं एक कस्टमर को चाय सर्व कर रहा था, तो ट्रे में रखे पेपर नैपकिन पर सामने बैठे कस्टमर की स्केचिंग करने लगा। जब होटल के सुपरवाइजर की नजर मुझ पर पड़ी, तो वो चिल्लाते हुए आया। मुझे डांटने लगा। बोला- क्या तुम्हें इसी के पैसे मिलते हैं?

लेकिन जब उसकी नजर मेरी स्केचिंग पर पड़ी, तो वो दंग रह गए। उसने कहा- मैं तुम्हें कुछ बड़े लोगों से मिलाऊंगा। तुम और अच्छी पेंटिंग बना सकते हो। उन्हें बेच भी सकते हो।

यहां से मेरा शौक पेशे में बदल गया। धीरे-धीरे पेंटिंग के ऑर्डर भी मिलने लगे।

अब नीलेश के रतन टाटा से मिलने की कहानी…

मैं रतन टाटा से बहुत ज्यादा इंस्पायर्ड हूं। 2017 का साल था। मैंने रतन टाटा की कुछ पेंटिंग बनाई थी, जिसे उनके बर्थडे पर गिफ्ट करना चाहता था।

कई महीनों तक सप्ताह में दो-तीन दिन उनके बंगले के बाहर जाकर खड़ा हो जाता। टाटा को मैं गाड़ी में बैठकर जाते हुए ही देख पाता था। डायरेक्ट मिलने का कोई जरिया नहीं था। मेरे एक जानने वाले टाटा के बंगले पर जाया करते थे। मैंने उनसे कहा कि वो मुझे टाटा से मिलवा दें।

नीलेश पहली बार रतना टाटा से उनके बर्थडे पर मिलने गए थे। वो कहते हैं, मैं साथ में टाटा की पेंटिंग भी ले गया था। जब टाटा ने पेंटिंग देखी, तो बहुत खुश हुए।
नीलेश पहली बार रतना टाटा से उनके बर्थडे पर मिलने गए थे। वो कहते हैं, मैं साथ में टाटा की पेंटिंग भी ले गया था। जब टाटा ने पेंटिंग देखी, तो बहुत खुश हुए।

दूसरी बार, 2018 में फिर उनके बर्थडे पर जाना हुआ। इस बार मैंने उनकी बड़ी पेंटिंग बनाई थी। जब उन्होंने मुझसे पेंटिंग के बारे में पूछा, तो मैंने कहा- जितनी बड़ी ये पेंटिंग है, उससे थोड़ा बड़ा ही मेरा घर है। इसे रखने में काफी दिक्कत होती है। इसलिए ज्यादा पेंटिंग्स नहीं बना पाता हूं।

रतन टाटा को जब ये बात पता चली कि मैं छोटे से एक कमरे में रहता हूं, तो उन्होंने एक बंद लिफाफा मुझे ऑफर किया। उसमें चेक था, मुझे नहीं पता कि कितने का था।

रतन टाटा बोले, 'नीलेश इससे मुंबई में घर खरीद लेना। फिर तुम और ज्यादा पेंटिंग बना पाओगे।'

मैंने चेक लेने से इनकार कर दिया, उनसे कहा- यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं, तो काम दीजिए। रोजी-रोटी की जरूरत है। ये सुनकर टाटा मुस्कुराने लगे। बोले- ठीक है, आपके लायक कुछ होगा तो हमारे अधिकारी इन्फॉर्म कर देंगे।

इसी बीच कोरोना आ गया। रतन टाटा की तबियत खराब हो गई। इलाज के लिए वो विदेश चले गए, जब वापस लौटे तो मैं फिर उनसे मिलने के लिए गया। इस साल सितंबर-अक्टूबर में उन्होंने होटल ताज में मेरी पेंटिंग्स की एग्जिबिशन ऑर्गेनाइज करवाई। दो महीने में 21 पेंटिंग बनाईं और इसे होटल ताज में डिस्प्ले किया, लेकिन एक भी पेंटिंग नहीं बिकी।

मैं फिर से रतन टाटा से मिलना चाहता हूं। मैंने सलमान खान, शाहरूख खान समेत बॉलीवुड के कई सितारों की पेंटिंग्स बनाकर रखी हैं। उनसे भी मिलकर इन्हें देना चाहता हूं।

अभी महीने में एक-दो पेंटिंग बिक जाती हैं, जिसकी कीमत 16 हजार से लेकर 50 हजार तक की होती है। हालांकि, मुझे आज भी काम मिलने का इंतजार है।

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