‘यदि आप योजना बनाने में नाकाम होते हैं तो दरअसल आप नाकाम होने की योजना बनाते है’
- बेंजामिन फ्रेंक्लिन (अमेरिकी फिलॉसफर)
करिअर फंडा में स्वागत!
हमारे तीन बड़े खर्चे
किसी भी इंडियन मिडिल क्लास फॅमिली के तीन सबसे बड़े खर्चे होते हैं – (a) पहला अपना घर खरीदना, (b) दूसरा बच्चों की पढाई और (c) तीसरा जरूरत पड़ने पर मेडिकल में होने वाले खर्चे।
कई लोग तो अपने पूर्वजों के घर में रहते हैं, तो हो सकता है उन्हें ये खर्च करने की जरूरत ही न हो, और यदि आप किराये के घर में हैं तो थोड़ा डाउनपेमेंट करके और लगभग किराये जितने अमाउंट की होम लोन इन्सटॉलमेंट भर के आप लम्बे समय में अपने रहने के लिए एक घर का इंतजाम तो कर ही लेते हैं।
मेडिकल खर्चों का भी ऐसा ही है, हुए तो हुए, नहीं तो नहीं भी। वैसे भी उनके लिए अच्छी मेडिक्लेम पॉलिसी लेकर मैनेज किया जा सकता है।
बच जाता है एक इग्नोर न किए जाने वाला खर्च, जिससे न केवल बच्चे का, बल्कि पूरे परिवार का भविष्य निर्भर करता है – बच्चों का एजुकेशन। हर व्यक्ति अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी एजुकेशन देना चाहता है।
पेरेंट्स अपनाएं स्वस्त्र (SVSTRA) स्ट्रेटेजी
आज आपसे बच्चों के एजुकेशन प्लानिंग की स्वस्त्र (SVSTRA) अप्रोच डिस्कस करूंगा।
स्वस्त्र (SVSTRA - S - सेविंग, V - विज़न, Stra - स्ट्रैटेजी) अप्रोच
S: सेविंग - पहले दिन से शिक्षा के लिए बचत करें
जब बच्चे का जन्म हो उसी दिन से बच्चे की शिक्षा के लिए कुछ-न-कुछ बचाना शुरू कर दें। आज कल कई लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी एजुकेशन बेनिफिट्स के साथ आती हैं।
शिक्षा पर उस समय होने वाले खर्चों और इन्फ्लेशन की रेट का ध्यान रख कर अंदाजा लगाएं कि आप को बच्चे के शिक्षा लेने की उम्र में कब-कब कितने रुपयों की आवश्यकता होगी, उसके अनुसार नियमित बचत करें।
V: विजन में स्पष्टता लाएं
ध्यान रखें, आप को अपनी बच्चे को 'अच्छी एजुकेशन' देनी है 'महंगी एजुकेशन' नहीं, अर्थात ऐसे इंस्टीट्यूट्स, स्कूल्स, कॉलेज पर खर्चा ना करें, जहां सब कुछ केवल दिखावटी है, और अंत में कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है।
ठीक से रिसर्च करने पर सभी इंस्टीट्यूट्स, स्कूलों और कॉलेजो की सच्चाई सामने आ सकती है।
इसके लिए अधिक लोगों से बात करें, ऑनलाइन विभिन्न फीडबैक लोकेशंस और ब्लॉग को स्टडी करें, पुराने स्टूडेंट्स और पहले वहां पढ़ रहे लोगों से ऑथेंटिक फीडबैक लीजिए। अपनी ईगो और सोशल प्रेस्टीज में न बह जाएं।
मैंने कई पिताओं को केवल इस प्रेशर में बड़ी-बड़ी फीस भरते देखा हैं की पत्नी या बेटा/बेटी यह सोचेंगी की पैसों की बचत के लिए बच्चे का करिअर दांव पर लगा रहे हैं। आप उन्हें अपनी एप्रोच बताएं कि ये पैसा उन पर ही खर्च होगा, लेकिन सोच समझकर। अंग्रेजी में एक खूबसूरत कहावत है: मोर बैंग फॉर द बक।
Stra - स्ट्रेटेजी अर्थात रणनीति से काम लें
A) मान लीजिए एक ऐसी महिला जिसके दो बच्चे हैं, शहर के सबसे प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल में टीचर (प्राइमरी, मिडिल या सीनियर) हैं।
B) ऐसी स्कूलों में एक बच्चे की फीस 1,50,000 रुपये सालाना से लेकर 2,00,000 रुपये सालाना तक हो सकती है। और अधिकतर सभी स्कूलों में टीचर्स के बच्चों का एजुकेशन फ्री या बेहद कम फीस पर होता है।
C) तो इस प्रकार दो बच्चों की शिक्षा का खर्च हुआ लगभग चार लाख रुपया सालाना।
D) स्कूल की वर्किंग अधिक से अधिक सुबह 7:30 से लेकर 3:30 तक होती है अर्थात ज्यादा से ज्यादा आठ घंटे और लगभग सभी सन्डे, गवर्नमेंट हॉलिडे और फेस्टिवल्स पर ऑफ के साथ-साथ लम्बे समर और विंटर हॉलिडे भी होते हैं।
E) बच्चे और माता के लिए एक समय का भोजन स्कूल उपलब्ध करवाता है और जो मंथली सैलरी मिलती है (35,000 से 40,000 रुपया प्रति माह से कम नहीं होती है और अनुभव के साथ बढ़ते हुए 80,000 से एक लाख रुपये तक जा सकती है) वो अलग।
F) यदि आप सभी सुविधाओं का फायनेंशियल वैल्यू जोड़ेंगे तो करीब दस लाख रुपये का पैकेज है जो भारत में किसी अच्छे कॉलेज से MBA करने वाले व्यक्ति को मिलता है, जिसमें उसे लगभग 12 घंटे, हफ्ते में सातों दिन काम करना पड़ता है, टार्गेट्स अलग।
G) बच्चों का एजुकेशन माता की आंखों के सामने होता है, इससे अच्छा और क्या हो सकता है। फिर शाम को ट्यूशंस करना है या नहीं यह आपकी चॉइस का मामला है!
तो आज का करिअर फंडा है कि बच्चों की एजुकेशन कीफाइनेंशियल प्लानिंग मेरी बताई स्ट्रेटेजी से कर, आप बहुत अच्छे रिजल्ट पा सकते हैं।
कर के दिखाएंगे!
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