बचपन के दिनों को याद करते ही खेल-खिलौनों की याद आ जाती है। जब हम सुंदर-सुंदर गुड्डे गुड़ियाें को सजाकर अपना मन बहलाते थे। इन गुड़ियों की बनावट किसी सुंदर लड़की या महिला को फ्रेम में रखकर इस तरह की जाती थी, ताकि एक भी बाल इधर से उधर न हों। वक्त बीता, इन गुड़ियों की जगह महंगी बार्बी डॉल ने ले ली। एक से बढ़कर एक डॉल मार्केट में आ गईं और हमारे बचपन के दिनों वाली गुड़िया बस यादों में रह गई। अब शायद ही कपड़े से बने गुड्डे-गुड़िया हमें देखने को मिलते हों।
इस कमी को दूर करने के लिए गुरुग्राम की रहने वाली स्मृति लमैक ने एक पहल की है। वे देश-दुनिया में नाम करने वालीं और अपने दम पर मुकाम हासिल करने वालीं महिलाओं को गुड़ियों के फ्रेम में उकेर रही हैं। इतना ही नहीं, वे इसके जरिए उन महिलाओं कहानी भी बयान करने की भरपूर कोशिश करती हैं। ताकि बच्चों को उन महिलाओं के बारे में पता लगे और उनके संघर्षों की जानकारी मिल सके। स्मृति अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए इन गुड़ियों की मार्केटिंग भी कर रही हैं। इससे उन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है।
41 साल की स्मृति पेशे से पत्रकार हैं और पति फाइनेंस प्रोफेशनल। वे बताती हैं, ‘हमारे बच्चे कोडईकनाल (तमिलनाडु) के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते हैं। हम हर वीकएंड पर बच्चों से मिलने जाते थे। फरवरी में विदेश से कोरोना की खबरें आना शुरू हो गई थीं, लिहाजा हमने बच्चों के साथ कोडईकनाल में शिफ्ट होने की ठानी। इससे हम बच्चों के साथ समय भी बिता सकते थे और वहां की हरियाली के बीच वायरस से अपना बचाव बेहतर तरीके से कर सकते थे। एहतियात के तौर पर स्मृति और उनके पति यहां बच्चों के साथ शिफ्ट हुए और एक हफ्ते बाद ही देशभर में लॉकडाउन की घोषणा हो गई।
टेलर की तलाश से हुई शुरुआत
जल्दबाजी में स्मृति गुरुग्राम से यहां शिफ्ट तो हो गईं, लेकिन उन्हें रोजमर्रा की जरूरतों से जूझना पड़ता था। इन्हीं में से एक था कपड़ों की सिलाई के लिए टेलर। स्मृति बताती हैं, ‘हमें बच्चों के लिए कपड़े सिलवाने थे। आस-पास के कई टेलर्स से बात की, लेकिन कोई भी हमारे मुताबिक कपड़े नहीं बना पा रहा था। इसी बीच मार्केट में मेरी मुलाकात एक सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिला से हुई, जो कपड़ों से स्टफ टॉएज बनाने में माहिर थीं। मैंने अपने पुराने कपड़ों से कुशन कवर बनवाए, जो मुझे बहुत पसंद आए। इसके बाद मैं उस महिला से कुछ न कुछ हमेशा बनवाने लगी।
एक दिन जब मैं उनसे मिलने गई तो मुझे एहसास हुआ कि लॉकडाउन के चलते सेल्फ हेल्प ग्रुप की बहुत सारी महिलाओं का काम प्रभावित हुआ है। उन्हें अब न ऑर्डर मिल रहे थे और न ही पहले से बने प्रोडक्ट मार्केट में बिक पा रहे थे। ऐसे में स्मृति ने इन महिलाओं की मदद करने की ठानी, लेकिन तब उनके पास कोई आइडिया नहीं था। वे कहती हैं कि ये महिलाएं अपने हाथ से सॉफ्ट टॉय बनाती थी, मैंने तय किया कि जब ये सॉफ्ट टॉय बना सकती हैं तो रैग डॉल्स भी बना सकती हैं। इसकी मार्केटिंग की जा सकती है और इस तरह शुरुआत हुई thesmritsonian की।
बचपन की यादें और पीढ़ियों के लिए सीख
स्मृति कहती हैं, ‘हम सब बचपन में गुड्डे-गुड़ियों से खेलते आए हैं। मेरा बचपन भी घर पर हाथों से बनी गुड़िया के साथ बीता जिन्हें इस्तेमाल न होने वाले कपड़े और कपड़ों की कतरन से बनाया जाता था, लेकिन विदेश की विरासत बार्बी ने कब उनकी जगह ले ली, हमें पता ही नहीं चला और हमारे बच्चे इनके आदी हो गए।’
जीरो वेस्ट, जीरो प्लास्टिक, पर्यावरण के लिए दुरुस्त और लोकल कारीगरों द्वारा बनी रेग डॉल को हाथ में लेकर स्मृति बताती हैं, 'हमारे पास मौका था बार्बी की जगह बच्चों के हाथ में गुड़िया पहुंचाने का। इससे हम न सिर्फ वेस्ट का सॉल्यूशन निकाल रहे हैं बल्कि बच्चों को भारतीय जड़ों से भी रूबरू करवा रहे हैं।'
महिलाएं जो अपने पीछे एक दास्तां छोड़ गईं
स्मृति कहती हैं, ‘हमनें सिर्फ गुड़िया नहीं बनाई बल्कि उन महिला शख्सियतों को गुड़िया का रूप दिया जिनका खुद का एक इतिहास और लेगसी थी। मैं चाहती थी कि लोग इन सभी शख्सियतों की दास्तां जाने, उनके संघर्षों से रूबरू हों।’ अब तक स्मृति दो रेंज में 8 गुड़िया डिजाइन करवा चुकी हैं। पहली महिला जुईश जज बेडर गिन्सबर्ग, खुद के लिए आवाज उठाने वाली फूलन देवी, विमान उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला सरला ठकराल और पाशा घोश है। पाशा स्मृति की इंस्पाइरिंग इमैजिनेशन का नमूना पेश करती हैं।
हम जानते हैं कि कई बच्चों का बचपन व्हील चेयर और वॉकर के सहारे निकल जाता है। इसलिए दिव्यांग बच्चों के लिए भी उन्होंने पहल की है। एक गुड़िया को स्मृति ने प्रोस्थेटिक लेग (पैर) भी दिया है जिससे बच्चों के बीच इस गैप को मिटाया जा सके।
वहीं सबसे पहले वाली रेंज में, वह अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला, शिक्षाविद् और जाति-विरोधी क्रांतिकारी सावित्रीबाई फुले, लेखिका माया एंजेलो और कलाकार फ्रिदा काहलो की गुड़िया बना चुकी हैं। स्मृति कहती हैं कि ये सब मेरे लिए वो महिलाएं हैं जिन्होंने पुरुषवादी दुनिया के नियम लगातार तोड़े और अपने सपनों के लिए जीना जारी रखा।
गुड़िया का खत भी खास है
लोगों तक पहुंचने वाली हर गुड़िया अपने जीवन के बारे में एक छोटी सी कहानी का स्क्रॉल लेकर आती है। इसे ‘By the Doll’ यानी गुड़िया के द्वारा नाम दिया गया है। सिर्फ इतना ही नहीं, लगभग 1500 रुपए की गुड़िया के साथ एक किताब, पेंसिल, पैलेट, तकिया या एक स्लीपिंग बैग भी आता है। जिसे उनके किरदार के मुताबिक निर्धारित किया जाता है। जैसे कल्पना चावला के रूप में बनी गुड़िया के साथ एक हैंडमेड रॉकेट होता है।
स्मृति ने इस काम को भी पूरी सहजता के साथ कर दिखाया। उनके डॉल वाले इनिशिएटिव से कई महिलाओं को लॉकडाउन के दौरान रोजगार मिला है। उन्होंने अलग-अलग ग्रुप में 20-25 महिलाओं को जोड़ा है। ये महिलाएं उनके लिए गुड्डे-गुड़िया तैयार करने के साथ ही उसकी पैकेजिंग में भी मदद करती हैं।
सोशल मीडिया के जरिए पहुंचा रहीं प्रोडक्ट
स्मृति ने शुरू से ही रैग डॉल्स को सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाया। देश-विदेश से आ रहे ऑर्डर्स में ग्राहक और वर्कर्स के बीच वो एक ब्रिज की तरह काम कर रहीं है। स्मृति कहती हैं, ‘मेरा ये इनिशिएटिव एक बहुत छोटी शुरुआत है। हमें उम्मीद से कहीं बेहतर रिस्पॉन्स मिला है। अभी ठीक-ठाक ऑर्डर्स मिल रहे हैं। जल्द ही हम अपना दायरा भी बढ़ाने वाले हैं।’
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