केले के पेड़ का मोटा हिस्सा। उसके बीच गाय का सिर। पैर रस्सी से कसकर बंधे हुए। ऊपर से सिर्फ गाय का सिर नजर आता है। बाकी हिस्सा पानी में। इसी तरह तैरते-तैरते कुछ ही मिनटों में गायें नदी पार कर जाती हैं। वहां पहले से मौजूद लोग उन्हें निकालते हैं। रस्सी खोलते हैं और बांग्लादेश ले जाते हैं।
गाय-बछड़ों को इसी तरह पश्चिम बंगाल से बांग्लादेश भेजा जा रहा है। हर चीज के लिए कोडनेम तय हैं। तस्कर गाय के बछड़े को पेप्सी बुलाते हैं। तस्करी का मास्टरमाइंड अनुब्रत मंडल को बताया जाता है। बीरभूम के अनुब्रत TMC के नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खास हैं। CBI ने 11 अगस्त को अनुब्रत मंडल को अरेस्ट किया था।
तस्करी का कारोबार समझने के लिए हम भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पहुंचे। यहां पता चला कि भारत में 30 हजार में खरीदी गई गाय बांग्लादेश में डेढ़ लाख तक में बिकती है। रास्ते से लेकर बॉर्डर के पास बसे आखिरी गांव तक की कहानी आपको बताते हैं। पढ़िए और देखिए ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट…
फोटो लेने लगे तो पुलिसवाले ने रोका, चायवाले ने तस्करी के बारे में बताया
हमारी खोजबीन कोलकाता से शुरू हुई। सोर्स ने बताया कि मुर्शिदाबाद जिले में बॉर्डर के पास बसा गांव है जालंगी। इसकी बांग्लादेश से दूरी 5 किमी से भी कम है। यहां से कई साल से कैटल स्मगलिंग हो रही है। इसीलिए हमने पड़ताल के लिए जालंगी को चुना।
इसके लिए कोलकाता से नेशनल हाईवे 34 पकड़ा। यह डालखोला से कृष्णानगर तक जाता है। रास्ते में नॉर्थ 24 परगना जिले के आमडांगा ब्लॉक में सड़क किनारे एक टेम्पो दिखा। इसमें गाय-बछड़े भरे थे।
टेम्पो के पास दो पुलिसवाले भी थे। हमने गाड़ी रोकी तो पुलिसवालों ने कहा- 'यहां से गाड़ी आगे कर लीजिए, ये मेन रोड है।'
हम फोटो-वीडियो लेने लगे तो पुलिसवाले ने फोन अंदर रखने का इशारा किया और तुरंत आगे जाने के लिए कहा। हम थोड़ा आगे बढ़े और गाड़ी रोक दी। यह देख पुलिसवाले वहां भी आ गए। बोले- 'गाड़ी यहां से ले जाइए। क्यों रुके हैं।'
हम आगे बढ़े और पास में एक चाय की दुकान पर रुके। चायवाले ने बताया कि ये गाड़ियां गाय-बछड़े लेकर जाती हैं। पुलिसवाले इनसे रिश्वत लेते हैं और आगे जाने देते हैं। जो रिश्वत नहीं देता, उसी की जांच होती है।'
हाट में गाय-बछड़ों का सौदा, हिसाब के लिए मैनेजर
थोड़ी देर बाद वही टेम्पो हमारे सामने से निकला। हमने कार उसके पीछे लगा दी। वह नदिया जिले के हरिंगघाटा के बिरोही गांव में रुका। यहां गाय-बैलों की हाट लगती है। हाट का मैनेजर सड़क किनारे टेबल-कुर्सी लगाकर बैठा था। वही सबका हिसाब करता है। यहां गाय खरीदने-बेचने वालों के अलावा सौदा करवाने वाले एजेंट भी हैं।
मैनेजर ने हमें फोटो-वीडियो लेते हुए देख लिया। बोला, 'कौन हो तुम। फोटो-वीडियो क्यों लिए। तुरंत डिलीट करो।' उसे दिखाने के लिए हमने एक-दो फोटो डिलीट किए और आगे बढ़ गए। बिरोही से करीब दो घंटे के सफर के बाद हम जालंगी पहुंचे।
अब पढ़िए जालंगी की कहानी…
मुखबिर ने कहा- मेरी आवाज भी बदल देना
अब जो कहानी मैं सुनाने जा रहा हूं, उसके तीन किरदार हैं। पहला है भारत-बांग्लादेश बॉर्डर, जहां से तस्करी होती है। दूसरा है BSF का इंटेलिजेंस ऑफिसर, जिसने हमें पूरी डिटेल दी, लेकिन कहा कि मेरा नाम नहीं लिखना।
तीसरा एक मुखबिर है, जो गांव में ही रहता है और CID-CBI जैसी एजेंसियों से कमीशन लेकर उन्हें जानकारी देता है। उसने चेहरा छिपाकर वीडियो में बातें जरूर की, पर नाम और पहचान लिखने से मना किया है। ये भी कहा कि हो सके तो मेरी आवाज थोड़ी बदल देना।
बॉर्डर का ज्यादातर हिस्सा खुला, एक पॉइंट पर सिर्फ दो जवान
जालंगी गांव पद्मा नदी के किनारे बसा है। पद्मा बांग्लादेश की बड़ी नदियों में से एक है। बांग्लादेश के कुष्ठिया, पबना और राजशाही जिले इससे लगते हैं। भारत में यह मुर्शिदाबाद में बहती है। कई साल से इसी नदी से कैटल स्मगलिंग हो रही है। नदी कहीं संकरी, तो कहीं चौड़ी है। कहीं बहाव तेज, कहीं कम।
बारिश के बाद कुछ जगहों पर यह सूख भी जाती है। नदी क्रॉस कर कुछ कदम चलने पर बांग्लादेश लग जाता है। हम नदी के किनारे पहुंचे तो देखा कि बॉर्डर का ज्यादातर हिस्सा ओपन है। कुछ ही हिस्से पर फेंसिंग लगी है।
बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स यानी BSF यहां तैनात है, पर एक ऑब्जर्वेशन पॉइंट पर दो ही जवान होते हैं। इन्हें आधा से एक किमी तक का एरिया संभालना होता है। ऐसे में तस्करी रोकना इनके लिए लगभग नामुमकिन सा है।
नदी में बहाव तेज हो, तो तस्कर ज्यादा एक्टिव रहते हैं
गायों को नदी पार कराने के लिए तस्कर केले के तने का इस्तेमाल करते हैं। गाय को तने में बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है। नदी के उस पार पहले से मौजूद लोग इन्हें निकालकर बांग्लादेश ले जाते हैं।
BSF के एक इंटेलिजेंस ऑफिसर ने हमें इसका वीडियो दिखाया। वीडियो में दो बछड़े केले के तने से बंधे दिखे। इनके पैर बंधे थे। तने को बीच से फाड़कर बछड़ों का मुंह उनमें फंसाया और नदी में फेंक दिया। जवानों की नजर उन पर पड़ गई तो वे उन्हें किनारे ले आए। रस्सी खोलकर उन्हें कैंप में रखा गया। इसे आप खबर के वीडियो में देख सकते हैं।
अफसर ने बताया कि जानवरों की तस्करी रात में होती है। वक्त और जगह बदलती रहती है। कई बार दिन में भी तस्करी की कोशिश होती है। जब नदी में तेज बहाव होता है, तब तस्कर ज्यादा एक्टिव रहते हैं, क्योंकि उस वक्त निगरानी मुश्किल हो जाती है। जवान भी बॉर्डर पर नहीं रह पाते।
गांव के लोगों से केले और जूट की खेती करवाते हैं तस्कर
हम मौके पर थे, तब गांव के कई लोग नदी क्रॉस कर उस पार जाते दिखे। उनसे बात की तो बोले- खेती करने जाते हैं। यहां केला और जूट लगाया जाता है। इंटेलिजेंस ऑफिसर के मुताबिक, तस्कर ही गांव वालों से जूट और केले की खेती करवाते हैं, क्योंकि इनमें आसानी से छिपा जा सकता है। बदले में वे गांव वालों को पैसा देते हैं।
BSF के एक सीनियर अफसर ने बताया कि पहले एक साथ बड़ी संख्या में गायें आती थीं। रात में तो हमारे जवान उन्हें रोक ही नहीं पाते थे, क्योंकि तस्करों की संख्या ज्यादा होती है और जवानों की कम। एक साथ डेढ़ से दो हजार गाय और उनके साथ 300 से 400 तस्कर।
तस्कर गायों को भगाते-भगाते नदी में कुदा देते थे और आसानी से तैरते हुए उस पार निकल जाते थे। उनके पास बम और पिस्टल होती है। वे भीड़ में होते थे और हमला भी कर देते थे। 2018 से गायों की तस्करी कम है, लेकिन बछड़ों की डिमांड बढ़ गई है। इन्हें केले के तने में बांधकर नदी पार कराई जा रही है, ताकि वे पानी में न बहें।
ये तो हुई कोलकाता से जालंगी तक की कहानी, अब जानिए ऐसा क्यों हो रहा है और इसके पीछे कौन है…
पड़ताल में पता चला कि इस नेक्सस में तस्कर, पुलिस, कस्टम और BSF शामिल हैं। एक-एक कर जानिए किसका, क्या रोल है।
भारतीय कंपनियों का नेटवर्क मिलने से फायदा
मुखबिर के मुताबिक, बांग्लादेश की तरफ मौजूद लोगों के पास भारतीय कंपनियों की सिम होती है। नदी क्रॉस करने के बाद भी 3 से 4 किमी तक भारत का नेटवर्क आता है। वे लोग फोन के जरिए ही एक-दूसरे को सिग्नल देते हैं।
भारत से भेजे गए गाय-बछड़े पर कुछ निशान बनाया जाता है। नदी के दूसरी तरफ खड़े लोगों को इस बारे में बता दिया जाता है। वह निशान पहचानकर उसे ले जाता है। जालंगी के घोषपाड़ा, रायपाड़ा, मुरादपुर, सरकारपाड़ा से भी तस्करी हो रही है। इन चार-पांच गांवों में करीब 3 हजार लोग रहते हैं। इनमें से करीब 200 लोग तस्करी गिरोह से मिले हुए हैं।
अनुब्रत मंडल की गिरफ्तारी के बाद तस्कर ज्यादा अलर्ट हो गए हैं। वे अब रोज की बजाय हफ्ते-15 दिन में एक बार तस्करी कर रहे हैं।
तस्करी की इकोनॉमी: हर साल डेढ़ लाख गायों की स्मगलिंग
BSF के अफसरों और मुखबिर के मुताबिक, गायों की कीमत साइज और तादाद के हिसाब से तय होती है। बड़ी गाय 30 हजार से 70 हजार रुपए तक में खरीदी जाती हैं। कोई मिडिलमैन किसानों से इन्हें खरीदता है। वह 15 से 20 हजार रुपए का कमीशन लेकर उन्हें तस्करों को दे देता है। बांग्लादेश में यह एक से डेढ़ लाख रुपए तक में बिकती है। ईद के समय तो कीमतें कई गुना बढ़ जाती हैं।
तस्करी कर लाई गई 100 में से 15-20 गाय-भैंस पकड़कर यह दिखाने की कोशिश होती है कि तस्करों को पकड़ा जा रहा है। इस बारे में हमने जालंगी पुलिस स्टेशन के स्टाफ, BSF के जवानों और अफसरों से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने ऑन रिकॉर्ड बात नहीं की। ऑफ रिकॉर्ड इसे सही बताया।
BSF के DIG अमरीश आर्या, मुर्शिदाबाद जिले के SP के सबरी राज कुमार और जालंगी पुलिस स्टेशन के इंचार्ज ने कैटल स्मगलिंग पर कहा कि तस्करी तो हो रही है, लेकिन पहले से इसमें कमी आई है। अब कैटल से ज्यादा ड्रग्स की तस्करी हो रही है।
गाय ही नहीं, जालंगी ड्रग्स तस्करी का भी अड्डा
भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से कैटल स्मगलिंग के अलावा ड्रग्स की तस्करी भी हो रही है। ड्रग्स तस्करी का रूट भी जालंगी से ही गुजरता है। अगली एक्सक्लूसिव स्टोरी इसी पर होगी। इसमें हम बताएंगे कैसे सीमा पार ड्रग्स पहुंचाई जा रही है। तस्कर कितना कमा रहे हैं। कौन सी ड्रग्स भेजी जा रही है और लड़कियां कैसे इसमें कैरियर बन रही हैं।
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