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आज की कहानी है भोपाल में रहने वाले निखिल जाधव की। जो 21 साल की उम्र में ही 'बाइकर्स प्राइड' नाम की कंपनी के फाउंडर और CEO हैं। उनकी कंपनी इलेक्ट्रिक और कस्टमाइज बाइसिकल बनाती है। साल 2018 में शुरू हुई इस कंपनी की नेटवर्थ 1 करोड़ 10 लाख रुपए रुपए है और पिछले फाइनेंशियल ईयर में उनकी कंपनी का टर्नओवर 40 लाख रुपए का रहा।
निखिल खुद क्रॉस कंट्री साइकिलिस्ट भी रहे हैं। 17 साल की उम्र में उन्होंने अकेले ही मुम्बई-पुणे-मुम्बई और मुम्बई से गोवा तक का 1000 किमी का सफर साइकिल से महज पांच दिनों में पूरा कर रिकॉर्ड बनाया था। पिछले तीन सालों में वो 300 से ज्यादा इलेक्ट्रिक बाइसिकल बना चुके हैं। इसके अलावा देश भर में उनकी 150 डीलरशिप हैं, जहां उनकी इलेक्ट्रिक बाइसिकल सेल होती है।
प्रोफेशनल ग्रुप को स्टंट करते देख लगा साइकिलिंग का चस्का
अपने साइकिलिंग के शौक के बारे में निखिल बताते हैं, ‘बचपन में मुझे घरवालों ने बाइसिकल दिलाई, नया-नया शौक था तो कुछ दिन चलाई और फिर वो घर के किसी कोने में पड़ी रही। जब मैं 9वीं क्लास में था तो सोचा कि इसको बेच देता हूं, मैंने ऑनलाइन सेलिंग प्लेटफॉर्म पर अपनी बाइसिकल की फोटो डाली। शाम 5 बजे खरीददार आने वाला था। मैं घर के बाहर अपनी बाइसिकल पर स्टंट कर रहा था। तभी वहां से साइकिलिंग का एक प्रोफेशनल ग्रुप गुजरा और उन्होंने मुझे देखकर थम्सअप किया।'
‘इसके बाद मैं भी अपनी बाइसिकल लेकर उनके पीछे-पीछे चला गया। तब मुझे पता चला कि ये एमपी का बहुत बड़ा साइकिलिंग ग्रुप है। फिर मैंने उनके साथ जाना शुरू कर दिया। ग्रुप के फाउंडर सत्य प्रकाश सर से बहुत कुछ सीखने को मिला, वे रिटायर्ड IAS थे और ग्रीन प्लेनेट बायसिकल राइडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। उनके पास 100 बाइसिकल का कलेक्शन था जिन्हें उन्होंने ही कस्टमाइज किया था। मुझे उन्हीं से इंस्पिरेशन मिली, क्योंकि मुझे भी बचपन से ही हर चीज को खोलकर उसके मैकेनिज्म को देखना पसंद था।'
'शुरुआत में मैंने अपने लिए बाइसिकल तैयार की, लोगों को पसंद आई तो बाकी साइकिलिस्ट और फिर दोस्तों के लिए बनाई। लोगों को मेरा काम काफी पसंद आने लगा। मुझे पता ही नहीं चला कि मेरी हॉबी कब पैशन और फिर बिजनेस में तब्दील हो गई।'
कस्टमाइजेशन का बल्क ऑर्डर आया तो पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी
निखिल ने कॉमर्स से 12वीं क्लास पास की, फिर BBA में दाखिला ले लिया, लेकिन अपने बिजनेस के चलते सेकंड ईयर में ही कॉलेज छोड़ना पड़ा। वो कहते हैं, ‘मैंने कॉलेज में दाखिला इसलिए लिया था कि मैं बिजनेस की बारीकियां सीख सकूं, लेकिन इसी बीच मेरे पास कस्टमाइज बाइसिकल का बल्क ऑर्डर आ गया, ऐसे में मेरे सामने कॉलेज और बिजनेस में से एक को चूज करने का ऑप्शन था और मैंने इसमें से बिजनेस को चुना, क्योंकि मेरा फाइनल डेस्टिनेशन यही था।'
निखिल बताते हैं, '2016 में हमने पहला मॉडल बनाया, फिर तीन साल के आरएंडडी के बाद हमने अपना पहला प्रोडक्ट लॉन्च किया, आज हमारा सुपर प्रीमियम प्रोडक्ट 80 हजार रुपए का है। एक दौर में कहा जाता था कि 5 हजार से ज्यादा की बाइसिकल कौन खरीदेगा? लेकिन पिछले कुछ सालों में ये ट्रेंड बदला है।'
निखिल कहते हैं, 'मेरी दादी मेरे लिए सबसे बड़ा मोटिवेशन रही हैं। मैं बचपन से ही अपने हर खिलौने को खोलकर देखता था कि ये कैसे चलता है। इससे पापा गुस्सा होते थे, लेकिन दादी कहती थीं कि चलो, कुछ सीख ही रहा है, वो हमेशा मुझे सपोर्ट करती थीं। वहीं जब बिजनेस शुरू करने की बात आई तो पूरे परिवार ने सपोर्ट किया, किसी ने मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए फोर्स नहीं किया।'
'स्टार्ट-अप MP' चैलेंज में 1200 कैंडिडेट को पछाड़ विजेता बने और इन्क्यूबेशन सेंटर में मिली जगह
निखिल के स्टार्टअप में आज 9 लोगों की टीम काम करती है। जब वो साइकिलिस्ट थे, तब करीब दो हजार साइकिलिस्ट के ग्रुप के साथ जुड़े हुए थे और उनके लिए बाइसिकल कस्टमाइजेशन का काम करते थे। वहीं से जो कमाई हुई, उन्हीं पैसों को जोड़कर करीब एक लाख रुपए की लागत से साल 2018 में उन्होंने अपने स्टार्टअप की शुरुआत की थी।
इसी साल मध्यप्रदेश सरकार की ओर से आयोजित किए गए स्टार्ट-अप कॉन्क्लेव 'स्टार्ट-अप MP' में उन्होंने 1200 कैंडीडेट को पछाड़ कर पहला स्थान हासिल किया और उन्हें स्मार्ट सिटी भोपाल के इन्क्यूबेशन सेंटर में जगह मिली। यहां से उनके स्टार्टअप को काफी बूम मिला। इन्क्यूबेशन सेंटर ने उनकी नेटवर्किंग स्ट्रॉन्ग करने में काफी मदद की। लोन, सब्सिडी में भी मदद मिली। वर्तमान में भोपाल नगर निगम उनका सबसे बड़ा वेंडर है।
नगर निगम के लिए बनाए इलेक्ट्रिक गार्बेज रिक्शा
निखिल बताते हैं, 'नगर निगम के गार्बेज रिक्शा को एक वर्कर पूरा दिन खींचता था। उससे वो दिन भर में 8 से 10 किमी की दूरी तय करता है और वो 150 किलो तक कचरा कलेक्ट करता था। उनके मौजूदा रिक्शे को हमने इलेक्टिक रिक्शा में कन्वर्ट किया। अब उनके रिक्शे एक बार चार्ज करने पर बिना पैडल मारे 25 किलोमीटर तक चल सकते हैं। अब धक्का देने के लिए भी किसी अतिरिक्त व्यक्ति की जरूरत नहीं होती है, और अब 400 किलोग्राम तक कचरा ढो सकते हैं।'
'इससे नगर निगम की वेस्ट कलेक्शन में कॉस्ट कटिंग भी हुई है। फिलहाल हमने पायलट प्रोजेक्ट के तहत 15 रिक्शे तैयार किए हैं, अब और भी रिक्शे तैयार करने का ऑर्डर मिला है। इसके अलावा हम इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में बहुत सी चीजों पर काम करने की तैयारी में हैं।' वो आगे कहते हैं, 'सामान्य तौर पर सरकारी टेंडर में कभी भी पूरा पैसा एडवांस नहीं मिलता है, लेकिन हमारे स्टार्टअप को नगर निगम ने पूरा एडवांस पेमेंट किया।'
क्या और कैसे होता है बाइसिकल कस्टमाइनजेशन?
बाइसिकल कस्टमाइनजेशन शुरू करने से पहले निखिल को तीन प्रॉब्लम नजर आईं। वो बताते हैं, 'इसमें सबसे पहले हम ये देखते हैं कि बाइसिकल चलानी कहां है? जैसे, किसी को रेसिंग बाइक चाहिए, किसी को माउंटेन बाइकिंग, किसी को स्टंट बाइक और किसी को ऑफिस आने-जाने के लिए बाइक चाहिए। मार्केट में जो दुकानदार हैं, वो व्यक्ति की यूटिलिटी जाने बगैर ही बाइसिकल बेच देते हैं।'
'वहीं दूसरी बात होती है बॉडी ज्योमेट्री की, क्योंकि बाइसिकल एक तरह की एक्सरसाइज होती है और अगर आपको आपकी बॉडी ज्योमेट्री के लिहाज से बाइसिकल नहीं मिलती तो इसे चलाने से हमारे शरीर पर हार्मफुल इफेक्ट होते हैं। वहीं कस्टमाइजेशन में तीसरी बात है, कलर कॉम्बिनेशन, हॉबी और पर्सनलाइज्ड फील की, जो कि दुकानदार नहीं देते हैं।'
निखिल जो इलेक्ट्रिक बाइक कस्टमाइज करते हैं, उसमें प्रति किलोमीटर 5 पैसे का खर्च आता है। निखिल कहते हैं कि पेट्रोल के दाम 100 रुपए पहुंच चुके हैं, ऐसे में लोग फिजिकल फिटनेस के अलावा ट्रांसपोर्ट के लिए भी बाइसिकल का इस्तेमाल करने लगे हैं।
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