मैं तमिलनाडु के मदुरै में एक लड़के के रूप में पैदा हुई, मेरा रंग गोरा-चिट्टा था। चाल-चलन लड़कियों जैसी। मुझे मेरे लड़का होने से नफरत थी। जब शीशे में अपने आपको नंगा देखती तो लगता कि मैं गलत शरीर में हूं। बचपन में अपनी मां की चुन्नियों से खेलती, मेकअप करती थी। जैसे-जैसे बड़ी होती गई खुद को लड़की समझने लगी। इस बात से मेरे अब्बू को नफरत थी। वे हमेशा बोलते- तू छक्का है, तू लड़के जैसा क्यों पैदा हुआ ? तेरा कुछ नहीं होगा।
अब्बू की उंगलियां बहुत बड़ी-बड़ी थी। वह मेरे पेट में अपनी उंगलियां खुबो कर मुझे बहुत दर्द देते, चुंटिया काट-काट कर मेरे बदन पर दाग बना देते। घर में कोई फंक्शन होता, रिश्तेदार इकट्ठा होते तो सभी के सामने इतना मारते, बेइज्जत करते कि उनके मरने के बाद मुझे उनकी कभी याद तक नहीं आई। मर गए वो कैंसर से।
मुझे याद है, एक दफा मैं स्टूल पर बैठी थी। पीछे से मेरा फिगर लड़कियों जैसा दिखाई दे रहा था। इस पर उन्होंने मुझे खूब मारा और कहा कि आइंदा यह पैंट न पहनना। शर्ट पैंट से बाहर रखना। हालांकि मेरी अम्मी मुझे प्यार करती थी, लेकिन लड़कियों वाले शौक पर वो भी गुस्सा होतीं। मेरे मुंह पर पिंपल्स बहुत निकलते थे, तब मैं मुंह पर हल्दी लगा लेती थी। इसको लेकर मेरी अम्मी भी मुझे बहुत मारती।
हम तीन भाई बहन थे। बड़ा भाई मुझसे डेढ़ साल बड़ा था, लेकिन बहुत हट्टा-कट्टा था। उसका हर जगह गैंग रहता था, जिसका वो बॉस था। उसके दोस्त बोलते थे कि तू मर्द होने का नाटक करता है, तू भी अपने भाई की तरह छक्का है। इस पर मेरे भाई को बहुत गुस्सा आता, उसे बेइज्जती महसूस होती और फिर वह मुझे मारता था, अपने दोस्तों से भी पिटवाता था।
मेरे भाई से मिलने उसके 10-11 दोस्त घर आते, उसे स्कूल ले जाने और छोड़ने आते। जबकि मैं अकेले स्कूल जाती और अकेले ही वापस आती। मुझसे कभी कोई घर में मिलने नहीं आता था और मैं भी किसी से मिलने बाहर नहीं जाती। क्योंकि मुझे लड़कियों की तरह घर में रहना पसंद था। खाना बनाना पसंद था।। मैं बचपन से ही अपनी मां की साड़ी की स्प्लिट्स ठीक करती। तब वह नहीं जानती थी कि मामला यहां तक पहुंच जाएगा। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि आज से तुम मेरी साड़ी ठीक नहीं करोगे अपने बड़े भाई के साथ खेलोगे। मेरे अब्बू हमेशा मुझसे बोलते कि देख तेरे भाई के कितने दोस्त हैं, वह कितना पॉपुलर है..और तू।
एक दफा स्कूल में मेरे एक क्लासमेट ने मुझे बहुत ज्यादा मारा था। दरअसल स्कूल में लड़के बेस्ट फ्रेंड्स के ग्रुप बना रहे थे। मुझे एक लड़के ने बोला कि हम बेस्ट फ्रेंड्स का ग्रुप बना रहे हैं, तुम्हें अगर मेरे ग्रुप में आना है तो यह सब लड़कियों वाली हरकतें छोड़नी होंगी। मैंने कहा कि पता नहीं मुझसे यह सब होगा या नहीं इसलिए मैं नहीं आ रही ग्रुप में। इस पर उसने मुझे बहुत मारा। उसने कहा कि तू छक्का है, फिर भी तुझे ऑफर किया और तू मुझे मना कर रहा है, तेरी हिम्मत कैसे हुई।
स्कूल तक मैं समझ नहीं पा रही थी कि मैं अपनी बेइज्जती के लिए क्या करूं। मैं जानती थी कि मेरा बड़ा भाई पढ़ाई में अच्छा नहीं है, मैंने तय किया कि मैं पढ़ूंगी। इतना पढ़ूंगी कि मेरी घर-समाज में इज्जत होने लगे। स्कूल के बाद मेरा कर्नाटक के फादर म्यूलर होमिओपैथी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो गया। मेरे अब्बू मेरा एडमिशन नहीं करवा रहे थे, लेकिन मेरी मां ने उन्हें इसके लिए मनवाया।
मेरे डॉक्टर बनने से मेरे भाई को इतनी तकलीफ हुई कि वह मेरे घर लौटने से पहले ही दुबई चला गया। मेरी सुसाइडल टेडेंसी बढ़ती जा रही थी। उधर मेरे मां-बाप मेरी शादी के लिए जोर डालने लगे। मैंने सबसे छुटकारा पाने के लिए किसी भी तरह स्कॉलरशिप पर नेचुरल मेडिसन में वाशिंगटन स्टेट में एक यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया। वहां एडमिशन लेने लायक मैंने पैसे कमा लिए थे। यह मेरा 5 साल का ग्रेजुएशन प्रोग्राम था। मेरी असली खुशी अमेरिका जाकर ही शुरू हुई।
वहां गे और ट्रांसजेंडर को स्वीकार्यता है। खासकर मेरे कॉलेज में। ट्रांसजेंडर की बजाय गे कम्युनिटी की ज्यादा स्वीकार्यता है, रहना आसान है, सो मैंने अमेरिका जाकर खुद को गे घोषित कर दिया। मैं एक दो गे डेट्स पर भी गई, लेकिन जैसे ही उन्हें पता लगता कि मैं ट्रांसजेंडर हूं तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया कि तुम तो कभी भी औरत बन जाओगी। इसलिए मेरा कोई रिश्ता बन ही नहीं पाया। पढ़ाई खत्म करने के बाद मैं वहां से कैलेफोर्निया में लॉस एंजलिस चली गई। वहां गे होना फैशेनबल है, क्योंकि गे लोग ही पैसे वाले होते हैं। उनके घर, गृहस्थी के खर्चे नहीं हैं।
सबसे अहम बात कि दुनिया में कोई ट्रांसजेंडर अगर मर्द से औरत बनता है तो स्वीकार्यता बहुत मुश्किल है, लेकिन कोई औरत से मर्द बनता है तो माना जाता है कि बहुत स्ट्रॉन्ग है। वह सुंदर मर्द बनता है, उसे रिस्पेक्ट मिलता है। ट्रांसजेंडर वीमेन के लिए इतनी नफरत है कि एक दफा अमेरिका में एक ट्रांसजेंडर वीमेन को 26 बार चाकू मारा गया। मुझे याद है मेरे पड़ोस की एक ट्रांसजेंडर वीमेन को सड़क पर एक कार वाले ने बुलाया और उसके गले में चाकू मार दिया। फिर उसे जिंदा जला दिया। मैं पढ़ी लिखी थी, अपनी डॉक्टरी से अपना पैसा कमाती थी, इसलिए मुझे ऐसी हिंसा का सामना नहीं करना पड़ा।
वक्त बीतता रहा। मैं दोहरी जिंदगी से परेशान हो चुकी थी। पूरी तरह से औरत बनना चाहता थी। मैंने सर्जरी का फैसला लिया। साइको थैरेपी और हार्मोन थैरेपी शुरू कर दी। फिर बैंकॉक में अपनी सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी करवाई। यह सर्जरी पेनिस को वैजाइना में बदलने की सर्जरी थी। जब ऑपरेशन हुआ और मेरे निचले हिस्से में बैंडेज लगी थी। मैंने वहां हाथ लगाया तो पहली दफा महसूस किया कि अब मैं पूरी इंसान बनी हूं, पूरी औरत बनी हूं। पहली दफा मैंने खुद को स्वीकार किया, जीने की कोई वजह मिली।
लेकिन यह प्रोसेस इतना आसान नहीं था। उस दौरान मुझे हैवी हार्मोन दवाएं लेनी पड़ी। एक से डेढ़ साल के दौरान मैं न मर्द थी न औरत। मेरा शोषण भी हुआ, मरते मरते बची। जब रास्ते से जाती तो लोग मुझे ट्रैनी, डिसीविंग, चीटर कहकर चिढ़ाते थे। मैं कैलिफोर्निया के जिस इलाके में रहती थी वहां अमेरिकी सरकार साइको लोगों को रखती थी और सरकार ही उनके इलाज का खर्च उठाती थी।
मैं उस बिल्डिंग में मर्द बनकर आई और 12 साल बाद औरत बनकर निकली। वहां के लोग मेरे ट्रांजैक्शन पीरियड देख चुके थे। वहां एक आदमी ने अपनी दवाएं लेनी छोड़ रखी थी। वह पागल बन चुका था। उसने मुझे मर्द के रूप में देखा था फिर जब मैं बैंकॉक से ऑपरेशन करवाकर लौटी तो उसने मुझे औरत के रूप में देखा। अचानक एक दिन वह मेरे दरवाजे पर आकर आकर बोला- आई वांट टू फक यू। वो कहता था कि तू आजकल बहुत एटीट्यूड दिखा रही है। तू है तो ट्रैनी। वह एक स्क्रू लेकर रेप करने के लिए मेरे पीछे भागा। बोला कि ओबामा सरकार ने उसकी डयूटी लगाई है कि वह मेरा रेप करे और मर्डर करे। मैं भागी और गिर गई। खून निकलने लगा। मेरा फोन टूट गया।
खैर 19 साल अमेरिका रहने के बाद और वहां हॉलीवुड में काम करने के बाद मैं भारत आ गई। हालांकि मैं अमेरिकी सिटीजन हूं। मेरे ऊपर कई डॉक्युमेंट्री बनी। एक शॉर्ट फिल्म भी बनी 'मोहम्मद टू माया'। एलजीबीटी कम्युनिटी अमेरिका में मेरा काफी नाम है, लेकिन मेरी रोल मॉडल हमेशा वैजयंती माला और हेमा मालिनी रही हैं। इसलिए मैं उनकी तरह काम करने के लिए भारत आ गई।
मैं बस इतना ही कहना चाहती हूं कि दूसरी लड़कियों की तरह ही मेरी भी योनी है, लेकिन बच्चेदानी नहीं है। साइंस ने इतनी तरक्की नहीं की है कि एक ट्रांस वीमेन को बच्चेदानी दे या मुझे पीरियड्स आएं। मुझे यह सब चाहिए भी नहीं। मुझे यह वैजाइना और औरतपन ऐसे ही नहीं मिला है। मैंने अपना परिवार, समाज, बहुत कुछ गंवाया है। मुझे हसबैंड मिले न मिले, लेकिन एक सच्चा प्यार जरूर मिले। मैं जैसी हूं वैसा स्वीकार करे।
एक और बात मैं कट्टर मुस्लिम परिवार में पैदा हुई, लेकिन मुझे हिंदू धर्म बहुत पसंद है। इसलिए मैंने सेक्स चेंज करवाने के बाद अपना नाम माया चुना। मैं कई बार मीनाक्षी मंदिर भी गई।
माया जाफर चर्चित ट्रांस वीमेन हैं। वे होम्योपैथ की डॉक्टर हैं, अमेरिका में उन्होंने पढ़ाई की है। कई हॉलीवुड फिल्मों में काम कर चुकी हैं। उन्होंने अपनी ये कहानी भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की है...
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