आज की पॉजिटिव खबर में अहमदाबाद के जिग्नेश भाई व्यास की कहानी। जिग्नेश भाई 30 साल से गरीब मजदूरों के लिए रसोई चला रहे हैं, जहां 24 घंटे मुफ्त खाना उपलब्ध रहता है। जनसेवा के लिए जिग्नेशभाई में इस कदर जुनून है कि इसके लिए उन्होंने कलेक्ट्रेट की अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी क्योंकि उसमें वे काफी व्यस्त रहा करते थे। नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने ट्रैवल्स का धंधा शुरू किया। अब वे अपने बिजनेस से बचा पूरा समय समाजसेवा में लगा रहे हैं।
कहां से मिली समाजसेवा की प्रेरणा?
इस सवाल पर जिग्नेश भाई कहते हैं, 'बचपन से ही जितना हो सकता था, मैं लोगों की मदद करता था। सरकारी नौकरी के दौरान भी समय निकाल कर लोगों की मदद करने की कोशिश करता था। शादी के बाद मेरी पत्नी के विचार भी मेरे जैसे ही थे। इसके बाद इस सिलसिले में और तेजी आ गई और लोगों की मदद करना जिंदगी का हिस्सा बन गया।'
जिग्नेश बताते हैं, 'कलेक्टर ऑफिस की नौकरी में बहुत समय लगता था। इसलिए 2010 में नौकरी छोड़ दी। अपना धंधा जमाना शुरू किया और शुरुआत में गांव की खेती से होने वाली जमीन की आमदनी को समाजसेवा में लगाना शुरू किया। बाद में यह इस हद तक बढ़ गया कि हम दोनों पति-पत्नी ने खुद की संतान न पैदा करने का फैसला कर पूरा समय लोगों की मदद में लगाना शुरू किया।'
बस यही सोच कि कोई भी भूखा न सोए
सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद जिग्नेश भाई ने महादेव ट्रैवल्स नाम से अपना ट्रैवल्स का काम शुरू किया। उनकी पत्नी जिग्नाबेन भी उनके साथ 30 साल से समाजसेवा में जुटी हैं। फिलहाल वे अपने इलाके की पार्षद भी हैं। वे कहती हैं, 'हमारी कोशिश रहती है कि हमारे शहर का कोई शख्स भूखा न सोए।' दोनों पति-पत्नी मुफ्त रसोई के अलावा गरीब व मजदूर वर्ग के लोगों के लिए कपड़े, जूते-चप्पल, गर्म कपड़े, कंबल, तिरपाल और बीमार होने पर मुफ्त दवाओं का भी वितरण करते हैं। जिग्नेश कहते हैं, 'अपना काम करने से उनके पास समय भी रहता है और जरूरतमंदों की मदद के लिए संसाधन भी आसानी से जुट जाते हैं।'
इसके अलावा दोनों पति-पत्नी गरीब बच्चों के लिए दिवाली, दशहरा, नवरात्रि, मकर संक्रांति जैसे हर त्योहार पर मिठाई-नमकीन, पतंग-पटाखे जैसी चीजों का भी वितरण करते हैं, जिससे कि वे बच्चे भी अन्य बच्चों की तरह इन मौकों पर खुशी मना सकें।
कोरोना काल में टिफिन सेवा शुरू की
कोरोना काल में जब पहली बार लॉकडाउन लागू हुआ तो जिग्नेश और जिग्नाबेन ने टिफिन सेवा की शुरुआत कर दी, क्योंकि तब कोरोना के चलते लोग उनके द्वारा बनवाए गए रसोई घरों तक नहीं आ सकते थे। इसके लिए बाकायदा मोबाइल नंबर जारी किए थे, जिस पर संपर्क कर कहीं भी खाना मंगवाया जा सकता था। इसके अलावा दोनों ने उपलेटा तहसील के सभी सरकारी अस्पतालों में भी टिफिन पहुंचाने का काम शुरू किया, जिससे मरीज और उनके तीमारदारों को खाने के लिए परेशान न होना पड़े।
कई मरीजों की जान बचाई
कोरोना काल के एक वाकये को याद करते हुए जिग्नेश भाई बताते हैं, '20 अप्रैल को कुतियाणा तहसील से एक मरीज के परिवार का मेरे पास फोन आया। परिवार ने बताया कि मरीज का ऑक्सीजन लेवल लगातार कम होते-होते 63 पर जा पहुंचा है, लेकिन हमें किसी भी अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहा है। मैं तुरंत अपने दोस्तों के साथ कुतियाणा की ओर रवाना हुआ। महादेव की कृपा देखिए कि जामनगर में एक अस्पताल में पता करने पर मालूम हुआ कि एक वेंटिलेटर खाली है। हम तुरंत मरीज को वहां ले गए। ईश्वर की कृपा थी कि उस मरीज की जान भी बच गई।'
कोरोना में पूरे समय मरीजों की मदद की, लेकिन खुद संक्रमित नहीं हुए
जिग्नेश भाई बताते हैं, 'कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान मैं पूरे समय ही कोरोना मरीजों के संपर्क में रहा। कई मरीजों को खुद अपनी गाड़ियों से अस्पताल पहुंचाने गया। मरीजों के लिए दवाओं के इंतजाम और अन्य कार्य भी किए। इसके अलावा कोरोना मृतकों के अंतिम संस्कार में भी गया, लेकिन आज तक संक्रमित नहीं हुआ। आप दूसरों की मदद करते हैं तो निश्चित ही ईश्वर आपकी मदद करने आगे आ जाता है।'
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