‘रणसंग्राम असा करावा कि पराभवाचा ही अभिमान वाटावा’ (अर्थात युद्ध इस प्रकार करें की हारने पर भी अभिमान हो)
- मराठा आदर्श
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फिर पानीपत, फिर बड़ा युद्ध
अपने पानीपत की तीनों लड़ाइयों के बारे में सुना जरूर होगा, है न?
14 जनवरी 1761 की सुबह, मकर संक्रांति का दिन, और इस दिन दिल्ली से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर पानीपत में भारत का इतिहास नई करवट लेने वाला था।
पानीपत के करीब से बहने वाली यमुना नदी के किनारे भारत के भविष्य के लिए सबसे अहम लड़ाइयों में से एक मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ और अफगान बादशाह अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ी गई, जिसमें मराठाओं की हार हुई। लेकिन जीत जाने के बावजूद अफगान लौट गए और उनकी फौजों ने फिर कभी भारत का रुख नहीं किया।
पानीपत के तीसरे युद्ध से 4 बड़े सबक
इस युद्ध के परिणामों से आज के प्रोफेशनल्स, उद्यमी और स्टूडेंट्स बहुत गहरे सबक सीख सकते हैं। क्या आप तैयार हैं?
1) पहला सबक: अति-आत्मविश्वास से बचना बेहतर: इस समय तक मराठा लगभग पूरे भारत में अपनी ताकत स्थापित कर चुके थे, जिसे 'अटक से कटक' तक शासन कहा जाता है। अटक, अफगानिस्तान सीमा पर था, जबकि कटक उड़ीसा में।
A. इस विजय के सेनापति, सदाशिव राव भाऊ उस समय हाल ही में दक्षिण भारत में हुए मराठा सैन्य अभियान के नायक रहे थे।
B. अब्दाली का सामना करने पुणे से आगे बढ़ी मराठा सेनाओं ने जब नर्मदा पार कर ली तब स्थानीय सहयोगी राजाओं ने सदाशिव राव भाऊ से 'हल्के होने' का कहा, अर्थात वहां किसी स्थान पर केंद्र बना कर, भारी हथियारों को रखकर, सेना को आराम देकर, अफगानों पर छोटे-छोटे छापामार हमले करने की सलाह दी, वास्तव में जिस युद्ध शैली के लिए मराठा जाने भी जाते थे।
C. लेकिन आश्चर्यजन रूप से मराठा सेनापति ने यह अच्छी सलाह नहीं मानी और अफगान सेना से सीधे टक्कर लेने की ठानी।
D. ऐसा लगता है मराठा सेनापति अधिक आत्मविश्वास से सरोबार थे। बीच युद्ध में अपने परिवार को कुरुक्षेत्र की यात्रा पर लेकर गए, किन्तु इसी बीच अब्दाली ने उफनती यमुना को पार किया, और मराठाओ के लिए सप्लाई-चेन बना कर रखना मुश्किल हो गया, जो इस युद्ध में मराठाओं की हार का प्रमुख कारण था।
E. सीख है: दुश्मन को कमजोर न समझा जाए, और जीत का विश्वास होना ठीक है अतिआत्मविश्वास नहीं। घंटों और दिनों में परिस्थितियां अचानक बदल सकती हैं।
2) दूसरा सबक: लक्ष्य को केंद्रित करके कार्यवाही करें: कई स्त्रोत कहते हैं इस युद्ध में करीब एक लाख मराठों ने अपनी जान गंवाई।
A. मराठा सेना में एक बहुत बड़ी संख्या वास्तव में लड़ने वाले सैनिकों की थी ही नहीं, बल्कि इनके साथ चलने वाले अनेकों ऐसे लोग थे जो चोर-डाकुओं से बचने के लिए सेना के साथ तीर्थयात्रा पर चले जाते थे। इनमें वे लोग भी थे जो मराठा सेना में सेवाकार्य करते थे, जैसे खानसामे, धोबी, पानी पिलाने वाले, इत्यादि।
B. मराठा सेना में पिछले कई दशकों से सैनिकों और अधिकारियों को अपनी पत्नियों को युद्ध पर ले जाने की अनुमति थी, शायद इसलिए कि दुश्मनों पर जीत हासिल करने के बाद मराठा सैनिक अच्छे चरित्र का परिचय दें और दुश्मन की महिलाओं के साथ हिंसा न करें। खुद सदाशिव राव भाऊ की पत्नी पार्वतीबाई भी ऐन युद्ध के वक्त तक वहां उपस्थित थीं।
C. ना तो महिलाओं को और ना ही बाकी तीर्थयात्रियों और सेवा कार्य में लगे लोगों को युद्ध की ट्रेनिंग दी गई थी। इसलिए युद्ध में जब परिस्थियां बिल्कुल अलग हो गईं तो ये लोग लड़ने वाली सेना पर बोझ बन गए और उन पर इतनी बड़ी भीड़ की सुरक्षा का जिम्मा भी आ गया!
3) तीसरा सबक: इनोवेशन सर्वदा विजेता: दो इनोशंस (नवाचार / ट्रिक) जो अहमद शाह अब्दाली ने किए और लीड ले ली, वो थे (1) उफनती यमुना नदी में थालियां डाल कर नदी की गहराई चेक करना और इस प्रकार मराठाओं को चौंका देने वाले तरीके से नदी पार करना और (2) भारी मराठा तोपखाने, जिसे चलाना मुश्किल होता था, की तुलना में ऊंटों की पीठ पर बंधी हल्की तोपें जिन्हें एक जगह से दूसरी जगह तेजी से ले जाया जा सकता था।
4) चौथा सबक: कोई हार अंतिम नहीं: करारी शिकस्त के बावजूद, मराठा साम्राज्य का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ, केवल उत्तर भारत में प्रभुत्व जाता रहा। उसे पुनः पप्राप्त करने के लिए, दस साल बाद 1771 में, पेशवा माधव राव ने बड़ी सेना उत्तर में भेज सत्ता पुनः स्थापित कर दी। ये तय है कि जीवन में अंतिम हार तब है जब आप ऐसा तय कर लें।
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