‘मेरा नाम ईरम है। अफगानिस्तान में रहती हूं। पुणे यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की पढ़ाई की है। भारत से अफगानिस्तान लौटी तो तालिबान की सरकार आ चुकी थी। वे कह तो रहे थे कि लड़कियों का हक नहीं छीनेंगे, लेकिन सब झूठ था। हमारी यूनिवर्सिटी बंद कर दी। हम पार्क नहीं जा सकते। बाजार नहीं जा सकते। यहां हमारे लिए सारे रास्ते बंद हैं।’
तालिबान सरकार के एक फैसले से ईरम जैसी हजारों लड़कियों की पढ़ाई रुक गई है। 21 दिसंबर 2022 को सरकार ने लड़कियों के यूनिवर्सिटी जाने पर रोक लगा दी थी। हायर एजुकेशन मिनिस्टर नेदा मोहम्मद नदीम ने सभी प्राइवेट और सरकारी यूनिवर्सिटीज को इसके लिए लेटर लिखा था। अगले दिन यानी 22 दिसंबर को एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि लड़कियां ड्रेस कोड का पालन नहीं कर रही थीं। वे ऐसे कपड़े पहन रही थीं, जैसे शादी में जा रही हों।
ईरम की तरह ही शादलीन नूरजई की पढ़ाई भी छूट गई। शादलीन कहती हैं कि कुरान में लिखा है-पढ़ो, लेकिन तालिबान हमें रोक रहे हैं। वे जानते हैं कि हम पढ़ लिए तो उनसे पूछेंगे कि देश में लड़ाई क्यों हो रही है? तालिबान चाहते हैं कि लड़कियां सिर्फ बच्चे पैदा करें और उन्हें पालें।
वॉट्सऐप पर पढ़ाना शुरू किया, हिदायत दी कि प्रोफाइल में फोटो न लगाएं
लड़कियों की पढ़ाई न रुके, इसके लिए अफगानिस्तान में एक्टिविस्ट और टीचर नए तरीके निकाल रहे हैं। काबुल की एक यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हसीबुल्ला तरीन ने लड़कियों के लिए ऑनलाइन क्लास शुरू की है। वे वॉट्सऐप क्लास के जरिए भी पढ़ा रहे हैं।
तरीन बताते हैं कि लड़कियों की सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। इसलिए हमने वॉट्सऐप पर हर लड़की का नाम और सरनेम बदल दिया है। हम उनकी पहचान छुपा रहे हैं। उनसे प्रोफाइल पर फोटो नहीं लगाने के लिए कहा है। लड़कियां भी सुरक्षित रहने का हर तरीका अपना रही हैं।
‘तालिबान ज्यादा कट्टर विचारधारा के साथ लौटे’
ईरम जैसी लड़कियों को अफसोस है कि उन्होंने पूरी जिंदगी लगाकर पढ़ाई की, लेकिन तालिबान सरकार उन्हें इसका इस्तेमाल ही नहीं करने दे रही। ईरम कहती हैं- मैंने सोचा था कि पढ़ाई करने के बाद नौकरी करूंगी और परिवार की मदद करूंगी। अब मेरे लिए ये रास्ता बंद हो गया है।
ईरम का कहना है कि तालिबान के फैसले बता रहे हैं कि वो पहले से ज्यादा कट्टर विचारधारा के साथ लौटे हैं। हमारे देश में लड़कियों को अकेला छोड़ दिया गया है।
ऑनलाइन क्लास ही पढ़ने का इकलौता जरिया
शादलीन नूरजई कानून और राजनीति की स्टूडेंट हैं। वे हसीबुल्ला तरीन की क्लास ले रही हैं। काबुल की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी से थर्ड सेमेस्टर की पढ़ाई कर रहीं शादलीन कहती हैं- ‘तालिबान के फैसले के बाद हमारी जिंदगी अधर में है। पढ़ाई जारी रखने का इकलौता जरिया ऑनलाइन क्लास ही है। हसीबुल्ला तरीन पॉलिटिकल साइंस के एक्सपर्ट हैं। उनकी क्लास मेरे लिए पढ़ते रहने का अच्छा मौका है।’
शादलीन ऑनलाइन क्लास में पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन, ह्यूमन राइट्स और अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही हैं। वो कहती हैं- ‘अफगानिस्तान हमेशा से युद्ध का दंश झेलता रहा है। युद्ध से निकलने के लिए लोगों के पास जानकारी होना जरूरी है। पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन की पढ़ाई करते हुए हम संघर्ष और युद्ध की वजहों को समझ पाते हैं और इन्हें खत्म करने की दिशा में सोचने लगते हैं।
कुरान की एक आयत में है- इकरा यानी पढ़ो। मेरे लिए, मुझ जैसी लड़कियों के लिए और सभी के लिए पढ़ाई जरूरी है। ऐसा कोई नहीं है, जो कहे कि पढ़ाई की जरूरत नहीं है, लेकिन तालिबान हमारी पढ़ाई रोक रहा है। मेरे घर में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है, इसलिए परिवार को लगा कि बेटी को पढ़ाना जरूरी है। मुझे यूनिवर्सिटी तक पहुंचाने में परिवार को बहुत मशक्कत करनी पड़ी।
अफगानिस्तान की महिलाओं के सामने और भी कई मुश्किलें हैं। सिर्फ पढ़ाई इन हालात से निकलने में उनकी मदद कर सकती है। तालिबान नहीं चाहते कि हम पढ़ें, क्योंकि अगर पढ़-लिख जाएंगे तो सवाल करेंगे। इसलिए तालिबान ने उस पुल को तोड़ दिया है, जो हमें भविष्य से जोड़ता है।'
इंटरनेट और बिजली की समस्या
ऑनलाइन क्लास शुरू करने वाले हसीबुल्ला तरीन कहते हैं- 'अफगानिस्तान में लड़कियों और महिलाओं के पास करने के लिए कुछ नहीं है। वे घर में कैद होकर रह गई हैं। हम ऑनलाइन क्लास के जरिए उन्हें कुछ करने और सीखने का मौका देना चाहते हैं, ताकि भविष्य में जब हालात कुछ बेहतर हों, तो वो तैयार रहें।
तालिबान ने लड़कियों के यूनिवर्सिटी जाने पर रोक लगाई, तो मुझे गहरा धक्का लगा। मैंने सोचा कि किसी भी तरह लड़कियों की पढ़ाई जारी रखनी है। इसके लिए मैंने ऑनलाइन क्लास शुरू की। मैं मानता हूं कि एजुकेशन सिस्टम एक चेन है, अगर आप इसे काट दें और फिर जोड़ना चाहें तो इसकी बहुत भारी कीमत होती है। ये कीमत पूरी एक पीढ़ी को चुकानी पड़ती है। हम चाहते हैं कि अफगानिस्तान में एजुकेशन सिस्टम पूरी तरह बर्बाद न हो। फिलहाल हमारी दो क्लास चल रही हैं।'
'अगले कुछ दिनों में हम लड़कियों के लिए ह्यूमन राइट्स पर क्लास शुरू करने जा रहे हैं। इसके अलावा इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन पर भी क्लास शुरू होगी। यहां बिजली की दिक्कत है, इसलिए हम लड़कियों के लिए पावर बैंक का इंतजाम करने में लगे हैं। इंटरनेट की समस्या है। अच्छी इंटरनेट स्पीड के लिए भी पैसों की जरूरत है। कई लड़कियां बहुत गरीब परिवारों से हैं। उनके पास इंटरनेट नहीं है।
अब एक ही तरीका है। लड़कियों को जब तक यूनिवर्सिटी नहीं जाने दिया जाता, यूनिवर्सिटी को उनके पास ले जाया जाए। हालांकि, ऑनलाइन क्लास चलाना भी आसान नहीं है। इंटरनेट स्पीड के अलावा क्लास लेने वाली लड़कियों की सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा है। हम हर एहतियात बरत रहे हैं।
तालिबान ने ऑनलाइन क्लास को लेकर कोई घोषणा नहीं की है। बावजूद इसके हम सुरक्षा का ख्याल रख रहे हैं। हम लड़कियों से इंटरनेट कैफे या किसी और जगह जाने के लिए नहीं कह रहे। हम चाहते हैं कि वे सिर्फ अपने घर से ही इंटरनेट के जरिए जुड़ें।'
यूनिवर्सिटी बंद करने का दुनिया भर में विरोध
यूनिवर्सिटी में लड़कियों की एंट्री बैन करने के विरोध में राजधानी काबुल में प्रदर्शन हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय देशों के अलावा कतर और सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देशों ने भी तालिबान के फैसले का विरोध किया है।
तरीन बताते हैं- तालिबान के भीतर भी फैसले के विरोध में आवाज उठ रही है। अफगानिस्तान में कई स्तर पर लड़कियों की पढ़ाई रोकने का विरोध हो रहा है। तालिबान के बड़े नेता भी इसका समाधान खोजने में लगे हैं। गृह मंत्री और रक्षा मंत्री लीडरशिप से इस फैसले को रद्द करने की अपील करने जाने वाले हैं।
(सुरक्षा के लिहाज से स्टोरी में बताए लड़कियों के नाम बदले गए हैं)
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