करिअर फंडाबच्चे का करिअर चुनने में रखें इन बातों का ध्यान:खुलकर बात करें, नए विकल्प तलाशें…सॉफ्ट स्किल्स हैं जरूरी

2 महीने पहले
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भारत के गांवों और कस्बों के DNA को समझने वाले लेखक मुंशी प्रेमचंद की लघु कथा में नायक वंशीधर, जो नौकरी की तलाश में घर/शहर से बाहर जा रहा है, को उसके पिताजी कहते हैं, ‘नौकरी में ओहदे की तरफ ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूंढना जहां कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन पूर्णमासी का चांद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है।’

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क्या सोचते हैं पेरेंट्स बच्चों की करिअर प्लानिंग के दौरान

अच्छा या बुरा, दशकों बाद आज भी भारत में मुख्यतः गावों और कस्बों में पेरेंट्स की मानसिकता ऐसी ही दिखाई पड़ती है। भारतीय युवाओं में सरकारी नौकरी का क्रेज इस बात का गवाह है। यही सोच शायद पेरेंट्स के बच्चों के लिए करिअर के सबसे महत्वपूर्ण दौर (16 से 20 वर्ष की उम्र) में करिअर डिसीजन को भी प्रभावित करती है।

16 से 20 वर्ष की उम्र के दौरान, भारत में छात्रों को एकेडमिक प्रेशर, करिअर मार्गदर्शन की कमी, कठोर शिक्षा प्रणाली, विविध करिअर ऑप्शन की सीमित जानकारी, वित्तीय बाधाओं, सामाजिक अपेक्षाओं और चिंता, अवसाद और तनाव जैसे मेन्टल हेल्थ इश्यूज का सामना करना पड़ता है।

माता-पिता अपने बच्चों के किशोरावस्था के दौरान करिअर के फैसले लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 16 से 20 वर्ष की आयु के दौरान माता-पिता द्वारा लिए करिअर डिसीजन बच्चों के पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं।

आइए देखते हैं पेरेंट्स किन बातों का ध्यान रखकर अपने बच्चों के लिए सबसे बढ़िया करिअर डिसीजन ले सकते हैं।

बच्चों की समस्याएं क्या-क्या हैं

पेरेंट्स को पहले समग्रता में समझना होगा कि बच्चों की क्या-क्या समस्याएं हैं

1) पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब

भारत का एजुकेशन सिस्टम, अकेडमिक परफॉर्मेंस पर बहुत जोर देता है।

इस उम्र में स्टूडेंट्स पर हाई ग्रेड और रैंक लाने का काफी प्रेशर रहता है। इसका मतलब अक्सर यह होता है कि छात्रों को उन क्षेत्रों में करिअर बनाने के लिए मजबूर किया जाता है जिन्हें प्रतिष्ठित माना जाता है, भले ही उनकी वास्तविक रुचि या योग्यता कुछ भी हो।

माता-पिता अक्सर इंजीनियरिंग, मेडिकल और सरकारी नौकरी में करिअर को अपने बच्चों के लिए एकमात्र प्रैक्टिकल विकल्प के रूप में देखते हैं, क्योंकि उन्हें वित्तीय सुरक्षा और प्रतिष्ठा प्रदान करने के रूप में देखा जाता है। हालांकि, यह संकीर्ण सोच इस तथ्य को अनदेखा करता है कि करिअर के कई अन्य रास्ते हैं जो सफलता की ओर ले जा सकते हैं।

2) मुर्गी क्या जाने अंडे का क्या होगा, अरे लाइफ मिलेगी या तवे पे फ्राई होगा

पेरेंट्स द्वारा अपने बच्चों के करिअर संबंधी निर्णय लेने का एक मुख्य कारण उचित मार्गदर्शन और परामर्श की कमी है।

भारत में स्कूल आम तौर पर कम संसाधन वाले हैं, और करिअर परामर्श अक्सर प्राथमिकता नहीं होती है। और जो स्कूल इनिशिएटिव लेकर करिअर काउंसलर सेशन करवाते भी हैं, मैंने पाया है कि उन काउंसलर्स का नॉलेज सीमित होता है, और वे उन्हें सोशल स्टीरियोटाइप्स को रीइनफोर्स कर देते हैं जो पेरेंट के मन में पहले से होते हैं। बहुत कम ऐसे होते हैं जो नए-नए ऑप्शन सामने लाते हैं।

नतीजतन, छात्रों को उनके लिए आवश्यक समर्थन और मार्गदर्शन के बिना, अपने दम पर करिअर विकल्पों की जटिल दुनिया को नेविगेट करने के लिए छोड़ दिया जाता है। इससे उनके लिए अपनी रुचियों का पता लगाना और उनके लिए उपलब्ध विकल्पों की पूरी शृंखला को समझना मुश्किल हो जाता है।

कई पेरेंट्स और स्टूडेंट्स आर्ट्स, आंत्रप्रेन्योरशिप, या टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में उपलब्ध अवसरों की पूरी शृंखला से परिचित नहीं हैं। इसका परिणाम यह हो सकता है कि स्टूडेंट्स उन करिअर्स से वंचित रह सकते हैं जो उनकी रुचियों, कौशल और क्षमताओं के लिए उपयुक्त होते हैं।

3) प्रेशर कुकर जैसे, सर की बज जाए न, सीटी तब तक मार, रट्टा मार, रट्टा मार, रट्टा मार

भारतीय का एजुकेशन सिस्टम हार्ड है और रट्टा मार कर सीखने पर केंद्रित है।

छात्रों को महत्वपूर्ण कौशल जैसे थिंकिंग स्किल्स, प्रॉब्लम सॉल्विंग या क्रिएटिविटी आदि विकसित करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है, जो कई करिअर में सफलता के लिए आवश्यक है।

कई स्कूलों में सवाल पूछने वाले स्टूडेंट्स को सजा देते हैं, और उन्हें क्या दोष दें, भारतीय परिवारों में ही देख लें तो सवाल पूछने वाला बच्चा ‘गन्दा बच्चा’ होता है। और अगर लड़की है, और सवाल पूछती है, तो आसमान ही गिर पड़ता है। फिर हम जादू से ये उम्मीद करते हैं कि आगे चलकर ये ही बच्चे कॉर्पोरेट में, या साइंटिफिक लैब में, अच्छे सवाल पूछेंगे।

यह छात्रों के लिए उपलब्ध अवसरों को सीमित कर सकता है और इन कौशलों की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में सफलता की उनकी क्षमता को कम कर सकता है।

तो पेरेंट्स क्या करें

1) खुलकर बात करें

पेरेंट्स के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने बच्चों के साथ उनकी रुचियों, शक्तियों और कमजोरियों के बारे में खुली और ईमानदार बातचीत करें। इससे उन्हें अपने बच्चे की अनूठी ताकत को समझने में मदद मिलेगी और उन्हें करियर के लिए मार्गदर्शन मिलेगा जो एक अच्छा फिट है।

2) नए विकल्प तलाशें

पेरेंट्स को अपने बच्चों को कई तरह के करियर तलाशने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जिनमें वे भी शामिल हैं जिन्हें पारंपरिक या प्रतिष्ठित नहीं माना जा सकता है। इसमें जॉब शैडोइंग अवसरों का लाभ उठाना (ये एक प्रकार की ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग होती है जिसमें आप किसी एम्प्लॉई को स्टडी कर सकते हैं), करिअर मेलों में भाग लेना या विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवरों से मिलना शामिल हो सकता है। इससे छात्रों को विभिन्न करियर की आवश्यकताओं और वास्तविकताओं की बेहतर समझ मिलेगी और उन्हें अधिक सूचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

3) सॉफ्ट स्किल्स विकसित करें

पेरेंट्स के लिए आज के कार्यबल में संचार, टीम वर्क और समस्या को सुलझाने की क्षमता जैसे सॉफ्ट स्किल्स के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है। ये स्किल्स एम्प्लॉयर्स द्वारा अत्यधिक मूल्यवान समझे जाते हैं और कई करिअर में सफलता के लिए आवश्यक हैं। माता-पिता अपने बच्चों को एक्स्ट्रा करिकुलर गतिविधियों, सामाजिक कार्यों या कम्युनिटी सर्विस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करके इन स्किल्स को विकसित करने में मदद कर सकते हैं।

इस प्रकार, पेरेंट्स अपने बच्चों के 16 से 20 वर्ष की आयु के दौरान उनके करिअर के निर्णय लेने में जो भूमिका निभाते हैं, वह महत्वपूर्ण है।

आज का करिअर फंडा है कि हालांकि भारत में शिक्षा प्रणाली, मार्गदर्शन और परामर्श की कमी के साथ मिलकर, छात्रों के अवसरों को सीमित कर सकती है लेकिन पेरेंट्स इन चुनौतियों को ध्यान में रखकर उनके लिए सही डिसीजन ले सकते हैं।

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