बिहार के रेलवे स्टेशनों पर अचानक तमिलनाडु से आने वाले मजदूरों की भीड़ बढ़ने लगी। तमिलनाडु के शहरों में बिहार के मजदूरों पर हमलों के दावे वाले वीडियो वायरल हो गए। कहा गया कि ये हमले हिंदी बोलने वालों पर किए जा रहे हैं।
खबर फैली कि तमिलनाडु के तिरुप्पुर और शिवकट में बिहारी मजदूरों को मारा जा रहा है। मैंने इन हमलों की सच्चाई जानने के लिए तमिलनाडु से बिहार आए और अब भी तिरुप्पुर में रह रहे मजदूरों से बात की। इसमें जो कहानी पता चली, वह भाषा के विवाद से ज्यादा पेट की है।
तमिलनाडु में काम करने वाले लोगों ने इन हमलों के पीछे जो कहानी बताई, पढ़िए….
हम जिस काम के लिए 700 रु. लेते हैं, लोकल लोग उसके लिए 1000 रु. मांगते हैं...
'परिवार का पेट पालने के लिए हम हजारों मील दूर पड़े हैं। 2000 रु. किराया लगाकर, 4 दिन ट्रेन में गुजारकर, भूखे-प्यासे रहकर, 6 राज्य पारकर हम तमिलनाडु पहुंचते हैं। अगर बिहार में काम मिले तो हम क्यों आएं।'
ये कहने वाले बिहार के मोकामा के संदीप कुमार तमिलनाडु के तिरुप्पुर में पिछले 10 साल से रह रहे हैं। मैंने उनसे पूछा कि बिहार के लोगों को हमले क्यों हो रहे हैं, ये सुनते ही उनका गुस्सा तमिलनाडु के लोगों पर कम, अपनी सरकार पर ज्यादा फूटा।
उन्होंने कहा, 'असली मुद्दा रोजगार का है। बिहार से हम यहां काम की तलाश में आते हैं , यहां आएं तो जितना मिलता है, उसे ही लेकर काम करते हैं। लोकल लोग ज्यादा मजूदरी मांगते हैं। मैं स्टील कंपनी में काम करता हूं। रोज के 700 रुपए मिलते हैं। लोकल लोग इसी काम के लिए 1000 रुपए मांगेंगे।'
क्या इसी वजह से आप लोगों पर हमले हो रहे हैं। जवाब मिला, 'देखिए कुछ न कुछ तो चलता रहता है। यहां लोग हमसे चिढ़ते हैं, क्योंकि हम उनके राज्य में आकर कम पैसों में काम करते हैं। हालांकि, ऐसा भी नहीं कि वे हमें मार ही रहे हैं। मैं तो यहीं हूं और वापस भी नहीं जा रहा।'
फिर संदीप थोड़ा झल्लाकर कहते हैं, 'अगर बिहार में कंपनियां होती, तो हम इतनी दूर क्यों आते। मैंने पटना में भी काम किया। पर दिहाड़ी इतनी कम थी कि उससे घर नहीं चलता। वहां के मुकाबले यहां अच्छा पैसा मिलता है, तो हम यहां आ जाते हैं।'
क्या आप पर कभी ऐसा हमला हुआ, या यहां के लोगों से कोई झगड़ा हुआ। जवाब मिला- 'नहीं, होता तो इतने दिन टिकते नहीं। हां, हम जब कम पैसों में काम करेंगे, तो लोग हमसे नाराज तो होंगे ही न।
लोकल लोग टाइम से काम पर आते-जाते हैं, हम कम पैसों में ज्यादा देर रुकते हैं...
तिरुप्पुर में टाइल्स का काम करने वाले कार्तिक कुमार 2010 से यहां हैं। उनसे हमलों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'पूरा झगड़ा काम का है। आप सोशल मीडिया में देखिएगा। वहां के लोग आंदोलन कर रहे हैं। हमें काम चाहिए। नॉर्थ इंडियन यहां नहीं चाहिए।'
‘बात भी सही है अगर हमारे राज्य में कंपनियां होतीं, रोजगार होता और बाहर के लोगों को काम मिलता और हमें नहीं, तो हम भी आंदोलन करते।’
वहां के लोगों और आपके काम के तरीके में अंतर क्या है? वे कहते हैं, 'अगर तमिलनाडु के लोग काम करते हैं, तो घड़ी देखकर आते और जाते हैं। सवा 5 बजे अगर उनका टाइम खत्म हो जाए, तो वे चले जाते हैं। हम लोग काम में लगे रहते हैं। साढ़े 8 बजे तक भी काम करते हैं। वे लोग पैसा ज्यादा मांगते हैं। हम लोग कम पैसे में काम करते हैं। हमारी तो मजबूरी है। दो रुपए कम में भी काम मिलेगा तो करना पड़ेगा।'
'अपने यहां काम नहीं मिलता, इसलिए दूसरी जगह जाते हैं'
बिहार के सिकंदरा में रहने वाले कार्तिक कहते हैं, 'हम तमिलनाडु में 200-400 रुपए कम में काम करते हैं। अगर हमारे यहां काम मिले, तो हम कम पैसों में वहां भी काम करें। ये पैसा हमारे राज्य की तरक्की में लगे। बिहार आगे बढ़े। हम मेहनती लोग हैं। अपने परिवार को अच्छी तरह से रखना चाहते हैं, लेकिन क्या करें, हमें यह मेहनत दूसरे राज्यों में जाकर करनी पड़ती है।'
मैं कुछ पूछना चाहती हूं, उससे पहले ही कार्तिक कुमार बीच में ही बात काटते हुए कहते हैं, 'तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बर्थडे में हमारे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव जाकर केक खिलाते हैं। हमारी सुरक्षा के बारे में एक शब्द तक नहीं कहते। न वो और न ही हमारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। उनसे कहिएगा हम वहां इसलिए जाते हैं, क्योंकि हमें यहां काम नहीं मिलता। अगर काम मिले तो हम वहां जाएं ही क्यों?'
कार्तिक कुमार से जब हमलों के वायरल वीडियो के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया, 'हमने फेसबुक में देखा था। हमें सुनाई पड़ता रहता है, लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ।'
क्या आपके किसी करीबी का मर्डर या झगड़ा हुआ। उन्होंने कहा, वहां काम कर रहे राजस्थानी, गुजराती, बिहारी लोगों की दुकानें भी हैं। तमिलनाडु के लोग हिंदी में लगा बैनर भी फाड़ देते हैं। कहते हैं यहां काम करना है तो तमिल लिखो और बोलो।
वे फिर कहते हैं, ' तमिल हमसे चिढ़ते इसलिए हैं, क्योंकि हम वहां काम करने जाते हैं। हम ज्यादा काम करते हैं, पैसे कम लेते हैं। वे लोग काम के हिसाब से ही पैसे लेते हैं।'
'हमसे कहते हैं कि तुम कम पैसों में काम क्यों करते हो'
तिरुप्पुर से बिहार के जमुई में लौटे अजीत कुमार ने बताया, 'हम टाइल्स पत्थर का काम करते हैं। हमने पटना में भी काम किया, लेकिन यहां पैसा ही नहीं मिला। इसलिए बाहर जाने लगे। वहां पर हमें 600 रुपए दिहाड़ी मिलती है। वहां के लोग इस काम के 800 रु. मांगते हैं। इसीलिए वे हमसे कहते हैं- आप लोग कम पैसों में काम करते हो। हम कहते हैं कि क्या करें, इतनी दूर आए हैं, तो काम तो करना ही पड़ेगा।'
इससे पहले कहां-कहां काम किया, जवाब मिला- 'पंजाब, आंध्र प्रदेश और भी कई राज्यों में काम किया। बिहार में काम ही नहीं, तो कहीं न कहीं तो करना ही है न।' तो क्या वहां भी यही होता है? जवाब मिला, 'नहीं, वहां पर इतना नहीं हुआ। पर लोग तो चिढ़ते ही है न। अगर हम वहां जाएंगे तो उनका काम तो बंट ही जाएगा न हमसे।'
अजीत कहते हैं, 'हम तिरुप्पुर में 8-9 महीने से रह रहे थे। पहली बार इतना हंगामा हुआ।' क्या आपके साथ कोई मारपीट या झगड़ा हुआ। जवाब मिला, 'नहीं हमारे साथ नहीं हुआ, लेकिन वीडियो में देखा।'
ये वीडियो कहां से मिला आपको, जवाब मिला, 'फेसबुक और वॉट्सऐप पर मिला।'
आपको अगर बिहार में काम मिले तो क्या आप बाहर जाएंगे, जवाब मिला, ' क्यों नहीं जाएंगे, खुशी-खुशी हम जितने पैसों में वहां काम करते हैं, उससे भी कुछ कम पैसों में यहां काम कर लेंगे। अपने घर में तो रहेंगे।'
हिंदी बोलने की वजह से हमलों का दावा
तमिलनाडु का तिरुप्पुर और शिवकट इंडस्ट्रियल एरिया है। वहां स्टील, कपड़ों और मार्बल-टाइल्स की इंडस्ट्री है। यहां पर बिहार, राजस्थान के लोग बड़ी संख्या में मजदूरी के लिए आते हैं। पिछले करीब एक हफ्ते से बिहार के मजदूर अचानक अपने राज्य लौटने लगे।
उनका कहना था कि नॉर्थ इंडियंस पर हमले हो रहे हैं। उन्हें हिंदी बोलने की वजह से परेशान किया जा रहा है। मर्डर तक कर दिए जा रहे हैं। उनके मोबाइल पर खून से लथपथ लोगों के कई वीडियो हैं।
बिहार सरकार ने अफसरों की टीम तमिलनाडु भेजी
बिहार के विधानसभा और विधानपरिषद में इस मुद्दे को वहां की सरकार ने जोर-शोर से उठाया। वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने इसे बिहार के लोगों का अपमान कहा। अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तमिलनाडु में एक जांच टीम भेजी है।
तमिलनाडु में हिंदी भाषा पर विवाद 86 साल पुराना
तमिलनाडु में पहला हिंदी विरोधी आंदोलन 1937 में शुरू हुआ था। यह आंदोलन 3 साल तक चला। वहां के लोग स्कूलों में हिंदी भाषा अनिवार्य करने के विरोध में थे। इस आंदोलन को दबाने की कोशिश हुई, तो दो लोगों की मौत और 1000 से ज्यादा गिरफ्तार हुए। फरवरी 1940 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफे के बाद मद्रास के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने अनिवार्य हिंदी शिक्षा का आदेश वापस ले लिया था।
1946-50 के दौरान द्रविड़ कझागम और पेरियार ने हिंदी के खिलाफ आंदोलन किया। सरकार ने जब भी स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा के रूप में पेश किया, तो इसका विरोध हुआ। विरोधी सरकार के इस कदम को रोकने में कामयाब रहे। तब सबसे बड़ा हिंदी विरोधी आंदोलन 1948 से शुरू हुआ था।
सरकार और आंदोलन कर रहे लोगों के बीच एक समझौता किया गया था। सरकार ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई बंद कर दी और उन्होंने 26 दिसंबर 1948 को आंदोलन बंद कर दिया। आखिरकार, सरकार ने 1950-51 के सेशन से हिंदी को वैकल्पिक विषय बना दिया।
26 जनवरी 1965 को मद्रास राज्य में हिंदी विरोधी आंदोलन तेज हो गया। तमिलनाडु के स्टूडेंट्स ने संगठन बनाया और एंटी हिंदी मूवमेंट शुरू किया। यह विरोध आगे चलकर दंगों में बदल गया और करीब 70 छात्र मारे गए।
17 नवंबर 1986 को तमिनलाडु की पार्टी DMK ने नई शिक्षा नीति का विरोध किया। इसमें भी हिंदी पढ़ाए जाने का प्रावधान था। द्रमुक नेता करुणानिधि समेत 20 हजार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। करीब 21 लोगों ने आत्महत्या कर ली। करुणानिधि को 10 हफ्ते की सजा सुनाई गई थी।
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