बूंद-बूंद संघर्ष
सड़कों पर, लम्बी कतारों में, नीले, पीले, लाल और हरे प्लास्टिक के मटके लिए, घंटों वाटर टैंकर्स का इंतजार करते लोग, नल की टोंटियों में एक बूंद पानी नहीं, नहाने और साफ-सफाई का छोड़िए खाना बनाने तक के लिए नहीं, पानी की कमी के कारण स्कूल, कॉलेजों, ऑफिसेस और फैक्ट्रियों तथा कारखानों में छुट्टियां, सब कुछ ठप, पानी के लिए आपस में झगड़ा और तोड़-फोड़ करते लोग, साफ-सफाई की कमी से होने वाली बीमारियों जैसे हैजा और डायरिया का डर!
यह किसी हॉरर मूवी या हॉरर नॉवल का काल्पनिक दृश्य नहीं है। जून 2019, में हमने तमिलनाडु और उसकी राजधानी चेन्नई में यह सब सच में होते देखा है। बॉलीवुड फिल्में 'लगान' हो या 'स्वदेश', 'वेल डन अब्बा’ हो या 'कौन कितने पानी में' या फिर 'जल' हो या 'कड़वी हवा' सब किस पर आधारित है? पानी के संकट पर।
भारत में जल संकट ऐतिहासिक समस्या रही है, और कुछ क्षेत्रों जैसे राजस्थान, गुजरात, विदर्भ, मराठवाड़ा आदि क्षेत्रों में तो बहुत गंभीर स्तर तक।
आज हम बात करेंगे ‘वॉटरमेन ऑफ इंडिया’ के नाम से पहचाने जाने वाले शख्स राजेंद्र सिंह के बारे में जिनके प्रयासों ने राजस्थान में अरवरी नदी और उसके आस-पास के इकोसिस्टम को पुनर्जीवित किया और भूजलस्तर को बढ़ाया।
करिअर फंडा में स्वागत!
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में जन्मे राजेंद्र सिंह ने अपनी युवावस्था में ही स्कूल के इंग्लिश टीचर और गांधी पीस फाउंडेशन के एक सदस्य से समाज सेवा और ग्राम उत्थान की प्रेरणा ली। देश के विभिन्न गांवो में लाइब्रेरी खोलने से लेकर, शराब छुड़वाने और प्रौढ़ शिक्षा तक अनेक कार्य किए।
उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक राजस्थान में अरवरी नदी का पुनरुद्धार था। अरवरी नदी, जो दशकों से सूखी पड़ी थी, को उनके द्वारा चलाए जा रहे एनजीओ 'तरुण भारत संघ' (टीबीएस) द्वारा जोहड़ों (छोटे बांध) और अन्य जल संरक्षण संरचनाओं जैसे जलकुण्डों, पोखरों, छोटी नहरों आदि के निर्माण के माध्यम से पुनर्जीवित किया गया था। नदी, जो अब पानी का एक बारहमासी स्रोत है, ने इस क्षेत्र के लोगों के जीवन को बदल दिया है, जिन्हें अब पानी की तलाश में पलायन नहीं करना पड़ता है।
इस कार्य के लिए उन्हें 'पानी संरक्षण के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार' जितने प्रतिष्ठित स्टॉकहोम वॉटर पुरस्कार और मैग्सेसे पुरस्कार समेत कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यंग प्रोफेशनल्स और पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए उनका जीवन आशा की एक किरण तरह है।
‘पानी के नोबेल पुरस्कार - स्टॉकहोम वॉटर अवार्ड’ विजेता राजेंद्र सिंह से जानिए करिअर और सफल जीवन के सबक।
वॉटरमैन ऑफ इंडिया के जीवन से हमारे लिए 5 बड़े सबक
1) कम्युनिटी ड्रिवन अप्रोच (Community Driven Approach)
राजेंद्र सिंह का मानना है कि पानी संरक्षण परियोजनाओं की योजना और क्रियान्वयन में स्थानीय समुदायों को शामिल करना उनकी सफलता के लिए आवश्यक है। इस दृष्टिकोण ने न केवल ग्रामीणों के बीच स्वामित्व की भावना पैदा करने में मदद मिलती है बल्कि परियोजनाओं की स्थिरता भी सुनिश्चित होती है।
सबक - लोगों को मिशन्स में शामिल करें, उनमें स्वामित्व की भावना जगाएं, उनमें जिम्मेदार अपने आप आ जाएगी।
2) समग्रतापूर्ण दृष्टिकोण (Holistic Approach)
राजेंद्र सिंह का काम यानी जल संरक्षण केवल पानी तक ही सीमित नहीं था बल्कि उसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और उन पर निर्भर लोगों के जीवन में सुधार करना भी है। इस दृष्टिकोण ने सुनिश्चित किया कि जल संरक्षण परियोजनाओं के लाभ भूजल को रिचार्ज करने तक ही सीमित नहीं थे बल्कि टिकाऊ कृषि, जैव विविधता संरक्षण और गरीबी में कमी के रूप में भी सामने आए।
सबक - पर्यावरण और अर्थशास्त्र सभी वस्तुएं जुड़ी हुई हैं, अर्थात अमीर बनने के लिए केवल धन के बारे में सोचने से काम नहीं चलेगा।
3) परंपरागत ज्ञान का महत्व (Importance of Traditional Knowledge)
जल संरक्षण के लिए राजेंद्र सिंह ने जोहड़ (पारम्परिक छोटे बांधों) का उपयोग बहुतायत में किया। उनका मानना है कि ट्रेडिशनल नॉलेज, जो सदियों में विकसित हुआ है, में स्थायी जल प्रबंधन के संदर्भ में बहुत कुछ है।
सबक - किसी भी क्षेत्र में कुछ भी करने से पहले उसे करने के ट्रेडिशनल तरीके को जरूर समझें।
4) नवाचार और अनुकूलनशीलता (Innovation and Adaptability)
राजेंद्र सिंह ने पानी की कमी को दूर करने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग पारंपरिक ज्ञान के साथ संयोजन में किया किया। उन्होंने स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों के आधार पर अपनी रणनीतियों को भी अडॉप्ट किया।
सबक - हमेशा वन-साइज-फिट-ऑल अप्रोच नहीं चलती।
5) धैर्य जरूरी है (Importance of Patience)
उन्होंने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में कभी जल्दबाजी नहीं की। लोगों को जोड़ा, सामुदायिक मदद से जल संरक्षण की तस्वीर बदली। सामाजिक सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन द्वारा 13 हजार से ज्यादा जल संरचनाएं बनाई, जिससे 13 नदियां पुनर्जीवित हुई। इस काम से जलवायु परिवर्तन,अनुकूलन और उन्मूलन हुआ।
सबक - सही कार्य के लिए बस चलते रहें, कारवां बनता जाएगा, सभी जगह से मदद मिलेगी।
उम्मीद करता हूं, आपको राजेंद्र सिंह की कहानी पसंद आई होगी!
आज का करिअर फंडा है कि कम्युनिटी पार्टिसिपेशन, होलिस्टिक अप्रोच, ट्रेडिशनल नॉलेज, और इनोवेशन तथा अडैप्टिबिलिटी से जब जल संकट जैसी समस्या को सुलझाया जा सकता है तो इसे हम अपने जीवन की कई और समस्याओं को सुलझाने के लिए भी उपयोग कर सकते है।
कर के दिखाएंगे!
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