इसलिए हम आजाद हैं... सीरीज की दूसरी स्टोरी...
सबसे पहले 97 साल पुराने 4 सीन से गुजरते हैं…
सीन नंबर 1 : तारीख 30 जून 1925। तब की बॉम्बे प्रेसिडेंसी के सूरत जिले में तैनात एक भारतीय PCS अफसर एमएस जयकर ने एक रिपोर्ट पेश की। बतौर जूनियर सेटलमेंट ऑफिसर जयकर ने सूरत के बारडोली तालुका के 23 गांवों के किसानों से वसूले जा रहे लगान में एकमुश्त 30.59% बढ़ोतरी की सिफारिश कर दी। अब तक इन गांवों से 5,14,762 रुपए का लगान लिया जा रहा था। जयकर ने इसे बढ़ाकर 6,72,273 रुपए कर दिया।
सीन नंबर 2 : जयकर से इतर कमिश्नर ऑफ सेटलमेंट एफजीआर एंडरसन ने लगान 29.03% बढ़ाने की सिफारिश की। इस बहस के बीच बॉम्बे प्रेसिडेंसी ने 19 जुलाई 1927 को पूरे सूरत तालुका के लिए लगान की दर में 21.97% बढ़ोतरी का हुक्म दे दिया। वसूली भी उसी साल शुरू कर दी गई।
सीन नंबर 3 : कई संगठनों ने बार-बार विनती की। 1927 में लोकल कांग्रेस ने एक रिपोर्ट तैयार कर बताया- किसान यह बोझ सह नहीं पाएंगे। अंग्रेज फिर भी नहीं माने तो किसान महात्मा गांधी के पास पहुंचे।
1922 में असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद से निराश गांधी ने किसानों से कहा, “मेरा एक वकील मित्र अहमदाबाद में प्रैक्टिस करता है। वह काफी होशियार भी है। आपके पास वही आएगा।”
सीन नंबर 4 : किसान वल्लभ भाई पटेल के पास पहुंचे। पटेल बोले-दो बार सोच लो। नाकाम रहे तो कई साल खड़े नहीं हो सकोगे। किसानों ने हामी भरी और 4 फरवरी 1928 को पटेल ने बारडोली में एक सभा करके सत्याग्रह शुरू किया। अगले दिन यानी 5 फरवरी को बढ़ा हुआ लगान चुकाने की तारीख थी। पटेल ने सत्याग्रह की प्लानिंग के लिए हुई पहली बैठक रद्द कर दी। वे बोले- ‘महिलाओं के बिना घर नहीं चल पाता और तुम लोग इतना बड़ा सत्याग्रह चलाने का सपना देख रहे हो।”
आइए अब वर्तमान में लौटते हैं। मैं बारडोली की उसी जगह पर मौजूद हूं, जहां पटेल की एक छोटी सी पहल ने बारडोली के 137 गांवों की महिलाओं को ही नहीं, बल्कि देश की आधी आबादी को भी आजादी की लड़ाई का अगुआ बना दिया। आज यहां सरदार पटेल का बसाया स्वराज आश्रम है।
वल्लभ भाई पटेल ने स्वराज आश्रम को केंद्र बनाकर छह महीनों के भीतर ऐसा अहिंसक जन आंदोलन खड़ा कर दिया कि अंग्रेज हुकूमत को लगान बढ़ोतरी के मामलों के लिए मैक्सवेल-ब्रूमफील्ड कमीशन बनाना पड़ा। बॉम्बे प्रेसिडेंसी को बारडोली में 21.97% बढ़े हुए लगान की जगह 6.03% बढ़ोतरी पर सब्र करना पड़ा। बढ़ा हुआ लगान न चुकाने पर जब्त मकान और जमीन भी सत्याग्रही किसानों को लौटानी पड़ी।
12 फरवरी 1928 में शुरू हुए इस सत्याग्रह को पटेल ने अपनी सूझबूझ से 6 अगस्त 1928 तक एक सफल आंदोलन में तब्दील कर दिया। इसी आंदोलन के दौरान सत्याग्रही महिलाओं ने पगड़ी पहनाकर वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ का नाम दिया और देश को एक ताकतवर जननेता मिला, जिसने आजादी के बाद 550 से ज्यादा रियासतों का भारत में विलय करवाया।
चलिए दोबारा आज के स्वराज आश्रम में लौटते हैं…
झक सफेद साड़ी पहने 83 बरस की निरंजनाबेन उर्फ बल्लभआई रमेला आश्रम में गर्व से भरी बैठी हैं। उनकी आंखों में आज भी वही चमक है जो उन्हें सरदार पटेल से विरासत में मिली है। सरदार शब्द सुनते ही उनकी आंखें चमक उठती हैं और वो चहक कर बच्चों की तरह बारडोली सत्याग्रह के किस्से सुनाने लगती हैं।
निरंजनाबेन भले ही बारडोली सत्याग्रह में शामिल नहीं हुई थीं, लेकिन उनका जन्म आश्रम में ही हुआ था। वो सरदार पटेल और उनकी बेटी मणिबेन की गोद में खेली हैं।
लोहे के एक झूले पर बैठीं निरंजनाबेन बताती हैं कि वल्लभ भाई ने किसानों से हुई पहली ही मीटिंग में इरादे साफ कर दिए थे। पटेल ने साफ कह दिया था कि महिलाओं के आने के बाद ही हम आगे बढ़ेंगे। जब किसानों ने पूछा कि महिलाएं अंग्रेजों से भला कैसे लड़ेंगी, इस पर उन्होंने सत्याग्रह में महिलाओं की मौजूदगी को जरूरी बना दिया।
बारडोली में घुसते ही आपको ‘सरदार नगर’ लिखा नजर आता है। मैं जैसे ही स्वराज आश्रम पहुंचा तो सबसे पहली नजर स्कूल में पढ़ती छोटी-छोटी बच्चियों पर गई। शायद पटेल ने इसी सपने के बीज बारडोली में बोए थे।
बारडोली में मर्डर का कोई केस नहीं था, इसलिए सत्याग्रह का केंद्र बनाया
निरंजनाबेन बताती हैं कि सरदार अहमदाबाद से आए और सबसे पहले बारडोली तालुका के आसपास के पुलिस थानों को देखा। हर जगह कोई न कोई हत्या के मामले दर्ज थे। बारडोली एक ऐसी जगह थी जिसके थानों में हत्या का एक भी मामला दर्ज नहीं था।
बस, यही वजह थी कि अहिंसक सत्याग्रह के लिए उन्होंने बारडोली को चुना। पटेल ने बारडोली के आसपास के गांवों में सत्याग्रही शिविर भी लगाए, लेकिन सभी शिविरों का मुख्यालय बारडोली का स्वराज आश्रम ही था। यहां रोज सभाएं होती थीं। वल्लभ भाई ने यहीं सत्याग्रह की हर रणनीति तैयार की थी।
तब...
अब...
किसानों जैसे कपड़े में कार की जगह मोटरसाइकिल से गांव-गांव तक पहुंचे
बारडोली में रहने वाले इतिहासकार पी.डी. नायक बताते हैं, “पटेल बड़े वकील तो थे ही, लेकिन उससे भी बेहतर नेता थे। आंदोलन के लिए उन्होंने किसानों की तरह ही कपड़े पहनना शुरू कर दिया। उन्होंने कार की जगह मोटरसाइकिल चुनी, ताकि ज्यादा से ज्यादा गांवों तक कम टाइम में पहुंच सकें। वे छोटी-छोटी नावों से नदी पार करते और जरूरत पड़ने पर बैलगाड़ियों से सफर करते थे।”
जमीन जब्त करने सरकारी टीम पहुंचती तो जंगल में भाग जाते थे किसान
बारडोली के लोगों को भी सत्याग्रह से जुड़ी कहानियां मुंह जबानी याद हैं। यहीं के राजेश वाघ एक किस्सा सुनाते हैं- “सत्याग्रह के दौरान पटेल ने किसानों से लगान न देने को कहा था। जवाब में ब्रिटिश हुकूमत ऐसे किसानों के घर, सामान और जमीन जब्त करने के लिए टीम भेज देती थी। ये टीम ढोल-नगाड़े बजाते हुए पहुंचती थी। ऐसे में पटेल ने किसानों से कहा कि जब भी सरकारी टीम गांव आए तो वे आसपास के जंगलों में छिप जाया करें। गांवों में लोगों के न रहने पर टीम बिना कार्रवाई के लौट जाती थी।”
अब जानते हैं लगान बढ़ाने की सिफारिश करने वाले PCS अफसर एमएस जयकर के 6 अनोखे आधार…
जयकर के 6 आधारों के खिलाफ बारडोली के किसानों के 6 जवाब-
तब के हालात जानने के लिए 575 वर्ग किमी में बसे तीन नदियों वाले बारडोली को जानना जरूरी..
बारडोली तालुका में तब 137 गांव थे। करीब 575 वर्ग किलोमीटर के इलाके से तीन बड़ी नदियां, ताप्ती, पूर्णा और मिंदोला बहती हैं। तब इलाके में 87 हजार से लोग बसे थे, जिनमें से ज्यादातर किसान थे।
1920 से पहले तक इलाके के तकरीबन 90% किसान कपास की खेती करते थे। अंग्रेज इसी कपास से अपने लाखों कपड़ा मिलों वाले मैनचेस्टर का कुछ पेट भरना चाहते थे। मैनचेस्टर में कपास की भूख का अंदाज इस फैक्ट से लगा सकते हैं- पहले विश्वयुद्ध तक मैनचेस्टर में हर साल 700 करोड़ मीटर कपड़ा बनाया जाता था।
इसके लिए अंग्रेजों ने दो काम किए थे। पहला- बारडोली-सूपा रोड बनवाया और दूसरा- ताप्ती की इस घाटी को रेल से जोड़ दिया। इससे किसानों की पहुंच बारडोली और नवसारी के बाजार तक हो गई।
नतीजा यह हुआ कि इलाके में साल 1894 तक जहां 25 हजार एकड़ भूमि पर कपास की खेती होती थी, वह 1923-24 आते-आते यह बढ़कर 40,099 एकड़ हो गई। इससे उलट ज्वार जैसी फसल का इलाका 27,554 एकड़ से घटकर 18,642 एकड़ रह गया।
बारडोली से निकल इंग्लैंड में गूंजा नारा - 'बारडोला इज इंडिया'
बारडोली आश्रम में रहने वाली कलार्थी बताती हैं कि सरदार पटेल के सत्याग्रह के चौथे महीने में बारडोली की एक महिला ने सभा के बीच में कहा था कि आज से आप ही हमारे ‘सरदार’ हैं। यहीं से सरकार उपाधि वल्लभ भाई पटेल से जुड़ गई। लोग उन्हें सरदार पटेल पुकारने लगे। इसी सत्याग्रह से 'बारडोला इज इंडिया' का नारा इंग्लैंड तक पहुंचा था।
इतिहासकार पी.डी. नायक बताते हैं कि सरदार पटेल नारी शक्ति को बखूबी पहचानते थे। अंग्रेज महिलाओं के खिलाफ हिंसक कार्रवाई नहीं कर सकते थे। इसलिए सरदार ने सत्याग्रह में महिलाओं को जोड़ा। धीरे-धीरे लोगों के मन से डर दूर होता गया और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से कामयाब लड़ाई लड़ी।
बारडोली का स्वराज आश्रम और ये शहर आज भी ‘सरदार’ का
जब मैं स्वराज आश्रम पहुंचा तो पता चला कि पटेल पर्यावरण प्रेमी भी थे। उन्होंने आश्रम में अपने हाथों से नीम, आम और चीकू के कई पेड़ लगाए जो आज भी यहां मौजूद हैं। पटेल की बेटी मणिबेन ने यहां छोटे बच्चों के लिए बाल मंदिर शुरू किया जहां निशुल्क पढ़ाई होती है। इसके अलावा यहां एक गर्ल्स स्कूल और हॉस्टल भी है, जहां छात्राओं को गांधीवादी आदर्शों के साथ मुफ्त शिक्षा दी जाती है। आश्रम के पास बारडोली सत्याग्रह की यादें ताजा रखने वाला एक म्यूजियम भी है। संग्रहालय सहायक क्यूरेटर रतनजी पटेल ने बताया कि इस म्यूजियम में सरदार पटेल के इतिहास से जुड़ी 562 ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें भी हैं।
आखिर में पढ़िए बारडोली सत्याग्रह की तारीख दर तारीख डीटेल...
एडिटर्स बोर्ड :- निशांत कुमार और अंकित फ्रांसिस
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