लोग सिगरेट पीकर उसका फिल्टर जमीन पर या फिर डस्टबिन में फेंक देते हैं। अगर उनसे पूछा जाए कि इसका क्या होता है तो वे कंधे उचका देंगे। ज्यादातर कहेंगे कि ये कॉटन है, मिट्टी में मिल जाएगा, लेकिन नहीं। करीब 5 सेंटीमीटर की सिगरेट बट में 50 से ज्यादा ऐसे केमिकल होते हैं, जो मिट्टी को बर्बाद कर सकते हैं। इतने से टुकड़े को अपने-आप खत्म होने में 12 साल लग जाते हैं।
हम इससे खिलौने बना रहे हैं, नर्म तकिए बना रहे हैं और कागज बना रहे हैं। ऐसा कागज जिसे गमले में डाल दें तो तुलसी और गेंदे के फूल खिल आएंगे।
29 साल के नमन गुप्ता ये बातें कॉलेज के स्टेज पर नहीं कह रहे, बल्कि फैक्ट्री में बता रहे हैं। रोज सुबह 8 बजे वे घर से नोएडा के नांगल गांव के अपने कारखाने पहुंचते हैं और देर शाम तक डटे रहते हैं। ऐसा हफ्ते के 6 दिन होता है। वीकेंड पर भी वे दोस्तों के साथ गप्पें मारने की बजाय इसपर रिसर्च करते हैं कि सिगरेट बट का वेस्ट मैनेजमेंट और बेहतर कैसे किया जाए।
नमन इसकी रिसाइकिलिंग पर काम करते हैं। साल 2018 में कुछ लाख की रकम के साथ नोएडा में शुरू हुआ उनका काम अब मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, यूपी, कर्नाटक सहित कई राज्यों में 250 जिलों तक फैल चुका है।
रिसर्च किया तो पता चला सिगरेट बट को गलने में 10-12 साल लगते हैं
नमन याद करते हैं- साल 2018 की बात है, कॉलेज खत्म होने को था। मेरे कई दोस्त सिगरेट पिया करते और फिल्टर को कभी जमीन पर फेंक देते, कभी डस्टबिन में डाल देते। एक दिन अचानक दिमाग में खयाल आया कि सिगरेट के इन फिल्टर्स का क्या होता है?
रिसर्च की तो चौंक गया। ब्राउन या सफेद कागज में लिपटा कॉटन की तरह दिखने वाला ये फिल्टर असल में सेलुलोज एसिटेट होता है। ये एक तरह का फाइबर है, जो गलने में 10 से 12 साल का वक्त लेता है। इतने वक्त में वो मिट्टी को बर्बाद कर देता है। हमारे देश में इसे रिसाइकिल करने का कोई जरिया नहीं।
लोगों का कहना था सिगरेट के फिल्टर से कुछ नहीं हो सकता, ये बेकार है
नमन कहते हैं- मैंने रिसर्च में अपने बड़े भाई विपुल गुप्ता की मदद ली, जो साइंस बैकग्राउंड से हैं। उन्होंने इस तरह की मशीनें तैयार करवाईं जो सिगरेट बट को 100% तक रीसाइकिल कर सके। 4-5 महीनों के ट्रायल के बाद आखिरकार हम वहां पहुंच गए, जहां हम सिगरेट वेस्ट मैनेजमेंट पर कंपनी बना सकते थे। हमने इसे नाम दिया- कोड एफर्ट प्राइवेट लिमिटेड।
कंपनी बनाने के साथ-साथ ही हम लोगों को अप्रोच करना शुरू कर चुके थे। हम कॉर्पोरेट में भी गए और ठेले पर खड़े लोगों से भी बात की। सबका यही मानना था कि सिगरेट फिल्टर से कुछ नया नहीं हो सकता।
हमारे लिए सबसे बड़ा चैलेंज भी यही रहा कि हम सिगरेट बट कहां से और कैसे कलेक्ट करें। क्योंकि भारत में हर दिन 10 हजार करोड़ से ज्यादा सिगरेट बट की खपत होती है। लोग दुकानों पर, सार्वजनिक जगहों पर, चलते-फिरते रास्ते में कहीं भी सिगरेट पीकर फेंक देते हैं। इसलिए हमने सबसे ज्यादा मेहनत वेस्ट कलेक्ट करने को लेकर किया।
तीन तरीके से कलेक्ट करते हैं सिगरेट का वेस्ट
भास्कर से बात करते हुए नमन कहते हैं कि हम अलग-अलग स्टेप्स में काम करते हैं। पहला काम है फिल्टर यानी सिगरेट के बेकार हिस्से को जमा करना। इसके 3 तरीके हैं...
1. हम कबाड़ उठानेवालों या ऐसे लोगों की मदद लेते हैं, जिनके पास काम नहीं। वे जगह-जगह से फिल्टर जमा करते और हम तक पहुंचाते हैं। इसके लिए हम उन्हें प्रति किलो के हिसाब से पैसे भी देते हैं।
2. हम कंपनियों, कॉर्पोरेट्स और पानठेलों तक डस्टबिन पहुंचाते हैं। जिसमें लोग सिगरेट वेस्ट फेंक सकें। बिन भर जाने पर हमारी टीम के सदस्य उसे ले आते हैं।
3. सबसे कामयाब मॉडल सप्लायर एग्रीमेंट है। इसके जरिए छोटा बिजनेस करने की इच्छा रखने वाले हमसे जुड़ सकते हैं। वे हम तक सिगरेट वेस्ट पहुंचाएंगे और बदले में उन्हें अच्छा इंसेंटिव मिलेगा।
इस तरह से हर रोज हमारे पास हजार किलो से ज्यादा सिगरेट बड्स जमा होते हैं। यहां से शुरू होती है रिसाइकिलिंग की प्रकिया।
सिगरेट में तीन तरह के वेस्ट होते हैं
28 दिन में सिगरेट के तंबाकू से बन जाती है खाद
बट में बची हुई तंबाकू के लिए हमने कारखाने में गड्ढा तैयार करवा रखा है। तंबाकू को यहां डालकर उसमें बैक्टीरिया और फंगल मिलाकर 28 दिन के लिए छोड़ देते हैं। इतने दिनों में जहरीला तंबाकू शानदार खाद बन जाता है। हम इसे नर्सरी में दान कर देते हैं।
सिगरेट पर लिपटे पेपर से लिफाफा और कागज बनाते हैं
सिगरेट पर लिपटे हुए कागज को फेंकने की बजाय हम इससे कई चीजें बना रहे हैं, जैसे कागज और लिफाफे। अभी हमने एक नया काम किया। पेपर तैयार करते हुए लुगदी में गेंदे और तुलसी के बीज डाल देते हैं। इससे होगा ये कि पेपर यूज करने के बाद उसे फेंकने की बजाय गमले में डाल दें तो तुलसी का पौधा या गेंदे के फूल खिल आएंगे।
सिगरेट के फिल्टर से बनाते हैं सॉफ्ट टॉयज
सबसे खतरनाक वेस्ट प्रोडक्ट सिगरेट का फिल्टर है। कॉटन की तरह दिखने वाली चीज बड़ी जिद्दी होती है। इसके लिए हमने कारखाने में रिसाइकिल मशीन लगा रखी है। इस प्रक्रिया से गुजरा हुआ फिल्टर रूई की तरह नर्म हो जाता है। फिर इसे दोबारा ट्रीट किया जाता है ताकि किसी किस्म का केमिकल या गंदगी न रह जाए। इसके बाद इससे सॉफ्ट टॉयज, तकिया जैसी चीजें बनाई जाती हैं।
करीब 1 हजार लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे
खूब तर्जुबेदार बिजनेसमैन की तरह बात करते नमन अपनी उम्र से बहुत आगे की सोच रहे हैं। वे अपने काम में उन महिलाओं को भी जोड़े हुए हैं, जो घर से बाहर निकलकर काम नहीं कर पातीं। फैक्ट्री से निकलकर हम उस वर्कशॉप में गए, जहां महिलाएं फिल्टर से खिलौने बना रही थीं। नमन और उनकी टीम इन महिलाओं को ट्रेनिंग देते हैं और फिर सारे प्रोडक्ट दे देते हैं ताकि वे घर बैठे ही काम कर सकें। अभी करीब 100 महिलाओं को वे रोजगार मुहैया करा रहे हैं, जिन्हें प्रति प्रोडक्ट भुगतान होता है।
नमन बताते हैं कि “सिगरेट बट से बने बाय प्रोडक्ट को हम ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, डिस्ट्रीब्यूटर और सेल्समैन के जरिए बेचते हैं। इसके अलावा कॉर्पोरेट से बल्क ऑर्डर लेकर भी इन प्रोडक्ट्स की डिलीवरी करते हैं।” इस काम से करीब 1000 लोग जुड़े हैं।
नमन बताते हैं कि सिगरेट बट की रिसाइकिलिंग के लिए 8 से 10 लाख रुपए का कैपिटल इनवेस्टमेंट चाहिए। इससे कुछ मशीनें खरीदी जाएंगी। इसके अलावा कई खर्च हैं, जो इसपर तय होते हैं कि आप किस लेवल पर बिजनेस करने वाले हैं। मसलन स्टाफ की सैलरी, फैक्ट्री की जमीन का किराया जो महीने के महीने लगेंगे।
इसके अलावा अगर आप फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम कर सकते हैं तो हमारे या वेस्ट मैनेजमेंट का काम कर रहे दूसरे लोगों के साथ भी जुड़ सकते हैं। इससे एनुअल रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट 20 से 22% आ सकता है।
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