भास्कर एक्सक्लूसिवतिब्बती महिलाओं का इलेक्ट्रिक चिप से अबॉर्शन कर रहा चीन:अजन्मे बच्चे को करंट के झटके देकर मार रहे, बेहोश भी नहीं करते

4 महीने पहलेलेखक: आशीष राय

‘चीन की सेना के डॉक्टर्स के निशाने पर प्रेग्नेंट तिब्बती महिलाएं होती हैं। प्रेग्नेंट महिला को जबरदस्ती ले जाते हैं। उसके वजाइनल पार्ट में एक इलेक्ट्रिक डिवाइस डाली जाती है। इससे पेट में मौजूद अजन्मे बच्चे को बिजली के झटके दिए जाते हैं और जबरदस्ती अबॉर्शन कर दिया जाता है। ऐसा करने के दौरान तिब्बती महिलाओं को एनेस्थीसिया देकर बेहोश भी नहीं किया जाता, पूरे वक्त वे दर्द से तड़पती रहती हैं।’

ल्हामो चोनजोम ये बताते हुए कांपने लगती हैं, जैसे अभी भी वो उस दर्द को महसूस कर रही हैं। ये सुनते हुए मेरे शरीर में भी सिहरन दौड़ जाती है। याद आने लगता है कि बचपन में एक बार करंट लगा था तो कैसा महसूस हुआ था। प्राइवेट पार्ट पर करंट और अजन्मे बच्चे को ऐसे मारने के ख्याल से ही मैं अंदर तक कांप जाता हूं।

ल्हामो और मेरी आंखों में साझा दर्द उतर आता है। ल्हामो उन तिब्बती शरणार्थियों में से हैं, जिन्होंने 12 नवंबर को हिमाचल में हुई वोटिंग में हिस्सा लिया था। 8 दिसंबर को रिजल्ट आने के बाद नई सरकार भी बन जाएगी। इन तिब्बतियों के दर्द का क्या होगा, इन्हें न्याय कैसे मिलेगा, ये अभी भी सवाल बना हुआ है।

इन चुनावों में तिब्बती शरणार्थियों ने भी बड़ी संख्या में मतदान किया है। यहां सबसे ज्यादा 2,193 तिब्बती मतदाता कांगड़ा जिले में हैं। हालांकि, इनमें से कितनों ने वोट दिया, इसका सही आंकड़ा प्रशासन के पास भी नहीं है।

2017 के आंकड़ों के मुताबिक कांगड़ा जिले में मौजूदा समय में 9,147 से ज्यादा तिब्बती लोग रहते हैं। इनमें 5,689 पुरुष और 3,458 महिलाएं हैं। इनमें से कई ऐसे हैं, जो तिब्बत में बढ़ी चीन की बर्बरता के बाद भारत आए हैं।

निर्वासित तिब्बत सरकार की संसद का सेंट्रल हॉल। इसके हेड ऑफ स्टेट दलाई लामा हैं। तिब्बत सरकार का गठन मसूरी में हुआ था, अब ये धर्मशाला से काम करती है।
निर्वासित तिब्बत सरकार की संसद का सेंट्रल हॉल। इसके हेड ऑफ स्टेट दलाई लामा हैं। तिब्बत सरकार का गठन मसूरी में हुआ था, अब ये धर्मशाला से काम करती है।

तिब्बतियों के लिए भारत भगवान जैसा है
हिमाचल के मैक्लोडगंज की गलियों में हमें सैकड़ों लामा गेरुए परिधान पहने टहलते नजर आते हैं। तिब्बती शरणार्थियों ने इस शहर में कई दुकानें और रेस्टोरेंट खोल लिए हैं। इनमें ज्यादातर शॉप, तिब्बती गिफ्ट आइटम्स और कपड़ों की हैं।

पिछले 60 साल से यहां रह रहे तिब्बती शरणार्थी देश के अलग-अलग हिस्सों में एग्रीकल्चर, एग्रो-इंडस्ट्री, कारपेट बुनाई और एक्सपोर्ट के काम से भी जुड़े हुए हैं। सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि 70% निर्वासित तिब्बती लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में सर्दियों में स्वेटर और जैकेट बेचने का काम करते हैं।

यहां मेरी मुलाकात मैक्लोडगंज में पैदा हुईं ल्हामो चोनजोम से हुई। 1960 में लामो के माता-पिता भारत आए थे, तब वे सिर्फ 12 और 20 साल के थे। आज दोनों 80 और 72 साल के हैं। ल्हामो तिब्बती महिला संगठन की जॉइंट सेक्रेटरी भी हैं।

वे बताती हैं- भारत हमारे लिए भगवान जैसा है। चीन ने 1962 में जब हमारे देश पर कब्जा करना शुरू किया तो हमने कई देशों को पत्र लिखे थे, लेकिन कुछ वक्त पहले ही आजाद हुआ भारत ही हमारी मदद के लिए आगे आया। ‘भारत में लाइफ कैसी है’ के सवाल पर ल्हामो चोनजोम ने कहा कि थोड़ी-बहुत परेशानी तो हर जगह होती ही है। हमारे तो माथे पर ही रिफ्यूजी लिखा है।

तिब्बत में महिलाओं पर चीनी जुल्म की कहानियां
ल्हामो चोनजोम तिब्बती महिला संगठन की जॉइंट सेक्रेटरी भी हैं। तिब्बत में मौजूद 60 लाख महिलाओं के लिए वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठा रही हैं। वे बताती हैं कि हम कई तरीकों से तिब्बती महिलाओं के संपर्क में हैं, वहां चीनी सेना का जुल्म बढ़ता जा रहा है। 1997 में चीन ने वन चाइल्ड पॉलिसी के नाम पर बर्बरता शुरू कर दी थी।

बिजली के झटके देकर पेट में ही बच्चों को मारा जा रहा
ल्हामो चोनजोम चीन के जुल्म की कहानी सुनाते हुए बार-बार अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करती नजर आती हैं। वे बताती हैं- चीनी सेना के लिए काम करने वाले डॉक्टर्स तिब्बती महिलाओं पर अमानवीय अत्याचार कर रहे हैं।

ल्हामो पेंटिंग के जरिए तिब्बती महिलाओं पर हो रहे अत्याचार दिखाती हैं। ये कहानियां चीन से आईं महिलाओं ने उन्हें बताई हैं।
ल्हामो पेंटिंग के जरिए तिब्बती महिलाओं पर हो रहे अत्याचार दिखाती हैं। ये कहानियां चीन से आईं महिलाओं ने उन्हें बताई हैं।

ये बताते ल्हामो हुए रोने लगती हैं, मैं भी चुप हो जाता हूं। कुछ देर में वे खुद को संभालती हैं और बताती हैं कि तिब्बती महिला को जबरदस्ती वेश्यावृत्ति में धकेला जाता है। उन्होंने महिलाओं के लिए एक बाउंड्री बना दी है और उससे बाहर निकलने नहीं दिया जाता।

ल्हामो गुस्से में तेज-तेज बोलने लगती हैं- वहां (तिब्बत) ह्यूमन राइट्स बिल्कुल बचे ही नहीं हैं। दलाई लामा की तस्वीर भी अगर किसी के पास मिलती है, तो उसे पकड़ कर जेल में डाल दिया जाता है। चीन की आर्मी, पुलिस और सिक्योरिटी एजेंसीस से जुड़े लोग कभी भी किसी तिब्बती महिला को उठा कर ले जाते हैं और उसका रेप, गैंगरेप करते हैं। शिकायत करने पर टॉर्चर करते हैं।

तिब्बत पर कब्जा करने से पहले चीन ने वहां पैसे बांटे
1965 में 22 साल की उम्र में तिब्बत से भाग कर भारत आए नेमा केस बताते हैं कि चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने से पहले वहां के लोगों को मदद के नाम पर पैसे बांटने शुरू किए। उनकी जमीनों को ऊंचे दाम पर खरीदा गया। चीन ने उनकी जमीनों से सोना और चांदी निकालने का काम शुरू किया।

चीन तिब्बत के कल्चर को खत्म करना चाहता है
सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन (CTA) के प्रवक्ता तेनजिन लेक्शय कहते हैं कि 60 साल से ज्यादा समय से चीन तिब्बत पर कब्जा करके बैठा हुआ है और अभी भी वहां के लोगों पर जुल्म कर रहा है। डेवलपमेंट के नाम पर चीन लगातार तिब्बत के लोगों को दबा रहा है। वह हमारे कल्चर और भाषा को बर्बाद कर रहा है। वहां के स्कूलों में सिर्फ चाइनीज में पढ़ाई शुरू हो गई है।

चीन में एक ऐसी सरकार है, जो धर्म को नहीं मानती है। चीन ने अब तक हमारे 6 हजार से ज्यादा मठों को बर्बाद किया है। 60 साल से हम चीन के खिलाफ इसलिए खड़े हैं, क्योंकि हम अपने में खुद मजबूत हैं। चीन तिब्बत को सामरिक महत्व के हिसाब से एक बहुत अहम लोकेशन मानता है। तिब्बत रिसोर्स के हिसाब से बहुत धनी है। यहां से वह आसानी से सेंट्रल एशिया से कनेक्ट हो सकता है।

तिब्बत में दलाई लामा की तस्वीर रखना मतलब मौत
लेक्शय बताते हैं कि तिब्बत में बेहद क्रूर ढंग से महिलाओं और पुरुषों को टॉर्चर किया जा रहा है। दलाई लामा की तस्वीर रखने पर भी लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता है। उनकी पिटाई की जाती है। दलाई लामा धर्मगुरु हैं, इसके बावजूद हम उनकी तस्वीर फोन में भी नहीं रख सकते।

चीन बाहर बोलता है कि वह तिब्बत को डेवलप कर रहा है, लेकिन अगर आप चीन जाना चाहते हैं तो आप को वीजा मिल जाएगा, लेकिन तिब्बत जाना चाहते हैं तो आप को स्पेशल परमिट लेना पड़ेगा। अगर वहां सब ठीक है तो हमें जाने क्यों नहीं देते।

तिब्बत के बाद अब नेपाल होगा अगला टारगेट
लेक्शय के मुताबिक, तिब्बत में इस तरह से सिस्टम बना दिया गया है कि अंदर से कोई बाहर और बाहर से अंदर नहीं जा सकता है। 2008 के बाद से सख्ती और बढ़ा दी गई है। इससे पहले भारत में हर साल 3 हजार लोग आते थे, लेकिन अब सिर्फ 8-9 लोग ही आ पाते हैं।

चीन धीरे-धीरे नेपाल में भी अपनी पैठ बना रहा है। पहले हमारे लोग हिमालय पार कर नेपाल और फिर भारत आ जाते थे, लेकिन अब नेपाल पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। आने वाले समय में नेपाल का भी हाल तिब्बत जैसा होने वाला है।

1959 में 80 हजार से ज्यादा तिब्बती शरणार्थी भारत आए थे। इनकी आबादी बढ़कर अब 1 लाख से ज्यादा हो गई है। सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन (CTA) को निर्वासित तिब्बतियों का देश भी कहा जाता है।
1959 में 80 हजार से ज्यादा तिब्बती शरणार्थी भारत आए थे। इनकी आबादी बढ़कर अब 1 लाख से ज्यादा हो गई है। सेंट्रल तिब्बत एडमिनिस्ट्रेशन (CTA) को निर्वासित तिब्बतियों का देश भी कहा जाता है।

बाहर कैसे आ रही हैं जुल्म की ये कहानियां?
इस सवाल के जवाब में ल्हामो बताती हैं- हमारे सोर्स है। उनके बारे में सुरक्षा कारणों से हम आपको नहीं बता सकते। हाल के दिनों में जो महिलाएं वहां से भाग कर आईं हैं हमने उनसे बात की है। ये उनकी कहानियां हैं। ये उन्होंने देखा है और सहा भी है। वहां लोग VPN का इस्तेमाल कर हमें कॉल करते हैं। अब जीरो कोविड पॉलिसी के नाम पर उनका उत्पीड़न और बढ़ गया है।

चीन के नियम और पॉलिसी को जो मानने के लिए तैयार हो जाता है, उसे वहां काम मिल जाता है। जो उसे नहीं अपना रहा, उसे झूठे मामलों में फंसाकर जेल भेज दिया जाता है, गायब कर दिया जाता है। चाइनीज और तिब्बती महिलाओं को एक ही काम के लिए अलग-अलग सैलरी दी जाती है। खुद का देश कोई नहीं छोड़ना चाहता, लेकिन दलाई लामा की एक झलक के लिए लोग वहां से यहां खुद को खतरे में डालकर आ रहे हैं। भागने के दौरान कोई भी पकड़ा जाता है तो उसे गोली मार दी जाती है।

पिंजरे में रह रहे तिब्बती, सजा देने के नए-नए तरीके अपना रहे चीनी
तिब्बत से भारत भागकर आईं 78 साल की स्वांग हू बताती हैं कि चीन हमारे धर्म, कल्चर और हमारे घरों पर कब्जा कर रहा है। हमें वहां से भागकर यहां आना पड़ा। हम वहां भगवान बुद्ध की पूजा नहीं कर सकते। कोविड के नाम पर हमें खुले मैदान और गहरे गड्‌ढों में रखा जा रहा है। वे हमें कई दिन तक खाना नहीं देते हैं और बुरी तरह मारते-पीटते हैं।

चोनजोम भी बताती हैं कि चीनी सेना ने हर जगह CCTV कैमरे लगा रखे हैं। वे हर मूवमेंट को ट्रैक और रिकॉर्ड करते हुए लोगों की जासूसी कर रहे हैं। यही वजह है कि अब वहां से किसी का भारत आना बेहद मुश्किल हो गया है।

निर्वासित तिब्बतियों का धर्मशाला में स्वतंत्र देश
CTA के प्रवक्ता तेनजिन लेक्शय बताते हैं कि स्वतंत्र तिब्बत सरकार के रूप में CTA का गठन 29 अप्रैल 1959 को मसूरी में हुआ। इसके बाद इसे मई 1960 में धर्मशाला शिफ्ट कर दिया गया। तिब्बत के अंदर और बाहर (भारत के अलावा विदेशों में) रहने वाले लोग इसे ही अपनी सरकार मानते हैं।

भारत में लगभग एक लाख तिब्बती शरणार्थी हैं। इनमें से करीब 8 हजार धर्मशाला में रहते हैं। तिब्बती आबादी की वजह से धर्मशाला के उपनगर मैक्लोडगंज को लिटिल ल्हासा कहा जाता है। ल्हासा तिब्बत रीजन की राजधानी है।
भारत में लगभग एक लाख तिब्बती शरणार्थी हैं। इनमें से करीब 8 हजार धर्मशाला में रहते हैं। तिब्बती आबादी की वजह से धर्मशाला के उपनगर मैक्लोडगंज को लिटिल ल्हासा कहा जाता है। ल्हासा तिब्बत रीजन की राजधानी है।

तेनजिन लेक्शय, सरकार में एडिशनल सेक्रेटरी भी हैं। उनके मुताबिक CTA के दो मकसद हैं- पहला तिब्बत को चीन से आजाद करवाना और दूसरा भारत समेत दुनिया के दूसरे हिस्सों में रह रहे तिब्बतियों के लिए काम करना।

निर्वासित तिब्बतियों का अलग संविधान
CTA के संविधान को ‘निर्वासित तिब्बतियों का चार्टर’ कहा जाता है। इसका उद्देश्य CTA के काम तय करना और उन्हें नियंत्रित करना है। यह कॉन्स्टिट्यूशन रिकंस्ट्रक्शन कमेटी ने तैयार किया था और निर्वासित तिब्बतियों की संसद ने इसे 14 जून 1991 को स्वीकार कर लिया। यह संविधान लिंग, धर्म, नस्ल, भाषा और सामाजिक मूल के आधार पर भेदभाव के बिना अधिकारों और स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

अलग सुप्रीम कोर्ट, 5 साल में होते हैं सरकार के चुनाव
तेनजिन लेक्शय बताते हैं कि CTA में सबसे बड़ी अदालत तिब्बतन सुप्रीम जस्टिस कमीशन है। यह अदालत सिविल यानी दीवानी के सभी मामलों की सुनवाई करती है। फौजदारी के मामलों के लिए अब भी भारतीय कानून और कोर्ट का सहारा लिया जाता है। सुप्रीम जस्टिस कमीशन तीनों जजों की एक बेंच होती है, इसमें एक चीफ जस्टिस कमिश्नर और दो जस्टिस कमिश्नर होते हैं।

पहले इन तीनों को दलाई लामा नॉमिनेट कर शपथ दिलाते थे। हालांकि, 29 मई 2011 को दलाई लामा ने अपनी सभी राजनीतिक और प्रशासनिक शक्तियों को ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद से नए चीफ जस्टिस कमिश्नर को वर्तमान चीफ जस्टिस कमिश्नर या एक्टिंग चीफ जस्टिस कमिश्नर पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं। इस अदालत से नीचे सर्किट जस्टिस कमीशन और लोकल जस्टिस कमीशन (निचली अदालत) देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद है।

कशाग यानी तिब्बती सरकार का मंत्रिमंडल
भारत की तरह ही CTA का अपना एक मंत्रिमंडल होता है। इसे ये कशाग कहते हैं। कशाग अपने सभी कार्यकारी और प्रशासनिक जिम्मेदारियों को पूरा करता है। कशाग का कार्यकाल पांच साल का होता है। धर्मशाला में एक कशाग सचिवालय भी है। यहां 7 मंत्रियों के दफ्तर मौजूद हैं।

कशाग में लिए गए सभी फैसले संबंधित विभागों और कार्यालयों के जरिए लागू किए जाते हैं। CTA का अपना अलग चुनाव आयोग भी है। भारत की तरह ही इसके मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) होते हैं। CEC की नियुक्ति संसद से मतदान के जरिए की जाती है।

यदि संसद सत्र के चालू नहीं रहने के दौरान CEC की नियुक्ति की जरूरत होती है, तो संसद की स्थायी समिति वोटिंग कर चुनाव करती है। उम्मीदवार को स्थायी समिति की कुल संख्या के दो-तिहाई वोट जरूरी होते हैं।

14वें दलाई लामा ने 29 अप्रैल 1959 को ‘निर्वासित तिब्बत सरकार’ का गठन किया था। इसके एक साल बाद 2 सितंबर 1960 को पहले लोकतांत्रिक रूप से चुने गए तिब्बती पीपुल्स डिप्टी ने शपथ ली। उस समय सरकार को इसी नाम से जाना जाता था। विधायिका को कमीशन फॉर तिब्बतन पीपुल्स डेप्यूटीज (CTPD) के रूप में जाना जाता था।

उस दौरान तिब्बती प्रवासियों के लिए कई कानून पारित किए गए। दलाई लामा से मंजूर निर्वासित तिब्बती चार्टर बनाया गया। इसमें लोकतंत्र के तीन अंगों की तरह ही तीन ऑटोनॉमस बॉडीज का जन्म हुआ। इसमें से एक लोक सेवा आयोग (PSC) भी है। CTA में होने वाली प्रशासनिक भर्तियां लोकसेवा आयोग के तहत ही होती हैं।

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