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भास्कर इंटरव्यूउनके दिलों में गोडसे, गांधी तो मजबूरी हैं:तुषार गांधी बोले- राहुल को माफी नहीं मांगनी चाहिए, देश को नफरत से बचाना होगा

नई दिल्ली2 महीने पहलेलेखक: अमन नम्र, एक्जीक्यूटिव एडिटर
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गांधी फिर विवादों में हैं। राहुल गांधी के साथ महात्मा गांधी भी। राहुल गांधी इसलिए चर्चा में हैं कि उनकी संसद सदस्यता नहीं रही, इससे उनका सियासी करियर लंबे वक्त के लिए रुक सकता है। महात्मा गांधी के चर्चा में रहने की वजह उनकी डिग्री है। 23 मार्च 2023 को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक कार्यक्रम में दावा किया कि महात्मा गांधी के पास लॉ की डिग्री नहीं थी। उनके पास सिर्फ हाईस्कूल का एक डिप्लोमा था।

दैनिक भास्कर ने मानहानि मामले में सजा के बाद राहुल गांधी पर कार्रवाई और महात्मा गांधी को बार-बार विवादों में घसीटने की कोशिशों पर तुषार गांधी से बात की। तुषार गांधी महात्मा गांधी के प्रपौत्र हैं। मनोज सिन्हा के बयान को उन्होंने गलत बताया। तथ्यों के साथ कहा कि गांधीजी के पास लॉ की डिग्री थी। इसके अलावा गांधी पर उठते सवालों, देश में बढ़ रही नफरत और राजनीतिक दुश्मनी के बढ़ते मामलों पर भी खुलकर बात की।

पढ़िए, उन्होंने इन मसलों पर क्या कहा…

सवाल: राहुल गांधी ने कोर्ट में माफी नहीं मांगी, उन्हें सजा हो गई, सांसदी चली गई। राहुल ने कहा, मैं सावरकर नहीं, गांधी हूं और गांधी माफी नहीं मांगते। क्या माफी मांगकर संसद में रहना ज्यादा बेहतर नहीं होता?

तुषार गांधी: नहीं, अगर वे माफी मांगते तो साबित होता कि उन्होंने जो कहा था, वह सच नहीं था। मुझे नहीं लगता कि उन्होंने जो भी कहा था, उसमें किसी के लिए घृणा थी। BJP उस बयान को जातिवादी रंग देना चाहती है। राहुल के बयान में किसी जाति का अपमान या उस पर अटैक करने की मंशा नहीं थी। उन्होंने इंडिविजुअल्स को सिंगल आउट करके कहा था। पूरी दुनिया जानती है कि जिनके बारे में बात की गई थी, उन्होंने क्या किया है।

अगर राहुल बड़ी अदालत में दोषी साबित हो जाएं, तो भी मुझे लगता है कि उन्हें माफी नहीं मांगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वे सावरकर नहीं है, गांधी हैं, और गांधी माफी नहीं मांगते। ये तो ऐतिहासिक तथ्य है कि सावरकर ने माफी मांगकर अपनी रिहाई करवाई थी। ये ऐसी मनगढ़ंत बात नहीं है, जैसे कहा जा रहा है कि बापू के पास डिग्री नहीं थी।

सवाल: आप राहुल गांधी के साथ ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल हुए थे। राहुल और पार्टी के तौर पर कांग्रेस का क्या भविष्य देखते हैं?

तुषार गांधी: राहुल गांधी के बारे में मेरे मन मे काफी सम्मान है। इसीलिए मैं ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में गया था। पिछले 4 से 8 साल की बात करूं तो सिर्फ एक भरोसे लायक आवाज राजनीति में उठ रही है, वो राहुल गांधी की है। उन्होंने जो मुद्दे बार-बार, कई बार उठाए उनसे साबित होता है कि उनकी चिंता सही थी। उसे नजरअंदाज करने का नतीजा आज हम भुगत रहे हैं।

उन्होंने खुद को काफी बदला है। उन्होंने एक अलग तरह का नेतृत्व करने के लिए काफी मेहनत की है। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल ने जो कमाया था, उसे बेकार होने में समय नहीं लगेगा। कांग्रेस एक पार्टी के तौर पर इस यात्रा में मिले समर्थन का फायदा उठाने के लिए कुछ करती नजर नहीं आ रही।

मुझे लगता है कि राहुल भी जानते हैं कि वे खोखले तंत्र के ऊपर बैठे हैं। जरूरत इस बात की है कि वे रेडिकल सर्जरी करें। कई बार मरीज को बचाने के लिए उसका एक अंग काटकर फेंक देना पड़ता है। कांग्रेस में ऐसा करने की बहुत जरूरत है।

सवाल: हत्या के 76 साल बाद भी कुछ लोग महात्मा गांधी को पसंद नहीं करते। बार-बार उन पर बेबुनियाद सवाल उठाए जाते हैं, हमले किए जाते हैं?

तुषार गांधी: मैं समझता हूं कि गांधी की आकृति ऐसे लोगों के लिए बहुत डरावनी है। जब गांधी जिंदा थे, तब वे उनके शारीरिक स्वरूप से डरते थे। जो समर्थन उन्हें कभी नहीं मिल पाया, वैसा बापू ने चुटकी बजाते पा लिया। उन्हें उसके पीछे की 22 साल की दक्षिण अफ्रीका की मेहनत, सत्याग्रह और तपस्या नहीं दिखती।

आज राजनीति में सत्ता पाने के लिए लोगों के कंधों पर चढ़ा जाता है और फिर उन्हें लात मारकर अलग कर दिया जाता है। सत्ता हासिल करने का ये तरीका, अब लोगों के लिए जायज बन चुका है। इतिहास में ऐसे कम लोग होंगे, जिन्होंने गांधी जितना बड़ा नेतृत्व खड़ा किया। जो लोग कुछ भी नहीं थे, ऐसे लोगों के अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के नेता बनने के सफर में उनका सहारा बने, उनका साथ दिया।

ये सारी बातें ऐसे लोगों को डराती हैं, पहले भी डराती थीं। उनकी हत्या कराने के बाद जब उन्हें पता चला कि उनका विचार तो और भी ज्यादा प्रभावशाली और ताकतवर हो गया है, तो वे उस विचार की हत्या करने के पीछे जुट गए। इसीलिए 76 साल से उनका दुष्प्रचार जारी है।

सवाल: संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की गांधीजी के बारे में राय सुनकर आपको दुख होता है, चिंता होती है या हंसी आती है?

तुषार गांधी: मुझे तो हंसी ही आती है, क्योंकि बेचारे हमेशा पकड़े जाते हैं। हम बच्चे थे, तब लोग हमें कहा करते थे कि झूठ बोलो ताे ऐसा बोलो कि पकड़े न जाओ। झूठ बोलने पर पकड़े गए, तो लोगों को पता चलेगा कि तुम झूठे हो। ये बेचारे बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हैं, लेकिन जब भी झूठ बोलते हैं, पकड़े जाते हैं।

मुझे इन लोगों पर तरस आता है, ये मेरा काम आसान कर देते हैं। सच को सामने रखने की मेरी क्षमता को बढ़ा देते हैं। मैं बहुत आसानी से सच्चाई को सामने रख सकता हूं। इसलिए एक तरीके से मैं उनका आभारी भी हूं कि वे मेरा काम आसान कर रहे हैं। इन पर दया भी आती है कि इनके मुंह पर से मुखौटा उतारना कितना आसान है।

सवाल: देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात हो रही है, ये कहने वाले लोग ही गांधी का विरोध भी कर रहे हैं। गांधी भी धर्म को राजनीति का अहम हिस्सा मानते थे। हिंदू राष्ट्र में आपको क्या दिक्कत नजर आती है?

तुषार गांधी: हिंदुओं का राष्ट्र तो भारत हमेशा से रहा है, लेकिन जो लोग हिंदू राष्ट्र की बात कर रहे हैं वे पॉलिटिकल हिंदू राष्ट्र की बात कर रहे हैं। हम भूल जाते हैं कि हिंदू और हिंदुत्व में बहुत बड़ा फर्क है। जिन्हें आप साधु-संत कहते हैं, उन्हें मैं राजर्षि कहता हूं।

पहले के समय में राजाओं के दरबार में बैठने वाले, जो भगवाधारी होते थे, ये वैसे लोग हैं। इन्हें साधु या संत नहीं कहना चाहिए, ये सत्ता के पुजारी हैं। राजर्षि हमेशा दरबारी होते थे और जो आश्रमों में बैठकर साधना करते थे, लोगों की सेवा करते थे, भला करते थे, उन्हें ब्रह्मर्षि कहा जाता था। ये हिंदुत्व के संत राजर्षि हैं, दरबारी लोग हैं, पॉलिटिशियंस हैं।

सवाल: कहा जाता है कि देश का बंटवारा रोकने के लिए गांधीजी को जितनी कोशिश करनी चाहिए थी, उतनी नहीं की। ऐसे ही आरोप भगत सिंह की फांसी रोकने के बारे में भी लगते हैं?

तुषार गांधी: ऐसी बातें कहने वाले लोग मानते हैं कि बापू दिव्य शक्ति वाले इंसान थे। वो जो भी चाहते, कर सकते थे। उन्होंने हमें स्वतंत्रता दिलवा दी, तो ये बातें उनके लिए नामुमकिन नहीं हो सकतीं। हम यह नहीं समझते कि वे एक साधारण व्यक्ति थे, पर असाधारण काबिलियत के साथ।

भगत सिंह की बात करें, तो गांधीजी ने नैतिकता के दायरे में रहते हुए उनकी फांसी टालने को लेकर लॉर्ड इरविन के सामने कई बार याचनाएं कीं। गांधी ने सत्याग्रह के दाैरान इरविन से कहा था कि भगत सिंह की फांसी आप रोक दीजिए। ये हाेनहार लड़के हैं, इनकी जरूरत भविष्य में हिंदुस्तान को पड़ेगी। इरविन को लिखे अपने कई पत्रों में भी गांधीजी ने इसका जिक्र किया था।

ये भी सच है कि उन्होंने इस पर कोई जिद नहीं की, कि अंग्रेज भगत सिंह को छोड़ ही दें। वर्ना मैं जो बातें ब्रिटिश सरकार के साथ चल रही हैं, उनको तोड़ दूंगा। इसकी वजह ये है कि मॉरली ये दो इश्यू लिंक्ड नहीं थे। भगत सिंह की फांसी या उनकी सजा और गांधी-इरविन समझौते के बीच कोई आपसी संबंध नहीं था।

आपको यह भी देखना चाहिए कि बापू ने उपवास का शस्त्र कभी भी ब्लैकमेल करने के लिए नहीं इस्तेमाल किया। केवल दो बार कलकत्ता के दंगे और दिल्ली के दंगे बंद करवाने के लिए उन्होंने उपवास का सहारा लिया था।

बंटवारे के मामले में भी लोगों का यही मानना है कि गांधी चाहते तो इसे रोक सकते थे। यह देखना जरूरी है कि उस वक्त आजादी के पूरे आंदोलन के समय देश बापू के साथ खड़ा रहता था, लेकिन जब आजादी करीब आ गई तो लोगों को पता चला कि हमारी सत्ता स्थापित होने वाली है।

उस दौर में, स्वतंत्रता के लिए नेगोसिएशन भी चल रहे थे, उसमें बापू के साथ कितने लोग खड़े थे, यह देखने वाली बात है। आजादी से पहले आखिरी चार साल के दाैर में बापू अकेले ही दिखाई दिए। वे अपने आप को अकेला महसूस भी करते थे, जब लड़ने वाला कोई न हो तो सेनापति कितना ही पराक्रमी क्यों न हो, वह नहीं जीत सकता।

हमें समझना जरूरी है कि आज जो लोग ये कहते हैं कि गांधी ने बंटवारा करवाया, या बंटवारा रोका नहीं, इसलिए उन्हें मारना पड़ा, वे लोग भी बंटवारे के खिलाफ कहां खड़े हुए? कोई एक आंदोलन संघियों का दिखा दें। उन्हाेंने कहीं एक चिट्‌ठी भी लिखी हो बंटवारे को रोकने के लिए। अंग्रेज तो उनके रहनुमा थे, वे अंग्रेजों को ही लिखते कि हमें यह तोहफा दीजिए कि हमारे मुल्क का बंटवारा न हो। गोली मारी तो बापू को मारी। यानी हत्या करना उनका मकसद था। ये सारे बहाने जो उन्होंने ढूंढ लिए ये केवल उस हत्या को जायज ठहराने के लिए सोचे हुए बहाने थे।

सवाल: आपकी किताब ‘लेट्स किल गांधी’ में आपने लिखा कि हिंदू अतिवादियों ने बंटवारे और देश की जनभावना को न समझने के आरोप में गांधीजी की हत्या की। क्या ये उस दौरा का इंटेलिजेंस फेलियर था। नेहरू-पटेल सरकार भी इसके लिए जिम्मेदारी थी?

तुषार गांधी: हमारे लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि उस वक्त की सरकार को हम दोषी ठहरा सकते हैं, यह बहुत आसान है। पर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि वह सरकार किस कदर मुसीबतों से घिरी हुई थी। बंटवारा हुआ था, आजादी मिली थी। पूरे तंत्र में कई सीनियर अफसर पाकिस्तान चले गए थे, जो तजुर्बेकार एडमिनिस्ट्रेशन होना चाहिए था, वह नहीं था। मंत्री भी नए-नए बने थे, उन्हें भी सत्ता चलाने का कोई अनुभव नहीं था। पूरा पुलिस तंत्र देखें तो उत्तर भारत में ज्यादातर सीनियर अफसर मुसलमान थे, जो पाकिस्तान चले गए थे। ऐसे में दक्षिण भारत से पुलिस अफसरों को उत्तर भारत लाया गया।

गांधीजी की हत्या का पूरा घटनाक्रम देखें तो यह जरूर लगता है कि पुलिस की लापरवाही के कारण खूनियों के लिए बापू का खून करना आसान हो गया था। रेड फोर्ट ट्रायल में जज आत्मा चरण ने अपने फैसले में पुलिस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर मेरे पास पावर होती, तो मैं पुलिस को भी आरोपी के कठघरे में खड़ा कर बापू की हत्या का मुकदमा चलाता। इसके बाद कपूर कमीशन भी इसी नतीजे पर पहुंचा कि इस मामले में पुलिस की लापरवाही थी।

उसी दौरान गृह मंत्रालय ने एक सर्वे कराया था, जिसमें यह सामने आया कि पुलिस विभाग में RSS के लोग और उनसे सहानुभूति रखने वालों की घुसपैठ बड़े पैमाने पर और सीनियर लेवल पर हुई थी। तब आजादी को 6 महीने ही हुए थे।

सवाल: BJP के नेता अक्सर कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की बात कहते हैं, क्या इसमें गांधी मुक्त भारत भी शामिल है?

तुषार गांधी: उनके हिंदू राष्ट्र की कल्पना में गांधी की कोई जगह नहीं है। BJP के लिए मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि वह साफ बोल देती है। संसद में बैठे लोग कहते हैं कि राष्ट्रपिता कोई नहीं होता, तो बापू की हर प्रतिमा के आगे सिर झुकाकर खड़ा रहने वाले और अपनी तस्वीर निकलवाने वाले प्रधानमंत्री कुछ क्यों नहीं बोलते। हां, ये जरूर कहा कि मुझे बहुत चोट पहुंची, मेरे दिल को बहुत ठेस पहुंची, मुझे दुख हुआ।

उनकी मौजूदगी में सभा में ऐसी बातें होती हैं तो उन्होंने कभी सभा का त्याग नहीं किया। यह नहीं कहा कि मैं यह नहीं सुनूंगा। ये तो उनकी मिलीभगत है ही। मैं नहीं बोलूूंगा, मेरे मन की बात तुम बोल लो। ये उनकी मंशा हमेशा रही है, ये समझना बहुत जरूरी है। उनके दिलों में हमेशा नाथूराम गोडसे ही रहा है और रहेगा। गांधी उनकी मजबूरी हैं। वे सीएम थे, तब वे साबरमती आश्रम कितनी बार गए, दिल्ली जाने के बाद भी नियमित साबरमती आश्रम पहुंच जाते थे। ये प्यार नहीं है, ये उनकी मजबूरी है।

सवाल: आपके बेटे, बेटी या नाती-पोते जब ऐसी खबरें सुनते हैं, तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है।

तुषार गांधी: मैं युवा था, तब भी ये सब जोरों पर था। कभी दलित खड़े होकर बापू को गालियां देते थे, राजघाट पर तोड़फोड़ करते थे, कभी संघी यही करते हैं। पहले बहुत गुस्सा आता था, दुख भी होता था। धीरे-धीरे यह समझ आया कि हम एक पब्लिक फिगर के वंशज हैं, ऐसे में ये सब तो होना ही है।

ऐसी बातों पर मेरे बच्चों को भी दुख होता है, गुस्सा आता है। उन्हें तो यह भी सहना पड़ता है कि बापू के साथ-साथ उनके बाप को भी गालियां दी जाती हैं। अपमान किया जाता है, तरह-तरह की तोहमतें लगाई जाती हैं।

सवाल: आपने बेटी का नाम कस्तूरबा गांधी के नाम पर कस्तूरी रखा है। क्या नई पीढ़ी गांधी के विचारों को लेकर सीरियस नजर आती है?

तुषार गांधी: मेरे बच्चे दो दौर से गुजरे हैं। पहले दौर में उन्हें ज्यादा अहसास नहीं था कि उनके पास कौन सी धरोहर है। फिर एक दौर ऐसा भी आया कि हम ही क्यों, हमसे ही उम्मीदें क्यूं रखी जाएं?

अब वे समझने लगे हैं कि ये जिम्मेदारी है और इसे निभाना है। वे अपने तरीके से इसे निभाते हैं। मैंने कभी उन पर यह दबाव नहीं डाला कि उन्हें गांधी के वंशज के तौर पर रहना पड़ेगा। मैंने भी अपना जीवन अपनी शर्तों पर जिया है। मैं बच्चों को भी किसी तरह का मुखौटा लगाने पर मजबूर नहीं करता।

जहां तक मेरी बेटी का नाम कस्तूरी रखने की बात है, तो हमारे परिवार में मोहन के नाम से वंशज हैं राजमोहन गांधी को उनका नाम दिया गया था। पर कस्तूरबा का नाम किसी ने नहीं लिया। जब बेटी हुई तो मैंने सोचा कि उसका नाम कस्तूरी रखूं। उनकी याद भी जिंदा रहे।

सवाल: आज के राजनीतिक हालात और 1947 के हालात में क्या अलग नजर आता है?

तुषार गांधी: लोकतंत्र आज तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। पहले भी ऐसी कोशिशें हुई थीं। इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने ऐसा ही किया था, लेकिन लोकतांत्रिक आदर्श और संस्कार के चलते बाद में उन्हें गलती का अहसास हुआ। आज तानाशाही ने लोकतंत्र, लोकशाही का चोला पहना हुआ है। तंत्र पूरा तानाशाही की तर्ज पर चलाया जा रहा है। ये आज की सबसे बड़ी चुनौती है।

सन 47 से भी बड़ी चुनौती आज है। उस वक्त तो हमने गुलामी की जगह स्वतंत्रता हासिल की थी, पर आज तो हर मायने में हम स्वतंत्र हैं, लेकिन लोकतंत्र को खोखला किया जा रहा है। ये लड़ाई बहुत ज्यादा खतरनाक और मुश्किल है। गैरों से लड़ना आसान होता है, अपनों से लड़ना मुश्किल।

सवाल: गांधीजी को कितना भी बुरा-भला कहा जाए, लेकिन हर विदेशी मेहमान को दिल्ली आते ही राजघाट ले जाया जाता है। इसे कैसे देखते हैं?

तुषार गांधी: अगर गांधी नहीं तो भारत की पहचान किस चीज से करेंगे। यही अंतरराष्ट्रीय तौर पर भी भारत की स्थापित पहचान है। आप कहीं भी जाएं तो हिंदुस्तान और गांधी का नाम एक साथ ही लिया जाता है। यह बात सरकार भी जानती है। यह उनकी मजबूरी है। राजघाट पर जाना तो एक औपचारिकता हो गई है, उसके कोई मायने नहीं हैं। बापू की छवि को उजाड़ नहीं सकते, तोड़ नहीं सकते। वह उतनी ही रहेगी, वैसी ही रहेगी।

आज के जमाने में जो बापू की भक्ति का आडंबर है, वह निरर्थक है, और बापू की बदनामी और तिरस्कार की जो प्रवृत्ति चल रही है वह भी निरर्थक ही साबित होगी। धीरे-धीरे बापू का तिरस्कार करने वालों की संख्या इस देश में बढ़ती जा रही है। इससे इस देश के अस्तित्व को खतरा है।

सवाल: क्या आपका सक्रिय राजनीति से जुड़ने का कोई विचार है। गांधी के वारिस के तौर पर कांग्रेस को बचाने में आप अपनी क्या भूमिका देखते हैं?

तुषार गांधी: मैं इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में नहीं जाऊंगा, पर एक्टिव पॉलिटिक्स में रहूंगा। इन दोनों का फर्क समझना जरूरी है। मैं एक्टिविज्म करके सिविल सोसाइटी की जो मदद कर सकता हूं, उसमें किसी के साथ भी हाथ मिलाने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मुझे चुनावी राजनीति नहीं करनी, चुनावी फायदा भी नहीं उठाना। अगर मेरे काम से कांग्रेस का फायदा होता है, तो उसमें मुझे कोई हर्ज नहीं है।

मेरा लक्ष्य है संघ की राजनीति को हराना। उसके लिए अगर मुझे कांग्रेस के साथ खड़ा रहना पड़े या वामपंथियों के साथ या फिर सोशलिस्ट के साथ खड़ा होना पड़े ताे मैं खड़ा होऊंगा। जो भी सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ खड़े हैं, उनके साथ मैं खड़ा होने को तैयार हूं।

सवाल: आप 2047 के लिए कैसे भारत की कल्पना करते हैं?

तुषार गांधी: मुझे नहीं लगता कि 2047 में जो भारत बनेगा, वह बापू के सपनों का होगा, जिसे हम आइडिया ऑफ इंडिया कहते हैं, वैसा होगा, क्योंकि उसके खिलाफ खड़ी ताकतें आज कामयाब हो गई हैं। जिस दिशा में वे भारत को ले जा रहे हैं, 47 तक वह भारत नहीं रहेगा।

सवाल: आप एक्टर हैं, राइटर हैं, आपने गांधी की हत्या पर किताब लिखी। क्या फिर कुछ लिख रहे हैं?

तुषार गांधी: मैंने उसके बाद ‘लॉस्ट डाॅयरी ऑफ, कस्तूर माय बा’ भी लिखी, क्योंकि कस्तूर को हमने भुला दिया था। सिर्फ गांधी की पत्नी के रूप में उन्हें हम याद करते थे। जब मुझे बा की लिखी हुई एक डायरी मिली तो यह किताब लिखी। हम भी पितृसत्ता के इतने प्रभाव में थे कि बा को जो स्थान मिलना चाहिए था, वह दिया ही नहीं। अपनी किताब से कस्तूर के किरदार पर जो रोशनी मैं डाल सका, उस पर मुझे नाज है। अभी मैं एक किताब लिख रहा हूं, विभाजन की त्रासदी के ऊपर। यह भी एक वुमन सेंट्रिक किताब है।

मेरी दादी की एक सहेली थी कमला बेन पटेल। उन्होंने विभाजन के दौरान जिन औरतों और बच्चों को अगवा कर लिया गया था, सीमा के दोनों ओर, उन्हें उनके घर तक पहुंचाने का काम किया था। ऐसी ही और महिलाओं की कहानियां ढूंढकर इस पर किताब लिख रहा हूं।

आज भारत को नफरत की राजनीति से सबसे बड़ा खतरा है। कोई भी घटना हो तो हम विक्टिम का धर्म देखते हैं, जात देखते हैं। फिर खुद को मना लेते हैं कि ठीक है। वो मुसलमान था या वो दलित था, उसके साथ ऐसा हुआ तो ठीक है। ये इसलिए हुआ है कि हमारे दिलों में नफरत घर कर चुकी है। अगर भारत को बचाना है तो नफरत के खिलाफ जंग लड़नी पड़ेगी।

सवाल: क्या ऐसा लगता है कि भारत से ज्यादा दूसरे देशों ने गांधी के विचारों को अपनाया, उन्हें सम्मान दिया?

तुषार गांधी: देखिए, हमारी संस्कृति मूर्ति पूजक संस्कृति रही है। हमने भगवानों को भी महज मूर्ति के स्वरूप में रख दिया, वही चीज हमने बापू के साथ भी की। विदेशों में, जहां सिद्धांतों को माना जाता है और सिद्धांतों के कारण लोगों को आदर्श कहा जाता है, वहां बापू की विचारधारा को अहम माना गया। उन्हें अपनाकर आज के प्रश्नों को सुलझाने के प्रयास किए गए।

आज अगर हम क्लाइमेट चेंज या ग्लोबल वॉर्मिंग देखें तो वह कुदरत के खिलाफ हमारी हिंसात्मक जीवन शैली का ही नतीजा है। इससे बचने के लिए हमें गांधी की अहिंसा या बुद्ध की अहिंसा के तत्व को अपने जीवन में उतारना होगा। गांधी का महत्व आज है, कल भी रहेगा। यह व्यक्ति का नहीं, उसके विचारों और उसके कर्म का महत्व है।

सवाल: क्या गांधी के विचारों से जुड़ी संस्थाओं को और एक्टिव होना चाहिए? जेपी आंदोलन में सर्वोदयी कार्यकर्ताओं की सक्रियता को देखते हुए आज उनकी क्या भूमिका देखते हैं?

तुषार गांधी: गांधीवादी संस्थाओं की हालत वैसी ही हो गई है, जैसी कांग्रेस की हालत है। अंदरूनी राजनीति ओर वर्चस्व की लड़ाई में सारी संस्थाएं बंटी हुई हैं। मुझे दुख होता है यह कहने में कि ये सारी संस्थाएं निकम्मी हो गई हैं। कोई मतलब नहीं रह गया इनका। कई गांधीवादी संस्थाओं में संघियों की घुसपैठ हो गई है, उनका ही कब्जा भी हो गया है।

कुछ कथित गांधीवादी हैं, जो संस्थाओं पर कब्जा करके बैठे हैं। वे बिल्कुल बेध्यान होकर, केवल अपनी सत्ता, अपनी कुर्सी टिकाए रखने की होड़ में पड़े हुए हैं। पहले ये अंदरूनी मामले होते थे। आजकल तो खुलेआम झगड़े होते हैं। सर्व सेवा संघ और सेवाग्राम के बखेड़े हर दिन देखे जा सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि जेपी के आंदोलन के समय जिस तरह सर्वोदय से जुड़े लोग आंदोलित हुए थे, वैसे अब हो पाएंगे। अब वैसे लोग ही नहीं रहे।

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