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भास्कर इंडेप्थ:पुतिन की सनक से भुखमरी का शिकार न हो जाए रूस; फूड प्रोडक्ट्स की कीमतें 45% बढ़ीं, ATM पर लगी लंबी कतार

एक वर्ष पहलेलेखक: अनुराग आनंद
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रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग की कीमत केवल यूक्रेन के लोगों को नहीं, बल्कि रूसी लोगों को भी चुकानी पड़ रही है। भले ही रूस में गोले-बारूदों से हमले नहीं हो रहे हों, लेकिन महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है।

रूस में खाने के सामानों की कीमत में 45% तक की बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं टेलीकॉम, मेडिकल, ऑटोमोबाइल, एग्रीकल्चर और इलेक्ट्रिकल प्रोडक्ट्स की कीमतों में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

आज भास्कर इंडेप्थ में जानते हैं कि रूस में खाने के सामानों की कीमत कितनी बढ़ी है और इससे लोग कितना परेशान हैं?

अब आगे पूरी खबर पढ़ने से पहले इस पोल पर अपनी राय भी दे दीजिए...

जो प्रोडक्ट 3,500 में मिल रहा था, वो अब 5,100 में

जंग की शुरुआत के बाद ही अमेरिका समेत यूरोपियन यूनियन के कई देशों ने रूस पर आर्थिक पाबंदी लगी दी। इसकी वजह से रूसी मुद्रा रूबल की वैल्यू डॉलर की तुलना में 30% तक नीचे आ गई। ऐसे में रूस में खाने के सामानों की कीमत में 45% तक बढ़ोतरी हो गई। बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक, जो ग्रॉसरी का सामान पहले 3,500 रुपए में मिल रहा था, अब वह 5,100 में मिल रहा है।

पिछले दो सप्ताह में रूस में दूध की कीमतों में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। कुछ रिपोर्ट में यह भी दावा किया जा रहा है कि कई सारे मॉल और दुकानों में लोगों के सामानों की खरीददारी तक पर पाबंदी लगाई जा रही है। साफ है कि जंग नहीं रुकी और रूस पर इसी तरह से पाबंदियां लगी रहीं तो आने वाले समय में वह भुखमरी की कगार पर जा सकता है।

सिर्फ खाने के सामान ही नहीं, कई दूसरे सामानों की बढ़ी कीमत
अमेरिका और यूरोपीय देशों की दुनिया के बिजनेस में 40% हिस्सेदारी है। यही वजह है कि पाबंदी के बाद यूरोपीय देशों से इंपोर्ट नहीं होने की वजह से अब हर तरह की रूसी फैक्ट्री में कच्चे माल की कमी हो रही है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रूस में कई जरूरी दवाओं की भी कमी हो रही है।

रूस में बढ़ रही महंगाई को अगर आंकड़ों के जरिए समझें तो 26 फरवरी से 4 मार्च तक रूस के कंज्यूमर प्राइस में 2.2% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो काफी ज्यादा होती है। इलेक्ट्रॉनिक सामान की कीमतें भी 17% तक बढ़ी हैं। इसी तरह लैपटॉप, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक सामानों की कीमतें भी बढ़ी हैं। फॉर्ब्स रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मास्को के कैफे में इस्तेमाल होने वाले कुछ सामानों की कीमत में तो 300% तक की बढ़ोतरी हुई है।

रूस के बैंकों और ATM के बाहर लगी लंबी कतार
ऑनलाइन ट्रांजेक्शन वाली सबसे बड़ी संस्था SWIFT से बाहर किए जाने के बाद रूस की इकोनॉमी घुटने पर आ गई है। इस वक्त एक डॉलर की तुलना में रूसी करेंसी 112 पर ट्रेड कर रही है। डॉलर की तुलना में रुबल बीते 4 दशक में इतना कमजोर कभी नहीं हुआ था।

इसी वजह से रिजर्व बैंक ऑफ रूस ने 7.65 लाख रुपए से ज्यादा पैसे की निकासी पर पाबंदी लगा दी है। यही वजह है कि रूस में बैंकों और ATM के आगे लोगों की लंबी कतार लगी है। हालांकि, अमेरिका और पश्चिमी देशों की पाबंदियों से निपटने के लिए रूस लगातार चीन के संपर्क में है। यही वजह है कि SWIFT से बाहर किए जाने के बाद रूस, चीन के क्रॉस बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम (CIPS) की तरफ बढ़ा है।

रूस छोड़ने वाली कंपनियों की संख्या बढ़कर 59 हुई
रूसी न्यूज पेपर इजवेस्टिया ने दावा किया है कि रूस में बिजनेस बंद करने वाली कंपनियों की संख्या बढ़कर 59 हो गई हैं। इनमें फॉक्सवैगन, एपल, माइक्रोसॉफ्ट, टोयोटा, मैकडॉनल्ड्स, गूगल पे, सेमसंग पे आदि शामिल हैं। इतनी सारी कंपनियों के बिजनेस समेटने के मामले में रूस के सबसे अमीर और नोरिल्स्क निकेल (NILSY) कंपनी के मालिक व्लादिमीर पोटानिन ने पुतिन सरकार को चेतावनी देते हुए कहा, ‘रूस 100 साल पीछे जा सकता है। पश्चिमी कंपनियों और निवेशकों के लिए दरवाजे बंद कर दिए गए तो रूस के 1917 की क्रांति के कठिन दौर में जाने का डर है।’

रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस में बेरोजगारी दर 4.4% जनवरी 2022 में था, जो आने वाले महीने में बढ़कर दोगुने से ज्यादा हो सकता है।

सिर्फ रूस नहीं दुनिया भर में जंग की वजह से बढ़ी महंगाई
रूस और यूक्रेन गेहूं के मामले में दुनिया की 30% जरूरत पूरी करते हैं। यही वजह है कि दोनों के बीच जारी जंग की वजह से सिर्फ इन दो देशों में नहीं, बल्कि दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है। इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि यूरोप समेत पड़ोसी देशों में गेहूं की मांग बढ़ने से भारत अब तेजी से गेहूं एक्सपोर्ट करने लगा है।

इससे जो गेहूं मंडी में 1,800 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहे थे, अब 2,100 से 2,400 रुपए प्रति क्विंटल बिकने लगा है। इसमें सबसे नुकसान अफ्रीकी देशों का हो रहा है, जो अपनी अनाज की जरूरतों के लिए ज्यादातर इन दोनों देशों पर निर्भर करते हैं।

बीतें दिनों यूनाइटेड नेशन ने कहा है कि 45 अफ्रीकी देश यूक्रेन से करीब एक तिहाई गेहूं का आयात करते हैं। 18 देश तो अपने खर्च का 50% तक गेहूं इन दो देशों से आयात करते हैं। ऐसे में अब अफ्रीका के इन देशों में भी जंग की वजह से महंगाई बढ़ने और भुखमरी जैसे हालात हो सकते हैं।

रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों से NATO देशों को भी नुकसान
जंग की वजह से NATO में शामिल यूरोप समेत कई देशों में सिर्फ गेहूं नहीं, बल्कि डेयरी प्रोडक्ट, इलेक्ट्रॉनिक सामान, ऑटोमोबाइल सामान आदि की भी किल्लत हो गई है। BBC रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोपीय देशों के जीवन पर इस जंग से मुख्यतौर पर 4 तरह से असर पड़ा है-

  1. कमरे को गर्म करने के लिए बिजली या गैस की खपत और कीमत बढ़ी है।
  2. डेयरी प्रोडक्ट समेत कई खाने के चीजों की कीमत बढ़ी है।
  3. महंगाई को देखते हुए अमेरिकी फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ इंग्लैंड भी इंट्रेस्ट रेट बढ़ा सकते हैं।
  4. कार की कीमतों में आने वाले दिनों में दुनिया भर में वृद्धि हो सकती है।
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