30 दिसंबर 1999 यानी आज ही के दिन 23 साल पहले 20वीं सदी के सबसे खूंखार सीरियल किलर में से एक जावेद इकबाल पकड़ा गया था। 100 बच्चों का कत्ल करने के बाद उसने खुद पाकिस्तान के उर्दू अखबार जंग को एक इंटरव्यू दिया। इंटरव्यू में खुलासा किया, ‘मैंने 100 बच्चों की हत्या की है। सबकी डिटेल मेरी डायरी में लिखी हुई है। अब मैं चाहता हूं कि ये इंटरव्यू खत्म हो तो मुझे सीधे आर्मी के हवाले किया जाए। पुलिस में मेरा भरोसा नहीं है।’ उसे इस इंटरव्यू के बाद गिरफ्तार कर लिया गया।
रिपोर्टर को खुद चिट्ठी लिखकर किया खुलासा
जावेद इकबाल साइको किलर था। वो नए-नए तरीकों से बच्चों को फुसलाता था, उनकी हत्या करता और उनका नाम पता लिख कर रख लेता था। उसने साल 1998 से 1999 के बीच 100 बच्चों का कत्ल किया। इसके बाद खुद ही पहले पुलिस और फिर मीडिया के पास गया।
हुआ यूं कि 2 दिसंबर 1999 को पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार जंग के दफ्तर में बच्चों की तस्वीरों से भरा एक लेटर आया। क्राइम रिपोर्टर जमील चिश्ती को सबसे पहले लगा कि कोई बेवजह परेशान करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन फिर उन्हें पत्र पर यकीन होने लगा। पत्र में बच्चों को घर तक लाने और मारने के तरीके के बारे में साफ साफ लिखा था।
रिपोर्टर जांच करने के लिए बताए गए पते पर गया तो वहां ताला बंद था। दो मीटर ऊंची चारदीवारी को फांद कर घर में घुसते ही रिपोर्टर चौंक गया। घर में सब कुछ वैसा ही था जैसा पत्र में लिखा था। फर्श पर बैग था जिसमें बच्चों के कपड़ों और जूतों के अलग-अलग गट्ठर थे। एक नीले रंग का कनस्तर था जिस पर से ढ़क्कन हटाते ही एक तीखी सी गंध फैल गई। कनस्तर के भीतर एसिड में सराबोर बच्चों के आधे गले हुए अंग पड़े थे।
रिपोर्टर ने इकबाल की डायरी में दर्ज पते के हिसाब से कुछ लापता बच्चों के परिजनों से संपर्क किया और सत्यता की जांच की। अगले दिन 3 दिसंबर 1999 को अखबार के फ्रंट पेज की हेडलाइन थी ‘सौ बच्चों की हत्या का दावा करता शख्स’।
इसके साथ ही अखबार ने 57 बच्चों की तस्वीर भी छाप दी। देश में अफरातफरी मच गई। इकबाल के घर मिले कपड़ों और जूते के बंडलों को पुलिस थाने लाया गया। इसकी खबर लगते ही लाहौर का शाहबाग पुलिस स्टेशन परिजनों से भर गया। बच्चों के कपड़ें पहचान कर माताएं बेसुध होती रहीं, पिता बदला लेने की कसमें खाते रहे।
पुलिस को महीने भर पहले ही पत्र लिख चुका था हत्यारा
धरपकड़ शुरू हुई तो पता चला कि इस खबर के एक महीने पहले ये शख्स पुलिस को भी पत्र लिखकर अपनी करतूत के बारे में बता चुका था। जब नवंबर 1999 के आखिरी में पुलिस के पास 100 बच्चों की हत्या का दावा करता पत्र आया तो DSP तारिक कंबोह ने अनमने ढंग से उसके घर जाकर जांच की। पुलिस ने उसके तीन बेडरूम वाले घर के भीतर जाना भी उचित नहीं समझा। पुलिस के सामने जावेद ने अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर निकाल कर धमकी दी कि उसे अगर तंग किया गया तो वो खुद को गोली मार लेगा। लिहाजा पुलिस उसे एक मनोरोगी मान कर थाने लौट आई।
पिता जाने-माने बिजनेसमैन, बेटा शातिर क्रिमिनल
सीरियल किलर जावेद इकबाल के पिता जाने माने बिजनेसमैन थे और उनका इलाके में रसूख था। इकबाल छह भाइयों में चौथे नंबर का था। साल 1978 में जावेद इकबाल ने स्टील का कारोबार शुरू किया और पिता के बनाए दो विलानुमा घरों में से एक में रहने लगा।
वहां उसके साथ कुछ लड़के भी रहते थे जिन्हें वो अपने यहां काम करने वाला बताता था। कहा जाता है कि वो अपने घर पर बच्चों के साथ दुराचार करता था और जब उसके परिजनों की इस बात की जानकारी हुई तो बजाय इसे ठीक करने के वो इलाका ही छोड़ कर चले गए।
1990 के आखिरी दशक में एक शख्स ने शादबाग पुलिस स्टेशन में तहरीर दी कि जावेद इकबाल ने उनके बेटे के साथ दुराचार किया है। इकबाल जब नहीं मिला तो पुलिस ने उसके एक भाई और पिता को थाने में बंद कर दिया। इकबाल लगभग सात दिनों तक पुलिस स्टेशन नहीं आया तो आठवें दिन पुलिस ने उसके घर से एक बच्चे को हिरासत में ले लिया। वो तुरंत पहुंचा और बच्चे को बचाने के लिए खुद को सरेंडर कर दिया।
100 मांओं को रुलाउंगा तो बदला पूरा होगा
जावेद इकबाल समलैंगिक था। सामाजिक टैबू के कारण वो इस बात का जिक्र परिवार में नहीं कर पाता था। इसी बीच 17 साल की उम्र में उस पर पहली बार एक बच्चे से दुराचार का आरोप लगा और उसे जेल जाना पड़ा। पुलिस को दिए बयानों में उसने जिक्र किया कि उसकी मां जब भी मिलने आती थीं, उससे मिल कर रोने लगती थीं। उसने तब ही तय किया कि वो 100 मांओं को रुलाएगा तब जाकर उसकी मां का बदला पूरा होगा।
वीडियो गेम की दुकान खोली और मैगजीन भी निकाली
जावेद इकबाल को जानने वाले उसे ‘क्रूर प्रतिभावान’ कहते थे। उसने अलग अलग कई ऐसे काम किये जिससे सामाजिक दायरा बेहतर होता रहे। एक समय में उसने मासिक पत्रिका भी निकाली। पत्रिका का नाम था एंटी करप्शन क्राइम। इसमें वो पुलिस की बहादुरी की गाथा और विभाग की बड़ाइयां छापता था। उसने दो दर्जन से अधिक पुलिसवालों, जिनमें DIG और SSP भी शामिल थे, का इंटरव्यू किया।
अपने बिजनेस के अलावा बस वो एक ही काम करता था, इलाके के बच्चों के साथ दुराचार। इसके लिए उसने तरह तरह के हथकंडे अपनाए। उसने शादबाग इलाके में वीडियो गेम की दुकान खोली। वहां आने वाले बच्चों को शिकार बनाने के लिए वो 100 का नोट फर्श पर गिरा देता था। जो बच्चा उस नोट को उठाकर अपने पॉकेट में रख लेता, उसे वो दुकान के एक हिस्से में ले जाकर अपना शिकार बनाता था और फिर वो पैसा उस बच्चे को ही दे देता था।
जब लोगों ने अपने बच्चों को उसकी दुकान पर भेजना बंद कर दिया तो बाद में उसने बच्चों को रिझाने के लिए एक्वेरियम और फिर जिम खोला। उसने 90 के दशक में एयरकंडीशन्ड प्ले स्कूल खोला।
एक बार उसने शादबाग के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के बेटे के साथ छेड़खानी की। समाज के बड़ों ने मामले का संज्ञान लिया और पंचायत के सामने मामला उठा। इकबाल ने अपराध कुबूल किया और सार्वजनिक रूप से आगे ऐसा न करने की शपथ ली, स्टाम्प पेपर पर लिख कर दिया। बाद में स्टाम्प पेपर की फोटो कॉपी इलाके में बंटवाई गई।
इतने सब के बाद उसने अपना घर बेचा और 16 रवि रोड, कसूरपुरा, लाहौर में एक घर खरीदा। यहां उसने कई महंगी गाड़ियां खरीदीं और यहीं पर 100 बच्चों का कत्ल किया।
एक हत्या में खर्च का भी हिसाब लिखता था
वो पार्क से लेकर फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों तक को निशाना बनाता था। बहला-फुसला कर उन्हें अपने घर लाता, दुराचार करता। तस्वीर के साथ एक डायरी में बच्चे का पता, उम्र, कपड़े का रंग आदि लिखता और उसकी हत्या कर देता। शरीर को एसिड में डालता और फिर किसी नए बच्चे को शिकार बनाने चला जाता। वो प्रत्येक बच्चे की हत्या में खर्च का भी ब्योरा रखता था। बाद में पुलिस से उसने पूछताछ में बताया, ‘खर्च के मामले में तेजाब सहित एक बच्चे को निपटाने में मुझे 120 रुपये खर्च करने पड़े।’
अपने इंटरव्यू में उसने बताया कि ‘मैंने उन बच्चों की हत्या की जो फुटपाथ पर रहते थे और अनाथ थे। मैंने सड़क पर रहने वाले बच्चों की दुर्दशा उजागर किया है।’ इकबाल ने अपनी सबसे पहली गिरफ्तारी पर पुलिस के द्वारा किए गए दुर्व्यवहार का भी जिक्र कर नाराजगी जताई।
सजा ए मौत हुई मगर फांसी नहीं लग सकी
मामला अदालत में गया और जनवरी 2000 में जज ने अपने समय की सबसे क्रूर सजा सुनाई।
इसे सजा सुनाते वक्त जज ने कहा, ‘तुम्हें मृतक बच्चों के माता-पिता के सामने फांसी दी जाएगी और फिर तुम्हारे शरीर के 100 टुकड़े करके एसिड में डाल दिया जाएगा। तुम्हारे साथ ठीक वही सलूक किया जाएगा, जैसा तुमने बच्चों के साथ किया है।’
उसे सजा ए मौत हुई, लेकिन फांसी नहीं लग सकी। सजा के बाद उसे कोट लाकपत जेल लाया गया। 8 अक्टूबर 2001 को जेल के बैरक में इकबाल और उसके एक सहयोगी का शव मिला। दोनों ने फांसी लगाने से पहले ही बैरक में बेडशीट के सहारे आत्महत्या कर ली थी। 1956 में जन्मा जावेद इकबाल 45 साल की उम्र में अपने बैरक में मृत पाया गया। ऐसी अटकलें लगती रहीं कि उसकी हत्या हुई है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में शरीर पर पहले से चोट के निशान पाए गए थे।
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