27 सितंबर 2021 की रात गोरखपुर के रामगढ़ताल इलाके के होटल कृष्णा पैलेस में कारोबारी मनीष गुप्ता को पुलिसवालों ने पीट-पीटकर मार दिया। 6 आरोपी थे, 16 महीने बाद 10 जनवरी 2022 को 5 को जमानत मिल गई। 20 जनवरी को गोरखपुर पुलिस लाइन में इनकी आमद भी हो गई।
मनीष की पत्नी मीनाक्षी कानपुर में हैं, वे पूछती हैं- ‘मेरे बेटे की सुरक्षा का क्या? पहले से ही पुलिसवाले इधर-उधर से दबाव बनाते रहते हैं। अब ये छूट आए हैं, डरें नहीं तो क्या करें।’
ऐसा ही एक घर कासगंज में भी है। यहां रहने वाले अल्ताफ को लड़की भगाने के आरोप में हिरासत में लिया गया था। 9 नवंबर 2021 को पुलिस ने कहा कि सजा के डर से उसने थाने में फांसी लगा ली। फोटो सामने आई तो जिस पानी की टोटी से उसने कथित फांसी लगाई थी, उसकी ऊंचाई ही करीब 3 फीट थी। अल्ताफ के पिता चांद मियां पूछते हैं, ‘एक साल हो गया, सब मेरे बेटे को भूल गए। मैं कैसे भूल जाऊं?'
यही कहानी झांसी के पुष्पेंद्र की है, जिसे एनकाउंटर में मार दिया गया। पुष्पेंद्र के भाई रवींद्र CISF में हैं। कहते हैं- भाई को इंसाफ नहीं दिला पा रहा हूं, अब तो मुझे ही वर्दी पहनते वक्त घिन आती है।
कस्टोडियल डेथ के मामले में यूपी नंबर वन है। लोकसभा में दिए सरकारी डेटा के मुताबिक, साल 2021 में ये मौतें 451 थीं, साल 2022 में बढ़कर 501 हो गई हैं। मैंने गोरखपुर, कासगंज, जौनपुर और झांसी के ऐसे ही 4 मामलों की पड़ताल की…
27 सितंबर 2021 को यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर जगत नारायण समेत 7 पुलिसवाले गोरखपुर के एक होटल में धड़धड़ाते घुसे। होटल के कमरा नंबर-512 में प्रॉपर्टी डीलर मनीष गुप्ता रुके थे। पुलिस ने दरवाजा खुलवाया, किसी बात पर कहासुनी हुई और मनीष को इतना पीटा गया कि उनकी अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो गई। 6 आरोपी थे, इनमें सिर्फ जगत नारायण सिंह जेल में हैं।
मनीष की पत्नी मीनाक्षी कानपुर के आजाद नगर में पिता के घर में रहती हैं। मनीष की मौत के एवज में उन्हें कानपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी में नौकरी मिली है। मैं घर पहुंचा तो वे काम से लौटी थीं, थकी हुई थीं। मैं कुछ पूछता, उससे पहले ही वे 5 साल के बेटे अविराज को दूसरे कमरे में भेज देती हैं।
बेटे से नहीं कहना चाहती- मैं ये लड़ाई हार गई
मीनाक्षी कहती हैं- ‘5 आरोपी बाहर आ गए हैं, वे पुलिसवाले हैं। परिवार में सब कह रहे हैं, संभल कर रहना। मैं ये लड़ाई कभी नहीं छोड़ूंगी, इस केस को किसी भी हाल में जीतना होगा। जब मेरा बेटा बड़ा होगा, तो उसे ऐसा न लगे कि मैं लड़ाई हार गई।’
मनीष और मीनाक्षी की शादी 7 साल पहले ही हुई थी। मनीष की जाॅब पहले आगरा, फिर जयपुर और नोएडा में रही।
मीनाक्षी बताती हैं- ‘27 सितंबर 2021 को वे गोरखपुर गए थे। उन्होंने फोन किया था, तब ठीक थे। मुझे देर रात फोन कर पुलिस ने गोरखपुर बुलाया था। मैं पहुंची तो पुलिस ने बताया कि मनीष की मौत सीढ़ी से पैर फिसल जाने से हुई है। मुझे भरोसा नहीं था, तो मैं अड़ गई। उसी के बाद पूरी कहानी सामने आई।’
मीनाक्षी की शिकायत के बाद ही रामगढ़ताल थाने में तैनात इंस्पेक्टर जगत नारायण सिंह, दरोगा अक्षय मिश्र, राहुल दुबे, विजय यादव, कॉन्स्टेबल कमलेश यादव और आरक्षक प्रशांत पर उसी थाने में मनीष की हत्या का केस दर्ज किया गया। SIT भी बनी, फिर CBI जांच हुई।
मामला मीडिया में आया, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मीनाक्षी से मिलने पहुंचे और मुआवजा-सरकारी नौकरी का ऐलान किया। अब मामला स्पेशल कोर्ट में है, लेकिन जगत नारायण के अलावा बाकी सबसे हत्या की धाराएं हटा ली गई हैं।
मीनाक्षी कहती हैं- ‘कुछ लोगों को लगता है कि इनके पास नौकरी है। अब सब कुछ सही हो गया, लेकिन ऐसा नहीं है। अब भी बेटे को अकेले छोड़कर दिल्ली आना-जाना पड़ता है, डर लगा रहता है। ये छूट आए हैं तो डर और भी बढ़ गया है। मैं पूरी तरह से टूट गई हूं, लेकिन मुझे मालूम है कि ऊपरवाला मेरे साथ गलत नहीं करेगा। मुझे और मेरे बेटे को इंसाफ जरूर मिलेगा।’
कहते हुए मीनाक्षी रोने लगती हैं। फिर आंसू पोंछते हुए कहती हैं- ‘मैंने अब शादी न करने का फैसला लिया है। इस केस को जीतना ही मेरी जिंदगी है।’
अब मेरी चिता को आग कौन देगा: मनीष के पिता
मनीष के पिता नंदकिशोर गुप्ता भी कानपुर में ही रहते हैं। वे बर्रा में एक दुकान पर सिक्योरिटी गार्ड्स की वर्दी सिलने का काम करते हैं। मैं पहुंचा तब भी सिलाई मशीन के पैडल पर उनके पैर तेज रफ्तार से चल रहे थे। मैंने मनीष का नाम लिया तो पैर थम गए, कहने लगे- 'अब 2 मंजिला मकान में अकेले रहता हूं। सुबह दलिया खाकर काम पर आ जाता हूं। दिनभर में सौ-डेढ़ सौ रुपए का काम कर लेता हूं। कभी बाहर होटल में खाना खा लेता हूं। तो कभी घर में बना लेता हूं।’ बताते हुए रो पड़ते हैं।
नंदकिशोर गुप्ता आगे कहते हैं- ‘बहू की नौकरी लग गई थी। वो यहां से चली गई। बेटा जा ही चुका है, अब कौन बचा है। दो बेटियां हैं। एक बेटी यहीं कानपुर में ब्याही है, तो कभी-कभार आ जाती है। बस एक ही चिंता है कि मेरी चिता को आग कौन देगा।’
कानपुर से मैं झांसी पहुंचा। 5 अक्टूबर 2019 को पुलिस ने पुष्पेंद्र यादव का एनकाउंटर किया था। पुलिस के मुताबिक, पुष्पेंद्र ने कानपुर-झांसी राजमार्ग पर मोंठ थाने के इंचार्ज धर्मेंद्र सिंह चौहान पर फायरिंग की और उनकी कार लूट ली। पुलिस ने नाकेबंदी की और पुष्पेंद्र को मुठभेड़ में मार गिराया था। घरवालों ने इसे फेक एनकाउंटर बताया और केस की जांच अब CB-CID के पास है।
पुष्पेंद्र के भाई रवींद्र सिंह यादव से मिलने मैं मैनपुरी पहुंचा। रवींद्र CISF में हैं और भाई का केस वही लड़ रहे हैं। रवींद्र के मुताबिक- 'पुष्पेंद्र और पुलिसवालों की 29 सितंबर 2019 से ही ठनी थी। उसका ट्रक तब के थाना इंचार्ज धर्मेंद्र सिंह चौहान ने ओवरलोड बताकर पकड़ लिया था। ट्रक वाले पहले ही पुलिस को हफ्ता देते थे और पुष्पेंद्र ने चौहान से कहा कि मेरा पैसा तो जमा है। चौहान नहीं माना और पुष्पेंद्र को बुआ से उधार लेकर 1 लाख रुपए देने पड़े।’
रवींद्र आगे बताते हैं- ‘पैसे देने के बाद भी ट्रक नहीं छोड़ा गया। 3 अक्टूबर 2019 को ट्रक का ऑनलाइन चालान RTO और खनन विभाग ने भी कर दिया। पुष्पेंद्र ने चौहान से बात की, तो जवाब मिला कि अब तो ऑनलाइन चालान हो गया है, गाड़ी कोर्ट से ही छुड़वानी पड़ेगी। इस पर पुष्पेंद्र ने पैसे वापस मांगे। चौहान ने कहा कि कानपुर में हूं। तुम 50 हजार का इंतजाम और कर लो, ट्रक छोड़ देंगे।
पुष्पेंद्र ने पत्नी शिवांगी को बताया कि धर्मेंद्र सिंह चौहान को रुपए देने के लिए जा रहा हूं। 5 अक्टूबर को वह धर्मेंद्र सिंह चौहान से मिलने गया था। शाम 7 बजे उसकी शिवांगी से बात भी हुई। 6 अक्टूबर की सुबह हमें बताया गया कि उसका एनकाउंटर कर दिया है।’
वर्दी पहनने में भी शर्म आती है, भाई को न्याय नहीं दिला पाया
रवींद्र आगे बताते हैं- ‘पुष्पेंद्र की मौत के बाद पूरा परिवार बिखर गया है। मुझे खुद से भी घृणा होती है। मैं खुद एक वर्दीधारी हूं। मैंने जब वर्दी पहनी तो मुझे और मेरे परिवार को खूब गर्व हुआ था। अब मुझे वर्दी पहनना बहुत बुरा लगता है। लोग क्या सोचते होंगे कि ये खुद अपने भाई को न्याय नहीं दिला पा रहा है।’ यह बताते हुए रवींद्र की आवाज भरभरा जाती है।
आगे कहते हैं, ‘मैं साल भर से घर नहीं गया। तमाम जगह से मुझ पर, परिवार पर सुलह-समझौते का दबाव डाला जाता रहा है। भाई की मौत के बाद से उसके ट्रक घर पर खड़े हैं। मौत से तीन महीने पहले पुष्पेंद्र की शादी हुई थी। मेरे बूढ़े मां-बाप अकेले घर में रहते हैं।’
फिर गुस्से में बोलने लगते हैं- ‘मुझे इस सरकार पर कोई भरोसा नहीं है। 13 सितंबर 2022 को FIR दर्ज कराई थी। पहले तो पुलिस ने मुकदमा ही दर्ज नहीं किया। आज UP पुलिस ही गुंडा है, जिसे चाहे माफिया बना दे। मेरा नाम भी FIR में डाल दिया, जब ये हुआ मैं दिल्ली में ड्यूटी पर था। मुझे आरोपी बनाया, लेकिन गिरफ्तार नहीं किया। फिर मेरा नाम हटा दिया। दिसंबर 2022 में हाईकोर्ट के आदेश पर CB-CID को केस की जांच दी गई है। बस उसी से उम्मीद है।’
बाजार गया था, लेकिन लौटा ही नहीं
पुष्पेंद्र के माता-पिता से मिलने मैं झांसी के करगवां खुर्द गांव पहुंचा। घर के बरामदे में ही पुष्पेंद्र के पिता हरिश्चंद्र यादव मिले। कहते हैं, ‘तीन महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी। साल भर तो रस्में ही चलती है, लेकिन वह तो तीन महीने में ही चला गया। उसे बहुत याद करते हैं। मेरे बेटे के हत्यारे को न तो पकड़ा गया, न ही नौकरी से हटाया गया। सरकार का बहुत दबाव है। हम लोगों को डर लगता है कि कहीं हम लोगों पर ये डर हावी न हो जाए।’
पुष्पेंद्र की मां रामदेवी भी आ जाती हैं। उसका नाम सुनते ही रोने लगती हैं। बुंदेली भाषा में कहती है, ‘बाजार से लौटने के लिए कहा था, लेकिन नहीं लौटा। हमें तो अपने लला की याद आती रहती है। उसे कैसे भुला सकते हैं।’
9 नवंबर 2021 को अल्ताफ नाम के युवक की हवालात में लाश मिली। पुलिस ने बताया कि उसने डर के कारण नल की टोटी से लटक कर सुसाइड कर लिया। कासगंज से एक लड़की लापता थी, इसी मामले में पूछताछ के लिए अल्ताफ को थाने लाया गया था। परिवार ने आरोप लगाया कि इतनी कम ऊंचाई की टोटी से लटक कर कोई कैसे सुसाइड कर सकता है। अल्ताफ का ये फोटो वायरल भी हो गया। 5 पुलिसवालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। एक साल गुजरने के बाद भी केस अब तक ट्रायल के लिए नहीं पहुंच सका है।
मुसलमान हूं, गरीब हूं, इसलिए कोई मेरी नहीं सुनता
कासगंज से करीब डेढ़ किमी दूर गांव अहरौली में चांद मियां रहते हैं। चांद मियां ही अल्ताफ के पिता हैं, संपत्ति के नाम पर बस एक लोहिया आवास है। घर में बुजुर्ग पति-पत्नी और एक छोटा बेटा है। तीनों मिलकर तंबाकू की पुड़िया बनाते हैं, इसी से घर का खर्च चलता है। मैं उस छोटे से घर में दाखिल हुआ तो जगह-जगह तंबाकू की पुड़ियां बिखरी पड़ी थीं।
चांद मियां से अल्ताफ के केस पर सवाल किया तो बोले- ‘वो टाइल्स का काम करता था। मेहनती था। वो था तो घर का और मेरा ख्याल रखता था। मुझे काम नहीं करना पड़ता था। जिस लड़की को भगाने के बारे में इल्जाम लगाया, उसे तो हम जानते भी नहीं। पुलिस को वो किसी और रेलवे स्टेशन से मिल भी गई थी। मेरे बेटे को गए एक साल हो गया, अभी तक कोई गिरफ्तार नहीं हुआ। आरोपी पुलिसवालों में से कुछ ने तो वापस ड्यूटी भी जॉइन कर ली।’
चांद मियां निराश होते हुए कहते हैं- ‘जब पुलिस वालों के पास जाता हूं तो कहते हैं कि तुमने अपने बेटे को संभाला क्यों नहीं? मैं बयान दर्ज कराने जाता हूं, तो ऐसे-ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि आंखों में आंसू आ जाते हैं। मैं भी पहले मिस्त्री का काम करता था। बेटे के मरने के बाद अब काम भी नहीं मिलता है। जहां जाओ कहते हैं कि तुम तो थाने के ही चक्कर लगाते रहोगे, तो कैसे काम करोगे।'
'मालूम नहीं कि बेटे को इंसाफ दिला भी पाऊंगा या नहीं। बेटे के मरने पर कुछ पैसे मिले थे। बेटे के मरनी के रुपयों से खर्चा चला रहा हूं, यह सोच-सोचकर शर्मिंदा हो जाता हूं। मुझे लगता है कि मैं मुसलमान हूं, गरीब हूं इसीलिए इंसाफ नहीं मिल रहा है।’
अल्ताफ की मां बोलीं- हाथ में जख्म है, लेकिन पेट भी तो भरना है
चांद मियां और मेरी बातें सुनकर अल्ताफ की मां फातिमा भी आ जाती हैं। रोने लगती हैं, कहती हैं-’अब छोटे बेटे से उम्मीद है कि पढ़-लिखकर कुछ करेगा तो हमारा बुढ़ापा कट जाएगा। मेरे हाथों में जख्म हो गया है। दो वक्त की रोटी के लिए फिर भी काम करना पड़ता है। अल्ताफ मरा तो पुलिस वालों ने पति से उल्टे-सीधे बयान लिखवाकर दस्तखत ले लिए। मुकदमा तो दर्ज हुआ, सस्पेंड भी हुए, लेकिन अब सब वापस ड्यूटी पर लौट आए हैं।’
चांद मियां के वकील मुनाजिर रफी बताते हैं- ‘चांद मियां को कई बार बुलाया कि एक एप्लिकेशन कोर्ट में डाल दूं, लेकिन वे डरे हुए हैं। पुड़िया बनाकर दिनभर का 100-200 रुपए कमाते हैं। कैसे केस लड़ेंगे, कैसे घर चलेगा।’
कासगंज के बाद मैं जौनपुर पहुंचा। जौनपुर मुख्यालय से करीब 10 किमी दूर मिर्जापुर गांव में कृष्णा उर्फ पुजारी यादव का घर है। मैं घर पहुंचा तो पुजारी के भाई अजय यादव खेत से लौटे थे। वे हाथ-पांव धोने लगे तो पुजारी की मां सत्ता देवी आ गईं।
पुजारी का जिक्र आया तो कहने लगीं- ‘बेरहम पुलिसवालों ने उसे इतना पीटा कि वह दोबारा खड़ा नहीं हो पाया। उसे जिंदा ले गए थे, लाश घर लौटी। पुलिसवालों ने मुझे भी थप्पड़ मारा था। हमारे 60 हजार रुपए भी लूटकर ले गए। ऐसे जालिमों को भगवान फांसी की सजा दे।’
मां को चुप कराते हुए अजय यादव बताते हैं, ‘11 फरवरी 2021 को शाम के 4 बज रहे थे जब एक गाड़ी में चार-पांच पुलिस वाले आए और जबरदस्ती पुजारी को उठाकर ले गए। हम लोग पूछते ही रह गए, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। हमें गालियां देने लगे, मां को भी मारा। मैं खेती करने वाला आदमी हूं मेरा कभी पुलिस से पाला ही नहीं पड़ा था।’
ASP से मिलने गए थे, वहां दरोगा ने बताया भाई की मौत हो गई
अजय आगे बताते हैं- ’वे उसे ले गए, मैं फोन मिलाता रह गया। थोड़ी देर में दो और पुलिसवाले आए और उसकी मोटरसाइकिल भी ले गए। रात 8 बजे एक बार फिर बक्सा थानाध्यक्ष अजय सिंह के साथ 10 से 12 लोगों की SOG टीम आई। उन्होंने घर का सामान बिखेर दिया। पैसे मांग रहे थे। बक्सा तोड़कर 60 हजार रुपए निकाल लिए। गाली और धमकी देकर चले गए। हम थाने गए तो हमें भगा दिया। 12 फरवरी 2021 को हम लोग फिर सुबह ही एडिशनल SP के ऑफिस पहुंचे। वहीं एक दरोगा ने हमें बताया कि पुजारी की रात को ही मौत हो चुकी है।’
कुछ देर चुप रहने के बाद अजय फिर बोले- ‘हम लोग पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे। पुलिसवाले जबरन हमसे शव छीनकर उसका अंतिम संस्कार करने के लिए ले जा रहे थे। हम भी अड़ गए। दबाव में पुलिस अधिकारियों ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए। अजय सिंह समेत 11 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। अब जांच के नाम पर हमें बार-बार थाने-कोर्ट बुलाया जाता है।'
'मजिस्ट्रियल जांच खत्म हुई तो उसमें पुजारी यादव की मौत एक्सीडेंट से बताई गई। हमने हाईकोर्ट में अपील की और अगस्त 2021 को CBI जांच के आदेश हुए। अब आरोपी पुलिसवालों में से एक को छोड़कर सभी पकड़ लिए गए हैं। ट्रायल चल रहा है।’
कर्जदार हो गया हूं, लेकिन भाई को इंसाफ जरूर दिलाऊंगा
अजय बताते हैं- ‘परिवार में मां, मैं फिर पुजारी यादव और फिर छोटा प्रदीप यादव है। मेरी और प्रदीप की शादी हो चुकी है। सिर्फ पुजारी की शादी नहीं हुई थी। वो राजनीति में जाना चाहता था। गांव प्रधान का चुनाव लड़ना चाहता था। मुझे शक है कि उसके विरोधियों ने ही पुलिस के साथ मिलकर ये साजिश रची। पुलिसवाले छिनैती के आरोप में उठा ले गए थे, उसे रात भर इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई।’
अजय निराशा से भर जाते हैं, कहते हैं- ‘आज भी मुझे डर लगता है। गांव में आकर तो कभी बाजार में कोई पीछे से आता है और कहता कि पैरवी छोड़ दो नहीं तो तुम भी मारे जाओगे। CBI जांच से उम्मीद है, लेकिन अब भी एक आरोपी फरार है।’
मैं जौनपुर से लौटने लगता हूं तो कानपुर, कासगंज, झांसी भी मेरे साथ लौटने लगते हैं। पुलिस कस्टडी में मौतों की ऐसी कहानियां UP में बिखरी पड़ी हैं, जिनमें लोगों की सुरक्षा की कसम खाने वाली पुलिस पर ही उनकी हत्या के आरोप लगे हैं। अब पीछे बचे बिखरे परिवार हैं जो न्याय की उम्मीद में हैं और उन्हें अपनी हत्या का डर सता रहा है।
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