मेरा कोई अपना नहीं है। सगे पापा ने मुझे और मां को घर से निकाल दिया क्योंकि मैं बेटी पैदा हुई। तब मैंने पहला बर्थडे भी नहीं मनाया था। मां ने दूसरी शादी की। उसके पति को मैंने पापा माना, लेकिन उनके पिता ने मेरा रेप कर दिया। तब मैं महज 12 साल की थी।
मां ने तो तीसरी शादी कर ली, लेकिन मैं उसके पति को पापा नहीं मान सकी। अभी 12वीं में हूं। 6 साल से रेप विक्टिम सेंटर ही मेरा घर है।
मैं तनीषा। उत्तर प्रदेश के बहराइच में जन्मी। पापा को बेटा चाहिए था। इस वजह से मेरे पैदा होते ही वे मां को टॉर्चर करने लगे। दोनों के बीच लड़ाई-झगड़ा होने लगा। एक रात उन्होंने मां को घर से निकाल दिया। इसके बाद मां मुझे लेकर लखनऊ आ गई और एक आश्रम में रहने लगी। उस वक्त मैं 5-6 महीने की थी।
इसके बाद मां ने दूसरे शख्स से शादी कर ली। मैंने उसी शख्स को अपना पापा माना, क्योंकि बचपन से उन्हें ही पापा के रूप में देखा। तीन साल की थी तब एक भाई हुआ। फिर दो साल बाद एक बहन हुई। मैं भाई-बहनों में बड़ी थी। सबकी देखभाल करती थी।
पापा दिनभर घर से बाहर रहते थे और देर शाम घर आते थे। कुछ सालों तक ऐसे ही चलता रहा। जब मैं 10 साल की हुई तो मां ने पापा से कहा कि इसका स्कूल में दाखिला करा दीजिए। इस बात से पापा नाराज हो गए। उन्होंने मां से साफ-साफ कह दिया कि मेरे पास पैसे नहीं है।
इस बात को लेकर मां-पापा में लड़ाई होने लगी। गुस्से में मां ने पापा की साइकिल बेच दी और एक स्कूल में मेरा एडमिशन करा दिया। इसके बाद मां ने पापा से कहा कि वो नौकरी करेंगी और अपनी बेटी को पढ़ाएंगी। उन्होंने एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम भी ढूंढ लिया। इससे पापा और मां के बीच और ज्यादा झगड़े होने लगे। पापा का कहना था कि हमारे घर की कोई औरत बाहर काम नहीं करने गई है। तुम भी घर पर ही रहो।
मां जिस कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने जाती थीं, वहां एक शख्स से उनकी नजदीकियां बढ़ने लगी। मां घर में वैसे ही परेशान रहती थीं। पापा से उनकी पटती नहीं थी। एक रोज मां ने कहा कि चलो एक चाचा के घर चलना है। मैं मां के साथ चल पड़ी, बाकी भाई-बहन वहीं रह गए।
वह आदमी मेरे से अच्छे से बात करता था और मेरी देखभाल भी करता था। मां कहती थीं कि ये तुम्हारे पापा हैं, लेकिन मैं कहती थी कि मेरे पापा तो दूसरे हैं, इन्हें पापा कैसे मानूं। मां ने मुझे बहुत समझाया, डराया, धमकाया, लेकिन मैं उस आदमी को पापा नहीं बोल सकी। मैंने मां से साफ कह दिया कि आप पति बदल लोगे, लेकिन मैं पापा नहीं बदलूंगी।
इस पर वो आदमी मां से झगड़ने लगा कि अगर ये लड़की मुझे पापा नहीं बोलेगी, तो मैं तुम दोनों को घर से निकाल दूंगा।
दो महीने बाद मां दोबारा मेरे भाई-बहन वाले घर लौट आई। आते ही पापा से उनकी कहा-सुनी हुई। दादा-दादी का कहना था कि इस औरत को घर में नहीं आने दो, ये दोबारा भाग जाएगी। जैसे-तैसे करके पापा ने मां को रख तो लिया, लेकिन मुझसे बार-बार पूछते थे कि तुम दोनों कहां थे। तुम्हारी मां किसके घर रहती थी। मां ने मुझे कुछ भी बताने से मना किया था।
अब मैं चीजों को समझने लगी थी। मुझे पता चल चुका था कि ये पापा सौतेले हैं। मेरे भाई-बहन भी सौतेले हैं। असली पापा कौन हैं और कहां हैं, इसके बारे में कुछ नहीं पता। किसी ने बताया ही नहीं। मां ने बस इतना ही बताया कि उन्हें बेटी नहीं चाहिए थी। इसलिए हम अलग हो गए।
एक रोज मैंने पापा से सब कुछ सच-सच बता दिया, क्योंकि मुझे लगता था कि मां ही दोषी है। वो अगर ठीक से रहती तो इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। इसके बाद पापा ने मां को घर से निकाल दिया। मां दोबारा उसी आदमी के पास चली गई। मैं ना तो मां के साथ गई और ना ही मां ने मुझे साथ ले जाना जरूरी समझा।
कुछ दिनों बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली। मुझे और मेरे सौतेले भाई-बहनों को छोड़ दिया और दूसरे शहर जाकर रहने लगे। मैं भाई-बहनों के साथ दादा-दादी के साथ रहने लगी।
वहां कॉलोनी में बच्चों के लिए एक NGO काम करता था। वहां काम करने वाली दीदी ने मेरा एडमिशन एक स्कूल में करा दिया। मैं उस स्कूल में पढ़ने के लिए जाने लगी। इस तरह एक-एक दिन करके वक्त गुजरने लगा। अब मैं 12 साल की हो चुकी थी।
2015 की बात है। दादी कुछ दिनों के लिए रिश्तेदार के यहां गई थीं। वहां शादी थी। हम तीनों भाई-बहन और दादा घर पर थे। हमारे घर में एक ही कमरा था, उसी में सभी लोग सोते थे।
एक रात नींद में मुझे एहसास हुआ कि कोई मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा है। मैं चौंक कर उठी तो देखा कि दादा मेरे बेड पर हैं। मैंने जैसी ही कुछ बोलना चाहा, उन्होंने अपने हाथ से मेरा मुंह दबा दिया। मैंने छुड़ाने की पूरी कोशिश की, तो उन्होंने पास पड़ा बैट मुझ पर दे मारा। मैं डर गई, कांपने लगी।
सुबह मैं गुमसुम थी। भाई-बहन पूछने लगे कि क्या हुआ है, लेकिन डर के मारे कुछ कह नहीं सकी। अगले दिन दादा ने रात में वैसा ही किया। मैंने विरोध किया तो खूब मारा। इसके बाद तो उनका ये रोज का काम हो गया। उन्होंने मेरा रेप करना भी शुरू कर दिया। वे जब भी मौका पाते या घर में कोई नहीं होता, मेरा रेप कर देते।
मैं घर में न किसी से कुछ बोलती थी, न ही किसी से यह सब शेयर करती थी। एक तरह से डिप्रेशन में चली गई थी। भाई-बहन दादा से कहते थे कि दीदी को कुछ हो गया है। इसका इलाज कराओ। इस पर दादा कहने लगे कि इसको कोई बीमारी नहीं है, इसके शरीर में भूत घुस गया है। इसलिए ये ऐसी हरकतें कर रही है।
इसके बाद उन्होंने मेरा स्कूल छुड़वा दिया। घर से कहीं जाने पर रोक लगा दी। कुछ दिनों बाद वो दीदी घर आईं, जिन्होंने मेरा स्कूल में एडमिशन कराया था। वे घर आकर पूछने लगीं कि स्कूल क्यों नहीं आ रही हो, क्या हुआ है। इस पर दादा गुस्सा हो गए।
उन्होंने दीदी को भला-बुरा कहा और घर से भगा दिया। दीदी शायद समझ गई थीं कि सब कुछ ठीक नहीं है। जाते-जाते उन्होंने कहा कि कुछ भी दिक्कत हो तो मुझे जरूर बताना।
धीरे-धीरे मुझे खुद से नफरत होने लगी थी। एक दिन मैंने दादी से सब कुछ बता दिया। मुझे लगा कि दादी मेरी मदद करेंगीं, लेकिन वो तो उल्टे मुझ पर ही बरस पड़ीं। कहने लगीं कि तुमने मेरे मर्द को फंसा लिया है। तुम ही दोषी हो।
एक रात दादा मेरे पास आए। नींद तो मुझे आती नहीं थी। जैसे ही वे मेरे बेड पर आए मैंने फौरन बेड से कूदकर कमरे की लाइट जला दी। दादा बिना कपड़ों के थे। दादी भी उठकर बैठ गईं। इस हाल में दादा को देखकर उन्होंने मेरे सामने दादा को खूब भला-बुरा कहा।
खैर इसका दादा पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उस दिन के बाद से तो वे दादी के सामने भी मेरे साथ जबरदस्ती कर देते थे। डर और लोकलाज के मारे दादी भी किसी से कुछ कह नहीं पाती थीं।
एक रात दादा मेन गेट का दरवाजा लगाना भूल गए। मुझे लगा कि ये सही मौका है यहां से निकलने का। रात में ही भागकर मैं उस NGO के पास चली गई, जिसने मेरा स्कूल में एडमिशन कराया था। मैंने वहां की दीदी से सारी बातें बताई।
इसके बाद वो दीदी मुझे चाइल्ड हेल्पलाइन लेकर गईं। वहां मेरे बयान दर्ज किए गए। दादा को वहां बुलाया गया और उनसे पूछताछ हुई। वहां वे कहने लगे कि ये लड़की ही मुझसे कहती थी कि मेरे साथ ऐसा-ऐसा करो, मेरा कोई दोष नहीं है।
इसके बाद मेरा मेडिकल टेस्ट हुआ और दादा को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया। इसके बाद उन्हें जेल भी भेज दिया गया। अभी मेरा केस उत्तर प्रदेश सरकार देख रही है।
चूंकि तब मैं नाबालिग थी। इसलिए मुझे लखनऊ के एक अनाथ आश्रम भेज दिया गया। वहां पढ़ने के लिए एक सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया गया। मैं यहां पढ़ाई तो करने लगी, लेकिन पुरानी बातों को भूल नहीं पा रही थी। अंदर से घुटन महसूस होती थी। अक्सर रोती रहती थी।
कभी-कभी तो लगता था कि मैं ही कसूरवार हूं। मेरी वजह से ही मेरा परिवार बिखर गया। दादा को जेल हो गई। रिश्तेदार भी मुझे ही दोषी मानते थे।
इस तरह एक-एक करके दिन बीतते गए। मैं आठवीं क्लास में पहुंच गई। इस बीच दो बार दादी मिलने आईं। उन्होंने मुझसे कहा कि केस वापस ले लो, अपने दादा को जेल से छुड़ा लो। हम तुम्हारे पांव पड़ते हैं। जब मैं उन्हें मना कर देती तो वो मुझ पर दबाव बनाने की भी कोशिश करने लगीं।
स्कूल की प्रिंसिपल को इसके बारे में पता चला। एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया और समझाया कि मैं किसी भी तरह के दबाव में न आऊं। केस वापस न लूं। 2018 में उस अनाथ आश्रम से मुझे नवजागृति सेंटर भेज दिया गया। यहां मेरा को-एड स्कूल में दाखिला करवा दिया गया, जहां मैंने नवीं और दसवीं की पढ़ाई की।
को-एड स्कूल में पढ़ना मेरे लिए आसान नहीं था। मुझे लड़कों से घिन आती थी, डरती थी। मैं उनसे बात नहीं कर पाती थी। वहां मेरे मैथ्स के सर हुआ करते थे। उन्होंने क्लास के लड़कों को मेरे बारे में बताया और कहा कि इससे बात किया करो।
सच कहूं तो उन सर ने और क्लास के लड़कों ने मेरी काफी मदद की। उन्हीं की वजह से मैं उस सदमे से उबर सकी।
इसके बाद मैं लखनऊ के रेड बिग्रेड सेंटर में रहने लगी। यहां मुझे छोटे बच्चों के स्कूल का कोऑर्डिनेटर बना दिया गया। अभी 12वीं में हूं। अपनी पढ़ाई के साथ छोटे बच्चों को भी पढ़ाती हूं। खाना-पीना-रहना सब कुछ सेंटर मुहैया कराता है।
मुझ पर दादी और रिश्तेदारों का काफी दबाव रहता है कि दादा को माफ कर दूं, लेकिन नहीं करूंगी। आज तक मैं उस हालात से उबर नहीं पाई हूं। आज भी सपने में बुदबुदाती हूं। चिल्लाने लगती हूं। दूसरी बात ये भी कि अगर मैंने दादा को माफ कर दिया तो बाकी लड़कियों को क्या मुंह दिखाऊंगी जो इस तरह की दरिंदगी का शिकार होती हैं।
जिस पिता ने पैदा किया, वो कहां हैं नहीं पता। न मैं कभी उनसे मिली न वे मिलने आए। जिसे मैंने पापा माना, उन्हें मुझसे अब मतलब नहीं। एक बार भी उन्होंने यह पूछना जरूरी नहीं समझा कि मेरे साथ क्या हुआ है, क्यों हुआ है।
कहां जाता है कि मां के पास बेटियां सबसे ज्यादा सुरक्षित रहती हैं, लेकिन मुझे मां के पास जाने में डर लगता है। कल को उस आदमी ने भी मेरे साथ वहीं हरकतें करनी शुरू कर दीं तो मैं क्या करूंगी। ये सच है कि मैं बहुत कुछ गंवा चुकी हूं, लेकिन एक सुकून ये कि कम से कम सुरक्षित तो हूं।
अब मैं हर उस लड़की से बताना चाहती हूं कि कोई कुछ बोलता है, बेइज्जती होती है, समाज गलत बोलता है, ताने मारता है, तो उसका विरोध करो। समाज में जीने के लिए खुद को मजबूत करो।
तनीषा (बदला हुआ नाम) ने ये सारी बातें भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की है…
अब संडे जज्बात सीरीज की इन 3 कहानियों से होकर भी गुजर जाइए
1. लोग लाश देखकर डरते हैं, हम तो छुपन-छुपाई भी मुर्दों के बीच खेलते थे
लाश होने के बाद लोगों की जिंदगी खत्म हो जाती है। मेरी जिंदगी ही लाशों से शुरू होती है। चिता सजाना, आग देना, लाश जलाना, राख संभालना और श्मशान की सफाई करना मेरा काम है। नाम माता प्रसाद चौधरी है और बनारस के मणिकर्णिका घाट के सबसे पुराने कालू डोम खानदान (डोम राजा) का मौजूदा डोम हूं। (पढ़िए पूरी कहानी)
2. किन्नर से महामंडलेश्वर बनी, आज भी भीड़ में लोग हाथ दबा देते हैं, सोशल मीडिया पर बोलते हैं- अच्छी वाली फोटो भेजो
मेरे भाई ने ही मेरा यौन शोषण किया। तीन बार आत्महत्या की कोशिश की। घर में काफी मार-पीट हुई। प्यार भी किया, लेकिन वफा के नाम पर मुझे धोखा मिला, वो भी चार दफा। फिर मोह माया छोड़कर निकल पड़ी अपनी नई दुनिया बनाने। जूना अखाड़े के हरिगिरी महाराज से दीक्षा ली और संन्यासी बन गई। अब मैं किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर हूं, नाम है पवित्रानंद नीलगिरी। (पूरी कहानी पढ़िए)
3. पेट पालने के लिए रेप तक झेला:आंटी ने अधेड़ के हाथों बेच दिया, फिर बनी किन्नर महामंडलेश्वर, मेरे ऊपर फिल्म बन रही
मैं निर्मोही अखाड़ा की महामंडलेश्वर हिमांगी सखी। पहली किन्नर, जो दुनियाभर में भागवत गीता, शिव पुराण और गरुड़ पुराण की कथा करती हूं। पापा फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर, मोहन स्टूडियो में पार्टनर और विश्वकर्मा फिल्म्स कंपनी के मालिक थे। जबकि मां डॉक्टर थीं। मैंने रेखा, अमिताभ बच्चन, जितेंद्र और संजय दत्त जैसे सेलिब्रिटीज को बहुत करीब से देखा है, लेकिन ठाठ-बाट के ये दिन ज्यादा समय तक नहीं रहे। वक्त ने ऐसी करवट ली कि मुझे भीख तक मांगना पड़ा। (पूरी खबर पढ़िए)
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