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  • Uttarakhand Haldwani Protest [Ground Report]; Banbhoolpura Railway Land Encroachment Case

ग्राउंड रिपोर्टघर के दरवाजे पर बुलडोजर, फोर्स तैनात:1940 में जमीन खरीदी, घर बनाया, टैक्स-बिजली का बिल दिया, अब सब रेलवे का

हल्द्वानी5 महीने पहलेलेखक: वैभव पलनीटकर
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हल्द्वानी का बनभूलपुरा इलाका और इसकी गफूर बस्ती, इंदिरा नगर, ढोलक बस्ती के लोग अब भी डरे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई से 7 फरवरी तक की राहत दी है, लेकिन बुलडोजर लौटेंगे नहीं, इसकी फिलहाल कोई गारंटी नहीं। कहीं और बसाने की भी कोई बातचीत नहीं।

लोगों के कागजात कहते हैं कि जमीनें 1940 में रेलवे ने ही लीज पर दीं, कुछ ने 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद पुनर्वास मंत्रालय से घर खरीदा। अब रेलवे कह रहा है कि 1959 के नोटिफिकेशन के बाद से ये जमीन उसकी है।

सरकार इस जमीन पर बसे लोगों से हाउस टैक्स, वाटर टैक्स, बिजली का बिल लेती रही। यहां 3 सरकारी स्कूल, एक सरकारी अस्पताल भी बना दिया। पानी की पाइप लाइन और सीवेज लाइन भी बिछाई। प्रॉपर्टीज की नीलामी हुईं, लीज पर दी गईं, फ्री होल्ड भी हुईं। और अब ये सब अवैध है।

इस जमीन पर उत्तराखंड सरकार और रेलवे के बीच विवाद पुराना है। आरोप था कि गौला नदी से होने वाले रेत खनन में इन्हीं बस्तियों के लोग शामिल हैं। 2013 में ये मामला हाईकोर्ट गया, 20 दिसंबर 2022 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया- ‘इलाका खाली कराया जाए।’ बस्ती के पास बुलडोजर पहुंचे, हंगामा-प्रोटेस्ट हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई पर फौरी रोक तो लगा दी, लेकिन करीब 4000 परिवारों के सिर से छत चले जाने का खतरा अभी टला नहीं है…

बनभूलपुरा: सवालों, दावों और कागजों के ढेर में छिपा एक डर
साल 1947 से शुरू करते हैं- भारत का बंटवारा हो चुका था। नए-नए बने देश पाकिस्तान से हिंदू भारत आ रहे थे, वहीं भारत से कुछ मुसलमान पाकिस्तान में अपना भविष्य देख रहे थे। उत्तराखंड के हल्द्वानी के मुस्लिम बहुल इलाके बनभूलपुरा से भी कुछ मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गए। उन्होंने जिन घरों को छोड़ा, उन्हें सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया। इन घरों का मालिकाना हक केंद्र सरकार के पास आ चुका था।

साल 1960: बनभूलपुरा के अतीक शाह के पिता सादिक शाह ने इन्हीं शत्रु संपत्ति में आने वाले एक घर को 28 नवंबर 1960 को 3600 रुपए चुकाकर भारत सरकार के पुनर्वास मंत्रालय से खरीदा। इसके बदले में उन्हें सर्टिफिकेट ऑफ सेल यानी बिक्री का प्रमाण पत्र भी मिला। इस कागज के मुताबिक सादिक शाह के बाद बेटे अतीक शाह अब इस घर के मालिक हैं।

साल 2023 में सब बदल गया- घर के मालिकाना हक से जुड़े सारे कागज लेकर अतीक शाह, घर के बाहर एक प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे हैं। निराशा उन्हें घेरे हुए है, वो घर जहां पैदा हुए, जिंदगी का बड़ा हिस्सा गुजरा, वो अब उनका है, इसी पर सवाल किया जा रहा है।

कहते हैं, ‘इस घर में हमारी तीसरी पीढ़ी रह रही है। हमने केंद्र सरकार के पुनर्वास मंत्रालय से घर खरीदा, अब केंद्र का दूसरा विभाग इसी जमीन पर अपना दावा कर रहा है। हाईकोर्ट का फैसला समझ से परे है, मैंने सुप्रीम कोर्ट में अपने कागजात पेश किए हैं। उम्मीद है न्याय मिलेगा।’

अतीक शाह अकेले नहीं है, उनसे मिलती-जुलती कहानी यहां रहने वाले करीब 4,000 परिवारों की है। किसी के पास अंग्रेजों की 1940 में दी गई लीज के कागज हैं। किसी के पास राज्य सरकार की नजूल नीति के कागज हैं। किसी के पास फ्री होल्ड के पेपर हैं।

अलग-अलग वक्त पर लोगों ने अपने घरों के कागज जुटाकर रखे हुए हैं। रेलवे का इसी बनभूलपुरा इलाके की करीब 82 एकड़ जमीन पर दावा है। रेलवे का दावा है कि उसके पास 1959 का नोटिफिकेशन, 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड और 2017 की सर्वे रिपोर्ट है।

रेलवे लाइन के एक तरफ गौला नदी है, तो दूसरी तरफ करीब 800 मीटर चौड़ी और 2 किमी लंबी पट्टी है, बनभूलपुरा। ढोलक बस्ती, गफूर बस्ती, लाइन नं. 17, चिराग अली शाह बस्ती, इंदिरा नगर इलाकों से होते हुए ये इलाका गोजाजाली क्रॉसिंग पर खत्म होता है।

ये पूरा मुस्लिम बहुल इलाका है, 90% लोग मुस्लिम हैं, हिंदू सिर्फ 10% हैं। उदाहरण के लिए वार्ड नंबर 31 में शकील अंसारी पार्षद हैं, उनके वार्ड में 4,750 वोट हैं। 4,000 मुस्लिम वोट हैं, तो करीब 700 हिंदू वोट हैं। लगभग यही अनुपात हर वार्ड में है। एवरेज 10 से 12% से ज्यादा हिंदू वोटर्स नहीं हैं।

ढोलक बस्ती: पुलिसवाले आकर डरा रहे, जमीन खाली कर दो
मैं जब यहां पहुंचा तो बीते 10 दिनों से जारी हंगामा थम चुका था, लेकिन डर अब भी कायम है। हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के आसपास उत्तराखंड पुलिस और रेलवे पुलिस फोर्स की गाड़ियां खड़ी हैं। जवान बताते हैं कि उन्हें बाहर से डिप्लॉयमेंट पर लाया गया है, कई दिन से हल्द्वानी में डेरा डाले हुए हैं।

अतिक्रमण हटाने के लिए पुलिस ने 14 कंपनी पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की इजाजत मांगी थी। अभी इतनी फोर्स तो नहीं है, लेकिन बस्ती के आसपास पुलिस की बसें खड़ी हैं।
अतिक्रमण हटाने के लिए पुलिस ने 14 कंपनी पैरामिलिट्री फोर्स तैनात करने की इजाजत मांगी थी। अभी इतनी फोर्स तो नहीं है, लेकिन बस्ती के आसपास पुलिस की बसें खड़ी हैं।

स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर चढ़ते ही जहां तक नजर जाती है, वहां तक बस्ती ही दिखती है। ज्यादातर कच्चे झोपड़े, कुछ पक्के घर, तो वहीं कुछ 3-4 मंजिला इमारतें भी हैं। प्लेटफॉर्म से उतरकर जब हम पटरी पार करते हैं, तो एक स्लम नजर आता है। यही ढोलक बस्ती है, इस बस्ती में रहने वाले लोग ढोलक बनाते हैं।

कुमाऊं समेत देश के दूसरे हिस्सों में ये घूम-घूमकर ढोलक बेचते हैं। इनकी जिंदगी खानाबदोश है, लेकिन जब बनी हुई ढोलक खत्म हो जाती हैं तो फिर इसी बस्ती में आकर नई ढोलक तैयार करते हैं और फिर निकल पड़ते हैं।

ढोलक बस्ती की महिलाएं सड़कों पर कूड़ा बीनती हैं और इसी बहाने शहर भी साफ होता रहता है। इस बस्ती में घर के नाम पर 8 बाइ 10 की जगह पर लकड़ियों के सहारे टंगी बरसातियां और टीन की दीवारें। किचन के नाम पर एक टपरिया में छोटा सा कोना, कच्ची गलियों में ही किचन और बाथरूम का पानी बहा जा रहा है।

ढोलक बस्ती में 250 परिवार रहते हैं। इन सभी के पास राशन कार्ड, आधार कार्ड जैसे कागज तो हैं, लेकिन घर के कोई कागज नहीं है। हालांकि दावा है कि ढोलकिया समुदाय के लोग पिछले करीब 40 साल से यहां रह रहे हैं।

करीब 30-32 साल की रोशनी कूड़ा-कबाड़ बीनने का काम करती हैं। करीब एक हफ्ते तक लगातार कूड़ा बीनने के बाद उन्हें 300 रुपए मिलते हैं। रोशनी कहती हैं कि ‘हमारी पीढ़ियां यहीं रही हैं, अब पिछले कुछ साल से बीच-बीच में पुलिसवाले आकर डराते हैं। कहते हैं कि ये जगह खाली कर दो। वो परेशान करते हैं।’

मैं जिस स्कूल से पढ़ा, वो भी बुलडोजर से गिरा देंगे
ऐसा नहीं है कि ढोलक बस्ती में सब कुछ निगेटिव ही है। 26 साल के हदीस अली ढोलक बस्ती के पहले ग्रेजुएट हैं, वो ढोलक बनाने के साथ प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी करते हैं। हमने पूछा कि आप इस जगह पर रह रहे हैं, आपके पास कोई डॉक्युमेंट हैं? जवाब मिला- ‘घर होगा तभी तो कागज होगा ना, इस झोपड़े के क्या कागज बनेंगे।’

हदीस इंग्लिश मीडियम स्कूल से पढ़े हैं और जिस स्कूल से वो पढ़े हैं, वो भी अतिक्रमण की जद में है। वो पूछते हैं- ‘स्कूल गिराकर क्या मिल जाएगा।’

17 साल की प्रियंका चोपड़ा इसी बस्ती में रहती हैं। प्रियंका सुबह स्कूल जाती हैं और शाम को कचरा बीनती हैं। वो कहती हैं, ‘सब बोल रहे हैं कि बस्ती टूटने वाली है, रेलवे ये जगह खाली कराने वाला है। मैं यहीं पैदा हुई। अगर सरकार हमें यहां से भगा रही है, तो सरकार हमें कोई दूसरी जगह क्यों नहीं दे देती। अगर घर नहीं होगा, तो स्कूल कैसे जाएंगे। पढ़ेंगे कैसे।’

फिर गुस्से में कहती है- ‘अगर सरकार जबरदस्ती घर तोड़ेगी तो ईंट-पत्थर चला देंगे, हम अपने घर में बंद हो जाएंगे और सरकार की चाहे तो हमारे ऊपर से बुलडोजर चला दे।’

यहां सरकार ने सब कुछ दिया, अब छीनने पर तुले हैं
ढोलक बस्ती से निकल कर गफूर बस्ती होते हुए मैंने बनभूलपुरा के करीब 82 एकड़ की जगह को खंगाला, जहां अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई होनी है। बनभूलपुरा के लोगों की तरफ से कानूनी लड़ाई लड़ने वाले उजैर अहमद बताते हैं कि रेलवे ने 2017 में करीब 82 एकड़ की जमीन पर मार्किंग करके उसे अतिक्रमण बताया था।

उजैर अहमद कहते हैं- ‘केंद्र, राज्य और नगर निगम की कई सारी योजनाओं के तहत यहां किया गया काम जगह-जगह दिखता है। जिस केंद्र सरकार के रेलवे महकमे का इस जमीन पर दावा है, उसी केंद्र की अमृत योजना के तहत इलाके के वार्ड नंबर 24, 25, 30, 33 में नल की पाइपलाइन और सीवेज लाइन बिछाई गई हैं। RSS (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) के तहत चलने वाले स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर की इमारत भी यहीं नई बस्ती इलाके में है। अगर अतिक्रमण होगा, तो इस स्कूल को भी तोड़ा जाएगा। बाशिंदों के गुजर-बसर के लिए जो भी जरूरी सुविधाएं हैं, वो पहुंचाई गई हैं।’

मेरे पास 80 साल पुराने कागज हैं, कोई कैसे घर तोड़ देगा
लाइन नंबर 17 में रहने वाले मोहम्मद आसिफ अपनी मिठाई की दुकान पर सुबह-सुबह दूध खौला रहे हैं। मैंने पूछा- क्या आपका घर भी अतिक्रमण की जद में है? बोले- ‘हां, लेकिन मेरे पास घर के पक्के कागज है, कोई कैसे तोड़ देगा। मेरे दादा, मेरे पिता, मेरी मां का जन्म इसी जगह पर हुआ है। हम यहां 90 साल से रह रहे हैं। मेरे पास 80 साल पुराने कागज भी मौजूद हैं।

अंग्रेज हुकूमत ने 1940 में जो पट्टे जारी किए थे, मेरे पास उसके नक्शे समेत कागज हैं। मेरे पास तब से लेकर अब तक की लीज रिन्यूअल की रसीदें हैं। पानी, बिजली के बिल हैं और लीज ट्रांसफर के पेपर्स हैं। मैंने 20 अप्रैल 2022 को अपने घर के कागजात निकलवाए हैं। 2017 में मैंने 10 हजार रुपये फ्री होल्ड की मांग करते हुए भरे हैं। मैंने अपने दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में भेजे हैं। इंशाअल्लाह फैसला हमारे हक में ही होगा।’

कुछ इसी तरह की कहानी करीब 45 साल के मोहम्मद इमरान की है। उनके पास भी राज्य सरकार के फ्री होल्ड जमीन के कागज हैं। 2009 में राज्य सरकार ने नजूल नीति बनाई, जिसके मुताबिक लीज को रिन्यू नहीं किया जाएगा, उसकी जगह लोगों को फ्री होल्ड कराने के लिए कहा गया। मतलब, अगर जमीन आपके स्वामित्व में है तो सर्किल रेट के 40% रकम का भुगतान करके आप अपनी संपत्ति के कागजात बनवा सकते हैं। इमरान के पास राजस्व सरकार के ये सारे दस्तावेज हैं।

सरकारी स्कूल बने, घर बने, टॉयलेट बने और अब तोड़ देंगे
अतिक्रमण की जद वाले इलाके में ही 3 पार्षदों के घर भी आते हैं। अगर बुलडोजर चलेगा तो इनके घर भी तोड़े जाएंगे। शकील अहमद इंदिरा नगर वार्ड 3 के पूर्व पार्षद हैं, उनकी पत्नी वार्ड की मौजूदा पार्षद हैं। मैं उनसे मिलने पहुंचा तो उन्होंने दस्तावेजों से भरी दो फाइलें निकाल लीं। कुछ सरकारी कागजात और अखबारों की कतरनों से भरी फाइलें दिखाने लगे।

शकील अहमद बताते हैं- ‘केंद्र सरकारी की योजनाओं JNNURM (Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission) के तहत लोगों के पक्के घर बनाए गए, सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूल बनाया गया, स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनवाए गए।

अमृत जल योजना में इंदिरा नगर इलाके में 1 करोड़ रुपए का काम किया गया। केंद्र बनभूलपुरा में अपनी इतनी सारी योजनाएं लोगों के लिए चला रहा है, तो इस जगह को कैसे तोड़ सकता है, ये समझ नहीं आता है।’

ये थी हल्द्वानी से ग्राउंड रिपोर्ट की पहली किस्त। अब दूसरे पार्ट में हम हल्द्वानी और बनभूलपुरा के इतिहास को समझेंगे और कानूनी दांव-पेंच की गुत्थियां सुलझाएंगे। साथ ही समझेंगे कि अब इस मुद्दे में सरकार, कोर्ट और लोगों के पास क्या-क्या ऑप्शन बचे हैं।

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