उत्तराखंड के जोशीमठ के करीब 100 परिवारों के सिर से छत छिन गई। अब बारिश-बर्फबारी इनकी परीक्षा ले रही है। 2 जनवरी की रात घरों में दरारें आई थीं, जो अब 10 दिन बाद मोटी होती जा रही हैं।
बारिश होने पर इन घरों के गिरने का खतरा बढ़ गया है, प्रशासन ने चेतावनी भी जारी कर दी है। लोग अपने करोड़ों के घर टूटते देख रहे हैं। मदद के नाम पर अब तक सिर्फ कुछ लोगों को ही सरकार से 5 हजार का चेक मिला है।
11 जनवरी की रात से जोशीमठ में बारिश शुरू हो गई। शहर से करीब 5 किमी ऊपर बर्फबारी भी हुई है। घरों की दरारों में बारिश का पानी जाएगा, तो इनके गिरने का खतरा बढ़ जाएगा।
12 जनवरी की सुबह से सड़कों पर सामान भरे लोडिंग आते-जाते दिखने लगे। शंकराचार्य मठ के आसपास अलमारी, पलंग, बक्से, गैस सिलेंडर, गद्दे, बैग लेकर लोग भटकते दिखे। कोई सरकार की ओर से दिए कमरे में शिफ्ट होने जा रहा था, तो कोई रिश्तेदारों के घर।
मैं ऐसे ही लोगों से मिला और दो सवाल पूछे, बीते 10 दिन में क्या बदला और सरकार की तरफ से क्या मिला? लोगों ने जो कहा, आप भी पढ़िए…
लगा था सब ठीक हो जाएगा, अब उम्मीदें खत्म हो रहीं
मनोहरबाग में रहने वालीं नीलम परमार रेड क्रॉस लगे घर के बाहर बैठी मिलीं। मैंने पूछा- बीते 10 दिन में क्या-क्या बदल गया?
जवाब मिला- शुरुआत में तो लगा कि सब नॉर्मल है, ठीक हो जाएगा। रात को (11 जनवरी) बारिश हुई तो ये सब नीचे बैठ गया (इशारे से घर की दरारें दिखाते हुए)। हमने पॉलीथिन से बचाने की कोशिश की, लेकिन पानी दरारों में चला गया है। घर के नीचे बहुत बड़ा पत्थर है। हमें लगता था कि हमारा मकान तो पत्थर पर टिका है, कहीं नहीं जाएगा। अब नीचे गड्ढा हो गया है, पत्थर ने जगह छोड़ दी है।
मैंने पूछा- बारिश की वजह से समस्या कितनी बढ़ी है? सवाल सुनकर नीलम के चेहरे पर उदासी और गहरा गई। बोलीं- बारिश ने चिंता बढ़ा दी है। घर में कितना सामान होता है। छत पर रखा था, सब भीग चुका है। आप बताइए, घर में क्या छोड़ें और क्या लेकर जाएं। घर में तो सारी चीजें जरूरी होती हैं।
10 दिन में दरारें कितनी बढ़ गईं, सरकार की तरफ से क्या मदद मिली?
नीलम ने कहा- दरारें तो उधर खेतों से होकर (दूर उंगली से जगह बताते हुए) घर तक फैल गई हैं। घर के दोनों तरफ दरारें हैं। सरकार लोगों को तो कैंप में शिफ्ट करवा रही है, लेकिन सामान का कुछ नहीं है।
4-5 दिन पहले मुख्यमंत्री आए थे, मुझे नहीं पता कि उन्होंने क्या कहा, क्या नहीं कहा। मेरे घर में 35 कमरे हैं। सरकार की तरफ से फिलहाल रहने के लिए दो कमरे मिले हैं। परिवार में 8 मेंबर हैं। बच्चों का सोचो, किस तरह पढ़ेंगे। दिन-रात हम मौत के मुंह में जा रहे हैं।
मैंने सवाल किया- क्या इतना बड़ा मकान होम स्टे के लिए बनवाया था? नीलम तुरंत बोलने लगीं– नहीं, अपने रहने के लिए बनाया था। ये घर हमारा सपना था। अब मिट्टी में तब्दील हो रहा है।
इतना सामान है, कहां ले जा रहे हैं? जवाब में नीलम के बगल में खड़ीं गीता परमार बोलने लगती हैं। हमने किराए पर कमरा ले रखा है।
सरकार ने कुछ नहीं दिया?
सरकार ने कहा कि मैडम आपके घर पर रेड क्रॉस लग गया है। आप यहां मत रहो, आपकी जान को खतरा है। न सामान की बात की, न जानवरों की बात की। बस कहा कि चले जाओ यहां से।
फिर नीलम बोलने लगती हैं- भैया उन्होंने कहा कि आपको 4 हजार कमरे का दे रहे हैं। तब घर का सामान कहां जाएगा। अभी 10 कमरों में सामान भरा है। एक कमरे में कैसे एडजस्ट होगा। आप हमें बताइए। अगर वहां सामान भर देंगे तो हम कहां जाएंगे।
इसके बाद हमने गीता परमार से बात शुरू की। वे कहती हैं- हमारा 20 कमरों का मकान है और परिवार में 8 लोग हैं। सरकार से एक कमरा मिला है। 8 लोग उसमें रहते हैं। खाना बनाने का कोई इंतजाम नहीं है। एक ही वॉशरूम है। वहां सिर्फ रात गुजारने के लिए जा रहे हैं, ताकि रात में कुछ हो जाए, तो जान बची रहे। जहां रुके हैं, वह जगह भी सेफ नहीं है।
अगर बारिश हो गई तो क्या होगा?
गीता का जवाब था- अभी तो बारिश कम ही हुई है। अगर बारिश और बर्फबारी होती है, तो यहां भयंकर त्रासदी होने वाली है। हम सोच भी नहीं सकते उसके बारे में। सरकार ने बहुत वक्त गंवा दिया है। सरकार को अंदाजा नहीं है कि कितनी बड़ी त्रासदी होने वाली है।
अभी तो मीडिया है, रिश्तेदार आ रहे हैं। रोज-रोज तो नहीं आएंगे। उसके बाद तो हम अकेले पड़ जाएंगे। 10 दिन हो गए, होटल में कितने दिन रहेंगे। अब तो बोल-बोलकर थक गए। कितनी बार बोलेंगे, कितना रोएंगे, कितना चिल्लाएंगे। हम डिप्रेशन में चले गए हैं। एक-एक चीज दिखाना आप। हम पर जो गुजर रही है, वही बोल रहे हैं।
इसके बाद मैं मनोहरबाग में ही रजनी नौटियाल के घर पहुंचा। रजनी प्राइवेट स्कूल में जॉब करती हैं। घर में तीन लोग हैं। 4 कमरे का मकान है।
मैंने पूछा- सरकार ने रहने के लिए जगह दी है, वह कितनी बड़ी है? रजनी कहती हैं- गेस्ट हाउस में एक रूम है। वह भी कुछ दिन के लिए मिला है।
फिर अपना घर दिखाने लगती हैं। दीवारें दिखाते हुए कहती हैं- पहले यहां बाल बराबर दरार थी। तब भी मैं मशाल जुलूस में, आंदालनों में सबसे आगे थी। मैं लोगों के लिए खड़ी थी। दो तारीख के बाद रातोंरात ऐसा हुआ। देखिए, दरारें बढ़ती गईं। अब पूरे घर में है।
इस घटना के बाद अपना और परिवार का फ्यूचर कैसे देख रही हैं? जवाब- बिल्कुल खत्म, निल, अंधकार। कहां है हमारा फ्यूचर, कहां जाएं हम। रिश्तेदारों के घर जाएं। वो खुद इसी कंडीशन में हैं। कौन पालेगा हमें। सबकी अपनी जिम्मेदारियां हैं। कौन हमें रखेगा, जब मेरे पास जॉब नहीं रहेगी, तब कोई मुझे पालेगा, कितने दिन पालेगा, एक महीने, दो महीने, एक साल। फिर, क्या है मेरा भविष्य, मेरे बच्चों का भविष्य।
रजनी अपना किचन दिखाती हैं। यहां घर एक तरफ झुक गया है। रजनी कहती हैं कि आप कल आना, दरारें और बड़ी मिलेंगी। अगर बारिश हो गई तो मलबा इधर ही आएगा। ऊपर कुछ मकान हैं, जो हाई रिस्क जोन में हैं। हमारा घर नीचे है। अगर वे गिरे तो हमारे ऊपर ही असर होगा।
इसके बाद मैं सरकार के बनाए राहत केंद्र पहुंचा। यहां मुझे हेमलता रावत मिल गईं। माउंट व्यू में घर है, लेकिन खाली करना पड़ा। परिवार में 8 लोग हैं। एक कमरा मिला है। 3 बेड, अलमारी और सोफा रखने के बाद कमरे में जगह ही नहीं बची। बाकी सामान रिश्तेदारों के घर में रखा है। हेमलता 3 जनवरी से यहीं हैं। दो पोते पढ़ाई कर रहे हैं। बेटे की राशन की दुकान है। बहू की तबीयत खराब है, वह देहरादून में है।
हेमलता कहती हैं- मैं अकेली यहां पड़ी हूं। जितनी कमाई थी, सब मकान में लगा दी थी। यहां खाना-पीना मिल रहा है। रहने को थोड़ी मदद हो जाए बस। बच्चों का ही देखना है, कैसे रहेंगे, क्या करेंगे।
हेमलता के सवाल लेकर मैं निकल आया, क्योंकि उनके जवाब किसी के पास नहीं हैं।
रास्ते में पीठ पर भारी बैग, हाथ में दो थैले लेकर जातीं महेश्वरी दिखीं। महेश्वरी का 8 कमरे का मकान है। परिवार में 5 लोग हैं। सरकार ने एक कमरा दिया था, उसमें सामान भी नहीं बना। इसलिए दूसरे घर में अपना इंतजाम कर लिया। महेश्वरी पॉलिटिकल साइंस से MA कर रही हैं।
सरकार से शिकायत पर महेश्वरी कहती हैं- सरकार ने कुछ तो किया ही है, सरकार भी कितना करेगी। इतना बड़ा जोशीमठ शहर है। सरकार से ज्यादा लोगों की गलती है। 1990 में कितना बड़ा था, और अब कितना बड़ा हो गया।
मुख्यमंत्री के आने पर कहती हैं कि आने-जाने से क्या फर्क पड़ता है। जरूरी है लोगों के दर्द को समझना। हमारे घर के बगल में एक बूढ़ी अम्मा हैं। वे तो चल भी नहीं सकतीं। उनका क्या होगा।
एक झटका लगा और घर की दीवार टूट गई, रात खेत में काटी
बांकेलाल और कल्पी देवी घर छोड़कर 10 दिन से गुरुद्वारे में रह रहे हैं। बांकेलाल बताते हैं- 2 तारीख को बहुत बड़ा झटका लगा और घर की दीवार टूट गई। हम दूसरे कमरे में थे। इसके बाद खेत में चले गए। वहीं रात काटी। पहले छोटी दरार थी, 2 तारीख को इतनी हो गई कि आदमी निकल जाए।
परिवार में 6 लोग हैं। 6 कमरे का घर था। सरकार से यही कहना है कि हमारा घर बनाकर दीजिए या घर की कीमत दीजिए। अभी तो कुछ नहीं मिला। 5 हजार का एक चेक मिला है। अभी गुरुद्वारे में रह रहे हैं। अगर यहां से हटा दिया तो किराए पर रहेंगे। काम कोई है नहीं। उम्र हो गई है, इसलिए काम बनता भी नहीं।
भास्कर की खबर के बाद जोशीमठ के पास ड्रिलिंग बंद
जोशीमठ से 3 किमी दूर चल रहा ड्रिलिंग का काम अब बंद हो गया है। शहर के आसपास सभी प्रोजेक्ट रोकने के मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद यहां पहाड़ खोदे जा रहे थे। भास्कर ने 12 जनवरी को इस बारे में बताया था। (पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें) कंस्ट्रक्शन कंपनी ने कहा था कि उनके पास प्रोजेक्ट रोकने का आदेश नहीं आया है। SDM कुमकुम जोशी से बात की तो उन्होंने कहा कि ये बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन का प्रोजेक्ट है, नहीं रोक सकते।
हालांकि BRO के कर्नल मनीष कपिल ने दावा किया कि हमने तो काम बंद करने के लिए कह दिया था। यहां काम कर रही कंपनी SS कंस्ट्रक्शन के प्रोजेक्ट मैनेजर बीएल टम्टा ने गुरुवार को बताया कि ‘डायरेक्टर साहब का कॉल आया था कि अभी काम बंद कर दो-तीन दिन के लिए’। इसके बाद तीनों जगहों पर ड्रिलिंग बंद हो गई है।
जोशीमठ में जमीन धंसने से अब तक 760 मकानों में दरारें आ चुकी हैं। 128 घर अनसेफ जोन में हैं। पढ़िए ये रिपोर्ट...
1. रोते हुए लोग बोले- घर अचानक हिलने लगता था, आंखों के सामने सब तबाह
‘रात को अचानक लगा कि घर हिल रहा है, पूरा घर टेढ़ा हो गया। दीवारों पर मोटी-मोटी दरारें आ गईं। घर के नीचे से पानी बहने की आवाज आ रही है। मेरा 9 कमरे का घर रहने लायक नहीं बचा। कब गिर जाए, कोई भरोसा नहीं है।’ जोशीमठ शहर में रहने वालीं कल्पेशवरी पांडे ये बताते हुए रोने लगती हैं। शहर में हर तरफ जोर-जोर से रोती-बिलखती महिलाएं दिखती हैं, जो सिर पकड़े अपने घरों को टूटते देखने को मजबूर हैं।
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2. एक्सपर्ट बोले- जोशीमठ को धंसने से कोई नहीं बचा सकता, सुरंग की वजह से खोखला हो गया पहाड़
ये किस्सा उत्तराखंड में गढ़वाल के ऊंचे पहाड़ों के भीतर का है। तारीख थी 24 दिसंबर 2009। एक बड़ी टनल बोरिंग मशीन (TBM) अचानक फंस गई। सामने से हजारों लीटर साफ पानी बहने लगा। महीनों बीत गए, न पानी का बहना रुका और न TBM चालू हुई। इस मशीन ने प्रकृति के बनाए एक बड़े जल भंडार में छेद कर दिया था। धीरे-धीरे ये जल भंडार खाली हो गया। इससे इलाके के कई छोटे झरने और पानी के स्त्रोत सूख गए। एक्सपर्ट का कहना है कि बिना पानी जोशीमठ के नीचे के जमीन भी सूख गई है।
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