गुजरात के वडोदरा की रहने वालीं निहार अग्रवाल लंदन से मास्टर्स करके भारत आईं तो देखा कि यहां लोग प्लास्टिक वेस्ट को लेकर अवेयर नहीं हैं। इधर-उधर कहीं भी लोग कचरा फेंक देते हैं। इससे एनवायरनमेंट को नुकसान तो होता ही है, जीव-जंतुओं की जान को भी खतरा रहता है। तब उनके मन में ख्याल आया कि कुछ ऐसी पहल करनी चाहिए, जिससे लोग अवेयर होने के साथ-साथ प्लास्टिक वेस्ट फ्री मूवमेंट में साथ भी दें।
साल 2018 में उन्होंने वेस्ट हब मॉडल पर काम करना शुरू किया। इसमें गांव के लोग खुद ही वेस्ट कलेक्ट करते हैं और बदले में निहार उन्हें वेस्ट से रीसाइकल्ड प्रोडक्ट यानी फर्नीचर, टेबलवेयर, बैग, पर्स जैसी चीजें उपलब्ध कराती हैं। इतना ही नहीं, इसके जरिए उन्होंने 5 हजार लोगों को रोजगार से भी जोड़ा है।
28 साल की निहार मूल रूप से राजस्थान की रहने वाली हैं। उनके पिता गुजरात में सर्विस करते थे, लिहाजा उनका ज्यादातर वक्त गुजरात में ही गुजरा। साल 2014 में उन्होंने दुबई से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। फिर एक साल तक जॉब की। इसके बाद मास्टर्स की पढ़ाई के लिए वे लंदन चली गईं और साल 2016 में वापस भारत लौटीं।
शुरुआत से ही एजुकेशन में दिलचस्पी रही
भास्कर से बात करते हुए निहार बताती हैं कि शुरुआत से ही मेरे मन में समाज के लिए कुछ बेहतर करने का इरादा था। इसलिए अच्छा-खासा ऑफर मिलने के बाद भी मैंने नौकरी नहीं की। भारत आने के कुछ महीने बाद मेरी शादी हो गई। पति अन्वेषा फाउंडेशन नाम से एक NGO चलाते थे। जिसमें वे एजुकेशन सेक्टर के लिए काम करते थे। चूंकि मैं एजुकेशन से मास्टर्स की थी, इसलिए पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में मेरी ज्यादा दिलचस्पी थी। मैं भी उनके साथ जुड़ गई और बच्चों को एजुकेशन प्रोवाइड कराने में मदद करने लगीं।
वे कहती हैं कि स्टूडेंट्स के लिए सिर्फ स्कूली एजुकेशन काफी नहीं है। उन्हें वोकेशनल लेवल पर भी ट्रेनिंग की जरूरत होती है। कई स्टूडेंट्स ऐसे होते हैं जो ड्रॉप आउट हो जाते हैं तो कई बच्चे ऐसे होते हैं, जिन्हें किन्हीं कारणों से पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। ऐसे में उन स्टूडेंट्स को स्किल बेस्ड एजुकेशन की जरूरत होती है, जिससे कि वे पढ़ाई पूरी करने के बाद खुद के लिए इनकम भी जनरेट कर सकें। इसी सोच के साथ हमने वोकेशनल ट्रेनिंग का प्रोग्राम शुरू किया। इसमें हम स्टूडेंट्स को इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल और फैब्रिकेशन से जुड़े कामों की ट्रेनिंग देने लगे।
हमारे ट्रेनिंग सेंटर से निकले बच्चे कामयाब हुए तो आया वेस्ट हब मॉडल बनाने का आइडिया
निहार कहती हैं कि हमारे ट्रेनिंग सेंटर में ऐसे कई स्टूडेंट्स थे जो काफी गरीब थे। कई स्टूडेंट्स ऐसे थे जो ड्रॉप आउट थे। ये लोग जब ट्रेनिंग पूरी करके निकले तो खुद का काम करने लगे। कोई फैब्रिकेशन से जुड़ा काम करने लगा तो कोई इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल फील्ड में नौकरी करने लगा। यह मेरे लिए काफी पॉजिटिव रिस्पॉन्स था। इससे हिम्मत मिली और मन में ख्याल आने लगा कि अब कुछ ऐसा काम किया जाए जिससे बड़े लेवल पर जॉब क्रिएट हो, लोगों को उनकी जीविका चलाने में मदद मिल सके।
वे बताती हैं कि उसी वक्त मुझे प्लास्टिक वेस्ट का इश्यू ध्यान में आया। शहरों में और पढ़े-लिखे लोगों को बीच यह इश्यू कॉमन था। कई लोग प्लास्टिक वेस्ट रीसाइकिल करने को लेकर काम भी कर रहे हैं, लेकिन गांवों में ज्यादातर लोग इससे अनजान हैं। इतना ही नहीं उन्हें अवेयर करना भी मुश्किल टास्क है। मुझे लगा कि इन लोगों को न सिर्फ अवेयर करने की जरूरत है, बल्कि ट्रेनिंग देकर रोजगार से भी जोड़ने की जरूरत है। जब तक यह मुहिम लोगों से नहीं जुड़ेगी तब तक लोग भी इससे नहीं जुड़ेंगे।
गांव-गांव गए, लोगों को अपने साथ जोड़ा
अपनी मुहिम के बारे में बात करते हुए निहार कहती हैं कि प्लास्टिक वेस्ट से निजात पाने के लिए हमने गांव-गांव जाकर मुहिम शुरू की। लोगों को अवेयर करना शुरू किया। हमने लोगों से कहा कि आप लोग इधर-उधर कचरा फेंकने की बजाय एक जगह इकट्ठा करें। दूसरे लोगों को भी ऐसा करने के लिए मोटिवेट करें। इस कचरे से जो भी प्रोडक्ट बनेंगे, उससे आपके गांव के विकास के काम होंगे। जैसे गांव में कोई गरीब है तो हम उसे जरूरत की चीजें प्रोवाइड करेंगे। स्कूलों में बच्चों के लिए टेबल और चेयर प्रोवाइड कराएंगे। इससे पूरे गांव का फायदा होगा।
वे कहती हैं कि इस आइडिया से गांव वाले भी खुश हुए और हमारे साथ काम करने के लिए राजी हो गए। धीरे-धीरे हर घर से लोग कचरा कलेक्ट करके एक जगह इकट्ठा करने लगे।
कैसे करती हैं काम? क्या है वेस्ट हब मॉडल?
निहार कहती हैं कि फिलहाल हम लोग अहमदाबाद, वडोदरा, हलोल और आणंद में काम कर रहे हैं। यहां लोग अपने-अपने घरों से वेस्ट कलेक्ट करने के बाद एक जगह इकट्ठा करते हैं। उसके बाद उसके सेग्रिगेशन का काम होता है। यानी अलग-अलग टाइप के वेस्ट को सेपरेट किया जाता है। फिर हम वेस्ट रीसाइकिल करने वाले लोगों को वहां भेजते हैं। वे वहां से वेस्ट कलेक्ट करने के बाद अपने प्रोडक्शन यूनिट में लाते हैं और वहां उससे तरह-तरह के प्रोडक्ट तैयार करते हैं। इसके बाद हमारी टीम वापस उन प्रोडक्ट्स को कलेक्ट करती है और गांव में जाकर लोगों को प्रोवाइड कर देती हैं। यानी जो हमें वेस्ट प्रोवाइड कराते हैं, हम वापस उन्हें उससे बने प्रोडक्ट देते हैं।
वे कहती हैं कि कई स्कूलों में हमने जरूरत की चीजें यानी टेबल, चेयर जैसी चीजें प्रोवाइड कराई हैं। इसी तरह गांव के उन लोगों को हमने फर्नीचर उपलब्ध कराएं हैं जो गरीब हैं। धीरे-धीरे हम अपना दायरा बढ़ा रहे हैं। तीन गांवों को हमने गोद भी लिया है। उन गांवों को जिन चीजों की जरूरत होती है, हमारी टीम मुहैया कराती है। इसके साथ ही जो लोग रीसाइकिलिंग और प्रोडक्ट बनाने का काम करते हैं, उन्हें हम सैलरी प्रोवाइड करते हैं। इससे उनकी अच्छी आमदनी हो रही है। इसमें ज्यादातर वैसे लोग हैं, जिन्हें ट्रेनिंग भी हमने ही दी हैं।
बड़े लेवल पर लोगों को मिला रोजगार
निहार कहती हैं कि अभी तक हमने 7500 स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग दी है। ये सभी लोग कहीं न कहीं नौकरी कर रहे हैं या खुद का कोई काम कर रहे हैं। इसके अलावा हमारे साथ 4 हजार ऐसे लोग हैं जो वेस्ट रीसाइकिलिंग के काम से जुड़े हैं। उन्हें भी अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। वे कहती हैं कि हम न तो कोई प्रोडक्ट तैयार करते हैं और न ही हमारे पास कोई प्रोडक्शन यूनिट है। हम लोग बस एक इकोसिस्टम तैयार करना चाहते हैं। ताकि लोग अवेयर भी हो सकें और उन्हें रोजगार भी मिल सके।
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