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आज की पॉजिटिव खबर:आदिवासी इलाके में रोजगार नहीं था, 2 साल पहले स्टार्टअप शुरू किया; आज वहां महिलाएं बांस से ज्वेलरी बनाकर लाखों कमा रहीं, फोर्ब्स में मिली जगह

नई दिल्ली2 वर्ष पहलेलेखक: इंद्रभूषण कुमार
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राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली सलोनी सचेती बांसुली की फाउंडर हैं। 2 साल पहले उन्होंने गुजरात की आदिवासी महिलाओं के साथ मिलकर इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी। वे बांस की मदद से ज्वेलरी और होमडेकोर आइटम्स बनाकर देशभर में मार्केटिंग कर रही हैं। सालाना 15 लाख रुपए उनका टर्नओवर है। 35 से ज्यादा महिलाओं को उन्होंने रोजगार दिया है। हाल ही में फोर्ब्स अंडर 30 की लिस्ट में भी उन्हें जगह मिली है। आइए उनके सफर की कहानी उन्हीं की जुबानी पढ़ते हैं...

मैं सलोनी सचेती, राजस्थान के अलवर जिले में पली-बढ़ी, फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से बैचलर्स और BHU से लॉ की डिग्री हासिल की। इसके बाद मेरी जॉब लग गई, लेकिन काम में मन नहीं लग रहा था। मैं सोशल सेक्टर में जाना चाहती थी। अलग-अलग जगहों पर मैंने इस सेक्टर में नौकरी की तलाश भी शुरू कर दी, लेकिन इसी बीच मुझे SBI की एक फेलोशिप के बारे में जानकारी मिली। जिसमें रूरल और रिमोट एरिया में जाकर लोगों के बीच काम करना था। मेरी इसमें दिलचस्पी बढ़ी और मैंने फौरन फॉर्म भर दिया। कुछ दिनों बाद मेरा इंटरव्यू हुआ और मैं सिलेक्ट भी हो गई।

ये भी अजीब संयोग था कि जिस दिन मुझे जॉइन करना था, उसी दिन मेरी सगाई की तारीख फिक्स थी। मन में अगर-मगर को लेकर कई तरह के सवाल थे, लेकिन दोनों तरफ के परिवार के लोगों ने मेरा साथ दिया और कहा कि पहले अपनी ड्रीम पूरी करो, सगाई और शादी तो कभी भी हो जाएगी। इसके बाद मैं पुणे चली गई, जहां से 13 महीने के प्रोजेक्ट वर्क के लिए मुझे गुजरात के डांग जिले में भेजा गया।

30 साल की सलोनी सचेती राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली हैं। वे आदिवासी महिलाओं के साथ मिलकर बांस से हैंडीक्राफ्ट आइटम्स तैयार करती हैं।
30 साल की सलोनी सचेती राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली हैं। वे आदिवासी महिलाओं के साथ मिलकर बांस से हैंडीक्राफ्ट आइटम्स तैयार करती हैं।

डांग, गुजरात का सबसे छोटा जिला है, 90 फीसदी से ज्यादा आदिवासी आबादी। चारों तरफ घने जंगल, पहाड़, कल-कल बहती नदियां और ऊपर से झर झर करते झरने। मन आह्लादित हो उठा। कुदरत ने यहां खूबसूरती लुटाने में शायद ही कोई कसर छोड़ी हो, लेकिन इन सब के बीच लोगों की गरीबी और तंगहाली मन को कचोट रही थी। यहां लोगों के लिए खेती ही सबकुछ था, लेकिन पहाड़ी इलाका और बंजर जमीन होने की वजह से उपज न के बराबर ही होती थी। ज्यादातर लोग पलायन के लिए मजबूर थे। बच्चों और महिलाओं की स्थिति तो और भी नाजुक थी। उनके पास पहनने को भी ढंग के कपड़े नहीं थे।

मुझे यहां रहकर काम करना था। लोगों की लाइफ को बेहतर बनाना था। टास्क चैलेंजिंग और मुश्किल था, लेकिन उम्मीद की एक किरण भी थी, जो यहां के लोगों के हुनर में साफ झलकती थी। दरअसल यहां बांस की खेती खूब होती है, हर जगह आपको बांस देखने को मिल जाएंगे। इससे यहां की महिलाएं और पुरुष चटाई, टोकरी जैसी तरह-तरह की चीजें बना रहे थे, लेकिन वे इसे कॉमर्शियल लेवल पर नहीं ले जा रहे थे, उनके भीतर इस तरह की कोई खास दिलचस्पी भी नहीं थी। उन्हें एक दिन का खाने-पीने को मिल जाए, काफी था, इससे ज्यादा का वे नहीं सोचते थे।

इसलिए मैंने तय किया कि इनके हुनर को रंग दिया जाए, पहचान दी जाए। इनका हुनर ही इन्हें आगे बढ़ा सकता है और इनकी लाइफ को बेहतर बना सकता है। मैंने गांव के लोगों से बात की, शुरुआत में ज्यादातर लोग काम करने के लिए तैयार नहीं हुए, सिर्फ 4-5 महिलाएं ही राजी हुईं। इन्हीं महिलाओं के साथ मैंने बांस से ज्वेलरी बनाने की शुरुआत की। हमारा कॉन्सेप्ट एकदम से नया तो नहीं था, नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में इस तरह के प्रोडक्ट पहले से बन रहे थे, लेकिन हमारा काम यूनीक था, हमारी ज्वेलरी यूनीक थी।

सलोनी के पास 100 से ज्यादा वैराइटी ज्वेलरी की हैं। हर ओकेजन और इवेंट के हिसाब से उनके पास ज्वेलरी की लिस्ट है।
सलोनी के पास 100 से ज्यादा वैराइटी ज्वेलरी की हैं। हर ओकेजन और इवेंट के हिसाब से उनके पास ज्वेलरी की लिस्ट है।

हमने ऐसी ज्वेलरी तैयार की जो क्रिएटिव और खूबसूरत होने के साथ टिकाऊ भी हो, जल्दी खराब नहीं हो। ताकि लोग अपने साथ इसे लंबे समय तक संभाल के रख सकें। इसलिए इसकी लकड़ियों को हमने फिटकरी के पानी के साथ ट्रीट करना शुरू कर दिया। जिसका हमें पॉजिटिव रिस्पॉन्स भी मिला। जो भी हमारा प्रोडक्ट देखता था, वह इसका दीवाना हो जाता था, मेरे कई दोस्त और मुझे जानने वाले इसकी डिमांड करने लगे। जल्द ही इसकी रौनक गुजरात के बाहर भी दिखने लगी।

जो लोग और महिलाएं काम से जुड़ी थीं, उनकी अच्छी कमाई होने लगी। इसे देखकर गांव के दूसरे लोग भी हमसे जुड़ने लगे। उन्हें भी इस काम में उम्मीद की किरण नजर आने लगी। एक साल के भीतर ही इलाके की तस्वीर बदल गई। जिन लोगों के पास कल तक अपना घर नहीं था, गाड़ी नहीं थी, खाने-पीने तक की भी तंगी थी। उनका जीवन गुलजार हो गया, अच्छी आमदनी होने लगी, बच्चे स्कूल जाने लगे, महिलाएं आत्मनिर्भर हो गईं, घर मकान दुरुस्त हो गया। यह सबकुछ संभव हुआ यहां के लोगों की मेहनत और हुनर की बदौलत। मैंने तो बस रंग भरा।

इन महिलाओं के साथ काम करते-करते पता नहीं कब 13 महीने गुजर गए। मेरा प्रोजेक्ट वर्क पूरा हो गया और मैं वापस राजस्थान आ गई। इसी बीच मेरी शादी भी हो गई, लेकिन डांग के लोगों की चिंता मुझे सता रही थी। उनके साथ मेरा अपनापन जुड़ गया था। मैं नहीं चाहती थी कि उन्हें खुद से अलग करूं। इसलिए तय किया कि अब इस काम को नए सिरे से प्रोफेशनल लेवल पर शुरू करूंगी। जिससे मेरे करियर को भी पंख लगें और इन महिलाओं को भी रोजगार मिल सके।

सलोनी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही लेवल पर अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करती हैं। देशभर से उन्हें बड़ी संख्या में डिमांड आती है।
सलोनी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही लेवल पर अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करती हैं। देशभर से उन्हें बड़ी संख्या में डिमांड आती है।

इसके बाद मैं फिर से डांग गई, जिन महिलाओं के साथ पहले काम करती थी, उनसे मिली, उन्हें फिर से अपने काम के साथ जोड़ा। इस बार उन्हें प्रोफेशनल लेवल पर ट्रेनिंग दी, किस तरह नए और क्रिएटिव प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं, इसकी जानकारी दी। इंटरनेट के माध्यम से उन्हें अलग-अलग तरह के वीडियो दिखाए ताकि वे और अधिक अपनी आर्ट को निखार सकें। इसके बाद साल 2019 में बांसुली नाम से मैंने अपने स्टार्टअप की शुरुआत की और इन महिलाओं की मदद से न सिर्फ ज्वेलरी बल्कि होमडेकोर के आइटम्स भी बनाना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे वक्त बीता इनके काम में निखार आता गया। ये महिलाएं अब खुद से ही क्रिएटिव प्रोडक्ट तैयार करने लगीं।

जब हमारे पास प्रोडक्ट्स की अच्छी खासी लिस्ट हो गई, तब हमारे सामने सवाल था कि इसकी मार्केटिंग कैसे की जाए। अब तक का जो हमारा अनुभव था और जो लोगों का ट्रेंड था उस लिहाज से हमें सोशल मीडिया सबसे बेहतर प्लेटफॉर्म लगा। फिर क्या था बांसुली नाम से फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पेज बनाए और अपने प्रोडक्ट की फोटो-वीडियो अपलोड करने लगी। हमारा पूरा फोकस क्रिएटिविटी और क्वालिटी पर था, इसलिए लोगों का बेहतर रिस्पॉन्स भी मिलने लगा। देश के अलग-अलग हिस्सों से हमें ऑर्डर मिलने लगे।

इसके बाद हमने अलग-अलग शहरों में प्रदर्शनी में अपना स्टॉल लगाना भी शुरू कर दिया। कुछ ही महीनों में अच्छी खासी आमदनी हम जनरेट करने लगे। इतना ही नहीं इस साल फोर्ब्स अंडर 30 की लिस्ट में भी हमारे काम को जगह मिली है, मेरा नाम छपा है।

सलोनी कहती हैं कि बांस से बना सामान काफी टिकाऊ और मजबूत होता है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिहाज से भी यह फायदेमंद है।
सलोनी कहती हैं कि बांस से बना सामान काफी टिकाऊ और मजबूत होता है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिहाज से भी यह फायदेमंद है।

अब मैंने जयपुर में अपना ऑफिस खोल लिया है। मार्केटिंग का सारा काम यहीं से होता है। जबकि मैन्युफैक्चरिंग डांग जिले में होती है। वहां महिलाएं हमारे लिए प्रोडक्ट तैयार करती हैं और वापस जयपुर भेज देती हैं। मैं खुद भी हर महीने डांग जाती रहती हूं। डांग से सामान लाने के बाद हम उसकी क्वालिटी टेस्ट करते हैं और फिर लोगों की डिमांड के मुताबिक हम उनके घर प्रोडक्ट की डिलीवरी करते हैं। इसके लिए हमने कई कूरियर कंपनियों से टाइअप किया है।

फिलहाल हमारे साथ 35 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं और 200 से ज्यादा अलग-अलग वैराइटी के बांस से बने प्रोडक्ट बना रहे हैं। इसमें हर इवेंट और ओकेजन के हिसाब से ज्वेलरी के साथ ही लैपटॉप स्टैंड, लाइट स्टैंड, राखी, दीए, किचन और होमडेकोर के ढेर सारे आइटम्स शामिल हैं। पिछले साल हमारा टर्नओवर 15 लाख रुपए रहा है। इस साल और अधिक होने की उम्मीद है। जल्द ही हम गुजरात के अलावा उन राज्यों में भी अपना काम शुरू करने वाले हैं, जहां बांस की अच्छी खेती होती है। इस सेक्टर में करियर और कमाई के लिहाज से ग्रोथ के लिए काफी स्कोप है। कई नए स्टार्टअप इस सेक्टर में आगे आ रहे हैं।

सलोनी सचेती बांसुली की फाउंडर हैं। दैनिक भास्कर के पत्रकार इंद्रभूषण मिश्र से उन्होंने अपनी स्टार्टअप की कहानी साझा की है।

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