आज जब आखिरकार दो साल बाद दुनिया बिना पाबंदियों के नए साल का जश्न मनाने की तैयारी कर रही है, चीन की धरती से फिर कोरोना का खतरा दुनिया भर में फैल रहा है।
क्या चीन में कोरोना बाकी दुनिया से अलग है? क्यों हर बार कोरोना का नाम आते ही चीन का नाम अपने आप सामने आ जाता है? क्या चीन पूरी दुनिया से कुछ छिपा रहा है? अमेरिकी सीनेट कमेटी की रिपोर्ट कहती है…हां।
दरअसल, जनवरी, 2021 में WHO की तरफ से नियुक्त स्वतंत्र इनवेस्टिगेटर्स की एक टीम ने ये अध्ययन शुरू किया था कि कोरोना वायरस आखिर आया कहां से। उस वक्त भी ये बात सामने आई थी कि चीन शुरुआती मरीजों का रॉ डेटा छिपा रहा है।
ये आशंका भी उठी थी कि वुहान की लैब में किसी एक्सीडेंट की वजह से कोरोना वायरस फैला था। इस बात की जांच स्वतंत्र इनवेस्टिगेटर्स की टीम ने की थी। कोई ठोस नतीजा नहीं निकला था, मगर इस आशंका से इनकार भी नहीं किया गया था।
मार्च, 2021 में इस टीम की रिपोर्ट आने के करीब एक साल बाद WHO ने जांच को अगले स्तर पर ले जाने के लिए एक एडवाइजरी ग्रुप का गठन किया। इसकी प्राथमिक रिपोर्ट में भी लैब एक्सीडेंट की आशंका की जांच की जरूरत बताई गई है।
लेकिन अब तक इस पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई है। अमेरिकी सीनेट की हेल्थ, एजुकेशन, लेबर एंड पेंशन्स पर बनी कमेटी की अक्टूबर, 2022 में आई अंतरिम रिपोर्ट भी यही कहती है कि चीन इस मामले में दुनिया से तथ्य छिपा रहा है।
जानिए, आखिर दुनिया से क्या छिपा रहा है चीन…और कितना खतरनाक हो सकता है चीन का ये राज।
समझिए, कोरोना के ओरिजिन की जांच की क्रोनोलॉजी…कैसे चीन इसमें बन रहा बाधा
वुहान से निकला वायरस…मगर चीन ने इसकी गंभीरता नहीं बताई
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस के सबसे पहले मामले 2019 में चीन के वुहान में सामने आए थे। यहां से यह वायरस पूरी दुनिया में फैला।
इन शुरुआती दिनों में चीन ने कभी ये नहीं बताया कि वायरस कितनी तेजी से फैलता है और इसकी वजह से कैसी दिक्कतें हो सकती हैं। जब दूसरे देशों में और खासतौर पर यूरोप में इसके मरीज तेजी से बढ़ने शुरू हुए तो दुनिया को इस वायरस की गंभीरता का पता चला।
चीन ने कहा- वुहान के हुनान सी-फूड मार्केट में है ओरिजन
चीन शुरू से ही यह कहता रहा कि कोरोना वायरस के सबसे पहले केस वुहान के हुनान सी-फूड मार्केट से जुड़े हैं। इस बात से यही संकेत मिलते हैं कि चीन ये जताना चाहता था कि वायरस किसी जानवर से इंसानों में आया है।
यह थ्योरी असंभव नहीं है। ज्यादातर वायरस अलग-अलग जानवरों की प्रजातियों से ही इंसानों में आए हैं। मगर हुनान सी-फूड मार्केट में जिस तरह की प्रजातियां मिलती हैं उन पर पहले हुए अध्ययनों में ऐसे किसी वायरस का पता कभी नहीं चला था।
महामारी शुरू होने के एक साल बाद शुरू हो पाई ओरिजिन की पहली जांच
महामारी की शुरुआत 2019 में हो गई थी। मगर वायरस के ओरिजिन की जांच जनवरी, 2021 में शुरू हो पाई।
चीन शुरू से ही इस बात पर आपत्ति करता रहा कि WHO के सदस्य देशों के प्रतिनिधि उसकी जमीन पर आकर जांच करें। WHO ने इसी वजह से एक स्वतंत्र टीम बनाई। ये टीम WHO के लिए काम कर रही थी, मगर उसे या किसी भी सदस्य देश को रिप्रेजेंट नहीं करती थी।
खास बात ये थी कि टीम का गठन होने से भी पहले 2020 में WHO और चीन सरकार के बीच ये समझौता हो गया था कि जांच किन बिंदुओं पर होनी है। स्वतंत्र टीम भी इन बिंदुओं से बाहर कोई जांच नहीं कर सकती थी।
सिर्फ 28 दिन वुहान में रुक सकती थी जांच टीम
इस स्वतंत्र जांच टीम में 17 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ थे और 17 चीन के एक्सपर्ट। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ जनवरी, 2021 में चीन के वुहान पहुंचे। मगर उन्हें वहां पर सिर्फ 28 दिन ही रुकने की इजाजत थी।
इस दौरान टीम के पास न सिर्फ काम करने के लिए बहुत कम समय था, बल्कि वह तय मैंडेट से बाहर कोई जांच नहीं कर सकती थी।
विरोध के बावजूद लैब से लीक की आशंका रिपोर्ट में शामिल…चीन छिपाता रहा रॉ डेटा
स्वतंत्र जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट मार्च, 2021 में दी। तय मैंडेट के बावजूद टीम ने इस रिपोर्ट में कहा था कि कोरोना वायरस के किसी लैब एक्सीडेंट की वजह से लीक होने की थ्योरी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
हालांकि इस जांच टीम को न तो कोई ठोस नतीजे निकालने का काम दिया गया था और न ही उन्हें इतनी गहन जांच करने का वक्त दिया गया। इस रिपोर्ट पर सवाल उठने के बाद अगस्त, 2021 में इस टीम में शामिल 11 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने मिलकर एक स्वतंत्र आर्टिकल पब्लिश किया।
इस आर्टिकल में उन्होंने वुहान में की गई जांच के दौरान मिले सीमित समय, सहयोग और तय मैंडेट की बात बताई थी। इस आर्टिकल के मुताबिक चीन ने अपने शुरुआती मरीजों का रॉ डेटा उस समय छिपाया। खासतौर पर दिसंबर, 2019 में मिले 174 केसों का रॉ डेटा चीन ने कभी भी शेयर नहीं किया।
इस आर्टिकल में साथ ही ये भी कहा गया कि लैब से वायरस लीक होने की थ्योरी को सपोर्ट करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। अगर कोई भी सबूत सामने आता है तो उसे जांच के अगले स्तर पर शामिल किया जाना चाहिए।
इन विशेषज्ञों ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि उनकी जांच रिपोर्ट फाइनल नहीं है। उन्होंने सिर्फ यह देखा है कि वायरस का ओरिजिन जानने के लिए किस-किस तरह का डेटा जांचना जरूरी है। ऐसे में इस जांच को आगे बढ़ाना बहुत जरूरी है।
पहली रिपोर्ट को ही फाइनल रिपोर्ट बता जारी किया था WHO ने…विशेषज्ञों के सामने आने के बाद कहा-आगे भी जांच होगी
मार्च, 2021 में स्वतंत्र टीम ने जो जांच रिपोर्ट दी थी, WHO ने उसे फाइनल रिपोर्ट के नाम से जारी किया था।
इस रिपोर्ट में शामिल किए गए लैब लीक वाले एंगल को चीन की सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया था। इसके बाद 4 महीनों तक WHO ने वायरस के ओरिजिन की जांच को आगे बढ़ाने की कोई बात ही नहीं की।
अगस्त, 2021 में जब स्वतंत्र जांच टीम के सदस्यों ने खुद आर्टिकल पब्लिश किया तो WHO ने भी घोषणा की कि वायरस ओरिजिन की जांच को आगे बढ़ाया जाएगा।
अक्टूबर, 2021 में WHO ने साइंटिफिक एडवाइजरी ग्रुप फॉर द ओरिजिन्स ऑफ नोवल पैथोजेन्स (SAGO) की स्थापना की। इस ग्रुप को ही कोरोना वायरस के ओरिजिन की जांच करने का जिम्मा दिया गया है।
गठन के 9 महीने बाद SAGO ने प्री-लिमनरी रिपोर्ट…इसमें भी कहा- लैब लीक एंगल की जांच जरूरी
अपने गठन के 9 महीने बाद यानी जून, 2022 में SAGO ने एक प्रारंभिक रिपोर्ट WHO को दी है।
इस रिपोर्ट में SAGO ने कोरोना वायरस की ओरिजिन की जांच पर आगे की स्टडी के लिए रेकमेंडेशन्स दी हैं।
इन रेकमेंडेशन्स में यह कहा गया है कि चीन में दिसंबर, 2019 में मिले 174 केसों के डेटा का विस्तृत अध्ययन जरूरी है।
वायरस का ओरिजिन जानने के लिए लैब से लीक होने की थ्योरी पर भी आगे स्टडी के लिए रेकमेंडेशन्स दिए गए है।
इसमें यह भी कहा गया है कि वुहान स्थित वायरोलॉजी लैब में बायोसेफ्टी के मानदंडों की जांच करना जरूरी है।
अमेरिकी सीनेट कमेटी की रिपोर्ट…चीन की लैब से वायरस लीक होने की आशंका गंभीर, जांच जरूरी है
अमेरिकी सीनेट की हेल्थ एजुकेशन, लेबर एंड पेंशन्स कमेटी ने अक्टूबर, 2022 में एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की है।
इस रिपोर्ट में लैब में किसी एक्सीडेंट की वजह से कोरोना वायरस के लीक होने की आशंका को काफी गंभीर बताया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की घटनाएं कोई नई नहीं हैं। कोरोना वायरस के सामने आने के बाद भी लैब में लीक से लोगों के इनफेक्ट की कम से कम 6 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इनमें से चार चीन में, एक ताइवान में और एक सिंगापुर में हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक 1977 में हुए H1N1 इंफ्लुएंजा आउटब्रेक को भी रूस या चीन में किसी लैब में हुए एक्सीडेंट का ही नतीजा माना जाता है।
वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी है शक के घेरे में
अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसियों ने पिछले दिनों वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के बारे में कई जानकारियां अपनी रिपोर्ट में दी हैं।
2002-04 के सार्स एपिडेमिक के बाद से वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में इस फैमिली के वायरस पर अध्ययन तेज हो गया था।
कोरोना वायरस भी इसी फैमिली का है, इसीलिए नाम SARS-COV2 है। इस लैब में ऐसे वायरस जमा किए जा रहे थे जिनकी जेनेटिक संरचना कोरोना वायरस से काफी मिलती है।
साउथ चीन और साउथ ईस्ट एशिया से जमा किए गए कई वायरस 90 से 96% तक कोरोना वायरस से मिलते-जुलते थे।
युनान से कलेक्ट किया गया RaTG13 वायरस जेनेटिक संरचना में 96.3% कोरोना वायरस के जैसा ही है।
इंस्टीट्यूट के अपने प्रेजेंटेशन्स बताते हैं कि 2018 के दौरान जब चमगादड़ों से वायरस के सैंपल कलेक्ट किए जा रहे थे तो इंस्टीट्यूट के कर्मचारी पूरे प्रोटेक्टिव गियर में नहीं थे।
इन वायरस पर वुहान इंस्टीट्यूट में जो रिसर्च हो रही थी वह सीधे-सीधे महामारी से जुड़ी थी। वुहान इंस्टीट्यूट के साथ काम कर रही एक अमेरिकी कंपनी इको-हेल्थ एलायंस ने 2018 में डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी के सामने फंडिंग का एक प्रस्ताव रखा था।
इस प्रस्ताव में बताया गया था कि सार्स फैमिली के वायरसों के जेनेटिक रिस्ट्रक्चरिंग पर वुहान में किया जा रहा है।
सिर्फ यही नहीं, 2018, 2019 और 2020 के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के पेटेंट और प्रोक्योरमेंट प्रपोजल बताते हैं कि लैब में बायोसेफ्टी बनाए रखने के लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था।
सितंबर, 2019 के प्रपोजल के मुताबिक वुहान में सेंट्रल एयरकंडिशनिंग के रिनोवेशन की जरूरत थी। नवंबर, 2019 में इंस्टीट्यूट ने एक एयर इंसिनरेटर खरीदने का प्रस्ताव रखा था। वायरस पर अध्ययन के लिए इस तरह का एयर इंसिनरेटर जरूरी होता है।
ऐसे में अमेरिकी सीनेट कमेटी ने इस बात पर जोर दिया है कि चीन की लैब में एक्सीडेंट की आशंका पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की जांच जरूरी है।
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