लंदन से लगभग 2 घंटे की दूरी पर एक शहर है ब्रिस्टल। ग्रेजी तर्ज की सारी रौनकें यहां मिलेंगी। यूनिवर्सिटी में आर्ट पढ़िए, या हरी घास पर सुस्ताते हुए काली कॉफी पिएं- कोई बंदिश नहीं। इस अलसाते शहर की शांति एक दोपहर छन्न से टूट गई, जब वहां कॉलेज कैंपस में पियानो की आवाज गूंजने लगी। पियानो बजा और बजता ही गया। एक या दो दिन नहीं, पूरे चार महीनों तक। सुनहरे बालों वाला जो युवक पियानो बजा रहा था, उसका नाम था ल्यूक हार्वर्ड। उसे गिनीज बुक की चाह नहीं थी। वो ये दीवानगी अपनी नाराज प्रेमिका को लौटा लाने के लिए दिखा रहा था। ठीक वैसे ही, जैसे रिजेक्शन के बाद देसी लड़के मोटे चाकू से नस काटने का स्वांग रचते हैं, और तब भी काम न बने तो 'प्रेमिका' के चेहरे पर एसिड फेंक देते हैं।
हाल ही में गुजरात के सूरत में मिलती-जुलती घटना घटी, जब इनकार का बदला लेने के लिए सिरफिरे आशिक ने एक लड़की की गला काटकर हत्या कर दी। अकेले में नहीं। अंधेरे में भी नहीं। चौड़ी धूप में, सीना चौड़ा करते हुए और वो भी युवती की मां के सामने। कत्ल के बाद युवक ने खुद भी मरने की कोशिश की, लेकिन वो कहानी दूसरी है। हमारी कहानी में ‘खलनायक’ है वो मूर्ख लड़की, जो ‘प्यार’ से इनकार के कारण 21 साल की उम्र में खत्म हो गई।
आसान तो था, बगैर प्यार के भी हां कह देना और सौ साल जी जाना! जिस उम्र में किताबों में मुंडी गड़ी होती है, उस उम्र में घर से भागकर दूर शहर की किसी अनाम गली की अंधेरी कोठरी में बस जाना। जब बाकी लड़कियां नौकरी खोजती होंगी, तब उभरा हुए पेट लिए शौहर मियां का इंतजार करना कि वो लौटे तो राशन की जगह शराब से भभकता मुंह दिखे। कितना आसान तो था हां कह देना! लड़की में ही खोट था, जो अपनी जिद में हीरे की कनी जैसे प्यार के साथ जिंदगी भी गंवा बैठी।
पिछले साल हरियाणा में भी ऐसी ही एक नासमझ लड़की की चर्चा रही। प्रेमी ने उसे जीतने की ढेरों-ढेर कोशिश की। प्यार-प्यार का अखंड जाप किया। उसके कोचिंग सेंटर गया। घर तक पीछा किया। अश्लील बातें कीं। भद्दे इशारे किए। यहां तक कि दोस्तों के साथ मिलकर रेप की धमकियां तक दे डालीं। कमबख्त लड़की का दिल तब भी मोम न हुआ। तब जाकर बेचारे आशिक ने आखिरी रास्ता अपनाया और उसे भरी सड़क पर गोद दिया।
बराबरी, आजादी जैसे कई नारे आए और बीत गए। लड़कियां मारी ही जा रही हैं। घर से निकलते हुए वे इस डर से नहीं कांपतीं कि ट्रक आएगा और उन्हें रौंदकर चला जाएगा। वे डरती हैं कि जैसे बाबा लोग हवा से जादुई भभूत निकालते हैं, वैसे ही किसी गली से कोई खुद को नायक समझने वाला प्रेमी निकलेगा और उनके सपने कुचलकर चला जाएगा।
औरतों को रोटी मिले, न मिले, हवा चाहे प्रदूषित मिले, लेकिन प्यार हर औरत को भरपूर मिलता है, वो भी छुटपन से ही। मेरे पास इस पर एक सच्ची कहानी है। कोई बारह साल की थी, जब पहला प्रेम-प्रस्ताव मिला। मैं 7वीं में, वो इंजीनियरिंग के फाइनल में। प्रस्ताव प्रेमभरी चिट्ठी या गणित पढ़ाते हुए तारीफ-भरी नजरों से नहीं, बल्कि एकदम मोटे-सोटे अंदाज में। उसे यकीन था कि इकहरे शरीर और सपनीली आंखों वाली बच्चियों से प्रेम जताना उतना ही सहज है, जितना धूल आने पर पलकों का झपकना। वो जबरन मेरी उन शामों पर कब्जा करने लगा, जिनमें अपने हमउम्रों से खेलना ही मुझे पसंद था। मैं जितना इनकार करती, वो उतनी जिद पकड़ता।
‘प्रेम’ से ये मेरी पहली मुलाकात थी। बस, एक गलत कदम और मैं शायद ये कहानी सुनाने की बजाए किसी सीलन भरे कमरे में उससे भी ज्यादा सीली जिंदगी बिता रही होती। मैं बच गई। लेकिन सारी लड़कियां उतनी खुशकिस्मत नहीं होतीं कि प्यार की मांद से बचकर निकल सकें।
प्यार नाम की चिरैया जैसे ही दस्तक दे, लपककर दरवाजा खोल दो, ये सीख औरतों को सैकड़ों सालों से मिलती रही है।
रोमन दार्शनिक अरस्तु जो बड़ी बातें कह गए, उनमें से काफी हिस्सा औरतों पर भी था। ‘निकोमेकियन एथिक्स’ नाम से ये बातें कई हिस्सों में छपीं। इसमें बताया गया कि स्त्री उस जमीन की तरह होती है, जो चाहे जितनी उपजाऊ हो, लेकिन बिना बीज के बेकार है। पुरुष बीज रोपेगा, तभी जमीन खेत कहलाएगी। जो औरत इससे इनकार करे, वो बंजर जमीन बनकर रह जाएगी। तो, जैसे ही कोई प्रेम प्रस्ताव आए, औरत नाम की जमीन को झट से हां कर देनी चाहिए। फिर वो ये न देखे कि बीज बैंगन के हैं, या फिर कद्दू के।
ईसा पूर्व से होते हुए 21वीं सदी का मुर्गा भी बांग दे चुका, लेकिन औरतों की बुद्धि वो चट्टान बनी हुई है, जिस पर प्यार का अंकुर फूटता ही नहीं। प्यार के बदले इनकार झेलते मर्दों की एक ऑनलाइन बिरादरी भी है। इंसेल नाम से इस वर्चुअल ग्रुप में वे बताते हैं कि बेहद प्रेम के बावजूद लड़कियां उन्हें घास नहीं डालतीं। वे सुख चाहते हैं, लेकिन लड़कियों को इसकी कोई परवाह नहीं। तो ग्रुप में लड़कियों से बदला लेने के तरीके डिस्कस होते हैं।
एकतरफा प्यार ने सूरत की ग्रीष्मा को भी खत्म कर दिया। सालभर से पीछा कर रहा हमलावर फिलहाल अस्पताल में है। बच गया तो बाकी उम्र जेल और फिर शायद सड़क पर बिताए। किसी दूसरी लड़की का पीछा करते हुए!
ये तस्वीर कुछ अलग होती, अगर लड़की को भरोसा मिलता कि छेड़छाड़ की कहानी सुनाएगी तो कमरे में बंद नहीं कर दी जाएगी। हंसने या सजने पर ताना नहीं मिलेगा कि तुमने ही लड़के को 'हिंट' दिया होगा। या अगर उसे ब्यूटी पार्लर जाकर होंठ-पलक संवारने के साथ-साथ मांसपेशियां तराशने की भी ट्रेनिंग मिलती। ये तस्वीर वाकई सुनहरी हो सकती थी- अगर लड़के को दुख पर रोने की ट्रेनिंग मिलती। अगर उसे बताया जाता कि इनकार से दुनिया रुकती नहीं, बल्कि एक नया चैप्टर शुरू होता है, जो और सुंदर, और कोमल हो सकता है।
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