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  • Women With Long Hair Should Wrap Their Bread With Braids During The Day And Give Them Pleasure By Spreading Their Thongs During The Night... That's What Men Want.

बात बराबरी की:लंबे बालों वाली औरतें दिन में चोटी गूंथकर रोटी थापें और रात में जुल्फें पसारकर सुख दें... मर्द तो यही चाहते हैं

नई दिल्लीएक वर्ष पहलेलेखक: मृदुलिका झा
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वो 19वीं सदी की शुरुआत थी, जब यूरोप समेत पूरे पश्चिम में आबादी से दूर एक खास तरह की इमारतें दिखने लगीं। वास्तु के लिहाज से बेहद खूबसूरत इन बिल्डिंगों में भांय-भांय करता सूनापन होता, या फिर चीख-पुकार की आवाजें। इनका नाम था- हाउस ऑफ मर्सी! यानी दया-करूणा का मकान। यहां ‘पतित’ औरतों को सुधारा जाता। साथ ही छोड़ी हुई स्त्रियों को गुलामी की ट्रेनिंग मिलती ताकि वे खुद को उपयोगी साबित कर सकें।

झाड़-पोंछ, खाना पकाने, बच्चे संभालने से लेकर हर जरूरी काम सिखाया जाता। काम करते हुए हर औरत के चेहरे पर हल्की मुस्कान और शुक्रिया का भाव रहना चाहिए- वो जोर से न हंसे- और ‘नहीं’ तो कतई न कहे। जो औरत इससे इनकार करे, सजा के तौर पर उसके सिर समेत भौंहों के बाल छील दिए जाते।

सब कुछ ठीक चल रहा था कि तभी मैनहटन के हाउस ऑफ मर्सी से एक लड़की भाग निकली और न्यूयॉर्क सुपीरियर कोर्ट तक पहुंच गई। एनी सिगलोव नाम की ये युवती डांस क्लब से उठाई गई थी और सुधारी जा रही थी। ये बात अलग है कि सुधरने से पहले वो मजबूत पहरों से निकल भागीं।

न्यूयॉर्क के मैनहटन का हाउस ऑफ मर्सी। 19वीं सदी की शुरुआत में यहां सताई हुई महिलाओं को कैद करके रखा जाता था। मदद और सुधारने के नाम पर उन्हें कठोर यातनाएं दी जाती थीं।
न्यूयॉर्क के मैनहटन का हाउस ऑफ मर्सी। 19वीं सदी की शुरुआत में यहां सताई हुई महिलाओं को कैद करके रखा जाता था। मदद और सुधारने के नाम पर उन्हें कठोर यातनाएं दी जाती थीं।

एनी के बयानों ने उस दौर में तहलका मचा दिया। खोजबीन शुरू हुई कि तभी बदचलन लड़कियों को पवित्र बनाने के कैंपेन से जुड़ी एक नर्स ने बयान दे डाला- ‘हमने देखा कि लड़कियों को अपने बालों से बहुत प्यार होता है। ऐसे में बाल छील देने की धमकी उन्हें आज्ञाकारी बनाती है’। ये बयान साल 1924 में न्यूयॉर्क की अदालत में दिया गया था।

बयान देने वाली नर्स एकाएक गायब हो गई, साथ ही इमारतों की सुरक्षा और मजबूत हो गई। इसके बाद भी स्त्रियों को नम्र, आज्ञाकारी और पालतू बनाने का दावा करती इन जगहों से खौफनाक खुसपुसाहटें आती रहीं। 20वीं सदी के मध्य में दुनियाभर के हाउस ऑफ मर्सी पर ताला डल गया। हालांकि, बाल मूंडकर औरतों को पालतू बनाने की सजा वाकई कारगर रही और दुनिया के बहुतेरे देशों में दिखती रही।

कोई तीनेक हफ्ते पहले बिहार के दरभंगा से एक रिपोर्ट आई, जिसमें पत्नी पर बदचलनी का आरोप लगाकर पति ने उसके बाल छील दिए और मुंह पर काला रंग पोतकर गांव घुमाया। कुशेश्वरस्थान थाना क्षेत्र में हुए इस वाकये के बाद पति ने बयान दिया कि सजा पूरी हुई, और अब वो पत्नी को अपनाने के लिए तैयार है।

चलिए, देसी मामले पर रोना-पीटना छोड़कर इंटरनेशनल सुर्खियों पर आते हैं। कुछ रोज पहले लॉस एंजेलिस में ऑस्कर अवॉर्ड्स कार्यक्रम चल रहा था। हंसी-मजाक का दौर था कि तभी मंच पर झन्नाटेदार थप्पड़ की आवाज ने बादाम-खीर में मानो दही का तड़का लगा दिया हो।

दरअसल सेरेमनी के एंकर क्रिस रॉक ने अभिनेत्री जेडा पिंकेट के गंजेपन पर भद्दा मजाक किया था। जेडा अकेली या छोड़ी हुई महिला होतीं तो बात ठहाकों पर खत्म हो जाती, लेकिन मसला एक पत्नी से जुड़ा था, तो पालनहार पति सामने आया और एंकर को कसकर तमाचा मार दिया।

तमाचाकांड का वीडियो लॉस एंजेलिस से गुजरते हुए ठेठ भारतीय घरों तक पहुंचा और पोहे-जलेबी या ब्रेड-अंडा कुतरते हुए हम बे-बाल औरतों पर नील नदी से भी गहरे-ठहरे लेख लिखने लगे। ये बात और है कि सिर पर कम या कतरे हुए बालों वाली औरत हमारी नजर में या तो दुष्चरित्र है, या फिर बागी।

साल 2019 में डव हेयर ने हंसा रिसर्च के साथ मिलकर बालों पर एक सर्वे किया। लगभग 2 हजार पुरुषों पर हुए उस सर्वे के मुताबिक हर 3 में से 1 भारतीय पुरुष मानता है कि लंबे बालों वाली लड़कियां फैमिली-मटेरियल होती हैं और उनसे शादी टिकी रहती है। वहीं लगभग 71 प्रतिशत ने माना कि छोटे और घूमरदार बालों वाली लड़कियां, लंबे और सीधे बालों वाली लड़कियों की तुलना में कम सुंदर होती हैं।

हिंदुस्तानी मर्दों को यकीन है कि लहरदार बालों वाली युवती, कतरे बालों वाली विद्रोहिणी से बेहतर होती है। वो दिनभर लंबी चोटी गूंथकर रोटी थापेगी, और रात में बालों को रेशम-सा मुलायम बनाकर तकिए पर पसार लेगी ताकि पुरुष उसे भोग सके। लंबे बालों वाली स्त्रियां गलती करें तो उनकी चोटी पकड़कर सेंतने का भी अलग सुख है, जिसकी झलक अक्सर खबरों में दिखती है।

औरतों पर नागिन जैसे लहराते बालों का दबाव न केवल सदियों पुराना है, बल्कि दुनियाभर में दिखता है। प्राचीन रोम में अमीर महिलाओं पर ‘बाल-दार’ होने का प्रेशर इतना ज्यादा था कि वे लंबे प्राकृतिक बालों पर विग भी पहना करतीं। सुनहरे चाहिए तो जर्मनी से बाल मंगवाए जाते।

भारतीय बालों की भी खासी मांग थी। बाल खरीदते हुए इसका ध्यान रखा जाता कि जिन औरतों से सिर से बाल छीले गए हों, वे तंदुरुस्त और उर्वर हों। यानी जवान औरत, जो ज्यादा से ज्यादा संतान दे सके। मान्यता थी कि ऐसी विग पहनने से ‘बंजर’ औरतें भी संतान पैदा कर सकेंगी। कुल मिलाकर, बाल स्त्री-देह का वो हिस्सा बन गया, जो कोख जितना ही जरूरी था।

18वीं सदी में अमीर घरानों की औरतें नई-नई हेयरस्टाइल बनाया करतीं। इसी दौर में दक्षिण-पश्चिम फ्रांस में लॉजन की रानी ने कई पुरुष हेयर-ड्रेसर रखे, जो उनके बालों को सबसे अलग दिखा सकें। रानी जब सैर पर निकलतीं, तो चलते हुए लोग ठिठककर देखते रह जाते। उनके सिर पर पूरी आर्ट गैलरी संजोई हुई दिखती। कभी बालों को बिखराकर लहराता समंदर बनाया जाता तो कभी कारखाना दिखता, जिसमें मजदूर काम कर रहे हों।

बालों पर विग के अलावा हड्डियों, रत्नों, धातुओं का भी भरपूर इस्तेमाल होता। इन सबका वजन कई किलो होता, लेकिन रानी तो गर्दन तानकर ही चलेगी। फ्रेंच रानी समेत पता नहीं कितनी औरतों ने गर्दन और पीठ से जुड़ी कई बीमारियां झेली हों, लेकिन साहित्य में इसका जिक्र नहीं क्योंकि इससे औरतें बिदक सकती हैं।

कैरेबियाई द्वीप देश जमैका में अस्सी के दौर में एक सिंगर हुईं। ग्रेस जोन्स नाम की इस गायिका ने अपने संस्मरण 'आई विल नेवर राइट माय मेमॉयर्स' में लिखा- छिले हुए सिर के साथ मैं खुद को ज्यादा आजाद महसूस करती हूं- किसी देश, नस्ल या जेंडर से ऊपर। काली, लेकिन काली नहीं। औरत, लेकिन औरत नहीं। कहानी, लेकिन हकीकत जैसी। मैं आजाद हूं!

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