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चंद बाल स्कार्फ से बाहर और बदले में मौत:हिजाब बंदिश या आजादी, ईरान प्रोटेस्ट पर क्या बोलीं भारतीय मुस्लिम महिलाएं

नई दिल्ली3 महीने पहलेलेखक: अलीशा हैदर नकवी
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‘ये जिन बच्चियों का कत्ल किया गया, उन्हें ही इसके लिए दोषी नहीं कहा जा सकता। उन्हें कत्ल कर देते हैं, महसा अमीनी की तरह मार देते हैं, क्योंकि उनके चंद बाल स्कार्फ से बाहर निकल जाते हैं। कुछ लड़कियों को इसलिए मार देते हैं, क्योंकि उन्होंने प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया। कुछ लड़कियों को इसलिए मार दिया, क्योंकि वे अपनी कार में बैठकर सड़क पर हो रहे प्रोटेस्ट के वीडियो बना रही थीं। लड़कियों को उन्हीं के कत्ल के लिए जिम्मेदार ठहराना बेवकूफी है। ये सब जो हो रहा है, उसके लिए एक ही जिम्मेदार है- इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान।’

ईरानी एक्टिविस्ट शाहपारक जब ये कह रही थीं, तो घर से दूर होने का दर्द उनकी आंखों में नजर आ जाता है। उन्होंने एक वीडियो में अपनी बात मुझे भेजी है। शाहपारक 'फेमे आजादी' ग्रुप से जुड़ी हैं। ये ग्रुप ईरान में महसा अमीनी की मौत के बाद फ्रांस में रह रहीं 10 ईरानी महिलाओं ने बनाया था। शाहपारक अब वहीं से ईरानी महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ रही हैं। वे कहती हैं- 'अगर मैं ईरान गई तो वे मुझे फांसी दे देंगे।'

हिजाब पहनने पर ईरान में महिलाएं ही दो धड़ों में बंट गई हैं। एक उस आंदोलन का हिस्सा हैं, जो हिजाब विरोधी है, और दूसरा हिजाब के हक में आवाज उठा रहा है।
हिजाब पहनने पर ईरान में महिलाएं ही दो धड़ों में बंट गई हैं। एक उस आंदोलन का हिस्सा हैं, जो हिजाब विरोधी है, और दूसरा हिजाब के हक में आवाज उठा रहा है।

भारत में बीते साल हिजाब का मुद्दा गरमाया रहा, कर्नाटक के स्कूल में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा। प्रदर्शन हुए, बाद में कुछ मुस्लिम लड़कियों ने हिजाब पहनने के लिए स्कूल और एग्जाम तक छोड़ दिए।

ये बहस इतनी सीधी भी नहीं, इसलिए मैंने इस मुद्दे पर भारत में मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की। आज वमेंस डे भी है, तो पढ़िए कि हिजाब पर आप कुछ भी सोचते हों, लेकिन जिन्हें ये पहनना है, वो इस बारे में क्या सोचती हैं।

'कोई मौलाना नहीं बताएगा कि लड़कियां कैसे जीएं'
'अगर मैं बाहर जाकर विरोध नहीं करूंगी, तो और कौन करेगा?’ ये सवाल मरने से पहले मीनू मजीदी का था। 62 साल की मीनू को ईरान की सड़कों पर सुरक्षाबलों ने गोली मार दी थी। ऐसे मरने वाली औरतों की लिस्ट लंबी है। इस मसले पर सबसे पहले मेरी बातचीत मुसर्रत जावेद से हुई।

मुसर्रत कोलकाता के मटियाबुर्ज इलाके में रहती हैं। वे PhD कर चुकी हैं, हिजाब भी पहनती हैं। मुसर्रत कहती हैं- ‘मेरा इस्लाम को देखने का नजरिया अलग है। मैं हिजाब समेत इस्लाम के हर कायदे को फॉलो करती हूं। मुझे तो लगता है इस्लाम में विमेन एम्पावरमेंट को ज्यादा तवज्जो दी गई है।’ ये कहते हुए वे चुप हो जाती हैं।

फिर रुककर कहती हैं- ‘अफसोस, लोग उसे अपनी सहूलियत के हिसाब से फॉलो करते हैं। मैं भले ही हिजाब पहनती हूं, लेकिन गलत को गलत बोलने की भी हिम्मत रखती हूं। ईरान में जो हो रहा है, उस पर चुप नहीं रहा जा सकता। मैं किसी औरत को पिटता नहीं देख सकती। किसी मौलाना को कोई हक नहीं कि लड़कियों को जीने की नसीहत दे। भारत हो या ईरान ये नहीं चल सकता।’

कहते-कहते मुसर्रत फिर खामोश हो जाती हैं, मुझे उनकी आवाज में गुस्सा सुनाई देता है।

कुछ देर तक हम दोनों चुप रहते हैं। फिर मुसर्रत संभलते हुए कहती हैं- ‘चलिए ये भी मान लें कि ईरान में जो हो रहा है वो साजिश है। लेकिन औरतों को पीटना, उनका कत्ल कैसे जस्टिफाई किया जा सकता है। 100 से ज्यादा लड़कियां मारी जा चुकी हैं, उन्हें फांसी दी जा रही है, ये ज्यादती नहीं तो और क्या है?'

'महसा अमीनी की मौत को दिल का दौरा बता दिया। ये मान भी लें, तो ये कैसे भुला दें कि ईरानी पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। उन्हें बताया था कि वो बीमार है, वे नहीं माने। महसा मर गई और उसके मां-बाप को उसे आखिरी बार देखने भी नहीं दिया। सबका हिसाब ऊपरवाला करता है। हम औरतों को यहां किसी को हिसाब देने की जरूरत नहीं।’

मुसर्रत एक बार फिर चुप हो जाती हैं। शायद वे रो देना चाहती हैं। मैं कोई सवाल नहीं करती, चुपचाप ही रहती हूं। बातचीत खत्म हो जाती है।

‘ईरान में तो लड़कियां आजाद हैं’
इस मामले पर मेरी अगली बातचीत भोपाल में रह रहीं इस्लामिक स्कॉलर शाजिया से हुई। शाजिया भी हिजाब पहनती हैं। वे कहती हैं- ‘मैं हिजाब पर जब इतना झगड़ा देखती हूं, तो समझ आता है कि ये आधी-अधूरी जानकारी की वजह से है। इंडिया में भी अब ये कपड़ा सियासत की वजह बन गया है। लोगों को पता ही नहीं है कि बुर्का, हिजाब, नकाब तीनों अलग-अलग चीज हैं।’

शाजिया आगे कहती हैं- ‘औरतों का सम्मान तो हर धर्म में है। परदा भी हर धर्म में है। क्या आपने सीता माता को किसी नाटक या फिल्म में बिना दुपट्टा देखा है? गुरुद्वारे में जाने के लिए औरत-मर्द दोनों को सिर ढंकना होता है। ऐसे में हिजाब को सिर्फ मुस्लिम समुदाय से जोड़ना गलत है।'

'लोगों की जानकारी के लिए बता दूं कि इस्लाम में हिजाब-बुर्के का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है, न ही उसका रंग तय किया गया है। बस बालों को छुपाना हिजाब होता है। शरीर गैर मर्दों की नजर से बचने के लिए छुपाना होता है।’

ईरान में महिलाओं के साथ हिंसा के सवाल पर शाजिया कहती हैं- ‘जितना मैं ईरान को समझती हूं, उस लिहाज से ईरान में औरतें आजाद हैं।’

वे मुझसे ही कहने लगती हैं- ‘ईरान में हर फील्ड में लड़कियां आगे बढ़ रही हैं, उनकी आइडियल लेडी फातिमा और हजरत अली हैं। यह आपको तय करना है आप कहां रहकर, किसे फॉलो कर रहें हैं।’ मसर्रत से उलट शाजिया ईरान में जो हो रहा है, उसे सही मानती हैं और वहां से आ रही खबरों को पश्चिमी देशों का प्रोपेगैंडा बताती हैं।

‘मैं तो ईरान की सड़कों पर बेखौफ टहलती हूं’
मेरी अगली मुलाकात 25 साल की जहरा अलविया से हुई। जहरा तेहरान की अल मुस्तफा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ती हैं। वो कहती हैं- ‘मैं ईरान की सड़कों पर बेखौफ घूमती हूं। कई बार मेरा सामना ईरान की मॉरैलिटी पुलिस यानी ‘गश्त-ए-इरशाद’ से भी होता है। उनके पास कोई हथियार नहीं होता है, ईरानी कानून के हिसाब से उन्हें हथियार रखने की इजाजत नहीं है, वे हमें जुबानी तौर पर ही टोक सकते हैं। कोई कैसे कह सकता है कि ईरानी पुलिस औरतों पर ज़ुल्म कर रही है।’

जहरा की ये बात सुनकर मैं सोशल मीडिया पर मॉरैलिटी पुलिस के वायरल वीडियोज के बारे में सवाल करती हूं। वे कहती हैं- ‘आप सिर्फ तस्वीर देखकर फैसला नहीं कर सकते। हो सकता है ये आधी जानकारी हो। हो सकता है उन्होंने ही पुलिस को मजबूर किया हो। इस्लाम में सिर्फ पिता, सगे भाई और शौहर के अलावा हर शख्स को पर्देदारी का हुक्म है।’

जहरा अपना फोन निकाल लेती हैं और मुझे कुछ तस्वीरें दिखाते हुए कहती हैं- ‘ईरान में लड़कियां हिजाब की हिफाजत के लिए भी सड़क पर उतरती हैं, लेकिन मीडिया में ये कोई नहीं दिखाता।’

जहरा लड़कियों की मौत और महसा अमीनी पर बात नहीं करना चाहती। उनमें इस बातचीत को लेकर भी डर नजर आता है। वे कहती हैं कि 'हो सके तो मेरी यूनिवर्सिटी का नाम न देना।'

‘आपकी आंखों पर नासमझी का परदा पड़ा हुआ है’
मेरी अगली बातचीत 41 साल की तस्कीन फातिमा से हुई। तस्कीन इस्लामिक स्कॉलर हैं और दिल्ली के ओखला विहार में मदरसा जमीयतुल फातिमा में प्रिंसिपल हैं। तस्कीन ईरान के तेहरान में ही पैदा हुईं और वहीं उनकी परवरिश भी हुई।

वे ईरान सरकार पर सवाल करने पर नाराज दिखती हैं, कहती हैं- ‘आप उतना ही देख रहें है, जितना ईरान का दुश्मन दिखाना चाह रहा है। आप दिमाग से कम और आंखों से ज्यादा सोच रहे हैं। आपकी आंखों पर गफलत का पर्दा पड़ा हुआ है।’

वे आगे कहती हैं- ‘मैं ईरान और उसकी हुकूमत को बेहद नजदीक से समझती हूं। मेरा बचपन ईरान में ही बीता। ईरान की सड़कों पर महिलाओं ने ‘वुमन, लाइफ, फ्रीडम’ का नारा लगाया है, जो ‘फेमिनिज्म’ से जुड़ा है। इन औरतों के मुकाबले, और इनसे ज्यादा तादाद में हर जुमे की नमाज के बाद लड़कियां सड़कों पर उतरती हैं, जो हिजाब के हक में प्रोटेस्ट करती हैं। उनका तो जिक्र कही नहीं होता है। क्या सिर्फ हिजाब उतार देना ही आजादी है।’

मैं तस्कीन से सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज का सवाल करती हूं, पूछती हूं औरतों को मारा-पीटा जा रहा है। वे कहती हैं- ‘ये मान लें कि जो हिजाब पहनती हैं, वो औरतें जंजीरों में कैद हैं, क्योंकि आप ऐसा सोच रहे हैं? ये सब अयातुल्लाह अली खामेनेई को बदनाम करने की साजिश है। क्या औरतों से जबरदस्ती उनका परदा छीन लेना जुल्म नहीं है।'

तस्कीन कहती हैं- 'ईरान इस्लामी देश है और वहां इस्लाम के नियम माने जाएंगे, तो इसमें गलत क्या है। हर मुल्क का कानून होता है, ईरान में हिजाब पहनना कानून है। क्या मुल्क को अपने कानून बनाने का हक नहीं। भारत में भी कोई कानून तोड़ेगा, तो उसे सजा मिलेगी, वहां भी मिलती है।’ मैं आगे कोई सवाल नहीं करती, लौट आती हूं।

‘जुल्म के खिलाफ औरतों का प्रोटेस्ट जायज है, मैं उनके साथ हूं’
भले ही तस्कीन और जहरा ईरान सरकार और उसकी कार्रवाई को लेकर आश्वस्त हों, लेकिन नूर महविश ऐसा नहीं सोचती। 23 साल की नूर यूपी के प्रयागराज में नारायण लॉ कॉलेज की स्टूडेंट हैं, महिला अधिकारों पर भी खुलकर बात रखती हैं।

नूर कहती हैं- ‘मैं हिजाब थोपने वाले और उसका उग्र विरोध करने वाले दोनों के ही समर्थन में नहीं हूं, लेकिन एक 22 साल की लड़की को पुलिस कस्टडी में मार दिया गया। जबरन हिजाब पहनाने वाली इस सनक के खिलाफ ही महिलाएं ईरान में सड़क पर हैं।’

नूर आगे कहती हैं- ‘मैं जानती हूं हिजाब करना इस्लाम में फर्ज है, अनिवार्य भी है। फिर भी महिला को हिजाब पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। न ही जबरदस्ती उतारने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। मैं प्रोटेस्ट करने वाली महिलाओं से भी नाराज हूं, क्योंकि दुनिया भर के अलग-अलग देशों में जो इसे पहनना चाहती हैं, उनकी ये गलत इमेज बना रहा है।'

'मुझे उन वेस्टर्न कल्चर के लोगों से भी दिक्कत है, जो हिजाब उतारने को ही आजादी मान बैठे हैं। ईरान में महिलाओं पर जुल्म पर ये खूब बोलते हैं, लेकिन जब यूरोपीय देशों में जबरदस्ती हिजाब उतरवाया जाता है, तो ये चुप्पी साध लेते हैं। बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए।’

'पुलिसवालों की भी तो मौत हुई, उनकी बात क्यों नहीं होती'
इतनी तरह की बातें सुनने के बाद मैं इस्लामिक स्कॉलर डॉ. कल्बे रुशैद रिजवी से मिलने दिल्ली के लक्ष्मी नगर पहुंची। रुशैद नेशनल उलेमा पार्लियामेंट में सेक्रेटरी जनरल हैं। उन्होंने फ्रांस से PhD की है और इस्लामी मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं।

ईरान के सवाल पर वे कहते हैं- ‘हर समाज की अपनी एक तहजीब होती है। इसी से उस समाज के खाने-पीने, पहनावे का तरीका तय होता है। इसे आजादी या गुलामी नहीं माना जा सकता। ये उस समाज की सोच है। आप इसे कैसे देखते हैं, ये आपका नजरिया हो सकता है।’

मौलाना रुशैद आगे कहते हैं- ‘सच्चाई ये है कि हम हिंदुस्तानी हैं, ईरानी नहीं। ईरान की लड़ाई न भारत से है, न ही एशिया के किसी मुल्क से। ईरान की लड़ाई उस मुल्क से है, जिनका राज दुनिया के बैंकों पर है, जो हथियारों से लैस है।'

'हर देश में ऐसे कुछ लोग होते हैं, जो माहौल खराब करने की कोशिश करते हैं। प्रोटेस्ट में 100 से ज्यादा पुलिसवालों की भी मौत हुई है, इस पर कोई बात नहीं करता।’ मौलाना रुशैद भी ईरान में महिलाओं पर हो रही हिंसा को जवाबी हिंसा बताते हैं।

मौलाना रुशैद के बाद मैंने एक्टिविस्ट समीरा मोहिद्दीन से बात की। वे भी ईरान में हिजाब थोपने का विरोध करती रही हैं। वे कहती हैं- ‘ईरान में तालिबानी हुकूमत ही है, फर्क सिर्फ इतना है कि इनके पास तेल है। यह इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा के है और औरतों से बदला लेने के लिए ये क्रूरता की हदें पार कर सकते हैं।’

हिजाब को लेकर कुरान में क्या कहा गया है…
कुरान में हिजाब का जिक्र भी है और उसे वाजिब यानी अनिवार्य बताया गया है। कुरान की सूरह नूर-18 पारा-आयत नंबर- 31 में हिजाब का जिक्र काफी डिटेल में है। सूरह अल-अहजाब में भी हिजाब के तरीके को समझया गया है।

पर्देदारी के मायने को कुरान में तीन आदेशों में एक्सप्लेन किया गया है। सबसे पहले चेहरे को ढकने का आदेश है। दूसरे में शरीर को ढकने का हुक्म दिया गया है, जिससे आपके शरीर की बनावट न दिखे। तीसरे में महिलाओं को बालों को भी छिपाने का आदेश दिया गया है।

ईरान, हिजाब और इस्लाम...
ईरान सरकार फिलहाल गंभीर आरोपों से घिरी हुई है। ईरान के 21 प्रांतों के स्कूलों में लड़कियों को जहर देने का मामला सामने आया है। जहर देने की घटनाओं की शुरुआत कोम शहर से नवंबर में हुई थी। ये सभी घटनाएं लड़कियों के स्कूलों में नजर आ रही हैं।

ईरान के गृह मंत्री अहमद वाहिदी ने इस मामले पर कहा- 'जहर देने के मामले में तह तक जाने और दोषी को सामने लाने की जरूरत है। उन्होंने हमलों को 'इंसानियत के खिलाफ जुर्म' बताया। ये भी बताया कि इन हमलों से कम से कम 60 स्कूल प्रभावित हुए हैं।'

फोटो ईरान के अर्दबील की है, जहां 1 मार्च को एक गर्ल्स स्कूल में जहर देने का मामला सामने आया था। इसके बाद लड़कियों को हॉस्पिटल में एडमिट किया गया।
फोटो ईरान के अर्दबील की है, जहां 1 मार्च को एक गर्ल्स स्कूल में जहर देने का मामला सामने आया था। इसके बाद लड़कियों को हॉस्पिटल में एडमिट किया गया।

इन मामलों पर शाहपरक कहती हैं- ‘लड़कियों को मारा जा रहा है, उनसे रेप किया जा रहा है। सिर्फ इसलिए, क्योंकि उन्हें अपनी मर्जी से जीने की आजादी चाहिए। इस्लामी कट्टरपंथी हम पर कितना भी ज़ुल्म कर लें, लेकिन हम किसी भी हाल में पीछे नहीं हटने वाले।’

इतने लोगों से बातचीत करने के बाद भी ये बात किसी नतीजे तक पहुंचते नजर नहीं आती। इतिहास इस बात का गवाह है कि कोई भी जंग कभी औरतों ने नहीं शुरू की, लेकिन जंग की बर्बादी की सबसे ज्यादा शिकार औरतें ही हुईं।

ईरान में इस बार हिजाब से आजादी और हिजाब के अधिकार को लेकर महिलाओं के ही दो गुट आमने-सामने हैं, इस जंग में जीत किसी भी हो, लेकिन बर्बादी शायद फिर औरतों के ही हिस्से आने वाली है।

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