यूनाइटेड नेशन्स ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा है कि 2023 तक भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। वहीं, बढ़ती जनसंख्या पर UP के CM योगी आदित्यनाथ ने अपने अफसरों से कहा है कि जनसंख्या कंट्रोल के प्रयास सफलता पूर्वक किए जाएं, ताकि ऐसा न हो कि एक वर्ग की आबादी बढ़ने से समाज में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाए।
ऐसे में आज भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि देश में क्या वाकई सिर्फ किसी एक समुदाय की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, आजादी के बाद किस धर्म से जुड़े लोगों की कितनी आबादी थी और अब कितनी है, आबादी बढ़ने के मामले में क्या धार्मिक वजह जिम्मेदार हैं...
2023 में भारत बनेगा दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश: UN
'वर्ल्ड पॉपुलेशन डे' के मौके पर पर संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया है…
फिलहाल..
चीन की आबादी: 142.6 करोड़ है।
भारत की आबादी: 141.2 करोड़ है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2023 तक भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा।
2050 में..
भारत की संभावित आबादी: 166 करोड़ है।
चीन की संभावित आबादी: 131 करोड़ है।
प्यू रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 2021 में मुस्लिमों की भारत में आबादी 21.30 करोड़ थी, जो 2030 तक 23.63 करोड़ हो जाएगी। यानी इन 8 सालों के दौरान मुस्लिमों की पॉपुलेशन ग्रोथ करीब 10% रहेगी। वहीं भारत की आबादी इस समय बढ़कर 150 करोड़ तक होने का अनुमान है।
आजादी के बाद 73 सालों में कितनी बढ़ी देश की आबादी?
स्टेटिस्टा के मुताबिक 1948 में देश की आबादी 35.8 करोड़ थी। 2020 में देश की आबादी बढ़कर करीब 138 करोड़ हो गई है। इस तरह देखा जाए तो 72 साल में देश की आबादी 103 करोड़ बढ़ी है।
देश भर में सरकारी संस्थाओं द्वारा आबादी की गिनती 2011 में आखिरी बार हुई है। इसलिए इसे अंतिम सेंसस कहते हैं। अब इसी सेंसस के आधार पर किस धर्म में कितनी आबादी बढ़ी या घटी है, उसे ग्राफिक्स में समझते हैं….
10 साल में मुस्लिमों की आबादी 24.78% और हिंदुओं की 16.77% बढ़ी
2001 में हिंदुओं की आबादी 82.75 करोड़ और मुस्लिम आबादी 13.8 करोड़ थी। ठीक 10 साल बाद हिंदुओं की आबादी बढ़कर 96.63 करोड़, जबकि मुस्लिमों की आबादी 17.22 करोड़ हो गई। इस दौरान मुस्लिमों की आबादी 24.78% की रफ्तार से जबकि हिंदुओं की 16.77% की रफ्तार से बढ़ी है।
इस तरह भारत की कुल जनसंख्या में मुस्लिम आबादी 2001 में 13.4% थी जो 10 साल बाद बढ़कर 14.2% हो गई। वहीं, इस एक दशक में हिंदुओं कुल जनसंख्या में आबादी 80.45% से घटकर 79.8% हो गई।
‘प्रजनन दर का सीधा संबंध धर्म से नहीं बल्कि, शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य सुविधा से है।’
आलोक बाजपेयी, जॉइंट डायरेक्टर, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया
अब तक आपने पढ़ा कि जनसंख्या कैसे बढ़ी, लेकिन अब देखिए कैसे 1990 के बाद जनसंख्या वृद्धि को लेकर एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है...
2015 में मुस्लिमों में प्रजनन दर 2.6 और हिंदुओं में 2.1 थी
भारत में मुसलमानों की फर्टिलिटी रेट की बात करें तो 2015 में हर मुसलमान महिला के औसतन 2.6 बच्चे थे। वहीं, हिंदू महिलाओं के बच्चों की संख्या औसतन 2.1 थी। सबसे कम फर्टिलिटी रेट जैन समूह की पाई गई। जैन महिलाओं के बच्चों की औसत संख्या 1.2 थी।
रिपोर्ट के मुताबिक 1992 में मुसलमानों की फर्टिलिटी रेट सबसे ज्यादा 4.4 थी। दूसरे नंबर पर हिंदू 3.3 थे। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार जनसंख्या दर में कमी अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय में आई है, जो 1990 के पहले तक हिंदुओं से कहीं ज्यादा हुआ करती थी।
एक हकीकत ये भी है…..
जम्मू-कश्मीर, केरल, प. बंगाल सहित जिन राज्यों में मुस्लिम आबादी 20% से ज्यादा है, वहां भी फर्टिलिटी रेट राष्ट्रीय औसत 1.8 से नीचे है। इसमें UP अपवाद है, जहां, दर 2.4 है। इसके अलावा देश में सर्वाधिक 3 फर्टिलिटी रेट बिहार में है। वहीं, मेघालय में 2.9, यूपी में 2.4, झारखंड में 2.3 और राजस्थान में 2.1 है।
दुनिया के बाकी मुस्लिम देशों में जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार
हमने दुनिया के बाकी देशों में मुस्लिम आबादी बढ़ने की रफ्तार को जानने के लिए वर्ल्ड बैंक के डेटा से एनालिसिस किया। इसमें पता चला कि सऊदी अरब में 33.49% की रफ्तार से जनसंख्या 2001 से 2011 के बीच बढ़ी है। वहीं, नाइजीरिया में 29.82% और पाकिस्तान में 25.54% की दर से जनसंख्या एक दशक में बढ़ी है। इसके अलावा भारत में मुस्लिमों की आबादी इस एक दशक में 24.78% की रफ्तार से बढ़ी है।
आपने पूरी खबर पढ़ ली है तो आइए अब पोल में हिस्सा लेते हैं..
सहयोग: सौमित्र शुक्ला
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