निजामुद्दीन स्टेशन से लाइव रिपोर्ट..
मंगलवार को दोपहर साढ़े बारह बजे के करीब कोटा-निजामुद्दीन जनशताब्दी एक्सप्रेस निजामुद्दीन के प्लेटफॉर्म नंबर-1 पर आकर लगी। ट्रेन कोटा से आई थी और दोबारा वहीं जाने के लिए तैयार हो रही थी। कोटा जाने वाले यात्री करीब दो घंटे से इस ट्रेन के इंतजार में प्लेटफॉर्म पर ही बैठे थे।
ट्रेन आने के बाद सफाई शुरू हुई, लेकिन कई डिब्बों में सिर्फ बाहर से ही सैनिटाइजेशन की फुहारें चला दी गईं। यह देख ट्रेन में जाने की तैयारी में बैठे यात्री नाराज हो गए। एक यात्री मुनीश ने कहा कि ट्रेन को सिर्फ बाहर से सैनिटाइज किया गया है। अंदर कोई नहीं गया इसलिए हम ट्रेन में नहीं बैठेंगे। एक अन्य यात्री सतीश कुमार के मुताबिक, हम काफी देर से खड़े हैं लेकिन सैनिटाइजेशन अंदर से हुआ ही नहीं।
इसके बाद कई यात्री इकट्ठा हो गए और उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया। हंगामे का मालूम हुआ तो क्लीनिंग, सैनिटाइजेशन का जिम्मा संभालने वाले कमल राणा वहां पहुंच गए। उन्होंने यात्रियों से कहा कि ट्रेन आते ही अंदर से सैनिटाइजेशन करवा दिया था, आप लोग बैठ जाओ।
इस पर यात्री भयानक गुस्सा होने लगे और एक बुजुर्ग यात्री तो कहने लगे, ‘बेवकूफ किसी और को बनाइएगा। हर रोज ट्रेन में यात्री कोरोना पॉजिटिव हो रहे हैं। मर रहे हैं। पूरा सैनिटाइजर करवाइए, वरना कोई अंदर नहीं बैठेगा।’
इसके बाद राणा ने सैनिटाइजेशन करने वाले कर्मचारी को फोन किया। वह प्लेटफॉर्म पर ही था। उसने तुरंत आकर कोच को अंदर से अच्छे से सैनिटाइज किया। इसके बाद ही यात्री ट्रेन में चढ़े। हमने जब राणा से पूछा कि, इस तरह की लापरवाही क्यों की जा रही है तो कहने लगा, ‘करवाया था, इन लोगों ने देखा नहीं।’ उसने वॉट्सऐप पर एक वीडियो भी दिखाया जिसमें कुछ कर्मचारी सैनिटाइजेशन करते दिख रहे हैं, लेकिन यह वीडियो इसी ट्रेन का है, इस बात की पुष्टि वह नहीं कर सका।
सैनिटाइजेशन करने वाले बोले- हम दो लोग मिलकर पांच ट्रेनों को सैनिटाइज कर रहे
सैनिटाइजेशन करने वाले अंकित कहते हैं, ‘सर कोरोना वायरस जब से शुरू हुआ है, तब से ही मैं ट्रेनों और प्लेटफॉर्म पर सैनिटाइजेशन का काम कर रहा हूं। मेरे घर में मां, पापा, भाई-बहन हैं, लेकिन कमाने वाला एकमात्र मैं ही हूं। उन्हें दिन-रात मेरी फ्रिक रहती है।
बचने के लिए हमारे पास सिर्फ मास्क और ग्लव्स हैं। ग्लव्स भी हमेशा नहीं पहन पाते। बोला, हम दो लोग मिलकर हर रोज चार से पांच ट्रेनों को सैनिटाइज करते हैं। जल्दी-जल्दी करने पर भी एक ट्रेन को सैनिटाइज करने में कम से कम दो घंटे लगते हैं।
दो महिलाएं, तीन ट्रेनों में झाड़ू लगाती हैं
ट्रेन में झाड़ू लगाने वाली बेबी ने बताया कि, एक दिन में मैं तीन ट्रेनों की सफाई करती हूं। पहले एक ट्रेन को साफ करने के लिए चार घंटे का वक्त मिलता था लेकिन अभी दो घंटे का मिल रहा है। बोली, मेरे परिवार में कोई नहीं है। मैं अकेली हूं। लेकिन कोरोना से डर तो लगता ही है। संक्रमण से बचने के लिए मास्क, ग्लव्स और हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करती हूं
दो कर्मचारी झाडू लगाती हैं और दो कूड़ा भरती हैं। पहले से लेकर आखिरी डिब्बे तक को पूरा साफ करना होता है। कमर भी इतनी दुखने लगती है कि सीधे खड़े होते नहीं बनता। हालांकि इतने सालों से मेहनत कर रहे हैं तो आदत में भी आ गया। ट्रेन में पोंछा लगाने वाली लीलावती ने बताया कि एक ट्रेन में घंटे दो घंटे लग जाते हैं।
कोरोना से डर लगता है, यह पूछने पर बोलीं कि अपनी जान किसको प्यारी नहीं है। बचाव के लिए क्या कर रही हो तो बोलीं, दस्ताने पहनते हैं। मास्क लगाते हैं। बच्चे काम पर आने से मना करते हैं, लेकिन काम बंद हो गया तो फिर घर कैसे चलेगा। इसलिए काम बंद नहीं कर रही।
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