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कन्नूर जिला ही केरल की पॉलिटिकल कैपिटल है, लेकिन यहां राजनीति से ज्यादा विचारधाराओं की लड़ाई लड़ी जा रही है। एक ओर CPM है, जिसके पास सत्ता, कैडर और पॉवर है। दूसरी ओर संघ है, जिसके पास कैडर है, लेकिन सत्ता और पॉवर से अब तक महरूम है। भारत में कम्युनिस्ट पार्टी 1939 में कन्नूर में ही पैदा हुई। जबकि संघ ने एक साल बाद ही 1940 में केरल में कदम रख दिए थे। तब से तकरीबन 80 साल हो गए इन दो विचारधाओं के बीच जारी लड़ाई को। बाद में विचारधारा की लड़ाई खूनी संघर्ष में बदल गई। और कन्नूर देश की पॉलिटिकल मर्डर की कैपिटल बन गई।
केरल में चुनावी माहौल है। यहां एक बात बहुत आम है, पार्टियां पहले चुनाव से निपटती हैं, फिर कार्यकर्ता आपस में निपटते हैं। यानी बदले का खेल शुरू होता है। इस चुनावी गहमागहमी के बीच मेरी मुलाकात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केरल प्रांत के संघचालक एडवोकेट केके बलराम से हुई। बलराम यहीं कन्नूर कोर्ट में प्रैक्टिस के साथ केरल में संघ का नेतृत्व भी कर रहे हैं। मैंने उनसे संघ की गतिविधियों और कम्युनिस्ट पार्टी से वर्चस्व की जंग को लेकर कई सवाल पूछे, जिनका उन्होंने बड़े ही साफगोई के साथ जवाब दिया। पेश है इंटरव्यू के प्रमुख अंश...
केरल में संघ कब से काम काम कर रहा है? कितनी शाखाएं लगती हैं यहां?
केरल में संघ 1940 से काम कर रहा है। यहां 4 हजार से ज्यादा शाखाएं लगती हैं, इनमें 2.5 लाख से ज्यादा स्वयंसेवक हैं। शाखाओं के लिहाज से केरल प्रांत देश में सबसे आगे है। यही नहीं, केरल में संघ ने सबसे पहले काम करना शुरू किया था। यहां हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि कुछ दिक्कतें भी आ रही हैं। खासकर उत्तर केरल के कई इलाकों में जहां CPM ने कई गांवों को पार्टी विलेज में कन्वर्ट कर दिया है, वे वहां हमें काम नहीं करने दे रहे हैं। बाकी इलाकों में जहां हमें काम करने की इजाजत है, वहां हम अपना काम कर रहे हैं।
केरल में संघ अपनी ज्यादातर गतिविधियां कन्नूर से ही क्यों चलाता है, संघ का स्ट्रांगहोल्ड भी यहीं है?
नहीं, हमारा प्रांत कार्यालय एर्नाकुलम में है, लेकिन संघ कन्नूर के कुछ इलाकों को छोड़ दें तो हर हिस्से में काम कर रहा है। इनमें मुख्यमंत्री विजयन का गांव पिनराई भी है, जहां संघ की शाखा नहीं लग पा रही है।
केरल में स्वयंसेवकों और CPM वर्कर्स के बीच अक्सर हिंसा क्यों होती रहती है, खासकर कन्नूर में जिसे देश की पॉलिटिकल मर्डर कैपिटल कहा जाता है?
जब से संघ ने केरल में काम करना शुरू किया, तभी से CPM ने संघ को गलत तरीके से देखना शुरू कर दिया। वे सोचते थे कि यह ऐसा इलाका है, जहां कम्युनिज्म स्ट्रांग है, वहां संघ की विचारधारा काम नहीं कर पाएगी, लेकिन जब धीरे-धीरे संघ ने उनके इलाकों में काम करना शुरू किया, तो उन्होंने इसका फिजिकली विरोध शुरू किया, ताकि संघ की ग्रोथ रुक जाए।
जहां तक बात संघ की है, तो संघ का मुख्य काम शाखा लगाना है। इसलिए जब हम कम्युनिस्ट इलाकों में शाखा लगाना शुरू करते हैं, और उन्हें यह बात मालूम चलती है, तो वे स्वयंसेवकों पर फिजिकली अटैक करते हैं। 2016 में जब CPM की सरकार बनी तो कम्युनिस्ट पार्टी ने संघ के कार्यकर्ताओं पर बड़े पैमाने पर हमले किए, इसके बाद संघ की चीफ मिनिस्टर के साथ बातचीत हुई। एक तरफ मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी के सेक्रेटरी थे, दूसरी ओर संघ के नेता थे।
हमने उनके सामने दो मांगें रखी थीं। पहली मांग थी कि हमें केरल में हर जगह काम करने की अनुमति मिलनी चाहिए। दूसरी मांग थी कि अधिकारी खासकर पुलिस हमारे वर्कर्स के खिलाफ पक्षपाती रवैया न अपनाए। आखिरकार इस बात पर मुख्यमंत्री सहमत हुए, इसके बाद से हिंसा में कुछ कमी आई है, खासकर उत्तरी केरल में।
तो क्या CPM की वजह से केरल में संघ का कामकाज प्रभावित हुआ है?
हां, कुछ इलाके जहां उनके स्ट्रांगहोल्ड पॉकेट्स हैं, वहां वे हमें काम करने की अनुमति नहीं देते हैं, लेकिन हम धीरे-धीरे पहले उनके स्ट्रांगहोल्ड के पास के इलाकों में काम करते हैं, फिर उनके पॉकेट्स में भी पहुंच जाते हैं। ऐसा संघ का मानना है।
केरल में स्वयंसेवक तो CPM वर्कर्स से बहुत डरे हुए हैं, कई युवाओं की तो हत्या भी हो गई, ऐसे में क्या संघ की लीडरशिप उन्हें कोई प्रोटेक्शन दे रही है?
ऐसा CPM के कुछ स्ट्रॉन्ग पॉकेट्स में है, लेकिन हम वहां भी काम कर रहे हैं। यदि कोई विवाद होता है, तो पुलिस उसमें हस्तक्षेप करती है। प्रोटेक्शन का मतलब है कि हम वहां काम करते हैं, जब वे हम पर हमला करते हैं, तो हम पुलिस प्रशासन के पास ही जाते हैं, इसके अलावा हम वहां के लोकल लीडर से भी मिलते हैं और काम करने की अनुमति मांगते हैं, यदि वो देते हैं, तो हम आगे बढ़ते हैं।
पिछले कुछ सालों में संघ और CPM वर्कर्स के बीच बहुत सारी हिंसा की घटनाएं हुई हैं, इनमें कितने स्वयंसेवक मारे गए हैं?
अकेले कन्नूर में 80 से ज्यादा स्वयंसेवक अब तक अपनी जान गवां चुके हैं। पहली घटना 1968 में हुई थी, जब कन्नूर के थालासेरी में वडेक्कल रामाकृष्णन की CPM वर्कर्स ने उनकी दुकान पर हत्या कर दी थी। इसके बाद से हमने इतने स्वयंसेवक खोए हैं, इसके अलावा पूरे केरल में 250 से ज्यादा स्वयंसेवकों ने अपनी जिंदगी गंवाई है। CPM के पास मनी और मसल पॉवर दोनों है।
क्या किसी स्वयंसेवक के परिवार को प्रशासन और कोर्ट से न्याय मिली?
यहां पुलिस हमेशा सत्ताधारी पार्टी के लिए काम करती है। आमतौर पर हम यहां सोचते भी हैं कि हमें पुलिस से कोई न्याय नहीं मिलेगा। बहुत से इलाके हैं, जहां हमारे लोगों को पुलिस से न्याय नहीं मिलता है, क्योंकि वहां पुलिस को CPM के लोग चलाते हैं।
CPM वर्कर्स संघ को काम करने से क्यों रोकते हैं, इसके पीछे की वजह क्या है?
दरअसल, जब से CPM कैडर के लोगों ने संघ में आना शुरू किया है, तब से ही उन्हें दिक्कत हुई। जब उन्हें यह पता चलता है कि उनका कोई वर्कर किसी दूसरे ऑर्गेनाइजेशन में चला गया, तो वे उस ऑर्गेनाइजेशन पर फिजिकल अटैक करना शुरू कर देते हैं। केरल में सभी पार्टियों के लोगों को CPM वर्कर्स से ही खतरा महसूस होता है। यहां तक कि कांग्रेस के लोगों ने भी इसका सामना किया है, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी संघ ने उठाई है, क्योंकि संघ ने CPM के पॉकेट्स में काम करना जारी रखा है।
संघ और CPM वर्कर्स के बीच आपको क्या अंतर नजर आता है?
संघ वर्कर्स और CPM वर्कर्स के बीच बहुत ज्यादा अंतर है। स्वयंसेवक अपनी आइडियोलॉजी को लेकर कमिटेड होते हैं। वे RSS की ओर सिर्फ इसलिए आकर्षित होते हैं, क्योंकि हमारा आइडियोलॉजिकल कमिटमेंट होता है, लेकिन दूसरी ओर जहां तक बात CPM की है, तो वह मल्टीनेशनल कंपनी जैसी पार्टी है। उनके ज्यादातर वर्कर्स डायरेक्टली और इनडायरेक्टली CPM द्वारा स्थापित इंस्टीट्यूट में नौकरी करते हैं। उनके कई सारे इंस्टीयूट्ट भी हैं, जैसे- कोऑपरेटिव सोसाइटी, कोऑपरेटिव बैंक, हॉस्पिटल, स्कूल आदि। यहीं पर उनके वर्कर्स स्थापित हैं, इसलिए वे CPM से इतनी करीबी तौर पर जुड़े हैं। जबकि स्वयंसेवक के साथ ऐसा कुछ नहीं है। संघ का सदस्य पंचायत मेंबर भी नहीं होता है, लेकिन वो हमारी आइडियोलॉजी के चलते जुड़ा होता है।
तो किस आइडियोलॉजी के जरिए आप स्वयंसेवकों को मोटिवेट करते हैं? किस तरह का उनका कमिटमेंट होता है?
बहुत आसान है, वे रोज शाखा आते हैं और उन्हें हमारी विचारधारा के बारे में मालूम चलता जाता है। स्वयंसेवकों का नेशनल कमिटमेंट होता है, क्योंकि वे हमारे देश और यहां के लोगों से प्यार करते हैं। खासकर, ऐसे लोग जो इस धरती को मातृभूमि मानते हैं, वही संघ से जुड़ते हैं।
खासकर केरल में मिलिटेंट्स एक्टीविटीज बहुत बड़े पैमाने पर पनप रही हैं। इसे रोकने के लिए भी संघ काम कर रहा है, इसलिए भी लोग यहां संघ के साथ जुड़ रहे हैं। वे सोचते हैं कि यदि RSS यहां मजबूत होगा, तो इस तरह की मिलिटेंसी और एंटीनेशनल एक्टीविटीज नहीं हो पाएंगी। यह केरल के लोगों की आम फीलिंग्स है।
भाजपा कह रही है कि केरल में लव जिहाद है, क्या संघ को भी लगता है कि केरल में ऐसा कुछ है?
इसे तो यहां की हाईकोर्ट ने भी माना है। यह सिर्फ संघ के कहने की बात नहीं है। केरल हाईकोर्ट के माननीय न्यायधीश ने भी अपने फैसले में पाया कि केरल में लव जिहाद है। सामान्य तौर पर भी यह बात केरल का हर कोई व्यक्ति भी मानता है।
संघ को केरल में काम करते हुए 80 साल हो गए, केरल में उसका स्ट्रांगहोल्ड भी है, फिर भी भाजपा यहां अच्छा नहीं कर पाई?
बलराम इस सवाल पर हंसते हुए कहते हैं कि यह आप भाजपा के नेताओं से पूछिए। मैं सिर्फ RSS से जुड़ा हूं, और संघ केरल में हर जगह आगे बढ़ रहा है।
संघ से जुड़े लोगों का वोट यहां क्या भाजपा को डिलीवर नहीं हो पाता है, जबकि अन्य राज्यों में तो संघ की वजह से भाजपा जीत जाती है?
सामान्य तौर पर यहां भी जब चुनाव आता है तो एक स्वयंसेवक भाजपा को ही वोट करना पसंद करता है, क्योंकि बाकी दोनों फ्रंट LDF और UDF एंटी नेशनल एक्टीविटीज के बारे में कुछ नहीं बोलती हैं। इसलिए हमेशा स्वयंसेवक RSS की आइडियोलॉजी को मानने के चलते भाजपा को ही सपोर्ट करते हैं।
लोग कहते हैं कि संघ के स्वयंसेवक यहां भाजपा के लिए काम नहीं करते हैं, इसलिए भाजपा यहां नहीं जीतती है? जबकि त्रिपुरा में किया तो वहां भाजपा जीत गई?
भाजपा खुद एक ऑर्गेनाइजेशन हैं, उनका अपना काम करने का स्ट्रक्चर है। वे अपनी क्षमता के हिसाब से भाजपा की सफलता के लिए काम करते हैं। एक ऑर्गेनाइजेशन के नाते RSS पूरी तरह से किसी पॉलिटिकल पार्टी के लिए काम नहीं करती है और न ही बहुत ज्यादा पॉलिटिकल एक्टीविटीज में शामिल होती है। हां, स्वयंसेवक व्यक्तिगत तौर पर किसी भी पार्टी के लिए काम कर सकते हैं। जहां तक बात त्रिपुरा या बंगाल की है, वहां स्वयंसेवकों ने भाजपा को सपोर्ट किया, क्योंकि वहां भी उनकी आइडियोलॉजी भाजपा से मैच की, बस।
संघ लीडर होने के नाते आपको क्या लगता है कि क्या आने वाले समय में भाजपा केरल में इम्प्रूव करेगी?
सामान्य तौर पर देखें तो यहां भाजपा के फेवर में ट्रेंड है। जहां तक मैं आम जनता को समझ सका हूं, उस हिसाब से।
क्या संघ भाजपा को मजबूत करने के लिए काम कर रही है?
नहीं, नहीं, संघ के पास अपने काम निर्धारित हैं।
कासरगोड़ में ISIS के नेटवर्क के बारे में पता चला था, कुछ और कट्टरपंथी गुट भी यहां हैं? संघ को क्या लगता है?
अच्छा आप ISIS में रिक्रूटमेंट की बात कर रहे हैं। दरअसल, कुछ लोग यहां मिसिंग पाए गए थे, फिर इन्वेस्टिगेशन में पता पता चला कि वे सीरिया और अन्य हिस्सों में चले गए हैं। वहीं, हमने कट्टरपंथी संगठन SDPI को बैन करने के लिए भी केंद्र सरकार को प्रपोजल दिया था, लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं पाया है।
केरल में क्रिश्चियन आबादी बड़ी तादाद में है, क्या संघ की कोशिश क्रिश्चियन लोगों को भी खुद से जोड़ने की है?
नहीं, हम कभी नहीं चाहते हैं कि क्रिश्चियन RSS को ज्वॉइन करें, लेकिन हमारे लीडर बिशप्स के साथ बातचीत करते रहते हैं, ताकि RSS और चर्च के बीच में अच्छे संबंध बनाए जा सकें।
केरल में बहुत बड़ी संख्या में लोग बीफ खाते हैं, संघ का इस बारे में क्या सोचना है?
हम लोगों से केवल बीफ को अवॉइड करने की आदत डालने के लिए कहते हैं। हमारे वर्कर्स इसे नहीं खाते हैं, लेकिन कुछ लोगों ने हमारे खिलाफ प्रोपेगेंडा फैला रखा है कि हम पब्लिक को बीफ खाने से रोकते हैं।
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