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देश के सबसे अमीर मंदिरों में से एक पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में है। मंदिर में प्रवेश के तीन गेट हैं। मेन गेट से मुख्य श्रद्धालु जाते हैं, अन्य दो गेटों से वीआईपी, मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोग और रॉयल फैमिली के लोग जाते हैं। चुनावी माहौल है ऐसे में मंदिर में दर्शन करने वालों में बड़ी संख्या में राजनीतिक लोग भी दिखाई देते हैं। ऐसी ही एक गाड़ी, जिस पर कम्युनिस्ट पार्टी का झंडा लगा है, तीसरे गेट से एंट्री करते हुए, दूसरे गेट की ओर जाती है।
इसमें से कुछ कम्युनिस्ट के नेता उतरते हैं, उनके हाथ में फाइलें होती हैं। वे बगल के ही एक बिल्डिंग में चले जाते हैं। सिक्योरिटी गार्ड भी उनसे कुछ नहीं पूछते हैं। मंदिर के दूसरे गेट के पास ही कम्युनिस्ट पार्टी और भाजपा के ट्रेड यूनियंस का झंडा भी टंगा हुआ है। पूछने पर पता चलता है कि मंदिर में ट्रेड यूनियंस भी हैं। परिसर में ही कुछ एंबुलेंस खड़ी हैं, जिन पर शिवसेना का झंडा बना हुआ है।
राज्य सरकार मंदिर की कोई आर्थिक मदद नहीं करती
इस भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण 1733 ई. में त्रावनकोर रियासत के महाराजा मार्तंड वर्मा ने करवाया था। हमारी मुलाकात इसी त्रावनकोर रॉयल फैमिली के प्रिंस और मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्य आदित्य वर्मा से हुई। वे कहते हैं कि अब तो राजा जैसी कोई पोस्ट नहीं है, लेकिन हमारे परिवार में सबसे बुजुर्ग सदस्य ही हेड ऑफ फैमिली होता है। फिलहाल हमारे चाचा रामा वर्मा हैं। वे मंदिर के चीफ ट्रस्टी भी हैं। 28 मार्च से मंदिर का फेस्टिवल शुरू हुआ है। इसमें पूरे राज्य से लोग आते हैं। अभी तो कोविड के चलते ज्यादा भीड़ नहीं आ रही है, कोरोना से पहले तक रोज 2 से 3 लाख रुपए चढ़ावा चढ़ता था, लेकिन अभी 50 से 60 हजार रुपए ही चढ़ता है। राज्य सरकार मंदिर की कोई आर्थिक मदद नहीं करती है, बल्कि मंदिर हर साल सरकार को पुलिस और अन्य सरकारी मदद के लिए पैसे देता है।
हाल ही में पद्मनाभस्वामी मंदिर की प्रशासन समिति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि मंदिर के रखरखाव पर केरल सरकार की ओर से खर्च किए गए 11 करोड़ रुपए चुका पाने में असमर्थ है। आदित्य वर्मा कहते हैं कि सबरीमाला मंदिर के सीजन अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर, जनवरी में सबसे ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। ये पूछने पर क्या कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार के लोग भी मंदिर आते हैं? इस पर आदित्य हंसते हुए कहते हैं कि ज्यादा लोग तो नहीं आते हैं, लेकिन एक-दो मंत्री 3-4 बार आए हैं मंदिर की सिक्योरिटी व्यवस्था को चेक करने के लिए। लेकिन मुख्यमंत्री विजयन कभी भी मंदिर में नहीं आए हैं। मुझे नहीं लगता कि वे आएंगे भी। हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे।
यह पूछने पर कि आपको क्या लगता है कि कम्युनिस्ट पार्टी के लोग मंदिर क्यों नहीं आते हैं, इस पर आदित्य कहते हैं कि मैं राजनीति पर कोई कमेंट नहीं करूंगा। लेकिन वे मंदिर के विरोध में भी कुछ नहीं करते हैं। वे हमें सपोर्ट भी करते हैं, हां बाकी राज्यों की सरकारों की तरह वे मंदिर में बहुत ज्यादा विश्वास नहीं दिखाते हैं।
मंदिर से कितने श्रद्धालु जुड़े हैं? इसका क्या प्रभाव है यहां? इस पर आदित्य कहते हैं कि पिछले साल हमने कोविड से पहले 20-20 फेस्टिवल मनाया था। इसमें एक लाख दीये जलाए थे, इसमें 30 हजार से ज्यादा लोग पहुंचे थे। तिरुवनंतपुरम पर मंदिर का ही सारा प्रभाव है, यह भगवान की जगह है।
अभी यूनियन पर कब्जा एलडीएफ का है
केरल के विकास को लेकर बात करने पर आदित्य कहते हैं कि यहां डेवलपमेंट बहुत स्लो है। यहां के मुकाबले तमिलनाडु में ज्यादा तेजी से सड़कें और हाईवे बनते हैं। यहां 10 साल लग जाते हैं, एक काम में। अब कॉर्पोरेट कंपनियां आ रही हैं, जो अच्छा है, अडानी ग्रुप ने त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट और सी पोर्ट को खरीद लिया है। वहां बहुत तेजी से नया काम भी चल रहा है।
केरल कौन सी पार्टी जीतने जा रही है? इस पर आदित्य फिर हंसते हुए कहते हैं कि मैं इस पर कुछ नहीं कहूंगा। लेकिन, भाजपा डिसाइडिंग फैक्टर बन सकती है, एलडीएफ और यूडीएफ के लिए। पद्मनाभस्वामी मंदिर में भी पार्टियों का यूनियन है? इस सवाल पर आदित्य कहते हैं कि हां यहां सब जगह यूनियन होता है, सीपीएम, कांग्रेस, भाजपा तीनों का यूनियन है। लेकिन, अभी यूनियन पर कब्जा एलडीएफ का है। मंदिर में कुल 250 कर्मचारी हैं।
तिरुवनंतपुरम के वरिष्ठ पत्रकार अनिल बताते हैं कि मैंने आज तक नहीं देखा कि मुख्यमंत्री विजयन पद्मनाभस्वामी मंदिर में दर्शन के लिए गए हों। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी आम चुनाव के दौरान गए थे। रही बात मंदिर के प्रभाव की तो मंदिर के भक्त तो पूरे केरल में हैं। लेकिन, मंदिर का मुख्य असर तिरुवनंतपुरम जिले की सभी 14 विधानसभा सीटों पर है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के कर्मचारी यूनियन के वर्किंग प्रेसिडेंट आरएस विजय मोहन कहते हैं कि यहां मंदिर में सभी पार्टियों की श्रद्धा है। टेंपल कोई पॉलिटिकल प्रोडक्ट नहीं है। यहां साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है, सभी धर्म के लोग मंदिर आते-जाते हैं। भाजपा मंदिर को लेकर राजनीति करती है, मंदिर के आसपास डेवलपमेंट के 75 करोड़ रुपए भी दिए थे। लेकिन, उसका कुछ खास असर नहीं है। यहां मंदिर सीपीएम से जुड़ी सीआईटीयू ट्रेड यूनियन का पिछले तीन साल से कब्जा है।
भाजपा के केरल से पहले विधायक और वरिष्ठ नेता ओ राजगोपाल कहते हैं कि मुख्यमंत्री विजयन आज तक कभी मंदिर नहीं आए हैं। उनमें और हममें यही फर्क है कि हम भगवान को मानते हैं, वो नहीं मानते हैं।
2020 में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के प्रबंधन का अधिकार दोबारा त्रावणकोर की राॅयल फैमिली को दे दिया
2010 तक मंदिर की देखभाल एक ट्रस्ट करता था, जिसका अध्यक्ष रॉयल फैमिली का सदस्य होता था, लेकिन 2011 में केरल हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए मंदिर के प्रबंधन का अधिकार त्रावणकोर की पूर्व राॅयल फैमिली को दे दिया। इसके साथ ही मंदिर की देखरेख के लिए दो कमेटियां भी बना दी। पहली कमेटी ओवरसीइंग कमेटी है, इसमें एक रिटायर्ड जज हैं, एक चार्टेड अकाउंटेंट हैं, एक रॉयल फैमिली का सदस्य है।
दूसरी कमेटी एडमिनिस्ट्रेटिव कमेटी है। इसमें तिरुवनंतपुरम् के डिस्ट्रिक्ट जज, राज्य सरकार का एक नॉमिनी, केंद्र सरकार का एम नॉमिनी और एक नॉमिनी रॉयल फैमिली का होता है। रॉयल फैमिली की ओर से फिलहाल आदित्य वर्मा इसके सदस्य हैं। मंदिर के चीफ ट्रस्टी रामा वर्मा हैं।
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