एक्सीडेंट से अनु का चेहरा बुरी तरह बिगड़ा:डेढ़ महीने कोमा में रहीं, 3 साल याद्दाश्त नहीं लौटी, अब 2.5 लाख लोगों को योग सिखाया

5 महीने पहलेलेखक: अरुणिमा शुक्ला
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1990 में आई फिल्म आशिकी से बॉलीवुड को एक नई स्टार मिली थी अनु अग्रवाल। बहुत साधारण से नैन-नक्श और सांवले रंग ने लोगों को अनु का दीवाना बना दिया था। फिल्म हिट हुई और अनु की झोली में कई बड़ी फिल्में थीं। घर के बाहर डायरेक्टर्स की लाइन लगी रहती थी। एक के बाद एक फिल्में और करियर सफलता के शिखर की ओर तेजी से बढ़ रही थीं, तभी एक एक्सीडेंट ने पूरी जिंदगी बदल कर रख दी। ये एक्सीडेंट इतना खतरनाक था कि अनु डेढ़ महीने तक कोमा में रहीं। चेहरा बिगड़ चुका था और याद्दाश्त चली गई थी, जो तीन साल तक नहीं लौटी।

इस एक्सीडेंट से उबरने में अनु को कोई चार साल लगे। जब उनकी याद्दाश्त लौटी, तब तक फिल्मी करियर लगभग खत्म हो चुका था। चेहरा इतना बिगड़ चुका था कि फिल्मों में वापसी संभव नहीं थी। ये वो समय था जब कोई और इंसान डिप्रेशन में आकर जिंदगी को खत्म कर लेता, लेकिन अनु ने हिम्मत नहीं हारी। योग का सहारा लिया। पहले खुद को ठीक किया, फिर अपना योग फाउंडेशन बनाकर जरूरतमंदों को योग सिखाना शुरू किया। अब तक अनु 2.5 लाख से ज्यादा लोगों को योग सिखा चुकी हैं।

अपने बुरे दिनों और उस भयानक एक्सीडेंट से उबर कर अनु पूरी तरह ठीक हैं और अब खुद भी फिल्मों और OTT पर दोबारा एक्टिंग करियर शुरू करने के बारे में सोच रही हैं। आज अनु अग्रवाल का 54वां जन्मदिन है। इस खास मौके पर हमने अनु से उनके उसी एक्सीडेंट से उबरने और उसके बाद योग से जिंदगी को बदलने के एक्सपीरियंस पर बात की। अनु ने भी अपने अनुभव हमसे खुल कर साझा किए।

पढ़िए, अनु अग्रवाल की अब तक की जर्नी जो उन्होंने हमारे रिपोर्टर उमेश उपाध्याय को सुनाई...

मेरे दो जन्म हुए हैं
मेरे दो जन्मदिन हैं, पहला जो 11 जनवरी को हुआ था और दूसरा 2 अक्टूबर को हुआ था। मैं 2 अक्टूबर को मौत के चंगुल से निकल कर आई थी। इस दिन मेरा भयंकर एक्सीडेंट हो गया था। डॉक्टर ने तो मान लिया था कि मैं बच नहीं पाऊंगी। मैं करीब डेढ़ महीने कोमा में थी।

डाॅक्टर ने कहा था- 2-3 साल तक ही जिंदा रहूंगी
जब मुझे अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया था कि तो डॉक्टर ने मां-पापा से कहा- मैं 2-3 साल तक ही जिंदा रहूंगी। क्योंकि मैं ऐसे स्टेज पर थी कि उठ भी नहीं पाती थी और इंसान इस स्टेज में जाने के बाद लगभग 3 साल तक ही जिंदा रहता है। मेरी स्थिति ऐसी थी कि जिसमें मेरा दिमाग और शरीर ठीक से काम नहीं करता था। मैं सब कुछ भूल गई थी और मुझे सब कुछ बाद में सीखना पड़ा। हालांकि बाद में मैं पूरी तरह से ठीक हो गई इसलिए मैं इसे अपना दूसरा जन्मदिन कहती हूं।

1997 में योग स्कूल गईं, फिर संन्यास ले लिया
1997 में मैंने योग स्कूल जॉइन किया था। वहां जो स्वामीजी थे, उन्होंने मुझसे कहा, आप संन्यास ले लीजिए। मैंने उनसे कहा- आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? मैं तो फिल्म स्टार हूं। मैंने सोचा कि शायद इन्होंने मेरे बारे में किसी मैगजीन में नहीं पढ़ा नहीं होगा कि मेरे बारे में क्या-क्या आर्टिकल छपे हैं इसलिए मुझे संन्यास लेने के लिए कह रहे हैं। हालांकि कुछ समय बाद मैंने संन्यास ले लिया।

8 साल पहले योग फाउंडेशन शुरू किया, 2.5 लाख लोग जुड़े
इसके बाद ही मैंने फैसला कि मैं हर जरूरतमंद को योग सिखाऊंगी। इस दर्द भरे सफर के बाद मैंने योग फाउंडेशन शुरू किया। 8 साल पहले मैंने इसकी शुरुआत की थी। इसके बाद मैंने इस बात पर विचार किया कि इस फाउंडेशन में किसे जोड़ा जाए। मैंने इसके जरिए उन लोगों को जोड़ा जो कमजोर थे, जो तंगी से जूझ रहे थे और डिप्रेशन में थे। मैं अब तक ढाई लाख लोगों को योग सिखा चुकी हूं। इस योग फाउंडेशन से ज्यादातर बच्चे और औरतें जुड़े हैं।

पहले खुद को संवारा, योग में खुद को ढाला
फाउंडेशन को शुरू करने से पहले, मैंने खुद पर काम किया। एक्सीडेंट के बाद खुद को पूरी तरह से हील किया। एक चार्ट बनाया, जिसके बाद उसी के हिसाब से खुद को उस लाइफस्टाइल में ढाला और ठीक हुई।

इसके बाद अनु अग्रवाल फाउंडेशन की शुरुआत की। सबसे पहले मैंने इसमें स्लम में रहने वाले बच्चों और औरतों को जोड़ा।

आशिकी की तरह रियल लाइफ में भी मेरा बाॅयफ्रेंड म्यूजिशियन था
फिल्म आशिकी में मेरा नाम अनु था और वो महेश भट्ट ने अपने मन से ही फिल्म के किरदार का भी नाम अनु रख दिया। शायद इसलिए क्योंकि मेरी लाइफ कुछ हद तक फिल्म की कहानी से मिलती थी। फिल्मी किरदार अनु के जैसे मैं भी एक सेल्फ मेड स्टार हूं। रियल लाइफ में भी मेरा बाॅयफ्रेंड म्यूजिशियन था।

आशिकी के बाद घर के बाहर डायरेक्टर्स की लाइन लगी रहती थी
फिल्म आशिकी के बाद मुझे बहुत से डायरेक्टर अपनी फिल्म में काम करने के लिए अप्रोच कर रहे थे। वो लोग पैसे लेकर आकर आते थे और कहते- फिल्म साइन कर लीजिए, स्क्रिप्ट बाद में लिख ली जाएगी। मैं उन लोगों से कहती थी- पहले आप स्किप्ट लिख लो फिर स्किप्ट के आधार पर मैं तय करूंगी कि फिल्म करनी है या नहीं।

लोग ज्यादा आते थे तो मकान मालिक घर खाली करने के लिए कहते थे
जहां मैं रहती थी वहां बहुत से लोग फिल्म के ऑफर लेकर आते थे। सैकड़ों प्रोड्यूसर्स आते थे, सुबह से मीडिया आ जाती थी। हर रोज लोगों की तादाद इतनी ज्यादा होती थी कि घर के मकान मालिक मुझे निकल जाने के लिए भी कहते थे।

मेरा मन अब अध्यात्म में ज्यादा रहता है
मैं अब नॉर्मल लोगों के जैसे कमबैक के बारे में सोच ही नहीं सकती। वजह ये है कि मेरा मन अब ज्यादा अध्यात्म में रहता है। हालांकि मेरा अभी भी काम एक्टिंग और मॉडलिंग है। योग तो मैं खुद की संतुष्टि के लिए लोगों को सिखाती हूं, उससे मुझे कमाई नहीं करनी है।

अब फिल्मों के ऑफर आ रहे हैं...
अब मुझे फिल्मों के ऑफर आने लगे हैं। मैं देख रही हूं कि किस फिल्म की स्किप्ट मुझे पसंद आ जाए। OTT पर भी अच्छी फिल्में और सीरीज रिलीज हो रही है। इंटरनेशनल लेवल पर भी इंडियन फिल्में और स्टार्स अच्छा काम कर रहे हैं। शायद हाॅलीवुड से ही मुझे किसी फिल्म के लिए ऑफर आ जाए। मैं महिलाओं और देशभक्ति पर बनी फिल्म करना चाहती हूं।