'जादूनामा' के लॉन्च पर किस्सों और ठहाकों का दौर:जावेद अख्तर ने सुनाया दिलचस्प किस्सा- एयरपोर्ट पर एक फैन उन्हें गुलजार समझकर बात करता रहा

2 महीने पहलेलेखक: किरण जैन
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लेखक अरविंद मंडलोई द्वारा लेखक-गीतकार जावेद अख्तर की जिंदगी पर लिखी गई किताब 'जादूनामा' को 9 जनवरी को मुंबई में रिलीज किया गया। इस फंक्शन में जावेद अख्तर की पत्नी अभिनेत्री शबाना आजमी और बच्चे जोया और फरहान अख्तर, उनकी पत्नी शिबानी दांडेकर भी मौजूद थे। परिवार के अलावा, मशहूर लेखक गुलजार, तब्बू, दीया मिर्जा, राहुल बोस, दीप्ति नवल, उर्मिला मातोंडकर, सुभाष घई, फराह खान, नीना गुप्ता, राजकुमार हिरानी, सतीश कौशिक और दिव्या दत्ता सहित बॉलीवुड के कई सेलेब्स शामिल हुए।

कार्यक्रम में गुलजार साहब और जावेद अख्तर ने एक-दूसरे से जुड़े दिलचस्प किस्से सुनाए। जावेद अख्तर ने कहा कि कई बार लोग उन्हें गुलजार समझ लेते हैं। जावेद साहब ने किस्सा सुनाया, “एक बार शबाना और मैं एक एयरपोर्ट पर थे और हम अपने सामान का इंतजार कर रहे थे। तभी एक आदमी मेरे पास आया। उसने शबाना को ठीक मेरे पास बैठे देखा और फिर भी वह मेरे करीब आया और कहा, 'आदाब गुलजार साहब! आप एयरपोर्ट पर किसका इंतजार कर रहे हैं?' मैं शॉक्ड रह गया क्योंकि वो खुद को मेरा फैन बता रहा था। मैंने उसे जवाब दिया, 'जावेद अख्तर साहब आ रहे हैं तो मैं उन्हें रिसीव करने आया हूं।' अब वह कन्फ्यूज हो गया कि इतना बड़ा आदमी जावेद अख्तर को रिसीव करने आया है। मैंने आगे कहा, 'मैं हमेशा आता हूं जावेद अख्तर को रिसीव करने।' मेरी ये बात सुनकर उस आदमी के चेहरे पर काफी निराशा थी। मायूस नजरों से उन्होंने कहा, 'चलता हूं गुलजार साहब।' ये किस्सा सुनकर दर्शकों के बीच हंसी का फव्वारा फूट पड़ा।

इसके बाद, गुलजार साहब ने भी कुछ दिलचस्प किस्से शेयर किए। उन्होंने कहा, "आप ने तो गाना लिख दिया था, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा। लेकिन हर अंतरे में मुझे लगता है कि ये दूसरी लड़की (शबाना नहीं) है। जब आपने लिखा था कि 'तुमको देखा तो ये खयाल आया, जिंदगी धूप तुम घना साया...' तब तक तो ठीक लग रहा था। लग रहा था बड़े गंभीर हैं आप। घर की बात कर रहे हैं। लेकिन घर की है या बाहर की, ये तो आप बेहतर जानते हैं।"

गुलजार साहब ने सुनाई अपनी कविता

प्रोग्राम में गुलजार साहब ने एक कविता सुनाई जो उन्होंने विशेष रूप से जावेद साहब के लिए लिखी थी। उन्होंने कहा कि वे जहां भी जाएं, जिस भी देश में जाएं, इसे हमेशा पढ़ते हैं और इसके लिए उन्हें हमेशा बहुत सराहना भी मिली। उनकी ये कविता काफी हद तक जावेद साहब के किस्से से ही जुड़ी थी।

कविता है-

"एक लड़की को मैं भी मिला था,

बड़ा अच्छा लगा मिलकर, एक फैन थी मेरी,

वो मेरी शायरी की खूबियां पहचानती थी,

मेरी शायरी, तस्वीर उसके दिल को छूती थी,

मुझे मिलकर अचानक, बौखलाने लग गई थी,

बड़ी नर्वस हसीन हंसकर कहा,

मुझे डर है मैं अपना नाम ही ना भूल जाऊं,

मगर फिर मोबाइल पे सेल्फी भी ले ली,

गई तो नाम लेकर शुक्रिया कहकर गई वो।

पर वो मेरा नाम ना था।"

गुलजार साहब की ये बात सुनकर दर्शकों की तालियां गूंज उठीं।

कॉलेज में पॉपुलर गुलजार साहब को दूर से देखते थे जावेद अख्तर

गुलजार साहब से मुलाकात का किस्सा सुनाते हुए जावेद अख्तर ने बताया, 'मुझे याद है इनका जो गाना है मेरा गोरा रंग ले ले, मोहे शाम रंग दे दे वो उस समय आया था, जो काफी पॉपुलर था और हम उस वक्त कॉलेज में थे। मैं जब नया आया था और गुलजार साहब बड़े मुकाम पर पहुंच चुके थे। इनके पास फिएट कार थी और ये दो-तीन दिन बिना शेव किए नजर आते थे। जैसे ही इनकी एक झलक मिलती थी, जब उनकी तरफ इशारा करते थे कि गुलजार आ गए। इसके बाद हमारी पहली मुलाकात रमेश सिप्पी की फिल्म के जरिए हुई। मैं और सलीम साहब, हम दोनों को साढ़े 700 रुपए महीना मिलने थे। गुलजार साहब फिल्म के डायलॉग लिख रहे थे और हमें एडिशनल स्क्रीनप्ले के लिए रखा गया था। फिल्म अच्छी बनी और अच्छी चली, लेकिन फायदा ये रहा कि इसी बहाने हमारी गुलजार साहब से अच्छी दोस्ती हो गई। आज मेरा इनसे मोहब्बत का रिश्ता है।'

लेखक अरविंद मंडलोई ने कहा- जावेद साहब और मैं एक जैसे हैं

जादूनामा के लेखक अरविंद मंडलोई ने किताब लिखने के अनुभव को साझा करते हुए कहा, 'रिश्ता तो हमारा इनसे भूख से है; लोगों को लगती थी, हमें दिखाई देती थी। मेरा और जावेदजी का अनुभव और हालत एक जैसे ही थे और इसीलिए हम एक दूसरे को बहुत अच्छे से समझ पाए। हम दोनों ने बुरा वक्त देखा हुआ है, इसीलिए एक दूसरे से कनेक्ट करने में बिलकुल वक्त नहीं लगा। मैं बहुत दिल से आभारी हूँ जावेद साहब और शबाना आजमी का जिन्होंने न सिर्फ मुझे उनकी ज़िंदगी सिर्फ देखने तक की इजाजत नहीं दी बल्कि अपनी ज़िंदगी में आने की इज़ाज़त दे दी। असल में ये है की ये जो किताब लिखी गई हैं उसकी शुरुआत ऐसी हुई की मैंने जब 'तरकश' पढ़ी तब लगा की ये तो मेरी कहानी है। उसके कई साल बाद जब जावेद सर से मुलाकात हुई तब मैं बहुत संतुष्ट व्यक्ति था। सब था - एक फिक्स्ड इनकम, घर, गाड़ी, ड्राइवर वगैरह। इन्होंने मेरे अंदर एक बेचैनी पैदा की, समझाया कि जो जिंदगी मैं जी रहा हूं, वो सही नहीं। धीरे-धीरे हमने एक दूसरे को जाना और यही से इस किताब की शुरुआत हुई।'

बता दें, इस किताब का प्रकाशन मंजुल पब्लिकेशंस ने किया है। करीब 450 पन्ने की इस किताब के जावेद अख्तर से जुड़े ऐसे कई ऐसे पहलू हैं, जो लोगों को अब तक उनके बारे में नहीं पता हैं।

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