करण जौहर की कंपनी के डिजिटल विंग ने ‘अजीब दास्तान्स’ बनाई है। इसका टाइटल ऐसा इसलिए है कि इसमें चार अलग कहानियां हैं। सब में किरदारों की जद्दोजहद खुशियों की खोज है। इसे चार अलग-अलग डायरेक्टरों ने बनाया है। पहली कहानी का टाइटल ‘मजनू’ है जिसे शशांक खेतान ने डायरेक्ट किया है। दूसरी ‘खिलौना’ है जिसके डायरेक्टर ‘गुड न्यूज’ फेम राज मेहता हैं। ‘गिली पुच्ची‘ नामक कहानी नीरज घेवान ने निर्देशित की है। ‘अनोखी’ की अजीब दास्तान को बमन ईरानी के बेटे कायोज ईरानी लेकर आए हैं। इन सबके किरदार और घटनाक्रम अलग हैं, मगर सबकी परम इच्छा खुशियों की खोज है। ऐसा करने पर हालांकि उन्हें कदम -और तंज झेलने पड़ते हैं। दिलचस्प बात है कि इन सारी कहानियों के किरदार और घटनाक्रम इन मुद्दों को उठाते तो हैं, मगर आगे चलकर परंपराओं के निर्वहन में ही घुट कर रह जाते हैं। वो घुटन की कैद से बाहर तो निकलना चाहते हैं, मगर गिल्ट का भाव उन्हें खुशियों के करीब नहीं पहुंचने देता।
वह चाहे ‘मजनू’ की लिपाक्षी, राजकुमार और बबलू भैया हों या फिर ‘खिलौना’ के बिन्नी, सुशील और मीनल। ‘गीली पुच्ची’ की प्रिया शर्मा को लाइफ से क्या चाहिए, वह उसे खुद पता नहीं। वहां भारती उसकी सारथी बनती है। समायरा, नताशा, रोहन और फोटोग्राफर के बीच की दास्तान अधूरी और अनकही रह जाती है। ठीक अपने टाइटल ‘अनकही’ की तरह।
लिपाक्षी, मीनल, भारती, नताशा स्ट्रॉन्ग महिलाओं को रिप्रजेंट करती हैं। सब अपनी खुशियों की खोज को लेकर ग्लानिहीन भी हैं। उन सबका पाला मगर जिनसे पड़ता है, वहां उन्हें हैरानी भरे परिणाम मिलते हैं। नताशा को छोड़ ये सारे किरदार छोटे शहरों के मिजाज से मैच करते हैं। इनकी सोच और इनके कदमों की व्याख्या शशांक खेतान, राज मेहता, कायोज ईरानी और नीरज घेवान ने की है। कहानियों में रोचक टर्न देने के लिए इन्होंने किरदारों के साथ जो घटनाक्रम डेवलप किए हैं, उन्होंने फिल्म को डीसेंट क्वालिटी का बनाया है, मगर वह एक्स्ट्राऑर्डिनरी नहीं बन सकी हैं।
‘मजनू’ की बुनियाद लिपाक्षी बगावती तेवर से सधे हुए अंदाज में रखी जाती है। मगर आगे चलकर वह राजकुमार और बबूल भैया के चूहा-बिल्ली दौड़ का हिस्सा बनकर रह जाती है।
‘खिलौना’ के आखिर में जो कुछ बिन्नी करती है, वह सरप्राइज एलिमेंट तो है। ‘गुड न्यूज’ जैसी कॉमेडी बना चुके राज मेहता यहां दर्शकों को झटका तो प्रदान करते हैं। स्क्रीनप्ले के लिहाज से यह प्रॉमिसिंग है।
‘गिली पुच्ची’ में नीरज घेवान को जरूर कोंकना सेन शर्मा का स्तरीय साथ मिला है। प्रिया शर्मा के रोल में अदिति राव हैदरी भी किरदार के कन्फ्यूजन को बेहतरी से लेकर आई हैं।
कायोज ईरानी बमन ईरानी के बेटे हैं। बतौर डायरेक्टर ‘अनकही’ में उनका प्रयास अच्छा है। उनकी स्टोरीटेलिंग को अनुभवी शेफाली शाह और मानव कौल ने पर्याप्त ऊंचाई प्रदान की है। मगर आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी नताशा क्यों बेडि़यां तोड़ नहीं पाती, उसे कायोज कन्विनसिंग तरीके से कन्क्लूड नहीं कर सके हैं। ‘मजनू’ के बबलू भैया की आंतरिक जद्दोजहद से भी ऑडिएंस शायद पूरी तरह कनेक्ट नहीं कर सकें।
बहरहाल, इन टोटैलिटी में फिल्म की ये सभी कहानियां दर्शकों को बहुत हद तक बांधे रखती है। वजह फातिमा सना शेख, जयदीप अहलावत, बाल कलाकार इनायत वर्मा, मीनल कपूर, नुसरत भरुचा, कोंकना सेन शर्मा, मानव कौल और शेफाली शाह की अनुशासित अदाकारी है। किरदारों के फिल्मांकन, कॉस्ट्यूम, बैकग्राउंड म्यूजिक और गानों में एक ऑथेंसिटी है, मगर इस तरह की एंथोलॉजी वाली फिल्मों जैसा गहरा असर नहीं रह पाता है। वह इसलिए कि सभी कहानियां इस मसले को डील कर रही होती हैं कि व्यक्तिगत खुशी हासिल करने के लिए बने बनाए ढर्रे तोड़ना गुनाह नहीं। मगर आखिर में ज्यादातर किरदार बनी बनाई लीक को ही फॉलो करने लग जाते हैं।
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