हिंदी सिनेमा के दिग्गज एक्टर पंकज कपूर ने खुद को किसी एक तरह की स्टोरी टेलिंग में नहीं सीमित रखा। वो गंभीर और हास्य दोनों तरह की फिल्मों में लगातार दिखते रहे हैं। वहीं अब वो अनुभव सिन्हा की भीड़ में बतौर सिक्योरिटी गार्ड नजर आएंगे, जो कोविड के चलते लगे पहले लॉकडाउन में अपने गांव जाने को मजबूर है। हाल ही में उन्होंने दैनिक भास्कर से अपनी अपकमिंग फिल्म को लेकर खास बातचीत की है। पेश हैं उनके प्रमुख अंश-
मुझे हैदर में उनका काम बहुत अच्छा लगा था
मेरे लिए वह कहना मुश्किल है। सच कहूं तो किसी भी कलाकार के लिए ऐसे चुन पाना मुश्किल ही है। मुझे उनका काम हैदर में बड़ा अच्छा लगा। मौसम में भी वो मुझे बेहद अच्छे लगे। कबीर सिंह और फर्जी में उनका काम मुझे बेहद पसंद आया है। वो दिखा रहें हैं कि जैसे जैसे वक्त गुजरता जा रहा है, वह बतौर अभिनेता और बेहतर होते जा रहें हैं। जो बड़ी मुबारक बात है।
एक्टिंग के मामले में शाहिद मेरी राय नहीं लेते हैं
मुझे इस बात का गर्व है। बहुत खुशी भी है कि वो एक ऐसे माहौल में अपनी जगह बना पा रहें हैं, जहां वो न सिर्फ बतौर स्टार, बल्कि अभिनेता के तौर पर भी बेटर कर रहें हैं। वो हमेशा लोगों की यादों में रहने वाले हैं। अच्छी चीज यह है कि वो कैरेक्टर प्रेप को लेकर मेरी राय नहीं लेते, वो अपने तरीके से किरदारों में रंग भरते हैं ।
भीड़ पॉलिटिकल फिल्म बिल्कुल नहीं है
ये पॉलिटिकल फिल्म तो कतई नहीं है। इसमें लॉकडाउन वाले फेज के दौरान समूचे हिंदुस्तानियों की मामूली से लेकर बड़े मसलों के प्रति जो सोच थी, वह सब दिखाया गया है।
डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने हमें महसूस करवाया कि कोविड में कैसे हालात थे- पंकज कपूर
एक्टर बिरादरी के लिए मैं अब भी यही मानता हूं कि आप कितनी सजगता से दिए गए किरदार को जीवंत कर पाते हैं, उस पर ध्यान दें। जो राइटर और डायरेक्टर ने गढ़ा है, उसके प्रति समर्पित रहता हूं। डायरेक्टर अनुभव ने हमें शूट के दौरान महसूस करवाया कि आखिर लॉकडाउन लगने के बाद जो हालात बने, उनमें माइग्रेंट वर्कर्स पर क्या गुजरी हुई होगी? वरना हम तो उस साल अपने अपने घरों में बंद थे।
हर विचारधारा का स्वागत होना चाहिए
मेरा मानना है कि फिल्मों में हर प्रकार की विचारधाराओं का स्वागत होना चाहिए। मैंने कश्मीर फाइल्स नहीं देखी है। पर इंडस्ट्री में भीड़ हो या फिर कश्मीर फाइल्स जो कुछ हमारे इर्द गिर्द हो चुका है, उन वाकयों पर हमारा कंट्रोल नहीं है। अब उन वाक्यों, हादसों पर क्या बतौर समाज हमने सॉल्युशन निकालने की कोशिश की या हमने किन्हीं और की जिम्मेदारी पर छोड़ दिया।
फिल्मों को देखकर उस पर राय बनानी चाहिए
मेरे ख्याल से किसी फिल्म को राजनीतिक लेवल पर क्यों देखते हैं? खासकर भीड़ जो रिलीज नहीं हुई, उसके प्रति एक अवधारणा क्यों बनाई जा रही है। पहले उसे देखा जाए, फिर तय किया जाए। रहा सवाल शिंडलर्स लिस्ट का तो वैसी फिल्मों का जिक्र जरूरी नहीं है। पर आप कर रहे कि हिटलर की मानसिकता पर दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म द ग्रेट डिक्टेटर है। तो उस मसले पर उससे बड़ी फिल्म कोई है नहीं। उसमें सबसे मजेदार बात है कि हिटलर और ज्यु दोनों की शक्ल एक जैसी है। वहां मगर आप हंस हंस कर पागल भी होते हो। तो किसी भी मुद्दे पर बात कहने का स्वागत होना चाहिए।
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