'फिल्में बनती रहेंगी, थिएटर चलता रहेगा':थिएटर्स डे पर इमोशनल हुईं सास भी कभी बहू थी एक्ट्रेस केतकी, बोलीं- जब मौका मिलता है प्ले करती हूं

2 महीने पहलेलेखक: उमेश कुमार उपाध्याय
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27 मार्च को वर्ल्ड थिएटर दिवस है। इस अवसर पर वर्षों थिएटर से जुड़ी केतकी दवे से बातचीत हुई, तब उन्होंने थिएटर से लेकर जीवन जीने के मंत्र आदि के बारे में अपने विचार व्यक्त किया। प्रस्तुत है- खास बातचीत का प्रमुख अंश:

थिएटर को जिंदा रखना बहुत जरूरी है
बातचीत के दाैरान केतकी ने कहा- 'यही कहूंगी कि हम थिएटर को याद करेंगे। ऐसे दिवस जब आते हैं, तब इसलिए आते हैं कि हम उसे याद रखें, उसे भूले नहीं। हमारी जिंदगी में थिएटर बहुत अहम चीज है। थिएटर को जिंदा रखना बहुत जरूरी है। इंसान के लिए यह एक्सप्रेशन ऑफ आर्ट है।'

फिल्में बनती रहती हैं थिएटर चलता रहता है
तमाम प्लेटफॉर्म खुलने के बावजूद आज भी थिएटर अच्छी स्थिति में है। थिएटर में भी चेंज होता रहता है। जब कैसेट, वीडियो, टेलीविजन आदि आया था, तब लगता था कि अब थिएटर का क्या होगा! लेकिन यह लाइव आर्ट है और यह चलता ही रहा।

फिल्में भी बनती रहीं, पर थिएटर लोग देखते रहे। चेंज आ जाता है, पर लोग थिएटर में आ ही जाते हैं। थिएटर ऐसी चीज है, जिसे लोग भूलेंगे नहीं। लाइव आर्ट, लाइव परफॉर्मेंस, लाइव एंटरटेनमेंट यह चीज बिल्कुल अलग ही है।

फिल्मों-सीरियल में कट हो सकता है, थिएटर में नहीं
मुझे जब कभी लगता है कि जंग लग गई है, चीजें मोनोटोनस हो रही है, तब जाकर प्ले करती हूं। क्योंकि प्ले हमेशा मेमोरी को अलर्ट रखता है। हम लोगों को तीन घंटे का प्ले याद करना पड़ता है। फिल्म और टीवी सीरियल में कट होने का चांस है। पर जब थिएटर करते हैं, तब हमारी पूरी बॉडी एक-दूसरे से इन्वाल्व रहती है। उसका एक अलग ही स्टडी है।

मुझे जब मौका मिलता है थिएटर करती हूं
थिएटर करने से ऑडियंस के साथ एक कनेक्शन रहता है। इसलिए मेरा एक प्ले चालू रहता ही है। मुझे जैसे चांस मिलता है, प्ले करती रहती हूं। थिएटर में फिजिकल मूवमेंट बहुत होते हैं, इसलिए बॉडी बहुत स्ट्रॉन्ग रखना पड़ता है। यह स्कूल की तरह है, जिसमें स्टडी करते हैं।

रसिक साहब नहीं रहे तो लाइफ में अर्जेस्ट कर रही हूं
चल रहा है। रसिक साहब नहीं रहे तो डेफिनेटली जिंदगी में चेंज आनी ही है। लाइफ में अर्जेस्ट करना पड़ता है, यही जिंदगी है। यह चलती रहती है। रसिक चले गए तो अब हमारे घर में पोता आया है। अब दादी बन गई हूं। जिंदगी अलग हो जाती है और उसके साथ हम लोग चलते रहते हैं। जैसा सिचुएशन होता है, उस हिसाब से अर्जेस्ट करती हूं।

दुख से कैसे भाग सकते हो, उसका सामना करना ही होगा
लोग कहते हैं कि हमें दुखी नहीं होना है, अरे भई! कैसे दुखी नहीं होना है। होना ही पड़ेगा, दुख से कैसे भाग सकते हो। उसी तरह जब सुख आता है, तब उससे भी भाग नहीं सकोगे। उसे लेना तो पड़ेगा, न तो नहीं बोलेंगे।

सुख भी थोड़ा समय रहकर चला जाता है, वह भी कहां हमेशा टिकता है। वैसे दुख भी चला जाता है। दोनों आते और चले जाते हैं। फिर तो जैसा जो आए, उसे वैसे जियो। जिंदगी जीने का यही मंत्र है।

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