बॉलीवुड एक्टर मनोज बाजपेयी ने 'सीक्रेट ऑफ द कोहिनूर' को होस्ट किया है। इसके निर्देशक राघव जयरथ और क्रिएटर नीरज पांडे रहे हैं। हाल ही में उन्होंने दैनिक भास्कर से इस सीरीज और अपनी इसमें अपनी एक्टिंग के बारे में बात की। आईए पढ़ते हैं बातचीत के प्रमुख अंश :-
Q.आपके अनुसार एक्टिंग का क्या मतलब है?
A.कोई दूसरा व्यक्ति या किसी दूसरे की स्किन में खुद को ढालना मुझे ये न सिर्फ चुनौतीपूर्ण काम लगता है, बल्कि मेरे लिए ये बहुत अट्रैक्टिव भी है। मेरा दिमाग, मेरी सांस, मेरा न होकर किसी दूसरे व्यक्ति और व्यक्तित्व का हो जाए, वहां तक पहुंचने की जो आकांक्षा है, मेरे लिए वो एक्टिंग है। एक्टिंग सिर्फ लाइनें बोलना नहीं है। एक्टिंग अपने किरदार का कवच फेंक करके दूसरे के किरदार को ओढ़ना और उसके मानसिक और शारीरिक अवस्था को ओढ़ना वो मेरे लिए एक्टिंग होती है।
Q.किसी किरदार को जीवंत करने का तौर-तरीका क्या होता है?
A.उसके लिए हम एक दिन बैठकर वर्कशॉप करते हैं। अभी भी लगता है कि जैसे बहुत कम जाना है। मैं उसे एक्सपलेन नहीं कर पाऊंगा। अगर एक्सपलेन करने चलूं, तब हमें कम से कम दो-चार दिन यहीं पर बैठना पड़ेगा। आप किसी राइटर से पूछिए कि आप नॉवेल कैसे लिखते हैं, तो वो कभी भी इस बात का जवाब नहीं दे पाएगा। उसे लिखना उसका जुनून है। उसे लिखने में उसे मजा आता है। लेकिन उससे पूछेंगे कि कहानी को कैसे पन्ने पर उतारते हो, तब कोई भी लेखक जवाब नहीं दे पाएगा। उसी तरह एक एक्टर भी इस सवाल का जवाब नहीं दे पाएगा कि आप एक्टिंग कैसे करते हैं? किरदार के परफॉर्मेंस को कैसे सामने लेकर आते हैं? यह कहना बहुत मुश्किल है। हम हर पल उस किरदार को जीते हैं। कैमरे के सामने वो बाद में आता है। हम तो उसके एकाध महीने पहले से ही जी रहे होते हैं।
Q.आज आपकी कला को लोग आदर्श मानते हैं। आप किसे आदर्श मानते हैं?
A.देखिए, हमारे हिंदुस्तानी सिनेमा के इतिहास में इतने बड़े-बड़े दिग्गज हुए हैं, कि मैं नाम लेना शुरू करूंगा, तब पूरा दिन निकल जाएगा। दिलीप कुमार, मोतीलाल साहब, सहगल साहब से शुरू करेंगे, तब वो जाकर आजकल के नए-नए लड़के बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं और यह सब आदर्श हो जाते हैं। जिसके काम को देखते हुए अगर कुछ नया समझने को मिलता है, तब वे सब आदर्श हो जाते हैं। लेकिन आपके सवाल का जवाब एक लाइन में मैं दूं या उस तरीके से दूं, जिस तरह से आप सुनना चाहते हैं, तब मैं कहूंगा कि मेरे आदर्श बैरी जॉन हैं। उन्होंने मुझे सिखाया, मुझ पर विश्वास दिखाया, लेकिन वो मेरे टीचर थे, वे अभिनेता नहीं थे। मुझे रघुवीर यादव साहब, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी साहब, पंकज कपूर साहब, अनु कपूर साहब… मैं नाम लेता चलूं, क्योंकि इतने दिग्गज-दिग्गज एक्टर हमारे हिंदुस्तानी सिनेमा में मोतीलाल साहब, बलराज साहब आदि लोग मेरे आदर्श रहे हैं।
Q.क्या OTT का असर फिल्मों पर पड़ रहा है?
A.OTT से ज्यादा कोरोना का असर पड़ा है। कोरोना के बाद अब हमें देखना होगा कि लोगों की अपेक्षाएं किस तरह से बदली हैं। वे किस तरह का मनोरंजन चाहते हैं, किस तरह की फिल्मों को देखने कि लिए थिएटर में जाना चाहते हैं और किस तरह की फिल्मों को वे OTT या सैटेलाइट पर देखना चाहते हैं। उसके कारण बहुत सारे लोगों को काम मिलता है। बहुत सारी कहानियां बनती हैं। कुछ सिनेमा के लिए, कुछ OTT तो कुछ सैटेलाइट के लिए बनाते हैं। बहुत सारे टैलेंटेड लोग बिजी हैं, हमारे लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात यह है।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.