जब सड़क पर आ गया था मिस्टर परफेक्शनिस्ट का परिवार:कर्ज में दबकर दिवालिया हो गए थे आमिर खान के पिता, जॉब के लिए अपनी ग्रैजुएशन की डिग्री तलाशने लगे थे

2 वर्ष पहले
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पिता ताहिर हुसैन के साथ आमिर खान। - Dainik Bhaskar
पिता ताहिर हुसैन के साथ आमिर खान।

मिस्टर परफेक्शनिस्ट के नाम से मशहूर आमिर खान स्टारर सुपरहिट फिल्म 'लगान' की रिलीज को 20 साल हो गए हैं। 48 साल ('यादों की बरात' से 'लाल सिंह चड्ढा' तक) के फिल्मी करियर में आमिर ने खूब दौलत और शोहरत कमाई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी जिंदगी में एक वक्त ऐसा आया था, जब बतौर फिल्ममेकर उनके पिता ताहिर हुसैन दिवालिया हो गए थे और उनका परिवार करीब-करीब सड़क पर आ गया था। खुद आमिर ने कुछ समय पहले इसका खुलासा एक बातचीत में किया था।

'मेरे पिता को बिजनेस करना नहीं आता था'
आमिर ने एक मीडिया इंटरेक्शन में कहा था, "मैं फिल्म फैमिली से आता हूं। मैंने अपने चाचा (नासिर हुसैन) को फिल्म बनाते देखा है। पिता को फिल्म बनाते देखा है। मेरे पिता बहुत ही उत्साही और अच्छे प्रोड्यूसर थे। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि बिजनेस कैसे किया जाता है। इसलिए उन्होंने कभी कोई पैसा नहीं बनाया। और उन्हें एक ही समस्या थी। कोई फिल्म 8 साल में बनती थी तो कोई 3 साल में।"

'मैंने पिता को बेहद आर्थिक संकट में देखा'
आमिर ने पिता के आर्थिक संकट के बारे में बताते हुए कहा था, "वे बहुत ज्यादा कर्ज में दब गए थे। मैंने पिता को बेहद आर्थिक संकट से जूझते देखा है। मुझे नहीं पता कि आप जानते हैं या नहीं। लेकिन हम लगभग दिवालिया हो गए थे और उस वक्त लगभग सड़क पर आ गए थे।" आमिर ने इस दौरान एक घटना को याद किया, जब उनकी मां ने बताया था कि उनके पिता जॉब की जरूरत महसूस करते हुए एक अपनी ग्रैजुएशन की डिग्री ढूंढने लगे थे। उन्होंने कहा, "ऐसी स्थिति आ गई थी कि एक 40 साल का आदमी अपने ग्रैजुएशन का सर्टिफिकेट तलाशने लगा था।"

'कभी बॉक्स ऑफिस का अनुमान नहीं लगाया'
आमिर खान आज की तारीख में सबसे सफल फिल्म निर्माताओं में से एक हैं। लेकिन उनकी मानें तो उन्होंने कभी आर्थिक रूप से सफल होने के बारे में नहीं सोचा था। उन्होंने बताया था, "मैंने कभी बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का अनुमान नहीं लगाया। अगर मुझे कहानी पसंद आती है तो मैं उसे कर लेता हूं। मैंने मुद्दा परख कहानियां नहीं की।"

'टिकट लेकर लेक्चर कोई नहीं सुनना चाहता'
आमिर ने आगे कहा, "मुझे लगता है कि किसी भी फिल्म का पहला काम मनोरंजन करना होता है। फिल्म टिकट खरीदकर कोई भी सोशियोलॉजी और साइकोलॉजी पर लेक्चर नहीं सुनना चाहता। इसके लिए लोग कॉलेज जाते हैं। लोग मनोरंजन चाहते हैं। इसलिए मैं आपको बोर नहीं करना चाहता। अगर मनोरंजन करते हुए मुझे आपको कुछ जरूरी कहना है तो मैं वह कहूंगा। मैं आपको सिर्फ ज्ञान नहीं दूंगा। लेकिन अगर मैं दोनों काम कर सकता हूं तो सोने पे सुहागा।"

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