स्किन कैंसर (मेलानोमा) से लड़ने में कुछ एंटीबायोटिक्स असरदार पाई गई हैं। रिसर्च करने वाले बेल्जियम के वैज्ञानिकों का कहना है, ये एंटीबायोटिक्स कैंसर कोशिकाओं को टार्गेट करती हैं और इन्हें बढ़ने से रोकती हैं। चूहे पर हुए प्रयोग में इन एंटीबायोटिक्स का असर देखा गया है। एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन्स जर्नल में पब्लिश रिसर्च कहती है, ये एंटीबायोटिक्स स्किन कैंसर से लड़ने में एक हथियार साबित हो सकती हैं।
एंटीबायोटिक्स से कंट्रोल कर सकते हैं कैंसर कोशिकाएं
शोधकर्ता इलियोनोरा लियुकी के मुताबिक, जैसे-जैसे स्किन कैंसर बढ़ता है कुछ कैंसर कोशिकाएं इलाज के दौरान खुद को दवाओं से असर से बचा लेती हैं। इन्हीं कोशिकाओं में भविष्य में नए ट्यूमर बनाने की क्षमता रहती है। रिसर्च में पाया गया कि एंटीबायोटिक्स की मदद से इन्हें कंट्रोल किया जा सकता है। ऐसी एंटीबायोटिक्स को एंटी-मेलानोमा एजेंट की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
चूहे पर ऐसे किया गया प्रयोग
कैंसर कोशिकाओं पर एंटीबायोटिक्स के असर को देखने के लिए एक प्रयोग किया गया। मरीज से कैंसर का ट्यूमर निकालकर चूहे में इम्प्लांट किया गया। इसका इलाज एंटीबायोटिक्स से किया गया। शोधकर्ता लियुकी का कहना है, एंटीबायोटिक्स ने कई कैंसर कोशिकाओं को तेजी से खत्म कर दिया।
रिसर्च के दौरान ऐसी दवाओं का असर देखा गया जो बैक्टीरिया पर बेअसर साबित हो चुकी हैं। हालांकि, कैंसर के इलाज के दौरान इस बात का असर नहीं पड़ा है। इन दवाओं के प्रति कैंसर कोशिकाएं सेंसिटिव साबित हुई हैं। इसलिए इनका इस्तेमाल बैक्टीरियल संक्रमण के अलावा कैंसर के इलाज में भी किया जा सकता है।
क्या है मेलानोमा यानी स्किन कैंसर
मेलानोमा स्किन कैंसर का एक प्रकार है। जो सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। इसकी वजह क्या है, अब तक पता नहीं चल पाई है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है सूरज की किरणें इस कैंसर के लिए बड़ा रिस्क फैक्टर है।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के मुताबिक, स्किन कैंसर के सबसे ज्यादा मामले अश्वेत के मुकाबले श्वेत लोगों यानी गोरों में अधिक देखे जाते हैं।
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