ग्लोबल वॉर्मिंग का असर अब हमारी नींद पर भी देखने को मिल रहा है। डेनमार्क की कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी की एक हालिया रिसर्च के मुताबिक, बढ़ते तापमान के साथ ही हमारी नींद की अवधि घटती जा रही है। ऐसा रात में गर्मी बढ़ने के कारण हो रहा है। रिसर्चर्स की मानें तो औसतन एक व्यक्ति हर साल अपनी नींद के 44 घंटे खो रहा है।
68 देशों के लोगों पर हुई रिसर्च
यह रिसर्च 68 देशों के 47,000 लोगों पर की गई है। वैज्ञानिकों ने रिस्ट बैंड्स की मदद से इन लोगों की 70 लाख रातों की नींद को ट्रैक किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के तापमान में इजाफा होता ही जा रहा है, जिस वजह से हम अपनी नींद के कुछ और कीमती पल भी खोएंगे।
रिसर्चर्स के अनुसार, यह स्लीप लॉस पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में एक चौथाई ज्यादा हो रहा है। साथ ही, 65+ उम्र के लोगों में दोगुना और लो इनकम देशों के लोगों में तीन गुना है। इससे पहले हुई स्टडीज में वैज्ञानिकों ने मेंटल हेल्थ, हार्ट अटैक, खुदकुशी और दुर्घटनाओं पर क्लाइमेट चेंज के असर की जांच की थी।
हीटवेव से हो रहा नींद को नुकसान
वैज्ञानिक केल्टन माइनर कहते हैं कि गर्म रातें बड़ी आबादी की नींद खराब कर रही हैं। उदाहरण के लिए, 25 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान होने पर 46,000 अतिरिक्त लोग स्लीप लॉस के शिकार होते हैं। हाल ही में भारत और पाकिस्तान में चली खतरनाक लू ने करोड़ों लोगों की नींद की अवधि कम कर दी।
महिलाओं में ज्यादा स्लीप लॉस क्यों?
रिसर्च में कहा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की बॉडी रात में सोने से पहले जल्दी ठंडी हो जाती है। इसलिए रात में गर्मी बढ़ने पर महिलाएं ज्यादा प्रभावित होती हैं। इसके अलावा महिलाओं में औसतन त्वचा के नीचे का फैट भी ज्यादा होता है, जिसके चलते उनकी कूलिंग प्रोसेस स्लो हो जाती है।
बूढ़े लोगों की बात करें तो वो वैसे ही रात में कम सोते हैं और गरीब देशों में कूलिंग की अच्छी सुविधाएं कम होने के कारण वहां के लोग गर्मी से जूझते हैं।
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