कोरोना की वैक्सीन असरदार है, वैज्ञानिकों का इसका एक और प्रमाण दिया है। अमेरिकी शोधकर्ताओं की हालिया रिसर्च कहती है, वैक्सीन के डोज लगने के बाद 90 फीसदी तक उन लोगों में भी एंटीबॉडीज की संख्या बढ़ीं जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है। इनमें मौजूद एंटीबॉडीज उतनी ही स्ट्रॉन्ग थीं जितना एक स्वस्थ इंसान में होती हैं।
रिसर्च की 3 बड़ी बातें
दवाएं लेने के बावजूद एंटीबॉडीज बनीं
शोधकर्ताओं अली एलिकेडी का कहना है, इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएं लेने वालों में बनने वाली एंटीबॉडीज उन्हें कोविड से सुरक्षा दे सकेंगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है। संक्रमण से सुरक्षा के लिए शरीर में एंटीबॉडीज का मिनिमम लेवल क्या होना चाहिए, यह कोई भी नहीं जानता। इसके अलावा यह भी बताना मुश्किल है कि कोरोना के सामने आए रहे खतरनाक वैरिएंट और ब्रेकथो इंफेक्शन से वैक्सीन की थर्ड डोज कितना बचा पाएगी।
अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी का कहना है, जो लोग इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएं ले रहे हैं उन्हें इम्यून रिस्पॉन्स को बेहतर बनाने के लिए वैक्सीन की तीसरी डोज लगवाना जरूरी है।
संक्रमण होने के 9 महीने बाद भी शरीर में रहती हैं एंटीबॉडीज
शरीर में एंटीबॉडीज कितने समय तक रहती हैं, इस पर इटली की पडुआ यूनिवर्सिटी और लंदन के इम्पीरियल कॉलेज मिलकर रिसर्च की है। पिछले साल फरवरी और मार्च में इटली शहर में 3 हजार कोरोना पीड़ितों के डाटा की एनालिसिस की गई। इनमें से 85 फीसदी मरीजों की जांच की गई। मई और नवम्बर 2020 में एक बार फिर मरीजों में जांच करके एंटीबॉडीज का स्तर देखा गया। जांच में सामने आया कि जो फरवरी और मार्च में संक्रमित हुए थे उनमें से 98.8 फीसदी मरीजों में नवम्बर में भी एंटीबॉडीज पाई गईं।
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