सामान की पैकेजिंग से लेकर कपड़े बनाने तक, दुनियाभर में प्लास्टिक कई चीजों के लिए काम आता है। हालांकि, इसे रिसाइकिल करना कोई आसान काम नहीं है। ज्यादातर प्लास्टिक कचरे या फिर समुद्र में जाकर धरती को नुकसान पहुंचाता है। इस समस्या से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कीड़ा ढूंढ लिया है, जो प्लास्टिक को खाकर जिंदा रह सकता है।
इस सुपर वर्म का नाम है जोफोबास मोरियो। यह लार्वा कीड़े की प्रजाति का ही वर्म है। रिसर्चर्स का कहना है कि जोफोबास मोरियो पॉलिस्टाइरीन नाम के खास प्लास्टिक को आसानी से पचा लेता है। इसका कारण कीड़े की आंत में मौजूद बैक्टीरिया है।
सुपर वर्म क्या होता है?
सुपर वर्म एक ऐसा कीड़ा होता है, जिसे पक्षियों और रेप्टाइल्स के खाने के लिए पैदा किया जाता है। इसका आकार 2 इंच (5 सेंटीमीटर) तक हो सकता है। दुनिया के कुछ देश, जैसे मेक्सिको और थाइलैंड में भी लोग इसे खाना पसंद करते हैं।
प्लास्टिक खाकर कीड़ों का वजन बढ़ा
रिसर्च में वैज्ञानिकों ने इन कीड़ों को तीन ग्रुप्स में बांट दिया। इन्हें अलग-अलग प्लास्टिक की डाइट पर तीन हफ्तों के लिए रखा गया। इस दौरान पॉलिस्टाइरीन प्लास्टिक से बनने वाले थर्माकोल (स्टायरोफोम) को खाने वाले कीड़ों का वजन बढ़ते देखा गया। इस रिसर्च को यूनिवर्सिटी ऑफ क्वीन्सलैंड की टीम ने किया है।
नतीजों में सामने आया कि ये कीड़ा पॉलिस्टाइरीन और स्टाइरीन के टुकड़ों को खाकर खत्म कर देता है। ये दोनों ही प्लास्टिक खाने-पीने के कंटेनर और कार के पार्ट्स बनाने में इस्तेमाल होते हैं।
कीड़े नहीं, आंत के बैक्टीरिया का होगा इस्तेमाल
रिसर्चर्स का कहना है कि प्लास्टिक को रिसाइकिल करने में इस कीड़े का नहीं, बल्कि इसकी आंत में मौजूद बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाएगा। दरअसल, बैक्टीरिया ही है जो प्लास्टिक को पचाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी मदद से हाई क्वालिटी बायोप्लास्टिक बनाया जा सकता है। बायोप्लास्टिक जैविक चीजों से बनाया जाने वाला प्लास्टिक है।
पॉलिस्टाइरीन से क्या-क्या बनता है?
पॉलिस्टाइरीन प्लास्टिक से थर्माकोल/स्टायरोफोम, डिस्पोजेबल कटलरी, CD केसेस, लाइसेंस प्लेट के फ्रेम्स, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के पार्ट्स, ऑटोमोबाइल के पार्ट्स आदि बनाए जाते हैं।
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