कई बार ऐसा हाेता है कि आपकी तबीयत खराब है और जब डाॅक्टर के पास जाते हैं, ताे वह आपकी पूरी बात सुने बिना ही सलाह देकर टाल देता है। एक मरीज या पीड़ित की पूरी बात सुने बिना ही डॉक्टर की ऐसी सलाह देने के मामले महिलाओं के साथ कुछ ज्यादा ही होते हैं।
डॉक्टर्स के इस बर्ताव को मेडिकल गैसलाइटिंग कहा जाता है। कई बार मरीज मेडिकल गैसलाइटिंग के शिकार होते हैं। अमेरिका के पोर्टलैंड की 39 वर्षीय क्रिस्टीना कैरोन मेडिकल गैसलाइटिंग की शिकार हो चुकी हैं। डॉक्टर्स का मरीजों की समस्याओं को नजरअंदाज करना, उनकी बीमारी और लक्षणों के लिए मनोवैज्ञानिक वजहों को जिम्मेदार बताना या फिर उनकी बीमारी को सिरे से खारिज कर देना भी मेडिकल गैसलाइटिंग है।
इससे बचने के लिए जरूरी है कि बतौर मरीज सेकंड ओपिनियन लेना चाहिए। यानी, दूसरे डॉक्टर या अस्पताल में जाना चाहिए। न्यूयॉर्क टाइम्स को मेडिकल गैसलाइटिंग से जुड़े एक लेख पर 2,800 कमेंट्स मिले। कई स्टडी से पता चला है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को बीमारी में गलत इलाज की संभावनाएं ज्यादा हैं।
‘हार्ट स्मार्टर फॉर वुमन' की लेखिका डॉ. जेनिफर एच. मिएर्स का कहना है कि मेडिकल गैसलाइटिंग एक असल समस्या है। मरीजों को खासतौर पर महिलाओं को इससे सचेत रहना चाहिए।
ऐसे पहचानें कि आप मेडिकल गैसलाइटिंग का शिकार हैं?
मेडिकल गैसलाइटिंग से बचने के लिए अपने लक्षणों का रिकॉर्ड रखें
डायरी में अपने लक्षणों को लिखें। क्या परेशानी होती है, किस तरह का दर्द होता है, आपके ट्रिगर पॉइंट क्या हैं, क्या ये परेशानी हमेशा बनी रहती है या किसी खास तरह के वातावरण में आपको इन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इन सभी सवालों के जवाब डायरी में दर्ज करें। इसके साथ ही अपनी पुरानी मेडिकल रिपोर्ट, दवाई और परिवार की मेडिकल हिस्ट्री का ब्यौरा साथ रखें।
परेशानी बनी रहे तो अपनी बात को दूसरे तरीके से रखें
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