लम्बे समय तक अंतरिक्ष में रहने वालों का हार्ट सिकुड़ सकता है। यहां रहने पर लो-इंटेनसिटी एक्सरसाइज भी हार्ट पर पड़ने वाले असर को रोकने के लिए काफी नहीं है। यह दावा यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास साउथवेस्टर्न मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में किया है।
ऐसे समझें रिसर्च
शोधकर्ताओं का कहना है, अंतरिक्ष में रहने पर शरीर भार महसूस नहीं करता। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 2015 से लेकर 2016 तक अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में रहे अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली पर अध्ययन किया। इनकी तुलना 2018 में प्रशांत महासागर में लम्बे समय तक तैरने वाले तैराक बिनॉयड लेकोम्ट से की, क्योंकि तैरने के दौरान भी अंतरिक्ष की तरह इंसान भारहीनता का अनुभव करता है।
तैराक बिनॉयड ने प्रशांत महासागर में 159 दिनों तक तैरकर 2,821 किलोमीटर की दूरी पार की थी। एक दिन में करीब 6 घंटे तक तैरे। इनका दोनों का डाटा रिसर्च में इस्तेमाल किया गया। दोनों में हार्ट के निचले हिस्से जिसे वायां वेंट्रिकल कहते हैं, इसके आकार में कमी आई।
इसलिए घटा आकार
शोधकर्ताओं का कहना है, आमतौर पर जब हम बैठे या खड़े होते हैं तो ग्रेविटी होने के कारण इंसान का ब्लड पैरों की तरफ अधिक फ्लो होता है। हार्ट को इसे भी संभालना पड़ता है और ग्रेविटी के विरुद्ध हार्ट को अपना आकार बरकरार रखते हुए पूरे शरीर में ब्लड पहुंचाना पड़ता है। लेकिन, अंतरिक्ष में ग्रेविटी न के बराबर होने पर अधिक ब्लड पम्प करने के लिए हार्ट को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती।
नतीजा, इनमें कोशिकाएं और ऊत्तक कम हो जाते हैं। यह सिकुड़ता है। वैज्ञानिक भाषा में इस समस्या को एट्रॉफी कहते हैं। अंतरिक्ष यात्रियों में एट्रॉफी के कारण हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और फ्रेक्चर का खतरा बना रहता है।
2 इंच से घटकर 1.8 इंच रह गया हार्ट का हिस्सा
इन दोनों इंसानों के हार्ट पर कितना असर पड़ा, डॉक्टर्स ने इसे अलग-अलग जांचों से समझा। रिसर्च में सामने आया कि दोनों के हार्ट के बाएं वेंट्रिकल्स की कोशिकाओं और ऊतकों में कमी आई। वेंट्रिकल्स की चौड़ाई घटी। केली के वेंट्रिकल का आकार 2 इंच से घटकर 1.8 इंच रह गया। वहीं, तैराक बिनॉयड में 1.9 से घटकर 1.8 इंच रह गया।
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