दक्षिण प्रशांत महासागर के टोंगा देश में 15 जनवरी को एक ज्वालामुखी फटा था। यह विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि इसका असर पूरी पृथ्वी पर देखने को मिला था। समुद्र के नीचे फटे इस ज्वालामुखी ने लहरों पर इस तरह दबाव बनाया था कि इससे बनी शॉक वेव्स धरती के वायुमंडल से होकर गुजरी थीं।
140 साल बाद हुआ इतना बड़ा विस्फोट
140 साल बाद हुए इतने बड़े विस्फोट से ज्वालामुखी ही नष्ट हो जाना चाहिए था, लेकिन वैज्ञानिकों की मानें तो ज्वालामुखी कुछ बदलावों के साथ जिंदा है। यह रिसर्च न्यूजीलैंड के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर वॉटर एंड एटमॉस्फेरिक रिसर्च (NIWA) के रिसर्चर्स ने की है। इससे पहले 1883 में इंडोनेशिया के क्राकाटोआ में ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था, जिसमें 36 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
ज्वालामुखी के आसपास हुए बदलाव
दरअसल, NIWA ने ज्वालामुखी के आसपास के समुद्र तल के 22,000 स्क्वायर किलोमीटर एरिया की मैपिंग की। इसमें से 8,000 स्क्वायर किलोमीटर एरिया में बदलाव देखे गए हैं। रिसर्चर्स के मुताबिक ज्वालामुखी के पास का 7 क्यूबिक किलोमीटर हिस्से का मटेरियल इधर-उधर हो गया है। ये 30 लाख ओलिंपिक-साइज स्विमिंग पूल्स के बराबर है। विस्फोट के कारण यहां मौजूद इंटरनेट केबल भी तबाह हो गई है, जिससे कम्युनिकेशन टूट गया है। ये केबल 30 मीटर तक की राख और पत्थरों के नीचे दब गई है।
फटने के बाद भी ज्वालामुखी जिंदा
रिसर्च में शामिल डॉ मैल्कम क्लार्क कहते हैं- वैसे तो ज्वालामुखी का तल काफी बंजर है, लेकिन फिर भी यहां की बायोडायवर्सिटी बनी हुई है। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि ज्वालामुखी अब भी फट रहा है। इसका स्ट्रक्चर भी काफी हद तक पहले जैसा ही है। फिलहाल इसके अंदर से राख निकल रही है। यह देख वैज्ञानिक भी हैरान हैं।
डॉ साराह सीब्रुक कहती हैं- ज्वालामुखी से निकलने वाली राख सूक्ष्म समुद्री काई के लिए खाद की तरह काम करती है। इसमें मौजूद न्यूट्रिएंट्स पेड़-पौधों व जीव-जंतुओं को पनपने में मदद करते हैं। वैज्ञानिकों ने इस रिसर्च के लिए सैंकड़ों सैंपल्स इकट्ठा किए हैं, ताकि वे ज्वालामुखी के वातावरण की अच्छे से जांच कर सकें। उनका कहना है कि फिलहाल ज्वालामुखी इस भयानक विस्फोट से रिकवर हो रहा है।
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