जब कोई बात याद न आ रही हो तो आंखें बंद करके उसे याद करने की कोशिश करें। यह तरीका भुलाई जा चुकी बात को आसानी से याद करने में मदद करता है। ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने इस पर रिसर्च की है। रिसर्च के नतीजे बताते हैं, आंखें खुली रखकर याद करने की तुलना में आंखें बंद करके सोचने से याद्दाश्त में 23% तक बढ़ोतरी की जा सकती है। यह रिसर्च लीगल एंड क्रिमिनोलॉजिकल साइकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
आंखें बंद करते ही मस्तिष्क में तस्वीर बनने लगती है
एस्टन यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी विभाग में लेक्चरर और शोधकर्ता रॉबर्ट नैश कहते हैं, अगर आसपास डिस्टर्ब करने वाली चीजों से नजरें हटा ली जाएं तो दिमाग में सामंजस्य बिठाने की क्षमता बढ़ती है। इससे एकाग्रता बढ़ती है और चीजों को जल्दी याद किया जा सकता है।
रॉबर्ट कहते हैं, आंखें बंद करने से पुरानी बातें और जानकारियों की दिमाग में एक तस्वीर बनने लगती है। रिसर्च कहती है, अधिक तनाव और बेचैनी के बीच चीजों को याद करना मुश्किल होता है। कभी कुछ भी याद करें तो दिमाग पर जरूरत से ज्यादा दबाव न बढ़ाएं।
29,500 लोगों पर हुई रिसर्च
ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने 29,500 लोगों पर एक ऑनलाइन सर्वे किया। सर्वे के बाद याद्दाश्त को बेहतर करने के 6 तरीके बताए-
मेमोरी का मोटापे से भी है कनेक्शन
वेरमॉन्ट यूनिवर्सिटी और येल यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च कहती है, मोटापे का मेमोरी से एक कनेक्शन है। रिसर्च के मुताबिक, सामान्य से अधिक बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाले बच्चों की वर्किंग मेमोरी कमजोर होती है। रिसर्च के लिए 10 सालाें तक 10 हजार टीनेजर्स का डेटा लिया गया और फिर उसका विश्लेषण हुआ। हर दो साल के दौरान सभी प्रतिभागियाें की जांच की गई और उनके ब्लड सैंपल भी चेक हुए। उनके दिमाग की स्कैनिंग भी की गई।
समझें, शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म मेमोरी का फर्क
दो तरह की यादों के सहारे हम काम करते हैं। एक शॉर्ट टर्म मेमोरी और दूसरी लॉन्ग टर्म मेमोरी। शॉर्ट टर्म मेमोरी 20 से 30 सेकंड तक ही टिक पाती हैं। यह याद्दाश्त उन कामों और विचारों के बारे में होती है, जिन पर हम उस समय काम कर रहे होते हैं। जबकि लाॅन्ग टर्म मेमाेरी कई दिनों, महीनों और दशकों तक बनी रहती है। ये यादें हमारे मस्तिष्क में स्टोर हो जाती हैं और जब हमें इसकी जरूरत होती है तो ये याद आती हैं। आंखें बंद करके सोचने से ऐसी यादों को बाहर लाना आसान हो जाता है।
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