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इंसानों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाने वाली ओजोन लेयर के लिए लॉकडाउन राहत वाला समय कहा जा सकता है। देश में लॉकडाउन का जो असर हुआ, उसका एक बड़ा फायदा ओजोन लेयर को भी मिला है।
एनसीबीआई जर्नल में प्रकाशित भारतीय वैज्ञानिकों की रिसर्च कहती है, दुनिया के कुछ देशों में 23 जनवरी से लॉकडाउन लगने के बाद प्रदूषण में 35 फीसदी की कमी और नाइट्रोजन ऑक्साइड में 60 फीसदी की गिरावट आई है। इसी दौरान ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाले कार्बन का उत्सर्जन भी 1.5 से 2 फीसदी तक घटा और कार्बन डाई ऑक्साइड का लेवल भी कम हुआ। ये सभी ऐसे फैक्टर हैं, जो ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाते हैं।
इसी साल अप्रैल महीने की शुरुआत में ओजोन लेयर पर बना सबसे बड़ा छेद अपने आप ठीक होने की खबर भी आई। वैज्ञानिकों ने पुष्टि कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है।
सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी किरणों को रोकने वाली इस लेयर को कोरोनाकाल में कितनी राहत मिली है, इस पर पूरी रिपोर्ट आनी बाकी है। पर्यावरणविद् शम्स परवेज के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाले कार्बन और दूसरी गैसों का उत्सर्जन 50 फीसदी तक घटा, जिसका पॉजिटिव इफेक्ट आने वाले समय में दिख सकता है। इस दौरान एयर ट्रैफिक 80 तक कम हुआ है, जो फिलहाल अच्छे संकेत रहे हैं। आज वर्ल्ड ओजोन डे है, इस मौके पर जानिए यह क्यों जरूरी है और क्या बढ़ते तापमान का असर इस पर पड़ेगा....
खबर से पहले ओजोन लेयर के बारे में ये 5 बातें समझें
1. ओजोन लेयर क्या है?
ओजोन लेयर दो तरह की होती है। एक फायदेमंद है और दूसरी नुकसानदेह।
2. ओजोन लेयर में छेद होने का मतलब क्या है?
इस लेयर में छेद होने पर सूर्य की पराबैंगनी किरणें सीधे धरती तक पहुंचेंगी। ये किरणें स्किन कैंसर, मलेरिया, मोतियाबिंद और संक्रमक रोगों का खतरा बढ़ाती हैं। अगर ओजोन लेयर का दायरा 1 फीसदी भी घटता है और 2 फीसदी तक पराबैंगनी किरणें इंसानों तक पहुंचती हैं तो बीमारियों का खतरा काफी हद तक बढ़ सकता है।
3. क्यों इस लेयर को पहुंच रहा नुकसान?
4. ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले कण बनते कैसे हैं?
5. कैसे शुरू हुई वर्ल्ड ओजोन डे की शुरुआत
ओजोन परत में हो रहे क्षरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने पहल की। कनाडा के मॉन्ट्रियल में 16 सितंबर, 1987 को कई देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है। इसकी शुरुआत 1 जनवरी, 1989 को हुई। इस प्रोटोकॉल का लक्ष्य वर्ष 2050 तक ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों को कंट्रोल करना था। प्रोटोकॉल के मुताबिक, यह भी तय किया गया कि ओजोन परत को नष्ट करने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन जैसी गैसों के उत्पादन और उपयोग को सीमित किया जाएगा। इसमें भारत भी शामिल था। इस साल वर्ल्ड ओजोन डे की थीम है 'ओजोन फॉर लाइफ' यानी धरती पर जीवन के लिए इसका होना जरूरी है।
इंसानों को नुकसान पहुंचाने वाली ओजोन गैस घटी या बढ़ी?
6 महीने के लॉकडाउन में 50 फीसदी से अधिक प्रदूषण का स्तर घटा है, लेकिन ओजोन गैस का स्तर सिर्फ 20 फीसदी तक ही कम हुआ है। इसका स्तर इतना ही क्यों हुआ इसके जवाब में शम्स परवेज कहते हैं, लॉकडाउन के दौरान जगहों को सैनेटाइज करने में लिए सोडियम हायपो-क्लोराइड का इस्तेमाल हुआ। इससे ब्रीदिंग लेवल पर बनने वाली ओजोन गैस का स्तर उतना नहीं गिरा, जितना गिरना चाहिए था।
दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, इसका ओजोन लेयर पर क्या असर पड़ेगा
दुनिया में बढ़ता तापमान और इस लेयर के बीच कोई संबंध नहीं है। वायुमंडल का तापमान तब बढ़ता है, जब प्रदूषण के कारण पर्यावरण में मौजूद कण सूरज की गर्मी को अवशोषित करते हैं। इनमें सबसे ज्यादा कार्बन होते हैं। साउथ एशियाई देशों में प्रदूषण अधिक होने के कारण तापमान और भी बढ़ रहा है।
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