सिविल अस्पताल में आरओपी तकनीक से प्री मेच्योर दृष्टिहीन शिशुओं की पहचान होगी
सिविल अस्पताल में अगले सप्ताह से रेटिनोपैथी आॅफ प्री मेच्योर (आरओपी) की सुविधा शुरू हो रही है। इस नई व्यवस्था के...
Bhaskar News Network | Last Modified - Apr 02, 2018, 04:05 AM IST
सिविल अस्पताल में अगले सप्ताह से रेटिनोपैथी आॅफ प्री मेच्योर (आरओपी) की सुविधा शुरू हो रही है। इस नई व्यवस्था के तहत जन्मजात दृष्टिहीन बच्चों की पहचान संभव होगी, ताकि समय पर उनका इलाज शुरू हो सके। इसका सबसे ज्यादा फायदा उन माताओं को होगा, जिनकी प्री मेच्योर डिलीवरी यानी समय से पूर्व बच्चा पैदा हुआ है। आमतौर पर अभिभावकाेें को बच्चे में तीन साल के बाद उनके दृष्टिदोष का पता चलता है। खास बात यह कि बाल रोग विशेषज्ञ डाॅ. रविंद्र और नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं सर्जन डाॅ. गुलशन महता पीजीआई चंडीगढ़ में आरओपी की ट्रेनिंग करके लौट आए हैं।
पहल
बाल रोग विशेषज्ञ और नेत्र सर्जन ने पीजीआई चंडीगढ़ में ट्रेनिंग ली, सभी जिला अस्पतालों में शुरू होगी सेवा
पीजीआई चंडीगढ़ में होगा लेजर ट्रीटमेंट
गर्भ में पल रहा भ्रूण नौ माह में विकसित होता है। इससे पूर्व सात व आठ माह में पैदा होने वाले शिशुओं को प्री मेच्योर कहा जाता है। इस स्थिति में शिशु के अविकसित होने की पूरी संभावना होती है। उनका ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक विकास भी नहीं हो पाता। इसके साथ ही उनके दृष्टिहीन या फिर नजर कमजोर होने की संभावना भी ज्यादा रहती है। इन बच्चों की पहचान करके लेजर ट्रीटमेंट के लिए पीजीआई चंडीगढ़ में रेफर कर दिया जाएगा। इलाज के दौरान रेटिना की कमजोर नसों को ठीक किया जाएगा। अगर समय पर कमजोर नसों का इलाज हो जाए तो आंखों की रोशनी को खोने से भी रोक सकते हैं।
इसलिए खो देते हैं आंखों की रोशनी
सिविल अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डाॅ. रविंद्र का कहना है कि प्री मेच्योर शिशुओं के सारे अंग पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते। उनका इम्यून सिस्टम भी काफी कमजोर होता है, जिससे उनके जल्दी संक्रमित होने का खतरा रहता है। इसीलिए इन बच्चों का दूसरे सामान्य बच्चों की तुलना में ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। इस स्थिति में कोई बीमारी होती है तो काफी दिनों तक वेंटिलेटर रहने या आॅक्सीजन लगाने पर रेटिना जल्दी खराब हो जाता है, जिससे शिशु को दिखाई नहीं देता या फिर नजर कमजोर हो जाती है।
यह भी जानना जरूरी
प्री मेच्याेर डिलीवरी के कारण असंतुलित खान-पान और गर्भवती में खून की कमी का होना है।
आरओपी के लिए पीजीआई रोहतक या चंडीगढ़ जाना पड़ता था। अब हिसार में सुविधा मिलेगी। दो किलोग्राम से कम वजन और नौ माह से पहले पैदा होने वाले शिशुओं की आंखों का रेटिना ज्यादा प्रभावित होता है।
अगले सप्ताह से शुरू होगी सेवा
निजी अस्पताल में एक बार जांच का शुल्क 500 से 1000 रुपए आता है। तीन बार तक जाना पड़ता है। सिविल अस्पताल व पीजीआई में यह निशुल्क है। प्री मेच्योर केसों में आरओपी से दृष्टिहीन बच्चों की पहचान कर पाएंगे। अगले सप्ताह से सेवा शुरू कर देंगे। डाॅ. गुलशन महता, नेत्र रोग विशेषज्ञ, सिविल अस्पताल हिसार।
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बाल रोग विशेषज्ञ और नेत्र सर्जन ने पीजीआई चंडीगढ़ में ट्रेनिंग ली, सभी जिला अस्पतालों में शुरू होगी सेवा
पीजीआई चंडीगढ़ में होगा लेजर ट्रीटमेंट
गर्भ में पल रहा भ्रूण नौ माह में विकसित होता है। इससे पूर्व सात व आठ माह में पैदा होने वाले शिशुओं को प्री मेच्योर कहा जाता है। इस स्थिति में शिशु के अविकसित होने की पूरी संभावना होती है। उनका ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक विकास भी नहीं हो पाता। इसके साथ ही उनके दृष्टिहीन या फिर नजर कमजोर होने की संभावना भी ज्यादा रहती है। इन बच्चों की पहचान करके लेजर ट्रीटमेंट के लिए पीजीआई चंडीगढ़ में रेफर कर दिया जाएगा। इलाज के दौरान रेटिना की कमजोर नसों को ठीक किया जाएगा। अगर समय पर कमजोर नसों का इलाज हो जाए तो आंखों की रोशनी को खोने से भी रोक सकते हैं।
इसलिए खो देते हैं आंखों की रोशनी
सिविल अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डाॅ. रविंद्र का कहना है कि प्री मेच्योर शिशुओं के सारे अंग पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते। उनका इम्यून सिस्टम भी काफी कमजोर होता है, जिससे उनके जल्दी संक्रमित होने का खतरा रहता है। इसीलिए इन बच्चों का दूसरे सामान्य बच्चों की तुलना में ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। इस स्थिति में कोई बीमारी होती है तो काफी दिनों तक वेंटिलेटर रहने या आॅक्सीजन लगाने पर रेटिना जल्दी खराब हो जाता है, जिससे शिशु को दिखाई नहीं देता या फिर नजर कमजोर हो जाती है।
यह भी जानना जरूरी


अगले सप्ताह से शुरू होगी सेवा

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Web Title: सिविल अस्पताल में आरओपी तकनीक से प्री मेच्योर दृष्टिहीन शिशुओं की पहचान होगी
(News in Hindi from Dainik Bhaskar)
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